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alkamishra4473
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alka mishra

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alka mishra

White 
टंका विधा
#प्रतीक्षा
साफ आकाश
बढ़ती जाए प्यास
थमती सांस
सूखा धरा आँचल
बरसो रे बादल।
©अलका मिश्रा

©alka mishra
  #sad_quotes
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alka mishra

विषय-सारा आकाश
ग़ुरबत में हैं हम 
पर जीतें हैं बिंदास
तन कोयले सा जलता
मन में न लगे प्यास
खून पसीने सा बहता
जिंदगी महल है ताश।
दो रोटी की आस में
चलती रहती है सांस।
किसी बात का न गुमां 
न रहना सीखा निराश।
जब सारी धरा हमारी
और हमारा सारा आकाश।
©अलका मिश्रा

©alka mishra
  #nightsky
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alka mishra

White सफ़र
जिंदगी के सफ़र में
हम साथ चले थे 
जिस्म व रूह से
तुम्हें बन्धन भाता
मुझे मेरी आजादी।
तुम जोड़ते धागे मोह के
मैं हर शीरा छोड़ती जाती।
तुम घूमते मजलिसों में
मैं वीराने की रही साथी।
शुरुआत से अंत तक
तुम्हारे लिए मैं प्राण थी
तुम मेरे लिए थे समाधि।
और अंत में तुम और मैं
विलीन हुए पंचतत्व में।
तुम्हें अग्नि ने मिट्टी दी
मुझे अग्नि पंख लगा दी।
©अलका मिश्रा

©alka mishra
  #safar
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alka mishra

White टकटकी लगा देख रहा चाँद
रेगिस्तान में खड़ा एक इंसान।
दिग्भ्रमित बेचैन सा था वो
जिंदगी न लग रही थी आसान।
तपती रेत शीतल करता चाँद
नींद की आगोश में था जहान।
चाँद की चांदनी ने सुनाए कई
इश्क़ के निकले हुए फरमान।
बेअसर थे सारे पैंतरे उस पर
रेतीले टीलों तले दबे अरमान।
वक्त की चोट ने रोकी चाल
दर्द से फिर भी था अनजान।
देख उसे अब समझा चाँद
ये न था कोई मामूली इंसान।
जब तक पा न ले वो मंजिल
महफ़िल भी उसे लगे वीरान।
©अलका मिश्रा

©alka mishra
  #Moon
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alka mishra

White पहुँच ऊँचाई पर
हम देखते जहां
जगमगाती हैं रातें
झिलमिलाता शमां
असंख्य कृत्रिम जुगनुयें 
बिछी धरती पटल पर
पर आकाश के तारों ने 
नैनो को बाँधा वहाँ
सजते थे ख्वाब कई
टूटते तारों संग जहाँ
चाँद बादल की होती
लुकाछिपी कुछ ऐसे
बचपन की अटखेलियां
करते हों वो बयां जैसे
यादों की बयार 
छू निकली ऐसे
मन के शांत तारों को 
किसी ने छेड़ा हो जैसे
डूब चुका है ये दिल
झूठे रौशनी तले अंधकार में
अब जिंदा रहने के लिए
पड़ के देखो कभी रात
के अनोखे प्यार में।
©अलका मिश्रा

©alka mishra
  #Night
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alka mishra

White हमें न होता दर्द
तभी हम हैं मर्द
हमारे जीवन का लक्ष्य
जैसे हो कोई अक्ष
पद, पैसा व प्रतिष्ठा
प्राप्ति की मिली दीक्षा
काग सी है उत्सुकता
हमें न भाती भावुकता
पर आज छू ऊंचाई
बयां करूँ सच्चाई
मां की ममता हृदय समाई
पलकों पीछे छिपी तरुणाई
पर पिता की बनना परछाईं
सिर पगड़ी की याद दिलाई
बचपन सब ने लाड लगाई
किशोरावस्था बड़ी सकुचाई
दिल का दर्द कहना चाहा भी
तो सोचा क्या कहूँ कैसे कहूँ
सामने बैठा वो बन बड़ा भाई।
हित मीत सहपाठी की मिताई।
ये सब क्या समझे पीर पराई।
सबकी काया भी थी शरमाई।
भुलभुलैया से जीवन राहों ने
पहेली में सबकी मति उलझाई।
रण में हो कितनी भी कठिनाई
भागना हमारी फ़ितरत नहीं भाई।
©अलका मिश्रा

©alka mishra
  #SAD
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alka mishra

White उस दिन जब भोर की उषा ने
आकाश में लाली सजाई थी।
तब से मेरे बेचैन अंतर्मन ने 
अश्कों की लड़ी लगाई थी।
शाम सबेरे चहकती चिड़िया ने
कल से ही चुप्पी लगाई थी।
सुहाने सपनो में गुम थी वो या
दिल में उसके उदासी छाई थी।
सब उथलपुथल सा लग रहा यहां
मेरी भी दिनचर्या कुछ अलसाई थी।
जुदा हुई उसकी छाया भी मुझसे
उसकी चहक मेरे दिल में बस गई।
शाम की लाली ओढ़ वो मेरी चिड़िया
अपने नए घोसले में जा बस गई।
©अलका मिश्रा

©alka mishra
  #उस_दिन_जब
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alka mishra

शायद कोई कारण था
वो न नहीं कह पाती थी
कटु वचन व यातना सारे
हो मौन सहती जाती थी
गर्म अश्को के छालों को
वो आँचल में छुपाती थी
महफ़िलों सी भीड़ में वो 
कोने में दुबक जाती थी
शोर करती समंदर सी वो
नाले में बदलती जाती थी
कई वर्षों बाद मिली उसे
वो चीखती-चिल्लाती थी
कभी जोरों से हंसने लगती
वो कभी नाचती गाती थी
शायद कोई कारण था
वो अकेले में बड़बड़ाती थी।
©अलका मिश्रा

©alka mishra
  #Alive
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alka mishra

कौन जानता है यहाँ?
उनकी असलियत क्या है?
मासूम से चेहरे के पीछे की
उनकी हकीकत क्या है?
अंगारों सी दहकती आँखों की
फैलती दहसत क्या है?
ख़ौफ़नाक इरादों के पीछे की
साजिश का मक़सद क्या है?
खूनी खेलों के खिलाड़ियों की
जिंदगी से अदावत क्या है?
कब्र खोदना इबादत है जिनकी
उनके लिए मौत की दावत क्या है?
©अलका मिश्रा

©alka mishra
  #terrorism
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alka mishra

White #दरार
जिंदगी की इमारत में 
जोड़ता रहा रिश्तों की ईंटे मैं
वक्त के बेरहम हथौड़े ने
हर बार इसमें दरार किया
किस्मत की लकीरों को
इसने दरारों से भर दिया
हाथ-पैरों की परवाह न की
दिन-रात मैंने एक कर दिया
लहूलुहान होता रहा दिल भी
किसी ने जख्मों पे नमक धर दिया
सालों से इमारत की दरारों में
चिपके हैं जो सीलन की तरह
उन्होंने इन दरारों को कभी
पूरी तरह भरने न दिया।
©अलका मिश्रा

©alka mishra
  #Rift
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