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shivamsen7127
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SHIVAM SEN

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SHIVAM SEN

"एक बचपन"


कभी किसी वक्त में, एक बचपन हुआ करता था, तब ना कोई सब्र, ना कोई डर, और ना कहीं कोई एक, सिर्फ अपना हुआ करता था, ख़ामोश भले तब ज़रूर थे, बोल भले कुछ ना पाते थे, समझ भले कुछ ना आता था, लोग भले बच्चा समझकर, प्रेम ओर गोद का सहारा बताते थे, मगर फिक्र, डर, दस्तूर, अंदाज़, फासले, मोहब्बत, दर्द, शिकवे, दूरी, इनका ना दौर था और ना शौक, ना सोच थी और ना समझ, तब भले अक्ल से कच्चे जरूर हों, मगर मन से सच्चे तो थे, तब बस एक गोद, एक दामन, एक आँचल में सारे ज़माने का सुकून और खुशी समाहित थी हमारे खातिर, किसी ओर के लिए हम उनके थे या नहीं, पता ही नही था, बस हमारे लिए सब बेवजह अपना हुआ करता था, भले कोई भी जख्म हो, चाहे गहरा कितना, कभी नासूर नही होता था, तब एक आँसू की भी कीमत होती थी, उसका भी क़िरदार हुआ करता था, गिरना – गिर कर उठना, शरारतें करना, वहीं एक मिट्टी में अपने सपने बुनना, बेवजह चेहरे पर एक मुस्कान लेकर चलना, ना कुछ पाने की ख्वाइश, ना कुछ खोने का डर, ना कोई लत, ना कोई कमज़ोरी और उन्ही शरारतों के बीच एक हल्की सी आवाज और मुस्कान को देख कर, अपनी सारी थकान को भूलना, वो बचपन हुआ करता था साहब, और मैं आज भी यही कहता हूं, की वो जो बित गया लम्हा, वो जो लौट कर नहीं आएगा, आज अब इस जिन्दगी में, अपने पर वो, फिर ना फैलाएगा।

©SHIVAM SEN
  "EK PYAR EK DARD"

"EK PYAR EK DARD" #Shayari

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SHIVAM SEN

की बहुत लिखा है मैने तुझको, उतारा भी है, हर एक पन्ने पर आरजू की तरह, की बहुत बातें की हैं इश्क़ और दर्द की मैने, खूब क़िस्से भी तेरी बेवफाई के सुनाए हैं, की बहुत सी कहानियां भी मोहब्बत ए जिन्दगी पर कही हैं, खूब नगमें भी जिस्म और आँसू के बहाये हैं, बहुत शिकायतें भी अकेलेपन और मिन्नतों की है मैने, पर हर दहलीज पर तुझे माँगने की दुआ भी की है, शमशान की कब्र में, अपने हाथों से, अपने ख्वाबों को, तेरे साथ दफनाया है मैने, और बहुत सी राहों पर अपने बिखरे टुकड़े भी उठाए हैं, की हर वक्त खुदा और तक़दीर की लकीरों से, तुझे ना देखने की फ़रियाद की है, और इस एक तरफा इश्क़ की चिंगारी को, बुझने से भी बचाया है मैने,  ज़माने और उस खुदा की नजरों में, होठों पर गहरी हँसी लिए जिन्दा दिखाया है खुद को, मगर अकेले और अंधेरेपन में हर एक आँसू के कतरे से, पुकारा भी है तुझको, की भले नही झुका मैं, किसी के खातिर, सामने किसी के, मगर शुक्र अदा बहुतों का किया है, तेरी सलामती के लिए, ये इश्क़–महकशी, अय्याशी–वफ़ा, कसमें–वादे , सच्चाई–सबूत, भरोसा – याद, चाहत और अपनापन, जिन्दा खा गए इन दिल्लगों को, वरना मौत और खुदकुशी, इन बाजारों में यूँ बदनाम ना होती, की भले दरकिनार हूँ इस दुनिया की भीड़ में मैं आज, की भले अब सहने का हुनर अच्छा आ गया, मगर औकात अब इस ज़मानें की भी कुछ नही मेरे आगे, क्यूँकि जख्मों पे सब्र, अब मुझे भी आ गया, की कोई कवि, या कोई शायर, नही मैं, मगर आज जमाने की मोहब्बत के अल्फाज़ ने, मेरी कलम को मुक़म्मल कर दिया, और बहुत लिख कर देख भी लिया मैने तुझे, हर एक जगह, मगर जिन्दगी के सुकून की तलाश, मोहब्बत की तस्वीरों में आज भी कहीं दफन है ।

