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neetishpatel4809
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Neetish Patel

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Neetish Patel

जो आंँख से कभी गिरा ही नही
उस आसूं की मैं व्यथा लिखता हूंँ
मन में उठती है न जाने कितनी ही बाते
जो मैने किसी से कभी कही ही नही
उन लफ्जों को मैं कविताओं में पिरोता हूं
बिखरे बिखरे से है सारे ख्वाब मेरे
जब टूटता है कोई ख्वाब पुराना 
तब एक नया ख्वाब बुनता हूं
सांसों के संग जो आती हैं सिसकियां
अपने गीतों में मैं उनकी आवाज लिखता हूं
कुछ उलझे उलझे से जवाब है मेरे मन में
मैं ना जाने क्यों उनमें सवाल ढूंढता हूंँ...

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Neetish Patel

वो मुहब्बत थी या जिस्म की चाह
यहाँ कुछ और उसका इरादा था

दिल के टुकड़े होते तो कोई बात नहीं
जिस्म का हर हिस्सा आधा आधा था

कैसे कर दिए जिस्म के इतने टुकड़े
जिससे प्यार कभी हद से ज्यादा था

मुहब्बत तो नही थी उसे इतना तो मालूम
तो क्या उसे सिर्फ जाल में फसाना था

नये दौर की नई मुहब्बत है ये
चेहरों में छुपा चेहरा पहचानों

अंधा इश्क़ कहानियों में ठीक हैं
हक़ीक़त में पहले इसको जानों

न दो किसी को इतना भी हक
की फिर जान को पड़े गंवाना

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Neetish Patel

ख़्वाहिशों के आशियाने में
कब तक किसका बसेरा है
शाम ढलने के बाद देखो
हमारे चारो तरफ अंधेरा है
दीपक की रौशनी की भांति
उम्मीद चौखट पर जलती है
किसी वीरान से जंगल में भी
चांद की रौशनी पहुँचती है
वो टूटते हुए तारे को देखो
टूटकर भी करता चाह पूरी है
क्या ख़्वाहिशों की बस्ती में
उसकी कोई चाह अधूरी है 
पूछों उन ओस की बूंदों से
क्यों ठहरी है उन पत्तों पर
क्या चांद भी कल रात भर
रोया था किसी से बिछड़ कर
सच और झूठ में उलझा मन
कितनी ही कहानी गढ़ता है
मगर हक़ीक़त के पन्ने पर ये 
एहसास लिखने से डरता है।

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Neetish Patel

ठहरे हुए कई ख़्वाब
मुक़म्मल होने की ख़ातिर
रात भर झांकते हैं
मेरी आँखों से आसमाँ की ओर

टिमटिमाते नन्हें तारों को
घूरते हैं काफी देर तक
बनाते हैं राह-ए-ख़्वाब
ऊंचाईयों तक जाने को

उन ख्वाबो का यूँ जागना
रात भर सितारों को ताकना
थम जाता हैं ये सफ़र
हर रोज नई बेड़ियों के साथ 

राहे बदलनी पड़ती हैं फिर
दुनियां को समझना पड़ता है
नन्हे सफर को थाम कर
ख्वाबो को अपने त्याग कर

नए ख़्वाब फिर बुनना होगा
फिर नई राह को चुनना होगा

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Neetish Patel

“दुःख” 

दुःख एक एसा हादसा हैं जो हर शख्श से होकर गुजरता हैं कोई सम्भालना चाहता है , तो कोई समेटना, कोई छिपाना चाहता हैं तो कोई किसी ज़रिए से बहा देना।
हर शख्श के लिए दुःख की परिभाषाएँ अलग होती हैं मगर महसूस एक सा होता है। हालाँकि ये बात काफ़ी हद तक सच है, की जिस पर जो गुज़रती है उसी को पता होता है।
हम प्रेम में शायद किसी को महसूस कर भी ले मगर किसी के दुःख को महसूस करना लगभग नामुमकिन सा है, हम सिर्फ़ अंदाज़ा लगा सकते है की उस पर क्या बीत रही होगी।
इस नए दौर में भरोसा अपने आप में ही एक दुःख का पूरा बक्सा लिए घूमता है जिस पर भी हुआ वो तोड़ देता है या तो उस बक्से में किसी नयी कहानी की पूरी किताब रखी जाती है । 

कभी कभी किसी का खोना भी एक सुई की नोक की तरह होता है, चुभती भी है और हर दुःख के उभरे हुए चिथड़े को सिलती है ।

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Neetish Patel

नफरत  की जंजीर  से कब होंगे हम जुदा
इक इंसान ही इंसान का बन गया खुदा

पहले तो हमसफर बोल के दिल में उतर गया
कठपुतली की डोर अपने हाथो में ले लिया
फिर खूब नचाया उसको अपने इशारे पर
नफरत की आग में उसका जज्बात मर गया

