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benbeck6662
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Ben Beck

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Ben Beck

नारी 
नारी तू है सब पर भारी,
फिर भी करती हो सबकी खातिरदारी,
माँ, बहन,बेटी, बीवी सब का रूप करती हो धारण,
करती हो सबसे प्यार बिना कोई कारण, 

तुम तो हो बहुत न्यारी और प्यारी, 
तुम्हारे सारे काम होते हैं कल्याणकारी,
एक अकेली नारी संभाल लेती है सारा घर,
जब आए आंदोलन की बारी तो वीर लड़ाके भी जाए डर,

सदियों से घर,चूल्हा,परिवार को है संभाला,
मर्दों ने फिर भी इनको तुच्छ है माना,
फिर भी मर्दों के जीवन में है इनका बड़ा हाथ, 
देते हैं अपने पिता,पति,भाई और बेटे का हर संकट में साथ।

आगे बढ़ कर किया सामना सभी मुसीबतों का, 
फिर भी समाज ने ना माना योगदान इनका,
अभी भी लड़ रही है लड़ाई, 
अपने सम्मान, अभिमान, समान हक और वेतन की।

मेरी बात अगर सुनो,
8 मार्च केवल ना हो,
नारी शक्ति का स्मरण दिवस,
साल का हर दिन हो उनका विजय दिवस।

अगर रोज हम दे उनको सम्मान, 
दिन कटे बिना किए उनका अपमान, 
छोड़ दे उनको सिखाना संस्कार और तमीज़,
दे समान हक और मौका, करने दे उनको काम दिल के अजीज़।

दुःख-दर्द, तकलीफ में लेते है नाम सबसे पहले माँ का,
गुस्से में भी मगर सबसे पहले देते हैं माँ की, बहन की ***  गाली,
करें बंद हम अनजाने में करना अपमान इनका,
यही होगा इनके सम्मान में हमारी ताली।

©Ben Beck #8thmarch
#respectforwomens
#womensday
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Ben Beck

आदिवासी और उनके सवाल 

हम तो है आदिवासी,हम है मूलवासी,
हमारी है अपनी मातृभाषा, अपनी बोली, 
हम तो है विशिष्ट भू-भाग के वासी,
हमारी संस्कृति, परंपरा है सबसे अलग,सबसे अनोखी ।।

सदियों से करते हैं वनप्रदेश में वास,
पर्यावरण से सामंजस्य बैठाने की है कला,
प्रकृति से हमारा रिश्ता है अनूठा, बड़ा खास,
सतत विकास लोगों को हमसे है मिला ।।

हमेशा से करते आए हैं प्रकृति का ख्याल, इसकी रक्षा,
इसलिए लोगों ने हम को है दबाया, नजर में है खलते,
नहीं करने देते हैं दोहन हमारी संपदा का, यही है हमारी दीक्षा, 
सब लुटना चाहते हैं हमारी धरती,प्रचुर  प्राकृतिक संसाधनों के चलते।।

हम पर किए अत्याचार अनेक, हमको है मारा-सताया,
विस्थापन, प्रवास का जाला, विकास के लिए बलिदान का भोगी,
अपनी ही पूर्वजों की भूमि से भगाया,विकास-विरोधी का ठप्पा लगाया, 
आवाज़ उठाने वालों को Urban Naxals- विद्रोही करारा, कारागार(Jail) के योगी ।।

आखिर कब तक हमें अपनी पहचान करनी होगी साबित??
अपनी ही जमीन पर बनी दुकानों-फैक्ट्रियों में करनी होगी चौकीदारी??
आखिर कब तक 5वीं अनुसूची,पेसा, जैसे कानूनों का प्रभावी कार्यान्वयन करेंगे लंबित??
अपनी ही जमीन पर मिले खनिजों के लिए,छोड़ने होंगे गाँव??
कब मिलेगा हमे हक स्वशासन का?? कब होंगे हम हमारे संसाधनों के मलिक ??
 आखिर कब तक हमारे आदिवासियों को बगैर सुनवाई रहना होगा जेल में?? 
कब तक हम यूँ ही रहेंगे तितर-बितर, आपस में ही विभाजित??