©SHIVAM SEN
  SSSHIV - "EK PYAR EK DARD"

SSSHIV - "EK PYAR EK DARD" #Shayari

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SHIVAM SEN

अच्छी थी कहानी, अच्छी थी कहानी, पर अधूरी रह गई, कुछ पता ही ना चला, कब तबाह, और कब बरक़रार रह गई, हुस्न से परे, सिर्फ निगाहों के पन्नों पर लिपट कर, जिस्म से दूर, बस रूह की गहराइयों में उतर कर, ऐसी थी एक मोहब्बत, जो वफ़ा की तरह मजबूर, और बेवफ़ा की तरह मशहूर होकर भी, अधूरी रह गई, अगर इश्क़ में मिल जाना ही सबकुछ होता, तो लहू और इश्क़ के निशान एक ना होते, अगर हर मोहब्बत दो तरफा होती, तो उम्मीदों के हौसलों की दीवारों में दरारें ना होती, अगर वक्त पर हद्द में मोहब्बत होती, तो हाल ए जिन्दगी पर अफ़सोस ना होता, अगर काया रूपी सौन्दर्य से ऊपर उठकर मोहब्बत होती, तो इश्क़ की चादर बार बार बदलने की आदत ना होती, किसी की दर्द भरी यादों का बोझ उठाने की, हर रास्ते, हर जगह, बस किसी एक का इंतजार करने की, अपने आप को जिन्दा जला जला कर, नफ़रत की आग की चिंगारी जलाने की, किसी को बद्दुआ देने की, या किसी को तकदीर कौसने की, किसी को किसी के खातिर रोने की– तड़पने की, तो किसी को, किसी को खोने से डरने की, किसी को अपने आप को मिटा देने की, तो किसी को, किसी की मोहब्बत में बर्बाद होने की, किसी को मोहब्बत ए इश्क़ में मजबूर होने की, तो किसी को किस्सा ए मोहब्बत में, अपने वजूद, अपने ख़्वाब, अपनी वफ़ा, और अपने इश्क़ के जख्मों के दर्द की, कुर्बानी देने की, ज़रूरत ना होती, और साहब ये शख्स, ये मोहब्बत, ये दुनिया, ये लोग, और ये कहानी, आज अधूरी ना होती, आज अधूरी ना होती।

©SHIVAM SEN
  SSSHIV - "EK PYAR EK DARD"

SSSHIV - "EK PYAR EK DARD" #Shayari

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SHIVAM SEN

तुम्हे पता है अकेलापन क्या क्या करता है हमारे साथ, जीने की सही वजह देता है, दर्द के हर एक आखिरी कतरे तक को, हँसी में छिपाने का हौसला देता है, तेरे बेवफ़ा होने के बाद, तुझे पता है क्यूँ तन्हा बैठते हैं हम, तेरे बाद अब, ये हमें आजमाने की गुस्ताख़ी
नही करता, तुझे पता है क्यूँ कमबख्त इन तन्हाइयों से मोहब्बत कर बैठे हम, तेरी तरह, भरी भीड़ और सुनसान राहों के सफ़र में भी, मेरी उम्मीदों को आग नही लगाते ये, तुम्हे पता है क्यूँ इन पर इतना यकीन और इनका शौक हुआ मुझे, इन आँखों के आँसुओं के दरिया को किनारों से बाहर नहीं आने देते, थक जाते हैं, बिखर जाते हैं, टूट जाते हैं, उलझ जाते हैं, अरे दिन रात तड़पते हैं मेरी ही तरह, मगर तुझसे जुदा होने के बाद भी, तुझसे जुदा होने नही देते, तुझे पता है क्यूँ इनके साथ रहने का, जीने का, रोने का, मुस्कुराने का, वक्त बिताने का, खेलने का, यहाँ तक की मौत को भी गले लगाने का मन करता है, ये तेरी तरह रुख़्सत होकर या बेवफ़ा होकर छोड़ कर नही जाते जनाब, जिस्म से रूह निकलने के बाद भी, मुझसे मिलने के लिए, मेरा हाल पूछने के लिए, मुझे गले लगाने के लिए, मुझे फिर से अपना बनाने के लिए, दर दर मेरी ख़ोज में भटकते रहते हैं, तुझे पता है क्या क्या मिला है इस अकेलेपन से हमें, या यूँ कहूँ, की क्यूँ हम इसे अपनी जिन्दगी बना बैठे हैं, अपने हिस्से की जिन्दगी तो हम जी चुके जनाब, दुनिया के लिए जी कर भी देख लिया, ज़माने को अपनाकर भी देख लिया, दूसरों की खुशी के लिए खुद को जला कर भी देख लिया, मगर सच कहूँ तो अकेलेपन से अच्छे, सच्चे, हमसफर आशिक़ लाखों राहों पर दरबदर घूम कर भी ना मिल सके, मगर अब धड़कनों का जितना भी आसरा बचा है, अब इन्ही के नाम कर चुके, अब इन्ही के साथ कर चुके।

