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उर्दू शायरी/अदब का विद्यार्थी नज़्म, ग़ज़ल, रूबाई मनकब्त, किता और दोहे कहना सीख रहा हूं मेरी निस्बत ऐसे घराने से है जिसके पूर्वजों को उर्दू शायरी के लिए जाना जाता है लिहाज़ा बुजुर्गों से कुछ कहने का हुनर विरासतन मुझे मिला है फिर भी खुद को शायर कहना मुनासिब नहीं समझता हूं, उर्दू ज़बान की खिदमत करना और डिजिटल दौर के तकाज़ों को मद्देनजर रखते हुए नई नस्ल को उर्दू शायरी और अदब से जोड़ने के लिए उर्दू फ़ोरम (झारखंड) की बुनियाद मैं ने 2012 में रखी थी