©Ben Beck #worldindigenousday
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Ben Beck

1855 की गाथा

एक वीर गाथा ऐसी भी,
1824 के दामिन- ए-कोह के दो भाई की,
ब्रिटिश सत्ता, साहूकारो उनके अत्याचारो,
और 400 गाओं के 50000 संथालो के तीर धनुष की,
जगमग शहरो से दूर कहीं पहाड़ों के पीछे बसे गाँव, 
कड़ी धूप मे काठी को खोज में निकले,
सुकून देते ये जंगल के छाँव।

आंखो मे लिए सपने,
एक घर हमारा भी ऊंची या छोटी होगा अपना,अपना महल 
सपने जीने,खाने को चलाते खेतो मे हल ।

ये गाथा है सन् 1855 की,
सिद्धो कान्हो चांद भैरव फूलो झानो की,
अंग्रेजो करो या मरो हमारी माटी छोड़ो,
का नारा संथालो की चुप्पी ना तोड़ता तो क्या,
भू- राजस्व व्यवस्था खत्म होता?

सुबह होती शाम ढलती है,बदला नहीं कुछ,
अगर सिद्धो कान्हु के नेतृत्व में ना होती,
अत्याचार के खिलाफ पहल तो क्या,
सपने जीने को आज भी चलते खेतो मे हल? 
हल,अपने खेतो में?

ये गाथा है संथाल वीरो की,सीने मे खाकर गोलीबारी,
विद्रोह मे हुए थे विफल पर नीव तो अंग्रेजो की भी हिल चुकी थी,


समय बदला, शासन बदले मुद्दे बदले लड़ने का ढंग भी,
आज अपने ही अंग्रेज़ बने है,अत्याचार अन्याय से सिसकते चेहरे,
दृश्य होकर भी अदृश्य है,
आदिवासियों की  पीढ़ी के नाम क्या कर पाएंगे हम,
पूर्वजों की कमाई जल जंगल जमीन, 
सामने एक बड़ा सवाल है क्योंकि,
साल की डालिया ट्रक मे लोड हो रहे,
विस्थापित कर हमे, ऊद्योग बन रहे है,
और सिद्धू कान्हो जैसे वीर तो बस,
फूलो से लादे प्रतिमा में बसकर रह गए है।
जिसने इतिहास रचा,प्राणों का बलिदान उनका है ,
आज हमारे नाम, व्यर्थ ना जाए रखना है ध्यान।
 हुल जोहार।
Anshu Toppo

©Ben Beck

10 Love

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Ben Beck

संथाल हूल 
खो गई है आदिवासियों की एकता,भूल गए हैं करना हूल,
अपनी ही स्वर्णिम इतिहास से है अनजान, भूल जो गए है 1855 की संथाल हूल।

यह है अमर कहानी, ऐसी जो ना दोबारा होनी,
अनगिनत वीर, वीरगनाँए ऐसे जिसके नहीं कोई सानी,
बचपन से ही आजादी के थी जो दीवाने,
आजादी के असली मायने,उन्होंने ही तो थे जाने।

बात है 1832 के दामिन-ए-कोह की,
अपनी ही जमीन पर कर्ज चुकाने की,
अंग्रेजों के अत्याचारों से होकर त्रस्त,
थक हार के, हो गए थे सभी पस्त।

सूझ नहीं रहा था किसी को भी हल,
अपनी भूमि पर कर्ज देकर चलाते थे हल,
भरकर पूरे जोश में, संथालों ने किया हूल,
ठान लिया, एकत्र होकर सब ने बजाया बिगुल।

सिद्धू,कान्हू, चाँद, भैरव, फूलो, झानो ने,
उठाया बीड़ा, करने नेतृत्व सबलोगों का,
30 जून 1855, को संथालो ने भरा हुँकार, किया हूल,
अंग्रेजों को भी लगा डर, हो गए वो भी गुल ।

