मै आज का युवा हूँ, आज के भारत का, आज के समाज का, आज के इस बलदते दौर का,मेरे चारो तरफ आज भागदौड़ लगी है, हर तरफ शोर है बस शोर है, एक बेचैनी एक डर एक मायूसी और एक बदलता समाज, जो हर दिन न जाने क्यों मगर एक अँधेरे गहरे कुए में डूबता ही जा रहा है डूबता ही जा रहा, वो बात अलग है की मेरे हाथ में भी एक कुदाल है एक फावड़ा है एक भाला है, ये जानते हुए भी की मै गलत कर रहा हूँ मै गलत किये जा रहा हूँ, गलत की मै न जाने क्यों अपनी जिम्मेदारियां अपने कर्तव्य अपनी सोच समाज, रीती रिवाज, सब के साथ जैसे कुछ गलत कर रहा