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Sandeep Sagar

एक खत लिखा था बादलों को कभी भिगा भिगा जवाब आया है अभी

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Sandeep Sagar

आज कल ऐसा लग रहा है जैसे मै खुद से बहुत दूर निकल गया हूँ।मैं जो पहले था वो अब नहीं हूँ,ये बात मैं समझ तो रहा हूँ पर यकीं नहीं कर पा रहा हूँ।पहले जो मैं सबको खुश देखना चाहता था पर आज खुद की खुशी गायब हुई पड़ी है।पहले सबसे मिलना पसंद था पर आज खुद के अलावा किसी से बात करना भी गुनाह सा लगता है पर फिर भी अच्छा लग रहा है कि अकेले में रह के खुद के सुकून को महसूस कर पा रहा हूँ,अपने बारे में सोच पा रहा हूँ और मैं क्या हो सकता हूँ अकेले रह के,क्या कर सकता हूँ,या फिर क्या अकेले जीवन के सफर में सफ़र कर सकता हूँ कि नहीं ,ये सब बातें जान पा रहा हूँ।ये बातें सबको शायद थोड़ी अटपटी या फिर मज़ाक सी लगे पर किसी का मज़ाक किसी की  पूरी जिंदगी होती है और जिंदगी इतनी छोटी भी नहीं होती है कि उसे दो लाइन के हसी मे उड़ा दिया जाए।खैर मैंने अब अपने रास्ते को अलग कर दिया है और जिसको जिसको मेरे रास्तों से परेशानियाँ है वो अपने रास्तों पे खुश रहें और जिसको परेशानी नहीं है वो भी अपने रास्तों पे ही चले।अकेले रहना सीख लिया है मैंने अब और ना तो दोस्त बनाने है और ना ही किसी का दोस्त बनना है और ना ही कोई नए रिश्तों को नाम देना है।जितने थे उतनो से ही रिश्ता पूरा नहीं हो पाया है या नहीं हो पा रहा है। जितने दिन सबके साथ थे बहुत अच्छे दिन थे अकेले भी वैसे ही मिले शायद।
                       धन्यवाद 🙏

©Sandeep Sagar
  #Akele
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Sandeep Sagar

आज कल में मैं कल ढूँढता हूँ 
सबके शक़्ल में अक्ल ढूँढता हूँ 
मुझको तो सबने कहा है जो अहम़त
तो सबके तोहमत में नकल ढूँढता हूँ।। 

मैंने बचपन से अब तक जुबा भी ना खोली 
जो सबने कहाँ वो हस के है बोली 
आज मयस्सर जहन हुई जब ये बातें 
फिर बचपन में जाके है थोड़ी सी रो ली।। 

अब उस सफ़र पे निकलना है मुझको 
जहा से जहाँ की खबर ना हो मुझको 
यूँ बहती हवा सा गुजरता रहूँगा 
मैं सबमें रहूँगा सब पाएंगे मुझको।। 

मुझे पानियों सा है बहते ही रहना 
किसी की ना बातें है बुनते ही रहना 
अकेले ही जग में मूसलसल़ चलूंगा
वज़ूद में हरदम अकेले रहूंगा।। 

ये मेरी बातें बस ख्वाहिश है लेकिन 
इन ख्वाहिश में किसी को मैं आने ना दूँगा 
रहूँगा तलक जब तक साँसें रहेगी 
बस साँसों से बंद गुमनाम मरूंगा।।

©Sandeep Sagar
  #ek chahth
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Sandeep Sagar

अक्सर लोग आँखों से निकलते आँसू देख कर समझते है कि सामने वाला रो रहा है पर उस आँसू के मोल कि कोई कीमत नहीं जो आँखों से निकलने की कोशिश भी इसीलिए नहीं करता है जिससे वो बदनाम ना हो जाए। 

"यहाँ आंसुओं के हर कदम पे है लगे पहरे कई 
जो दिख गया वो सामने बाकी तो है ठहरे कई 
जो अपने आँख से कभी निकला हुआ था एक नज़र 
वो आज दूसरों की आँख ढूँढता कहर कई
वो एक आँख जो सदी से दुख से है भरी हुई 
नज़र नहीं है आता उनमे किसी को भी लहरे कई 
मैं वो आँखे जानता हूँ,जानता क्या पहचानता हूँ 
जागते अरमान उनमे हर किसी अहले सुबह 
फिर वो सुबह,फिर शाम में और शाम ढ़ल के रात हुई 
फिर तमन्ना रात के शोरों में जाके खो गई 
फिर वही सपने हकीकत को बनाने के लिए 
मैं दिन,शाम,रात मे गुमनामियों में खो गई।

©Sandeep Sagar
  #aanshu

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