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deepbodhi4920
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दीप बोधि

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दीप बोधि

White हवा जब किसी की कहानी कहे है
नए मौसमों की जुबानी कहे है

फ़साना लहर का जुड़ा है जमीं से
समन्दर मगर आसमानी कहे है

कटी रात सारी तेरी करवटों में
कि ये सिलवटों की निशानी कहे है

नई बात हो अब नए गीत छेड़ो
गुज़रती घड़ी हर पुरानी कहे है

मुहल्ले की सारी गली मुझको घूरे
हुई जब से बेटी सयानी कहे है

यहाँ ना गुज़ारा सियासत बिना अब
मेरे मुल्क की राजधानी कहे है

'रिवाज़ों से हट कर नहीं चल सकोगे'
कि ये जड़ मेरी खानदानी कहे है

©दीप बोधि
  #Sad_shayri
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दीप बोधि

White हवा जब किसी की कहानी कहे है
नए मौसमों की जुबानी कहे है

फ़साना लहर का जुड़ा है जमीं से
समन्दर मगर आसमानी कहे है

कटी रात सारी तेरी करवटों में
कि ये सिलवटों की निशानी कहे है

नई बात हो अब नए गीत छेड़ो
गुज़रती घड़ी हर पुरानी कहे है

मुहल्ले की सारी गली मुझको घूरे
हुई जब से बेटी सयानी कहे है

यहाँ ना गुज़ारा सियासत बिना अब
मेरे मुल्क की राजधानी कहे है

'रिवाज़ों से हट कर नहीं चल सकोगे'
कि ये जड़ मेरी खानदानी कहे है

©दीप बोधि
  #sad_quotes
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दीप बोधि

White वो जब अपनी खबर दे है
जहाँ भर का असर दे है

चुराकर कौन सूरज से
ये चंदा को नजर दे है

है मेरी प्यास का रुतबा
जो दरिया में लहर दे है

कहाँ है जख्म औ मालिक
यहाँ मरहम किधर दे है

रगों में गश्त कुछ दिन से
कोई आठों पहर दे है

जरा-सा मुस्कुरा कर वो
नयी मुझको उमर दे है

रदीफ़ो-काफ़िया निखरे
गजल जब से बहर दे है

©दीप बोधि
  #Sad_shayri
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दीप बोधि

White जल गई है फ़स्ल सारी पूछती अब आग क्या
राख पर पसरा है 'होरी', सोचता निज भाग क्या

ड्योढ़ी पर बैठी निहारे शहर से आती सड़क
'बन्तो' की आँखों में सब है, जोग क्या बैराग क्या

खेत सारे सूद में देकर 'रघू' आया नगर
देखता है गाँव को मुड़-मुड़, लगी है लाग क्या

चाँद को मुंडेर से 'राधा' लगाये टकटकी
इश्क के बीमार को दिखता है कोई दाग क्या

क्लास में हर साल जो आता था अव्वल 'मोहना'
पूछता रिक्शा लिये, 'चलना है मोतीबाग क्या'

किरणों के रथ से उतर क्या आयेगा कोई कुँवर
सोचती है 'निर्मला', देहरी पे कुचड़े काग क्या

जब से सीमा पर हरी वर्दी पहन कर वो गये
घर में 'सूबेदारनी' के क्या दिवाली फाग क्या

©दीप बोधि
  #sad_shayari
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दीप बोधि

White खबर मिली है जब से ये कि उनको हमसे प्यार है
नशे में तब से चाँद है, सितारों में खुमार है

मैं रोऊँ अपने कत्ल पर, या इस खबर पे रोऊँ मैं
कि कातिलों का सरगना तो हाय मेरा यार है

ये जादू है लबों का तेरे या सरूर इश्क का
कि तू कहे है झूठ और हमको ऐतबार है

सुलगती ख्वाहिशों की धूनी चल कहीं जलायें और
कुरेदना यहाँ पे क्या, ये दिल तो जार-जार है

ले मुट्ठियों में पेशगी महीने भर मजूरी की
वो उलझनों में है खड़ा कि किसका क्या उधार है

©दीप बोधि
  #flowers
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दीप बोधि

White एक मुद्दत से हुये हैं वो हमारे यूँ तो
चाँद के साथ ही रहते हैं सितारे, यूँ तो