थे नहीं हथियार, तीर- धनुष- भालों से किया सामना, 
गोलीबारी- तोप के सामने भी जान देने से ना किया मना,
जानते थे कि मार दिए जाएंगे, फिर भी रहे डटे,
आजाद भविष्य के लिए नहीं किया समझौता,पीछे ना हटे।

दिया अपना प्राण- बलिदान, बना दिया खुद को ही नींव,
बनाने आदिवासियों का आधार, आजाद भविष्य के जीव,
बढ़ाया मान, बनाया कीर्तिमान आदिवासियों के नाम,
मगर हम तो गए भूल,ना सीख पाए उनके मूल-मंत्र जो थे बड़े काम के।

हमने सिर्फ बनवा दी चौक-चौराहे,उनके नाम की मूर्तियाँ,
केवल करते है नाम के लिए याद,पहनाने के लिए माला, सिर्फ खानापूर्तियाँ,
आखिर कब सीखेगें हम उनसे सामुदायिकता, जीने की कला,
एकत्रित रहने का ढंग, प्रकृति से सामंजस्य की कला?

हम कहते हैं खुद को आधुनिक, 
यथार्थ से बेखबर, वे (हमारे पूर्वज) तो थे गुणों के धनिक, 
खो गई है आदिवासियों की एकता,भूल गए हैं करना हूल,
अपनी ही स्वर्णिम इतिहास से है अनजान, भूल जो गए है 1855 की संथाल हूल।

©Ben Beck #Santhalhul
Celebrating 166th anniversary of Santhal Revolt

#Santhalhul Celebrating 166th anniversary of Santhal Revolt

9 Love

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Ben Beck

*आदिवासी है तो प्रकृति है,प्रकृति है तो आदिवासी है, *
वैसे तो लोग कहते हैं,
प्रकृति बचाएंगे, पेड़ लगाएँगे, 
मगर आदिवासी अमल करते हैं,
मानते हैं जंगल के थे, के है, और रहेंगे। 

अभी जब दुनिया में है हल्ला, हो रही बात,
सतत विकास की, जंगल बचाने की,
मगर आदिवासी तो हमेशा से है, जंगल के साथ, 
वर्षों पहले सीख ली थी, प्रकृति से सामंजस्य की कला।
 
हो जाओगे हैरान, जान कर यह तथ्य, 
है जहाँ आदिवासी, वही है जंगल, 
जाओगे चौंक, मगर है यही सत्य, 
जहाँ से भी हुआ विस्थापन, जंगल हो गई ओझल। 

सीख रही दुनिया आदिवासियों से,
फिर भी कहती है इनको जंगली,
सोचती है बचा लेंगे जंगल, पेड़ लगा के,
मगर आदिवासी कैसे समझाए पेड़ लगा सकते, जंगल नहीं।।

आदिवासियों ने ही है ठानी, 
भले दुनिया माने ना माने
प्राण जाए पर जंगल है बचानी,
भले ही सब विकास- विरोधी के नाम से जाने।

   *इसलिए तो कहते  हैं,
आदिवासी है तो प्रकृति है,
प्रकृति है तो आदिवासी है।।*

©Ben Beck #WorldEnvironmentDay 
#adiwasi
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Ben Beck

*Ecosystem Restoration *
Ecosystem Restoration is a Process,
Not just to gossip,
             Today our Earth is a mess,
              Where the nature is in deep sleep,
             Restoration is way of polluting less,
             It's the way mother nature will wake.
The ecosystem is damaged, 
By the human greed,
Nature and it's beauty are caged,
Only for fulfilling Human's need.
                Now we want to heal
                Have understood the value of trees,
                Want the Earth for future to seal,
                 The importance of beauty and air, given free.
Nature is our mother,
Asking us to make balance,
Teaching us Trees are also our Brothers,
Both have equally importance.
                    Ecosystem Restoration is not just Restoration, 
                    It's way of making world a better place,
                     It's way of securing future generation, 
                     We need to work at a faster pace.
           Ecosystem Restoration is a process, 
           Not just to gossip,
           As the loss of Earth,
              Cannot be compensate
                                                          
