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प्रशान्त मिश्रा मन

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प्रशान्त मिश्रा मन

 एक गीत!

प्राण! हम आवेश में 
आ प्रेम ही झुठला दिए कल ।

रात्रि का पहला चरण था और तुम जाने लगी थी।
यह तुम्हारे हेतु मन की प्रेम में पहली ठगी थी।
ग्लानि में बीती निशा दृग पीर के आँसू पिये कल।

एक गीत! प्राण! हम आवेश में आ प्रेम ही झुठला दिए कल । रात्रि का पहला चरण था और तुम जाने लगी थी। यह तुम्हारे हेतु मन की प्रेम में पहली ठगी थी। ग्लानि में बीती निशा दृग पीर के आँसू पिये कल। #कविता #nojotophoto

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प्रशान्त मिश्रा मन

 एक गीत!

प्राण! हम आवेश में 
आ प्रेम ही झुठला दिए कल ।

रात्रि का पहला चरण था और तुम जाने लगी थी।
यह तुम्हारे हेतु मन की प्रेम में पहली ठगी थी।
ग्लानि में बीती निशा दृग पीर के आँसू पिये कल।

एक गीत! प्राण! हम आवेश में आ प्रेम ही झुठला दिए कल । रात्रि का पहला चरण था और तुम जाने लगी थी। यह तुम्हारे हेतु मन की प्रेम में पहली ठगी थी। ग्लानि में बीती निशा दृग पीर के आँसू पिये कल। #कविता #nojotophoto

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प्रशान्त मिश्रा मन

 #थकन#दुश्वारी
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प्रशान्त मिश्रा मन

एक गीत!

जीवन के हर इक मावस को लिखना बहुत कठिन है
फिर से राम चरित मानस को लिखना बहुत कठिन है।

राम लखन हनुमान विभीषण
लखनपुरी लंका या रावण
अब ये सारे पात्र मात्र इक रंगमंच पर साथ मिलेंगे
सच में इसीलिए इस रस को लिखना बहुत कठिन है।
फिर से राम चरित मानस को.........

नहीं मिलेंगे अब वो दशरथ
और न सरयू तट का केवट
जिसके कारण घुट-घुट रोईं सीता और उर्मिला विरहन 
पुनः कैकयी के अपयश को लिखना बहुत कठिन है।
फिर से राम चरित मानस को.........

मैंने बहुत विचारा भीतर
सोचा कहाँ! कहाँ हैं रघुवर!
किन्तु मिला है इस कलयुग में मुझको एक दशानन घर-घर
इसीलिए रघुवर के यश को लिखना बहुत कठिन है।
फिर से राम चरित मानस को.........

प्रशांत मिश्रा मन एक गीत!

जीवन के हर इक मावस को लिखना बहुत कठिन है
फिर से राम चरित मानस को लिखना बहुत कठिन है।

राम लखन हनुमान विभीषण
लखनपुरी लंका या रावण
अब ये सारे पात्र मात्र इक रंगमंच पर साथ मिलेंगे

एक गीत! जीवन के हर इक मावस को लिखना बहुत कठिन है फिर से राम चरित मानस को लिखना बहुत कठिन है। राम लखन हनुमान विभीषण लखनपुरी लंका या रावण अब ये सारे पात्र मात्र इक रंगमंच पर साथ मिलेंगे #कविता

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प्रशान्त मिश्रा मन

Follow my thoughts on the YourQuote app at https://www.yourquote.in/shanmp23

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प्रशान्त मिश्रा मन

 एक गीत!

तुमको खोने की 
पीड़ा पर यदि मैं गीत रचूंगा तो फिर
नित्य हँसेगी दुनिया मुझपर मुझको पागल पागल कह कर।

ऐसी भी क्या थी अभिलाषा जग जो बैरी बना हमारा।
दिल वालों को अपनों ने क्यों कदम कदम पर है दुत्कारा?

एक गीत! तुमको खोने की पीड़ा पर यदि मैं गीत रचूंगा तो फिर नित्य हँसेगी दुनिया मुझपर मुझको पागल पागल कह कर। ऐसी भी क्या थी अभिलाषा जग जो बैरी बना हमारा। दिल वालों को अपनों ने क्यों कदम कदम पर है दुत्कारा?