तू नहीं तो न शिकायत कोई, सच कहता हूँ
बिन तेरे वक्त ये गुजरे न गुजारे यूँ तो

राह में संग चलूँ ये न गवारा उसको
दूर रहकर वो करे खूब इशारे यूँ तो

नाम तेरा कभी आने न दिया होठों पर
हाँ, तेरे जिक्र से कुछ शेर सँवारे यूँ तो

तुम हमें चाहो न चाहो, ये तुम्हारी मर्जी
हमने साँसों को किया नाम तुम्हारे यूँ तो

ये अलग बात है तू हो नहीं पाया मेरा
हूँ युगों से तुझे आँखों में उतारे यूँ तो

साथ लहरों के गया छोड़ के तू साहिल को
अब भी जपते हैं तेरा नाम किनारे यूँ तो

©दीप बोधि
  #love_shayari
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दीप बोधि

White नहीं भूलते फूल
गंध अपनी फैलाना,
नहीं भूलती नदी
निरंतर बहते जाना,
नहीं भूलता सूरज
रोज़ सवेरे उगना,
नहीं भूलता पानी
सबकी प्यास बुझाना!

जाने हम इंसान
भूल जाते हैं कैसे
इंसानों के बीच
बने रहना इंसान!
सोच-सोच कर मैं
अक्सर होता हैरान!
सोच-सोच कर मैं अक्सर होता हैरान!

नहीं लौटते
बचपन और जवानी जैसे,
नहीं लौटता वक़्त
नदी का पानी जैसे,
नहीं लौटते शब्द
जीभ से फिसल गये जो,
नहीं लौटती यादें
बहुत पुरानी जैसे!

हम जाने क्यों
आदिम युग को
लौट रहे हैं,
स्थापित करने को
निज बर्बर पहचान!
सोच-सोच कर मैं
अक्सर होता हैरान!
सोच-सोच कर मैं अक्सर होता हैरान!

©दीप बोधि
  #good_night
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दीप बोधि

White उदासी के दरख़्तों पर हवा पत्तों पे ठहरी थी
मगर इक रोशनी बच्चों की मुस्कानों पे ठहरी थी

हमें मझधार में फिर से बहा कर ले गया दरिया
हमारे घर की पुख़्ता नींव सैलाबों पे ठहरी थी

ज़रा से ज़लज़ले से टिक नहीं पाये ज़मीं पर हम
हमारी शख़्सियत कमज़़ोर दीवारों पे ठहरी थी

यहाँ ख़ामोशियों ने शोर को बहरा बना डाला
हमारी ज़िन्दगी किन तल्ख़ आवाज़ों पे ठहरी थी

छलक कर चंद बूँदें आ गिरीं ख़्वाबों के दरिया से
कोई तस्वीर भीगी-सी मेरी पलकों पे ठहरी थी

©दीप बोधि
  #emotional_sad_shayari
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दीप बोधि

White न जाने क्यों वो दरिया छोड़ कर उस पार जाता है
सराबों की तरफ़ प्यासा हज़ारों बार जाता है

हुई मुश्किल सियासत अब तेरी आगोश में आकर
बचाता हूँ अगर ईमान, कारोबार जाता है

यूँ लगता है मेरे बच्चे बडे़ होने लगे शायद
मेरा ग़ुस्सा असर करता नहीं, बेकार जाता है

यहाँ झुक कर जो निकला है उसी का है सलामत सर
यहाँ से सर उठा कर तो फ़क़त ख़ुद्दार जाता है

इसे मासूमियत या फिर कहूँ चालाकियाँ उसकी
जिता देता है वो मुझको मगर ख़ुद हार जाता है

मेरी कमज़ोरियां उसके लिए ताक़त हुईं साबित
मुझे अपनी अदाओं से वो ज़ालिम मार जाता है

©दीप बोधि
  #summer_vacation
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दीप बोधि

White उठाने के लिए नुक़्सान तू तैयार कितना है
तेरा झुकना बताता है कि तू ख़ुद्दार कितना है

मुकम्मल हो भी सकता हूँ अगर तू फ़ैसला कर ले
मैं जितना हूँ मेरा होना तुझे दरकार कितना है

बहुत मुश्किल में हूँ ख़्वाबों का दरिया पार कैसे हो
न जाने रास्ता आगे भी दरिया पार कितना है

फ़क़त दौलत नज़र-भर प्यार की महफ़ूज़ रखते हैं
तराज़ू पर नहीं हम तोलते कि प्यार कितना है

तू ख़ुद को बेच कर ख़ुद की ख़रीदारी में है माहिर
तुझे मालूम है हक़ में तेरे बाज़ार कितना है

©दीप बोधि
  #mothers_day
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