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sunilkumarmaurya6950
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Sunil Kumar Maurya Bekhud

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Sunil Kumar Maurya Bekhud

बौराएँ हैं आम

चले घूमने बाग घूमने, 
छोड़ छाड़ सब काम! 
हर्षित हुआ देख मन मेरा, 
बौराये है आम! 

कुछ ही दिनों के बाद लगेंगे, 
सुंदर हरे टिकोरे! 
उन्हें बीनने को दौड़ेंगे, 
कई छोरियाँ छोरे! 

आम बड़े जब हो जायेंगे, 
और लगेंगे पकने! 
पीले पीले हरी डाल में, 
चारो ओर लटकने! 

तब चाहेंगे सभी जोर की, 
आ जाये गर आँधी! 
चोरी चोरी बीन ले जाएं, 
बन करके अपराधी! 

कोई न देखे जब हम उनको, 
चुपके से ले जाएँ! 
मीठे मीठे आम प्रेम से, 
छक करके हम खाएँ! 

बेखुद भूल न पाएँ यादें, 
बचपन की आजीवन! 
आये सपनों में भी हरदम, 
बाग बगीचे उपवन!

©Sunil Kumar Maurya Bekhud #आम
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Sunil Kumar Maurya Bekhud

घर

छोटा हो या बड़ा सभी के लिए बहुत ही प्यारा, 
मेरे बिन दुनियाँ में किसी का होता नहीं गुजारा! 

मेरी कीमत उससे पूछो जो बिल्कुल बेघर हो, 
नींद नहीं आती तो गिनता रात रात भर तारा! 

दया दृष्टि से लोग देखते फिर भी मदद न करते, 
कहते इसकी आदत ऐसी ये तो है बंजारा! 

मैं देता हूँ छाँव जगत में देता हूँ अपनापन, 
जब भी कोई आ जाता है काम से थक कर हारा! 

प्यार सभी करतें हैं मुझको जब तक ताकत मुझमें, 
जर्जर होते ही सब कहते हैं मैं बिल्कुल नाकारा! 

हाल सभी बूढ़ों का बेखुद जैसे कोई खंडहर, 
लोग चाहते गिरें बनाएँ सुंदर महल दुबारा!

©Sunil Kumar Maurya Bekhud #ghar
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Sunil Kumar Maurya Bekhud

दस्तक

दस्तक सुनकर खड़े हुए हैं, 
मन में कई सवाल! 
कौन खड़ा है दरवाजे पर, 
बुरा हृदय का हाल! 

कोई अपना मित्र खड़ा है, 
या फिर कोई दुश्मन! 
या फिर कोई याचक है वो, 
फैलाए है दामन! 

खतरे की घंटी है दस्तक, 
या खुशियाँ है लाया! 
मन अधीर हो उठा है मेरा, 
कौन मेरे दर आया? 

बोला अतिथि देव तुम पहले, 
दे दो अपना परिचय! 
पर कोई आवाज न आई, 
कैसे करता निश्चय? 

डरते डरते दर खोला तो, 
वहाँ नहीं था कोई! 
बेखुद पवन देव की दस्तक, 
टूटी तंद्रा सोई! 

स्वरचित
सुनील कुमार मौर्य बेखुद
गोरखपुर उत्तर प्रदेश

©Sunil Kumar Maurya Bekhud #Thinking
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Sunil Kumar Maurya Bekhud

दस्तक

दस्तक सुनकर खड़े हुए हैं, 
मन में कई सवाल! 
कौन खड़ा है दरवाजे पर, 
बुरा हृदय का हाल! 

कोई अपना मित्र खड़ा है, 
या फिर कोई दुश्मन! 
या फिर कोई याचक है वो, 
फैलाए है दामन! 

खतरे की घंटी है दस्तक, 
या खुशियाँ है लाया! 
मन अधीर हो उठा है मेरा, 
कौन मेरे दर आया? 

बोला अतिथि देव तुम पहले, 
दे दो अपना परिचय! 
पर कोई आवाज न आई, 
कैसे करता निश्चय? 

डरते डरते दर खोला तो, 
वहाँ नहीं था कोई! 
बेखुद पवन देव की दस्तक, 
टूटी तंद्रा सोई!

©Sunil Kumar Maurya Bekhud
  #Thinking
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Sunil Kumar Maurya Bekhud

परिवार और मोबाईल

निज कुटुंब संग भोजन में, 
मिले परम आनंद! 
बढ़े प्रीति उर में सबके, 
इर्ष्या पड़ती मंद! 

पैदा न होने पाता, 
कभी कोई मतभेद! 
समय नहीं कहकर कोई, 
नहीं जताता खेद! 

होता है परिवार में, 
सुख शांति का वास! 
अपने घर में स्वर्ग का, 
तब होता अहसास! 

किंतु आज मोबाईल में, 
दुनियाँ हो गई व्यस्त! 
ढूँढ रहे उसमें खुशियाँ, 
होकर सारे मस्त! 