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प्रशान्त मिश्रा मन

 #प्रेम
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प्रशान्त मिश्रा मन

केमबवफ्फजफदफगफहफदफ़्फ़हहगफ्फघग्गगगगगगग #NojotoQuote

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प्रशान्त मिश्रा मन

एक गीत!

मैंने सोचा न जिसको कभी होश में,
आज वो स्वप्न बन कर चली आयी है।

मन तृषित हो उठा, कँपकँपाने लगा।
दाँत से उँगलियाँ मैं दबाने लगा।
एषणा थी न जिसकी मुझे वो मिला-
धमनियों में रुधिर लबलबाने लगा।

साँस बढ़ने लगी फिर उसे देख कर-
सज सँवर कर चली, मनचली! आयी है।
आज वो स्वप्न बन कर चली आयी है।

छू रही वो मुझे मैंने उसको छुआ।
एक होने लगा तन मचलता हुआ।
गढ़ रहीं देह पर धड़कनें राग को-
साँस से और ख़ुशियों की माँगी दुआ।

मैं बहकने लगा था भ्रमर की तरह-
जब लगा मेरे घर इक कली आई है।
आज वो स्वप्न बन कर चली आयी है।

प्यास क्या थी.? हमें यह मिलन कह रहा।
मैं धरा शुष्क; उसको गगन कह रहा।
साध कर मौन वो प्रेम बरसा गयी-
तर मुझे कर गयी यह बदन कह रहा।

चूम कर माथ को वो लिपटने लगी-
बन के कोई परी! बावली आई है।
आज वो स्वप्न बन कर चली आयी है।

प्रशांत मिश्रा मन






 #NojotoQuote एक गीत!

मैंने सोचा न जिसको कभी होश में,
आज वो स्वप्न बन कर चली आयी है।

मन तृषित हो उठा, कँपकँपाने लगा।
दाँत से उँगलियाँ मैं दबाने लगा।
एषणा थी न जिसकी मुझे वो मिला-

एक गीत! मैंने सोचा न जिसको कभी होश में, आज वो स्वप्न बन कर चली आयी है। मन तृषित हो उठा, कँपकँपाने लगा। दाँत से उँगलियाँ मैं दबाने लगा। एषणा थी न जिसकी मुझे वो मिला-

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प्रशान्त मिश्रा मन

एक नज़्म!

अकेले चलते 
तो रस्ते सफ़र में रो देते।
तुम अपनी ज़िद या अना में मुझे भी खो देते।
मेरे सफ़र में अगर हमसफ़र नहीं आते।
मेरे सफ़र में अगर ...........

तुम्हारी यादें 
सताती रहीं मुझे हर दिन।
ये सूनी आँखें मुई ढूँढ़ती तुम्हें लेकिन।
मेरी तरह ही मुझे तुम नज़र नहीं आते।
मेरे सफ़र में अगर ...........

तुम्हारे इश्क़ में 
क्या-क्या नहीं किया मैंने।
हज़ार ख़्वाब थे जिनको जला दिया मैंने-
मैं जी लूँ फिर से उन्हें वे मगर नहीं आते।
मेरे सफ़र में अगर ...........

ये सच है 
मैंने भी दुनिया कि गर सुनी होती
यूँ ज़िंदगी ही नहीं ज़िंदगी रही होती
तुम इतने पास मेरे दिल के गर नहीं आते।
मेरे सफ़र में अगर ...........

प्रशांत मिश्रा "मन" #NojotoQuote एक नज़्म!

अकेले चलते 
तो रस्ते सफ़र में रो देते।
तुम अपनी ज़िद या अना में मुझे भी खो देते।
मेरे सफ़र में अगर हमसफ़र नहीं आते।
मेरे सफ़र में अगर ...........

एक नज़्म! अकेले चलते तो रस्ते सफ़र में रो देते। तुम अपनी ज़िद या अना में मुझे भी खो देते। मेरे सफ़र में अगर हमसफ़र नहीं आते। मेरे सफ़र में अगर ...........

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