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ushayadav7458
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Usha Yadav

Ph.D Hindi

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Usha Yadav

 शब्दों का जाल

 शब्दों का भी अजीब किस्सा होता है। आज इसी असमंजस में होकर सोच रही थी, कि जब कभी भी हम शब्दों की दुनिया में सैर करते हुए दूर तक चले जाते हैं। तो फिर ये शब्द ही हमारी भावनाओं का हिस्सा बनकर ही बाहर निकलते है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जिसे हम बोल नहीं पाते हैं उसे हम शब्दों के माध्यम से उद्धृत अवश्य करते हैं। शायद ये शब्द ही होते हैं जो हमें एक दूसरे से जोड़े रखते हैं। इसी प्रकार जब कभी भी कोई लेखक सृजन कार्य करता है। तो यह शब्द ही उसका दर्पण बन कर उसे शिखरों की ऊंचाइयों पर ले जाने वाले उसके सच्चे साथी बन जाते हैं। खैर मैं तो इतना ही सोचा पाई हूँ। आप भी सोचिए! और बताइए  है ना अजीब शब्दों की दुनिया!😊


उषा यादव

©Usha Yadav #drowning
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Usha Yadav

आदमी 
मरने के बाद
 कुछ नहीं सोचता।

 आदमी 
मरने के बाद 
कुछ नहीं बोलता।

 कुछ नहीं सोचने 
और कुछ नहीं बोलने पर 
आदमी 
मर जाता है।
 
उदय प्रकाश

©Usha Yadav आदमी

#Love

आदमी Love #कविता

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Usha Yadav

सुनो न…..
  मौन ही तो वह माध्यम
है अब हमारे बीच!

जो जोड़े हुए है
 तुम्हें हमसे…
 
नहीं तो शब्दों में वह
रिक्क्तता ही कहां बची
 है, जो अंतर्मन की उस गहन

पीड़ा को समझ सके!
 उषा
.

©Usha Yadav मौन

#Hope
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Usha Yadav

धनिका 
उपन्यास 'धनिका' को पढ़ने के बाद सच में छोड़ने का मन ही नहीं होगा। जब तक की ये खत्म ना हो जाए ।11 अध्याय और 159 पेज का यह उपन्यास, हर एक लड़की जैसे शादी ना होने के पहले और शादी होने के बाद की परिस्थितियों और अपनी मजबूरियों को बयां करती है। 5 बच्चों का हंसता खेलता पूरा परिवार जिसमें से चार तो लड़कियां ही हैं। हर लड़की की अपनी एक अलग कहानीहैं। बड़ी लड़की धनिका की बच्चेदानी अंदर पेट में सड़ने की वजह से बच्चेदानी ही निकाल दी जाती है। पति तथा पत्नी के जीवन से वात्सल्य और आनंद सब कुछ बुहार कर गहरे समंदर में किसी ने फ़ेक दिया हो। फिर भी घर की बड़ी लड़की होने के कारण और पति की तरफ से अवसान निर्जीव सी उस घर में पड़ी रहती है। कहते हैं" ना पीड़ा जब सहनशीलता की सीमा पार कर ले, जब बेहतरी के सारे रास्ते बंद हो जाए। तब सहानुभूति की जैसी जरूरत थी खत्म हो जाती है। घर आए भी तो कैसे बाबा ने जो कुछ जोड़-तोड़ के रख रखा था, या रख रहे थे। बाकी बहनों के दहेज के लिए। ताकि उनकी बेटियों की अच्छी जगह शादी हो सके। इसी प्रकार अर्चना जो ताउम्र वासु से प्यार करती है। वासु भी उसे धोखा देकर चला गया। शादी होने की बावजूद उसकी निगाहें सिर्फ
 "कटी पतंग का निगाहों के दायरे से 
बहुत दूर बादलों में विलय हो जाना 
जैसा हमेशा उसे महसूस करती है" वह पढ़ना चाहती थी। परंतु मां बाबा की हालत देखकर बेचारी अपनी पढ़ाई छोड़ कर स्कूल में पढ़ाने लगी। हर लड़की की अपनी एक अलग सी कहानी है। जिसे पढ़कर एक भावात्मक जुड़ाव हो जाता है। शादी के बाद जब कोई लड़की अपने छात्र जीवन के अल्हड़ गलियारों में पहुंच जाए तो उस समय कहते हैं" ना वक्त केवल बीतता है। गुजरता नहीं मायके की जर्रे जर्रे…. में अतीत जीवन तड़पता है। इसके बाद यदि उसका ही पति जब उसकी ही छोटी बहन को अपने ही घर पर लाकर उसके साथ घूमने जाए और हमबिस्तर होने लगें तो उस स्त्री पर क्या गुजरती होगी। यह तो सिर्फ वही जान सकती है। एक स्त्री सिर्फ अपनी बच्चेदानी या बच्चा पैदा करने से ही नहीं जानी जाती। उसका भी अपना वजूद है उस व्यक्ति के साथ संबंध है जो सात जन्मों का वचन देकर उसे अपने घर पर ब्याह कर लाता है। यादों की पीड़ा का अवसान किस के मन में कितना है। कौन जाने यह तो "मधु चतुर्वेदी" को ही पता है। सलाम है आपकी लेखनी को मैम। 'धनिका' उपन्यास को पढ़ते वक्त सचमुच इस जुड़ाव सा हो गया। जिसे सिर्फ एक दिन में ही पढ़ कर खत्म किया। बहुत कुछ है इस उपन्यास में परंतु अभी मैं सिर्फ एक छोटी सी समझा ही कर रही हूं।बाकी जब आप इसे अपने आप ही इसे पढेंगे तो खुद ब खुद समझ आ जाएगा।
धन्यवाद 
उषा यादव