©SHIVAM SEN
  SSSHIV - "EK PYAR EK DARD"

SSSHIV - "EK PYAR EK DARD" #Shayari

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SHIVAM SEN

SSSHIV - "EK PYAR EK DARD"

ऐसा क्या है तुझमें, की फिर मिन्नतें करूं तुझे पाने के खातिर, क्यूँ फिर से ऐतबार करूं तुझपे, क्यूँ फिर से ढूँढता रहूँ हर जगह तुझे, क्यूँ तुझे ख्यालों में जिन्दा करूं फिर से, जिस मोहब्बत को दफना कर, जला कर बैठा था, तब से मैं, क्यूँ कब्र के दरवाजों से रिहा करूं फिर से, क्यूँ फिर से हमदर्द, सखा, प्रेम, सुबह, अन्त, साथी, संगीत, दुनिया, सबकुछ मान लूँ तुझे, क्यूँ इस एक तरफा मोहब्बत से, दो तरफा मोहब्बत करूं फिर से, क्यूँ इज़हार करूं, दुआ करूं, वादा करूं, वफ़ा करूं, फिक्र करूं, और हर पल याद करूं तुझे, जबकि जानता हूँ, की हर बार इस मोहब्बत के समन्दर में, लहरों का तूफान आकर सबकुछ ख़त्म और खामोश कर देता है, ये भी जानता हूँ की हर वक्त खोने का डर और आँखों में आँसू के झलकने का एहसास होगा, ये भी पता है की महफिलों की भीड़ और रोशनियों के लम्हें आज भी मंजूर नहीं करेंगे हमें, तो ऐसा क्या है तुझमें, की मैं मोहब्बत और ऐतबार करूं फिर से।


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  SSSHIV - "EK PYAR EK DARD"


(एक एहसास आज तेरे नाम)

SSSHIV - "EK PYAR EK DARD" (एक एहसास आज तेरे नाम) #Shayari

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SHIVAM SEN

SSSHIV - "EK PYAR EK DARD"
 

