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abhishekshukla5825
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ABHISHEK SHUKLA

Advocate High Court Allahabad

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ABHISHEK SHUKLA

सच को तमीज ही नही बात करने की
झूठ को देखो कितना मीठा बोलता है
सच का साथदेने के लिए आत्मा कहे
पर लोभी लालची मन झूठ बोलता है?

गाँवदेश मे भ्रष्ट लोगो का सच जानते
हुए मौन रहने की सजा हमे भी मिलें?
झूठमे आकर्षण है पर स्थिरता सचमे 
झूठसच कर्मफल पे आधारित होता है?

एक शब्द मंत्र एक शब्द गाली वाणी 
ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का परिचय है🙏
औरुकरै अपराध कोउ और पावफल भोगु
अतिबिचित्र भगवंत गति को जगजानै जोगु🙏

©ABHISHEK SHUKLA #Relationship
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ABHISHEK SHUKLA

गरीब, असहाय, शोषित और दलित निःशुल्क विधिक सहायता प्राप्त कर सकते हैं । सम्पर्क करें- *अभिषेक शुक्ल  अधिवक्ता उच्च न्यायालय इलाहाबाद ।* ☎️- 8953778529

©ABHISHEK SHUKLA #selflove
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ABHISHEK SHUKLA

सबसे सच्ची दोस्त हैं एक किताब
ज्ञान बढ़ाए मान दे, इनको रखिए साथ।
इनको रखिए साथ, पढ़ें ख़ुद और पढ़ायें।
अपना खाली वक्त, किताबों संग बिताएं।
जीवन एक किताब, पढ़ें रखिए भी ढब से।
उत्तम प्रेरक रहे, आपका जीवन सबसे।

©ABHISHEK SHUKLA
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ABHISHEK SHUKLA

Whether we will get success or failure, it largely depends on our thinking. If our thinking is positive, then it is late, but success is definitely achieved, while negative thinking complicates even simple tasks and increases the obstacles. If you want to increase positivity in thoughts, then adopt truth, goodness and honesty in your nature.

©ABHISHEK SHUKLA
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ABHISHEK SHUKLA

#दिनकर

हे सूर्य देव! रवि ,दिनकर,भास्कर भगवान
तुम्हारे तेज से हो रही सृष्टि दीप्तिमान ।।

उषा काल विकीर्ण होती लालवर्ण रश्मि तुम्हारी
कनक सी आभा पा सुरम्य रूप धरती सारी।।

मंदिरों मे शंखनाद गूंजे मस्जिदों में अजान
गिरिजाघर में प्रार्थना ,गुरुद्वारो में अरदास।।

होते ही भोर का भान पंछी आते नीड से बाहर
सुरीले स्वर में गाते भरते अंबर में ऊंची उड़ान।

निद्रा से जाग ,आलस त्याग, लगता दिनचर्या में इंसान ,
तुम्हारी उष्मा से प्रकृति का रहता अंग-अंग ऊर्जावान।

उच्च हिमालय के पीछे से निकल स्वर्ण किरण
आलोकित करती जीव जंतु वनस्पति का कण-कण

पहर रूपी दिन के भिन्न में विभाजित धूप तुम्हारी
बचपन, यौवन ,जरा जीवनकाल का सार बताती।

तुम्हारी महिमा से तमस,कुवास नमी का काम तमाम
सजती धरा पहन लाल, बसंती ,धानी, सुनहरे परिधान ।।

नकारात्मकता हरकर सकारात्मकता भरकर करते
तुम तेज से अपने चेतन अवचेतन में सुख का संचार ।।

तुम्हारे उदय-अस्त से ऋतुचक्र दिन रात बनते है
नव सृजन को निश्चित उत्पत्ति,अवसान संग चलते है।।

निरंतर चलते,तपते ढलते करते तुम सर्व कल्याण
हे सूर्यदेव! तुम्हारे तेज से हो रही सारी सृष्टि दीप्तिमान। ।

©ABHISHEK SHUKLA #philosophy
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ABHISHEK SHUKLA

वाणी की दीनता
अपनी मैं चीन्हता !

कहने में अर्थ नहीं
कहना पर व्यर्थ नहीं
मिलती है कहने में
एक तल्लीनता !

आस पास भूलता हूँ
जग भर में झूलता हूँ
सिन्धु के किनारे जैसे
कंकर शिशु बीनता !

कंकर निराले नीले
लाल सतरंगी पीले
शिशु की सजावट अपनी
शिशु की प्रवीनता !