                                                   Thoughts compiled by Ben Beck

©Ben Beck #World environment Day

#world environment Day

4 Love

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Ben Beck

नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज
Asia's 2nd largest mass movement जानते हो??
क्या नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के बारे जानते हो??
आओ सुनाओ एक अमर कहानी, जो नहीं है किसी भी ग्रंथ से,
ऐसा जो अभी भी चल रहा है, जिसका अभी तक नहीं हुआ है अंत।
ये बात है सन् 1994 की,
तब झारखंड में अलग ही लहर थी, 
हम में जोश था,कुछ कर दिखाने का जुनून था,
आँखों में अलग राज्य बनाने का सपना था।
1986 में देश के 30 फायरिंग रेंज थे चिन्हित, 
भारत सैन्य क्षमता कर रही थी विकसित, 
इसलिए फायरिंग रेंज को बना Pilot Project, 
करना चाहते थे लोगों को eject ।
1991 में पता चला कि बिहार सरकार, 
गजट अधिसूचना पत्र S.O.- 761,762 और S.O.-84 से कर रही वार,
नेतरहाट, महुआड़ाड के लोगों ने प्रकट किया रोष,
बिना उनसे पूछे, सरकार ने कैसे खाली कराने का लिया सोच?
आ गया उन्हें याद 1956- 1993 तक का गोलीबारी अभ्यास, 
37 वर्षों से हुए अमानवीय, अकथनीय जुल्मो का आभास, 
केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति ने उठाया बीड़ा, किया नेतृत्व, 
किया विरोध याद दिलाने सरकार को कर्तव्य। 
246 गाँव ने मचाया हल्ला, लोगों ने किया धरना और बैठक,
छात्रों और कार्यकर्ताओं ने ग्रामीणों को किया सतर्क, 
फिर भी बिहार सरकार ने किया नोटिस जारी,
23 से 27 मार्च, 1994 मे अभ्यास गोलीबारी का।
लिया संयम से काम, उठाया सत्याग्रह रूपी हथियार,
केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति ने आह्वान, बना जिम्मेदार, 
23 मार्च 1994 को सेना की गाड़ी को रोका,
महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों सब ने उठाया मोर्चा। 
टुटुवापानी बना इस ऐतिहासिक घड़ी का साक्षी,
आदिवासियों के इस नए उलगुलान का क्रांति, 
सेना ने माना वापस लौटना है ठीक, 
आदिवासियों ने दिखाया एकता का दम,दिया सीख।
तब से हर साल होते हैं 22-23 मार्च को जमा,
मनाते हैं विरोध एंव संकल्प दिवस, लोगों को जगा,
फिर भी बिहार सरकार ने निकाला अधिसूचना सं- 1005, 2-11-1999 को,
बढ़ा दी नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अधिसूचित समय सीमा 2022 तक।
अब भी है प्रश्न वही, होगा विस्थापन या होगा विजय??
हम सब तो खुद अनभिज्ञ हैं, इस होने वाले प्रलय से??
कब तक करते रहेंगे धरना प्रदर्शन??
आखिर कब तक करते रहेंगे अपनी बारी का इंतजार??
Asia’s 2nd largest mass movement  को जानते हो??
क्या नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के बारे मे जानते हो??

©Ben Beck #netarhatprotest


#flowers
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Ben Beck

A  SONG OF FREEDOM 
Long before,her soreness of life,
She was only mother,and a wife,
She was to clean bread crumb,
She was taught to stay dumb.
Long before she was imposed,
Not to stay men's appose,
Her intelligence eager to grow,
But weapons gone snatched,
Ooh!the evil crow.
Long before,her soreness of life,
Long before being a wife,
Long before she was young,
Women's freedom'then'was a song,
Women's freedom'is'a song not yet sung. 
It was then the contrived world,
Her ache to be hurled.
But she demanded real pay,
working each day,
With men,in their same way.
She demanded her voice ,
to be heard more than twice
And an intelligence of her choice.
More than anything,it is to note,
She has the right to vote.
She had been orbiting a dark star,
Caught in his deadly gravity 
The end of struggle was very far.
Now she's being freed,
setting out in a new ambit
 heading up towards height,
Her shine making a strongest sight. 
Still.. "Women's freedom was a song,
a song not yet sung"
By- Anshu Toppo