माँ –

वो शाम तो मुझे याद नहीं, जब सौंप कर आया था मैं तुझे, जमाने के हाथों में, पर जब तू छोड़ कर गया था ना मुझे, खुद से दूर कर के, वो सुबह आज भी याद है मुझे, वो जमाना, वो लोग, कुछ याद नही, पर वो गद्दार आज भी याद है मुझे, जिसके दर पर तेरी सलामती की दुआ की थी मैंने, तेरा गुस्सा, तेरी नफ़रत, तेरा रूठना, नज़रंदाज़ करना, भले याद नहीं मुझे, मगर मेरे सिर का तेरी गोद में होना, तेरे हाथों का मेरे सिर पर होना, वो मेरा तेरे सीने से लिपट कर सोना, वो हर एक छोटी सी तकलीफ़ को तेरे साथ बांटना, वो मेरी आँखों से निकले आँसू को तेरा बार बार पोंछना, अपने सीने से लगाकर हर बार मेरे सिर को चूमना, कहीं दूर से भी अचानक मेरा चेहरा देखने भर से, तेरे होठों का यूँ हँसी में बदलना, वो सब याद है मुझे, की भले चला गया है इस दुनिया की भीड़ से निकलकर, कहीं दूर तू, की भले वापस ना आने का जरिया दिया है, हमेशा के लिए जुदा हो कर, पर तेरा एहसास, तेरी बातें, तेरी हँसी, तेरा चेहरा, तेरे साथ गुजरा हर एक लम्हा, आज भी याद है मुझे, हाँ जानता हूँ, समझता भी हूँ मैं, की शायद बहुत बार रुलाया भी है तुझे, कभी परेशान भी किया है, सताया भी है तुझे, तकलीफ़ भी दी है थोड़ी और गलतियां भी की हैं, पर तेरा हर बार मुझे यूं माफ कर देना, सब कुछ भूल जाना, खुद से पहले मेरे बारे में सोचना, हर बार मेरी फिक्र करना, मुझे लगी हर एक चोट की दवा बनना, याद है मुझे, सब याद है, मगर सच कहूँ तो तेरे जाने के बाद भी, हर एक लम्हा मैं तुझसे जुदा नहीं हो पाता, हर वक्त, हर जगह मुझे आज भी एहसास होता है तेरा, जबकि जानता हूँ की तू मेरे साथ नही, याद है मुझे अब भी वो हर वक्त जब मैं तुझे खुद से जुदा नही कर पाता, नही भुला पाता मैं तुझे, पर आज भी याद है मुझे वो वक्त, जो मैने तेरे लिए, तेरे साथ, तेरे कारण और तेरी वजह से जिया था, मगर अब कैसी दुआ और कैसी शिकायत करूं, कैसी मोहब्बत और कैसी नफरत करूं, किसे सूनु और किसे कहूँं, क्या सही और क्या गलत कहूँं, चुप हूँ, अकेला हूँ काफी है, पर इतना कहूँगा बस, की टूट तो शायद पहले ही गया था, नकाबों के शहर में, जमाने की ठोकरों से मैं, मगर तुझसे जुदा हो कर, बिखर गया हूँ।

©SHIVAM SEN
  SSSHIV - "EK PYAR EK DARD"

SSSHIV - "EK PYAR EK DARD" #Shayari

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SHIVAM SEN

SSSHIV - "EK PYAR EK DARD"

 अकेलापन और जिंदगी –

की रास आ रहा है अब धीरे धीरे ये अकेलापन मुझे, एक चाहत की चिंगारी, इसे भी अपना बनाने की लगी है, जानता हूँ की बदलते देखा है मैंने खुद को, पता है की रोते देखा है मैंने खुद को, समझता हूँ की हर राह पर, बेगुनाह होकर भी गुनहगार था मैं, जानता हूँ की भरी भीड़ में भी अकेला और तन्हा बना घूमता हूँ, मगर कमबख्त कसम इस बेजुबाँ मोहब्बत की, अब खुद को जलते और तड़पते नही देखता, एक तवायफ़ की तरह बीच बाज़ार, इस झूँठे इश्क़ के लिबास को ओढ़े, खुद को बिकते नही देखता, झूँठ और गुनाह से भरे इस प्रेम के संसार से बेहतर है, ये अकेलेपन और तन्हाई से भरी जिंदगी, कम से कम सच्ची वफ़ा तो है साथ, आखिरी साँस तक, की बेबस, टूटा हुआ, अकेला, बेसहारा, पागल, सबकुछ हो कर भी, नही हूँ मैं ऐसा, क्यूँकी, खुद की अहमियत और रिश्तों की सच्चाई, इस अकेलेपन ने ही तो बताई है, इस तन्हाई ने ही तो एहसास कराया है करीब से, इस जिंदगी की हर रोज़ बदलती फितरत का, तो अब कैसी शिकायत और कैसा शौक इस महफ़िल में, जिन्दगी की हक़ीक़त का सफर तो अकेले ही तय करना पड़ता है जनाब, क्यूँकी जमाने की भीड़ या तो मौत पर इकट्ठा होगी, या किसी बुलंदी के तूफान उठने पर, फिर क्यूँ फिक्र करूं, क्यूँ सोचूँ, की क्या कहेगा ये ज़माना, जिन्दगी ने भले खाली हाथ और खाली जेब समझ कर कीमत ना होते हुए भी, बाज़ार में ला खड़ा कर दिया, कीमत लगाने को, मगर खरीददार और सौदेबाज़ तो ये ज़माना भी कम नही था, तो बेहतर है ना इस झूँठे इश्क़ के ज़माने से, वो अकेलापन, दर्द में रोने को जगह, और तन्हाई में आँसू पोछने को सहारा तो देता है, मगर तसल्ली नहीं देता साहब, झूँठी तसल्ली नहीं देता।

©SHIVAM SEN
  SSSHIV - "EK PYAR EK DARD"