भीतर की आहट भर
सजती है सजावट पर
नित्य नया कंकर क्रम
क्रम की नवीनता !

कंकर को चुनने में
वाणी को बुनने में
कोई महत्व नहीं
कोई नहीं हीनता !

केवल स्वभाव है
चुनने का चाव है
जीने की क्षमता है
मरने की क्षीणता !

©ABHISHEK SHUKLA #fullmoon
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ABHISHEK SHUKLA

आँगन गायब हो गया


घर फूटे गलियारे निकले आँगन गायब हो गया
शासन और प्रशासन में अनुशासन गायब हो गया ।

त्यौहारों का गला दबाया
बदसूरत महँगाई ने
आँख मिचोली हँसी ठिठोली
छीना है तन्हाई ने
फागुन गायब हुआ हमारा सावन गायब हो गया ।

शहरों ने कुछ टुकड़े फेंके
गाँव अभागे दौड़ पड़े
रंगों की परिभाषा पढ़ने
कच्चे धागे दौड़ पड़े
चूसा ख़ून मशीनों ने अपनापन गायब हो गया ।

नींद हमारी खोई-खोई
गीत हमारे रूठे हैं
रिश्ते नाते बर्तन जैसे
घर में टूटे-फूटे हैं
आँख भरी है गोकुल की वृंदावन गायब हो गया ।।

©ABHISHEK SHUKLA #Health
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ABHISHEK SHUKLA

मिली है जिंदगी प्यारे इसे नजराना कहते हैँ l
कभीँ खामोश रहते हैँ कभीँ अफसाना कहते हैँ l

चले आओ यहाँ देखो सभी मिल जुल के रहते हैँ l
जहाँ नफ़रत न ही क़ोई उसे मैखाना कहते हैँ l

अगर मै सच भी कह दूँ तो सुनेगा कौन ए बातें l
हकीकत बोलने को ही यहाँ दीवाना कहते हैँ l

वतन की आबरू जिस शख्स को प्यारी नही लगती l
अगर ओ जी रहा है तो उसे मर जाना कहते हैँ l

सियासत जानती है क्यों उगी है देश मे नफ़रत l
नए अंदाज मे इसको ही तो लड़वाना कहते हैँ l

©ABHISHEK SHUKLA #flowers
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ABHISHEK SHUKLA

विफल प्रयत्न हुए सारे, मैं हारी निष्ठुरता जीती


विफल प्रयत्न हुए सारे,
मैं हारी, निष्ठुरता जीती।
अरे न पूछो, कह न सकूँगी,
तुमसे मैं अपनी बीती।

नहीं मानते हो तो जा
उन मुकुलित कलियों से पूछो।
अथवा विरह विकल घायल सी
भ्रमरावलियों से पूछो।

जो माली के निठुर करों से
असमय में दी गईं मरोड़।
जिनका जर्जर हृदय विकल है,
प्रेमी मधुप-वृंद को छोड़।

सिंधु-प्रेयसी सरिता से तुम
जाके पूछो मेरा हाल।
जिसे मिलन-पथ पर रोका हो,
कहीं किसी ने बाधा डाल।

©ABHISHEK SHUKLA #Love
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ABHISHEK SHUKLA

अब कौन सुने 
व्याकुल चित और सूखे अधरों की आखिर अब कौन सुने,
पल भर की भी प्यास मिटे ना क्यों खुशियों के ख्वाब बुने,
किन कंधों का मिले सहारा जो गिरते आँसू रोक सके,
बहती दुःख की धारा को जो अपने बल से सोख सके,
भ्रमित पथ पर मिले सहारा, तो ऐसा कोई ख्वाब बुने,
व्याकुल चित और सूखे अधरों की आखिर अब कौन सुने,

शोषित जन की अंतस ध्वनि,
सुनने वाला कौन यहाँ,
किस बेला पर साँस रुकेंगे,
गिनने वाला कौन यहाँ
धन, पूंजी, ईर्ष्या माया के, मुखरित होते स्वर थमे
मानवता के घने अगम के गिरते ,पड़ते पाँव जमे
सुनो विधाता आपकी संतति, अब इस गहरे त्रास में है
नया सवेरा कब होगा, अब हर जन इसकी आस में है
जीवन अम्बर में होंगे, अब खुशियों के अंबुध घने
व्याकुल चित और सूखे अधरों की आखिर अब कौन सुने,
ये कविता समाज के उस शोषित वर्ग की है,
जिसकी आवाज हमेशा दबी रह जाती है।

©ABHISHEK SHUKLA
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