©Usha Yadav धनिका

#waiting
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Usha Yadav

काश! तुम खुली किताब होते 
जिसे हर कोई पढ़ना चाहता
 
और मैं, उस किताब में
छिपे हुए शब्दों की तरह
 
जो चंद लाइनों में सिमट कर 
इन जज्बातों में गुम हो जाती

काश! तुम सचमुच खुली किताब
 होते तब शायद तुम्हें अहसास होता
 मेरे उस दर्द का 
उषा

©Usha Yadav काश 

#LostInSky
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Usha Yadav

वह मिट्टी का खपरैल वाला घर
 था, बीच के आंगन में एक नीमों वाला
     पेड़, करती जहां गौरैया 
  साथियों के संग 
विचरण…..।।

याद आती है वो भीनी भीनी
 मिट्टी की खुशबू, वो गांव के
 खेतों की लहलहाहट..

  वो बैलों की झुरमुट की 
आवाजें! वो साथ में बैठे 
बकरियों की मिनमिनाहट

 छूट गई सब यादें जैसे….
  
उषा

©Usha Yadav मेरा घर
#Connection

मेरा घर #Connection #कविता

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Usha Yadav

आज मन में फिर वही खामोशी है
यह खामोशी है, या मेरे मन
का अंतर्द्वंद

जब यह खामोशी बातें करना
चाहती है, तो जैसे शब्द ही
बिखर जाते हैं

खो जाते हैं जैसे शब्द मन के
इधर-उधर उन कोनों में
परंतु बोलना चाहती है ये खामोशी
मधुर स्वप्न के उन स्वरों को
जो निरुपाय होकर
कहीं बिखर चुके हैं
उषा

©Usha Yadav खामोशी

#youandme

खामोशी #youandme #कविता

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Usha Yadav

एक कवि 
जब कभी कविता लिखता है
 तो वह कविता नहीं

 कल्पनाओं को उन
 भावों रूपी शब्दों को 
मोती समान माला में 
गुथता है….
 
जो बैठे,अकेले एक कोने में
 विचारों की विलीनता से 
सृजित होते हैं 

उषा

©Usha Yadav कवि

#alone
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Usha Yadav

देखा एकदिन डूबते चांद को 
छिटक रही थी चांदनी जैसे 
नभ के बादलों के समान,दूधिया
 मेखलाओं की श्वेतिमा लिए 

छट रहा था उसका दूधिया रंग 
अस्तित्व हीन निगाहों की पीड़ाओं
 के संग 

बड़ा वेदनाओं से भरा दृश्य 
जैसे लपलपाती हुई किरणें 
सिमटकर उद्वेलित कर रही हो
निहारती आंखों को
उषा

©Usha Yadav #Life
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Usha Yadav

देखा एकदिन डूबते चांद को 
छिटक रही थी चांदनी जैसे 
स्वर्णिम ,दूधिया मेखलाओं 
की लालिमा लिए 

छट रहा था उसका दूधिया रंग 
अस्तित्व हीन निगाहों की पीड़ाओं
 के संग 

बड़ा वेदनाओं से भरा दृश्य 
जैसे लपलपाती हुई किरणें 
सिमटकर उद्वेलित कर रही हो
निहारती आंखों को
उषा

©Usha Yadav #walkingalone
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