(अकेलापन और जिंदगी)

SSSHIV - "EK PYAR EK DARD" (अकेलापन और जिंदगी) #Shayari

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SHIVAM SEN

SSSHIV - "EK PYAR EK DARD"

 छोड़ दिया उसने मुझको, छोड़ दिया भीगोकर, एक कागज़ की तरह, ना कलम से उतरने के काबिल छोड़ा और ना खुद को लिखने के, ना जलने के काबिल छोड़ा और ना एक धुएँ की तरह हवा में उड़ने के, ना जीने के काबिल छोड़ा और ना मिट्टी और खाक में मिलने के, ना इस सफ़र में मुकम्मल होने दिया और ना रेत सी बिखरी पड़ी इस जिन्दगी में कुछ रंग भरने दिया, मगर क्या खूब इन्तकाम लिया है मिलकर, इश्क़ का हिसाब भी किया, तो भी कागज़ पर, और हमें बस एक जिन्दा लाश का लिबास दे दिया, उस खुदा ने, वो भी उन अपनों और गैरों के हिसाब से, मगर हमें अब ना ये अंदाज़ समझ आता है और ना ये अल्फाज़, ना करिश्मा समझ आता है और ना ही ये हकीकत, ना रास्ते अपने नज़र आते हैं, और ना ही ये दौर, ना ही कोई इन्तजार समझ आता है और ना ही कोई तड़प, मगर एक एहसास तो आज भी है मुझे फिलहाल, की मेरे क़िरदार की ज़रूरत नहीं इस जमाने में, पर ना जाने क्यूँ लगता है कई बार की, ये मोहब्बत, दर्द, सज़ा, जुदाई, आँसु, तड़प, दूरी, इस प्रेम रूपी जाल ने तो खुदा के नसीब की लकीरों को भी विलग कर दिया था, उसको भी रूला रूला कर अधूरा कर दिया था, तो साहब, हम तो फिर भी इन्सान हैं, जब उस खुदा की जिन्दगी में कमी रह गई, तो इन हवा के झोकों से हमारे कारवाँ का यूँ उजड़ना तो यकीनन पर्याप्त नहीं था, मगर मेरे लिए तेरा और इस प्रेम का हिफाज़त में होना ही पर्याप्त है, नही तो वक्त आने पर तो रूह भी रुख मोड़ लेती है, तेरा नाजायज़ होना तो मुनासिब है।

©SHIVAM SEN
  SSSHIV - "EK PYAR EK DARD"

SSSHIV - "EK PYAR EK DARD" #Shayari

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SHIVAM SEN


हँसता भी हूँ, रोता भी हूँ मैं, सोचता भी हूँ कभी तो, टूटता भी हूँ  मैं, दिल में गम भी कहीं भरा हुआ है, शिकवे और शिकायतें भी हैं बहुत सी, मगर बात सिर्फ एक रात की नींद की होती तो कुछ कह भी देता, कुछ बता भी देता अपने बारे में, मगर तेरा और इस ज़माने का यूँ खुदगर्ज और बेवफ़ा होना तो मुनासिब था, मगर तुम, मेरे हाल से भी बेखबर निकले, मजबूर था, इसलिए ख़ामोश था, रिश्तों को खोने से डरता था, इसलिए लबों को चुप रखता था, कभी लोग नासमझ कहते, तो कभी डरपोक, कभी शायर कहते तो, कभी पागल, हर कोई आता तो बस, समझाने, मगर मुझे समझने का ख़्वाब, हर दर से अधूरा लौट आता, मगर जनाब मालूम मुझे भी था, खफा नही था मैं, की चादर, उसकी भी अब हर दफा बदलती है, मगर लड़ सकूँ इस दुनिया से मैं, इतना हौसला, इतनी शिद्दत कहाँ मुझमें, अब हर पल ठहर सा गया है मेरा, मगर बस इतना मालुम है अब, की मेरा वक्त बीत गया, और जो दौर प्रचलित है उसमे मेरे जैसे किरदार की ना तो कोई अहमियत है, और ना ही कोई औकात, बस तसल्ली देता हूँ खुद को, जीने के लिए, कुछ पल के खातिर, क्या करूंगा लड़ कर किसी से, कुछ वक्त के लिए, बस एक उम्मीद थी की बचा लेगा ये जमाना, डूबने से मुझको, मगर मेरी कश्ती के मुसाफ़िर ने भी मुझे मुड़ कर नहीं देखा, हँसता भी हूँ, रोता भी हूँ, सोचता भी हूँ कभी तो, टूटता भी हूँ मैं, मगर जनाब अंधेरों से ये रिश्ता, अब बेसहारा, बेचारा, बेबस, बेकसूर, नासमझ, पागल, बेवकूफ़, नही होने देता साहब, नही होने देता।