जीते हुए शरीर में एक इंसान दफ्न हुआ
इक इंसान ही इंसान का बन गया खुदा

पहले तो जान छीनी फिर चेहरा जला दिया
फूलों के बागबान को शमशान बना दिया
जिस्म के लालच ने उसे अंधा कर दिया
क्या इश्क ने इंसान को हैवान बना दिया

उसे मारकर कयामत तक जिंदा रहेगा क्या
इक इंसान ही इंसान का बन गया खुदा

पहले गला दबाया फिर शरीर भी काट दिया
क्या उसके घर में कोई औरत नहीं है क्या
तमाशा बना के रख दिया सरे बाजार में
इस जहां में मासूम की जान की कीमत नहीं है क्या

ना लाज बची है उनमें ना है कोई हया
इक इंसान ही इंसान का बन गया खुदा

सोचा ना क्या मुंह दिखायेगा रब के सामने
आया ना उसे तरस किसी की भी आंसू पर
एक जल्लाद था खड़ा इंसानियत के सामने

कभी तो उसके जिंदगी का इम्तेहान होगा
इक इंसान ही इंसान का बन गया खुदा #shraddhawalkar #rip #yqbaba
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Neetish Patel

मेज़ पर बिखरी किताबें 
और चेहरे पर आने वाले कल की चिंता,
बहुत कुछ कहती हैं, 
हमारे बारे में,
हम सदा से ऐसे नहीं थे,
हम थे,
चंचल, फुदकते, दौड़ते, चिंतामुक्त,
पर अब हम वैसे नहीं हैं,
बदलाव के साथ हम भी बदल रहे हैं,
और शायद बदलाव अच्छा है,
रोज़ नई राहों पर चलना,
खुद को हर परिस्थिति में ढाल लेना,
हम बहुत कुछ सीख रहे हैं,
कर रहे हैं,
हम बेहतर करना चाहते हैं,
आने वाले कल के लिए,
बेहतर बनने की उमंग होना भी बेहतर है,
दुनिया से नहीं, खुद से,
थक जाने का वक़्त नहीं है,
दुनिया की रफ़्तार बहुत तेज़ है,
उन्हीं बिखरी किताबों के बीच बिखरा हमारा भविष्य 
जो देखता रहता है हमको,
हर रात जागते,
हर दिन भागते,
एक एक कदम बढ़ाते,
आने वाले कल की ओर

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Neetish Patel

ख्वाब के कतरे को हमको यूं बचाना है,
जैसे मर चुके हो फिर भी ज़िन्दा लौट आना है,

हवा, पत्थर, पानी, आग से दुश्मनी है अब,
सूखे पेड़ के पत्तों से मुझको अब घर बनाना है ..  

सारी उम्मीद सारे ख्वाब सब बेच डाले यूं, 
जिन्हें काग़ज पे पूरी जिंदगी अपना बताना है.. 

हुआ जिससे भी इश्क़, वो मेरा हो नहीं पाया, 
ये ऐसी हार है जिसे मुझे खुद से छुपाना है,

ख्वाब के कतरे को हमको यूं बचाना है,
जैसे मर चुके हो फिर भी ज़िन्दा लौट आना है..।।

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Neetish Patel

मस्त रहूं व्यस्त रहूं, खुश रहूं, हँसता रहूं 
कभी न मैं बुरा बनूँ, बुरे जो उन्हें क्षमा करूँ
पर नाम उनका याद रख, सावधान रहना काम है

क्रोध आया उबल गया मैं, शांत हुआ संभल गया मैं
ठोकर से मैं गिरा, उठा, ऐसा ही है जग सदा
सब पे हँसना धर्म है, सब को डंसना काम है

ह्रदय फटा तो रो लिया, थक गया तो सो लिया
जागा जब फिर चल दिया,
सुख भी जिया दुःख भी जिया
जिंदगी एक सफ़र, रुकने का न कोई काम है

सोचता हूँ कहा से आया,
किसने मुझको बनाया
मंज़िल कहाँ, जाना कहाँ,
कब तक हूँ, मैं कौन हूँ
क्या मेरा नाम है, क्या यहाँ मेरा काम है ?

दूर गगन से मैं आया, विधाता ने बनाया,
जाऊँ जहाँ मंज़िल वहाँ,
क्षणिक जीवन का पथिक मैं,
राही मेरा नाम है, चलता रहूँ यही काम है।

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Neetish Patel

"किसी को माफ करना"
कितना स्वार्थ छुपा है ना इसमें
क्योंकि माफ करते ही हम हो जाते है 
"मुक्त"

उन बातों से जो कभी चुभी थी
उन एहसासों से जो कभी दिल पर लिए थे
उस बोझ से जो लिए कांधे पर चल रहे थे
दिन प्रतिदिन ईर्ष्या और नफ़रत के बढ़ते भावों से 
उस शख्स से, उसके रंगों से 
जगत की उन सभी वस्तुओं से 
जो उसे पीछे छोड़, हमे आगे बढ़ने से रोक रही थी!

तो चलिए 
माफ कर देते है, अपनी प्रगति के लिए !
और मांग लेते है माफ़ी, अपनी की गलती के लिए

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