©Ben Beck #womensday2021
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Ben Beck

नारी की बारी 
ईश्वर ने सृष्टि की सृजन की, 
और जब खुद चले विश्राम-गृह, 
उन्होंने महिलाओं  की रचना की, 
महिलाओं को करके सर्वत्र, खुद हो गए अन्यत्र। 
                     आज भी बात-बात में करते हैं माँ को याद, 
                     हर दर्द में कराहते है महिलाओं का नाम,
                    त्त्योहारों में आती हैं हमारी देवियों/ माँ की अंतर्नाद, 
                    इनकी मदद के बिना पूरे ना हो पाए कोई भी काम।
हर दिन करते हैं इनकी पूजा-अर्चना, 
फिर भी रोज ही होते हैं इनपर अत्याचार-व्यभिचार, 
इनकी समानता के  लिए कभी नहीं होती है गर्जना, 
हर क्षेत्र में करते हैं हनन इनके अधिकारों का।
                      ना ही देते हैं घर में दर्जा, ना ही बराबरी का मजा,
                      संविधान के अधिकारों की करते हैं खानापूर्ति, 
                      डायन-बिसाही,परंपरा के नाम पर करते हैं प्रताड़ित, देते हैं सजा,
                      कभी नहीं मिला न्याय, भले ही इनकी ही हो न्याय की मूर्ति। 
बराबरी के नाम पर बस- ट्रेन मे दे दी सीट,
कर दिए आरक्षित सीट सांसद में, 
मगर क्या इससे पूरी हो गई हमारी  जिम्मेदारी के गीत,
समाज में दी थोड़ी छूट, मगर घर- द्वार,ऑफिस में ??
              आखिर कब आएगी नारी की बारी??
                कब टूटेगी इनकी बेड़िया सारी??

©Ben Beck #international_womens_day 

#Shades
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Ben Beck

संविधान: हमारे देश की शान
भारत का है ये अभिमान,
सबसे बड़ा है हमारा संविधान।
देता है सबको बराबर का सम्मान,
संभालता है देश की कर्म -श्रम- धर्म की कमान,
ऐसे ही थोड़े है, हमारे देश की शान।

कई लोगों ने दी कुर्बानी, विद्वानों ने किया मंथन,
वर्षों की लड़ाई के बाद हुआ आजादी से अभिनंदन,
विद्वानों के तर्कों से प्राप्त हुआ है ये चंदन,
2 वर्ष 11 महीने 18 दिन के अथक प्रयासों से बना है संविधान ।
ऐसे ही थोड़े है हमारे देश की शान।

देता है मौलिक अधिकार,
बनवाता है लोगों की सरकार।
देता है आजादी रखने का विचार,
है इसमें प्रावधान खत्म करने का अत्याचार,
ऐसे ही थोड़े है, हमारे देश की शान।

व्यर्थ कर दी हमने हजारों कुर्बानियो को,
नही अपनाकर इसके उसूलो को,
शीशे की तिजोरी में बंद करके इस हस्तलिखित किताब को।
सजा दिया इससे हमारे संग्रहालयो को,
कहने को सिर्फ है हमारे देश की शान।

हम तो रहते हैं तेजी में, जल्दी में आपा-धापी में,
करने को फर्ज पूरा पढते हैं प्रस्तावना केवल ।
ना शामिल किया जीवन में, ना ही हमारे पाठयक्रमों में,
कहानियां सुनाते हैं, मगर कभी नहीं पढ़ाते है।
कहने को सिर्फ है हमारे देश की शान।

कब तक हम नहीं सीखेगें हमारे अधिकारों को??
कब तक हम नहीं पढ़ेगें हमारे हकों को??
कब तक हम रहेंगे हमारे कानूनों से अनभिज्ञ??
कब तक हम इंटरनेट से पूछेगें हमारे कानूनों को??
ऐसे में कैसे बोलेगे हम संविधान: हमारे देश की शान??

©Ben Beck # constitution day 
Happy Constitution day

# constitution day Happy Constitution day

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