©SHIVAM SEN
  SSSHIV - " EK PYAR EK DARD"

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SHIVAM SEN

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 बेशक की बदल गया है अब वक्त मेरा, बेशक, की बदल अब मैं भी गया हूँ, बेशक की इन आँखों से बहते आँसू भी अब मुस्कुरा देते हैं, बेशक, की अल्फाजों से ज्यादा अब मेरी खामोशी मुझे सहारा देती है, बेशक की मोहब्बत भरे झूँठे रिश्तों को ना भुला सका मैं, मगर बेशक, मेरी वफादारी आज भी मुझे गद्दारी जैसी फितरत से जुदा रखती है, बेशक की चुप हूँ मैं, कुछ कह नही सकता, खामोश हूँ मैं, कुछ कर नही सकता, तकलीफ़ में हूँ, खो चुका हूँ सब, मगर बेशक, कमबख्त यकीन कर तू, मेरी जिन्दगी अब बेहया, बेवफ़ा हो गई, माना की रोया भी हूँ मैं, बेशक टूटा भी हूँ, जिस्म पर ज़ख्म भी चाहे हजारों छुपे हों, मगर बेशक, इस दुनियां में मेरी ना तो कोई जगह बची है और ना कोई ज़रूरत, बेशक की इश्क़ भी किया मैने, फिक्र भी की, कोई ज़रूरत भी हुआ मेरी, कोई कमज़ोरी भी हुई, रिश्ते भी निभाए मैने, झुक भी गया मैं, कोई आदत भी बना मेरी, किसी में जान भी बस गई, मगर बेशक, तक़दीर मेरी, फिर भी जुदा मुझसे ही हुई, बेशक की लोग कहते हैं अक्सर पागल मुझे, हाल देख कर मेरा, पत्थर भी मारते हैं साहब, मगर बेशक, मेरी जगह जब खुद को रख कर देखा ना, तो तरस भी गए, और नफ़रत भी हो गई खुद से, मौत की दुआ भी कर ली खुद की और अब तक सोच में भी हैं की मैं जिन्दा कैसे हूँ, बेशक मैने दुआ की है सलामती की सबकी, और मैं साथ भी खड़ा हूँ, मगर बेशक, मैं ठहर भी गया हूँ और राह अपनी भूल भी गया, बेशक की मैंने गलत ना किया हो कभी कुछ, बस दूसरों की खुशी में ही ख़्वाब देख लिए अपने, मगर बेशक, की एक गलत और गन्दे खेल का मोहरा भी बना हूँ मैं, बेशक की ना शिकायतें की, ना शिकवा किया कभी किसी से, मगर बेशक, की हमें चोट और हर एक सजा तो अपने पन ने ही दी है, बेशक की बदल गया है अब वक्त मेरा, मगर बेशक, की अब दर्द भी होता है मुझे, खामोश गम भी चुभते हैं, अफ़सोस भी होता है हर हक़ीक़त पर, और ज़माने के ऐसे ऐतबार से, लावारिस की तरह मरने का डर भी लगता है, बेशक की बदल अब मैं भी गया हूँ, मगर बेशक, खुदा से दुआ आज भी ये ही है, की जिन्दा रहते ना सही, मेरी मौत के बाद ही तू, खुद को और इस जमाने को मेरे सच के बारे में समझा लेना, ए खुदा, बेशक की अब कोई ख़्वाब या ख्वाहिश ना बची हो मेरी, मगर बेशक, की मुझे मोहब्बत आज भी है तुझसे और बस एक बार मिलने की ज़रूरत भी, बेशक की आज बदल गया है वक्त मेरा, तो सारा जमाना खुदा बने बैठा है, सही मायनों में ना अर्थ रिश्ते का पता है, ना मोहब्बत का, ना जहन में इन्सानियत बची है और ना इन्साफ का कोई मतलब, मगर बेशक, ये ज़माना आज खुदा के लिए भी, खुदा बने बैठा है।

©SHIVAM SEN
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