गैरों को अपना समझें, 
हो अपनों से दूर! 
बेखुद नशा मोबाईल है, 
सभी नशे में चूर

©Sunil Kumar Maurya Bekhud परिवार और मोबाईल

परिवार और मोबाईल #कविता

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Sunil Kumar Maurya Bekhud

Unsplash 

साहित्य और समाज 
----------------------
जो  कुछ भी समाज में 
लेखक देखे नित्य
चलती उसकी लेखनी
लिखती है साहित्य

कहीं क्राँति उसको दिखे
खुलें प्रगति के द्वार
या फिर किसी त्रासदी से
हों मानव दो चार

फैलाये शोषण जहर
उसे चुभोकर डंक
घायल करे समाज को
खंजर ले आतंक

या फिर उसको मिले कहीं
प्रेम की शीतल छाँव
या फिर लगे डूबने सहसा
कहीं प्रणय की नाव

हर घटना को लेखनी
लिखने को मजबूर
कोमल बन जाती कभी
कभी बने वो क्रूर

जैसे अंबर में चमके
सुबह सुबह आदित्य
बेखुद फैलाए प्रकाश
 जन जन में  साहित्य

©Sunil Kumar Maurya Bekhud #Book
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Sunil Kumar Maurya Bekhud

White 

टाल नहीं सकता कोई, 
विधि का लिखा विधान! 
अगर टालना चाहे कोई, 
वह  बिल्कुल  नादान ! 

जो कुछ भी घटतीं, 
सब ईश्वर की लीला! 
पल में खाई बन जाती, 
जहाँ उतुंग है टीला! 

होइहें सोई राम रची रखा, 
ऋषि मुनियों की वाणी! 
फिर भी मद में चूर सदा ही, 
रहता मूरख प्राणी! 

बेखुद चाँद सितारे सब हैं, 
पर्मेश्वर् की रचना! 
उसकी मर्जी के बग़ैर, 
घटे न कोई घटना!

©Sunil Kumar Maurya Bekhud #Sad_Status
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Sunil Kumar Maurya Bekhud

मैं कलयुग की नारी

मैं कलयुग की नारी, 
घर आँगन की फुलवारी! 
महकाती पति का जीवन, 
छवि मेरी लगती न्यारी! 

दुनियाँ कहती है अबला, 
कुछ लोग समझते तबला! 
असहाय जानकर कुछ तो, 
करते अस्मत पर हमला! 

शोषित हूँ बहुत दुःखी हूँ, 
पर कहते लोग सुखी हूँ! 
माँ कहती मुझे पराई, 
भाई कहते पंछी हूँ! 

पर जाग चुकी हूँ अब मैं, 
छवि त्याग चुकी हूँ अब मैं! 
खूँटी पर हर कमजोरी , 
को टाँग चुकी हूँ अब मैं! 

हक अपना लड़कर लुंगी, 
दुनियाँ को टक्कर दूँगी! 
मैं आज मोम हूँ बेखुद, 
कल मैं फौलाद बनूँगी!

©Sunil Kumar Maurya Bekhud #womeninternational
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Sunil Kumar Maurya Bekhud

White 

    **बुरा हो वक्त तो**

बुरा वक्त हो तो, घबराइए नहीं
हिम्मत से काम लीजिए, मुरझाईए नहीं! 

ऐसे में कोई अपना अगर ,साथ छोड़ दे , 
इसके लिए जरा भी  ,पछताईयए नहीं! 

अपने व गैर ठीक से पहचान लीजिए, 
लेकिन किसी को राज यह बताईए नहीं! 

हालत से लड़ने जज्बा कीजिए पैदा, 
कुछ भी हो हार करके बैठ जाईए नहीं ! 

मजबूर हो लेना पड़े कुछ सख्त फैसले, 
तो इसके लिए तनिक भी शर्माइये नहीं ! 

बेखुद जहाँ पे आपको इज्जत नहीं मिले, 
अपने कदम उस जहाँ में बढ़ाईये नहीं! 

     स्वरचित
सुनील कुमार मौर्य बेखुद
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश

©Sunil Kumar Maurya Bekhud #Thinking
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Sunil Kumar Maurya Bekhud

सुरधनु
नील गगन में कैसा धनु है, 
इसको कौन चलाता है! 
कौन टांगता है कंधे पर
बाण कहाँ से लाता है ! 

इंद्र देव ने  सात रंग में , 
इसे मनोहर रूप दिया! 
बारिश की बूँदों के ऊपर, 
जब सूरज  ने धूप दिया! 

भय की कोई बात नहीं है, 
सुरधनु इसका नाम है! 
इसे देख जो ना मोहित हो, 
वह बिल्कुल नादान है! 

बेखुद इसका इसका रूप निराला, 
ही इसकी पहचान है! 
युगों युगों से कवि गण करते, 
हैं इसके गुणगान हैं! 

  स्वरचित
सुनील कुमार मौर्य बेखुद
गोरखपुर उत्तर प्रदेश

©Sunil Kumar Maurya Bekhud #Rainbow
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