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deepakverma4820
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Deepak verma

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Deepak verma

🚶चल कदम दो कदम बढ़ा निज🚶

फेसबुक पर फेश दिखाना,सबके मन को भाता है।
इंस्टा व्हाट्सएप और स्टोरी दर्पण सा छा जाता है।।
नूर हूर दिखला कर के क्यूं, मगरूर जब हो जाते हैं।
डेंटिंग पेंटिंग एडिटिंग आईना,से यथार्थता भूलाते हैं।।

संस्कारों और संस्कृतियों का, होता त्रास तो भाता है।
अपने मानवीय मूल्यों का, होता ह्रास का तो ज्ञाता है।।
भूल भुलैया सी दुनिया में, खुद को भूल क्यों जाते है।
पाश्चात्य का नूर लिए, आधुनिकता की ओर जाते हैं।।

अब भला कैसे होगा! सकल जीवन का चरित्र मंथन।
दिखता कुछ और होगा! वास्तविकता का कर मनन।।
अब दर्पण भी देख हुलिए को, मन ही मन शर्माता है।
निज दाग़ धब्बे समेटे, बनावटी चेहरे पर मुस्काता हैं।। 

संयम का अब मौल कहां है?, सुंदरता मन भाता है‌।
अवधूत सा अडिग कहां है?, चंचलता मन भाता है।।
कर्म लक्ष्य की लिए साधना, कहां मुसाफ़िर जाता है।
चल कदम दो कदम बढ़ा निज,क्यों यहां रुक जाता हैं।।

©Deepak verma
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Deepak verma

🚶चल कदम दो कदम बढ़ा निज🚶

फेसबुक पर फेश दिखाना,सबके मन को भाता है।
इंस्टा व्हाट्सएप और स्टोरी दर्पण सा छा जाता है।।
नूर हूर दिखला कर के क्यूं, मगरूर जब हो जाते हैं।
डेंटिंग पेंटिंग एडिटिंग आईना,से यथार्थता भूलाते हैं।।

संस्कारों और संस्कृतियों का, होता त्रास तो भाता है।
अपने मानवीय मूल्यों का, होता ह्रास का तो ज्ञाता है।।
भूल भुलैया सी दुनिया में, खुद को भूल क्यों जाते है।
पाश्चात्य का नूर लिए, आधुनिकता की ओर जाते हैं।।

अब भला कैसे होगा! सकल जीवन का चरित्र मंथन।
दिखता कुछ और होगा! वास्तविकता का कर मनन।।
अब दर्पण भी देख हुलिए को, मन ही मन शर्माता है।
निज दाग़ धब्बे समेटे, बनावटी चेहरे पर मुस्काता हैं।। 

संयम का अब मौल कहां है?, सुंदरता मन भाता है‌।
अवधूत सा अडिग कहां है?, चंचलता मन भाता है।।
कर्म लक्ष्य की लिए साधना, कहां मुसाफ़िर जाता है।
चल कदम दो कदम बढ़ा निज,क्यों यहां रुक जाता हैं।।

©Deepak verma
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Deepak verma

🌹 शोहरत 🌹
#दिनांक  - 29 जनवरी 2023 रविवार

#शोहरत से जो कमाया तूने, क्या खोना क्या पाना है।
क्या जाएंगे साथ तुम्हारे, कर्मों का लेखा जोखा है।। 
आएगा जब कयामत दिन, क्या पड़ेगा तुझे पछताना है। 
सद्कर्मों का संचयन तेरा,फिर मौत से क्या घबराना है।।

©Deepak verma
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Deepak verma

25 जनवरी 2023
 🇮🇳प्यारा तिरंगा हमारा🇮🇳

प्यारा  तिरंगा  देखो !  हमारा, नील  गगन  लहरा  रहा। 
प्यारा  तिरंगा  हमारा........
अम्बर  धुन  शहनाई  बजाएं, प्रेम  घन  बरसा  रहा। 
प्यारा  तिरंगा  हमारा........

केसरिया  रंग  शक्ति  साहस, शौर्य  गाथा  गा  रहा । 
प्यारा  तिरंगा  हमारा.........
पंछी  मिल  खुशियों  से  प्यारा, देश  भक्ति  गीत  गा  रहा।
प्यारा  तिरंगा  हमारा.........

सफेद  रंग  शांति  सच्चाई  और पवित्रता   ले  आ  रहा। 
प्यारा  तिरंगा  हमारा...........
मिल  जुल  सब  एक  रहना  भाई, एकता  बढ़ाता  आ  रहा। 
प्यारा  तिरंगा  हमारा............

हरा  रंग  पावन  धरा  पर, खुशियों  का  रंग  ला  रहा। 
प्यारा  तिरंगा  हमारा........... 
सरसों  के  अब  पुष्प  खिले  हैं, धन  धान  लहरा  रहा।
प्यारा  तिरंगा  हमारा..........

अशोक  चक्र  पहचान  गति  का, आगे  बढ़ता  जा  रहा। 
प्यारा  तिरंगा  हमारा......... 
मिल जुल  के  सब  बढ़ते  रहना, संकल्प  हमें  ये  बता  रहा। 
प्यारा  तिरंगा  हमारा.........

नफरतों  की  चली  बहारें, अडिग  ये  लहरा  रहा।
प्यारा  तिरंगा  हमारा..........
भारती  के  लाड़ले  याद  रहे,शत-शत  नमन  ये  गा  रहा।
प्यारा  तिरंगा  हमारा..........

प्यारा  तिरंगा  देखो !  हमारा,नील  गगन  लहरा  रहा।
प्यारा  तिरंगा  हमारा..........

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना
दीपक चंद रैगर
निवाई, टोंक (राजस्थान)।

©Deepak verma
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Deepak verma

#विधा - गीत 
#छंद - मुक्तक
#दिनांक - 25 जनवरी 2023

#शीर्षक 🇮🇳प्यारा तिरंगा हमारा🇮🇳

प्यारा  तिरंगा  देखो !  हमारा, 
नील  गगन  लहरा  रहा। 
प्यारा  तिरंगा  हमारा........
अम्बर  धुन  शहनाई  बजाएं, 
प्रेम  घन  बरसा  रहा। 
प्यारा  तिरंगा  हमारा........

प्यारा  तिरंगा  देखो !  हमारा, 
नील  गगन  लहरा  रहा। 
प्यारा  तिरंगा  हमारा........

केसरिया  रंग  शक्ति  साहस, 
शौर्य  गाथा  गा  रहा । 
प्यारा  तिरंगा  हमारा.........
पंछी  मिल  खुशियों  से  प्यारा, 
देश  भक्ति  गीत  गा  रहा।
प्यारा  तिरंगा  हमारा.........

प्यारा  तिरंगा  देखो !  हमारा, 
नील  गगन  लहरा  रहा। 
प्यारा  तिरंगा  हमारा.........

सफेद  रंग  शांति  सच्चाई  और 
पवित्रता   ले  आ  रहा। 
प्यारा  तिरंगा  हमारा...........
मिल  जुल  सब  एक  रहना  भाई, 
एकता  बढ़ाता  आ  रहा। 
प्यारा  तिरंगा  हमारा............

प्यारा  तिरंगा  देखो !  हमारा, 
नील  गगन  लहरा  रहा। 
प्यारा  तिरंगा  हमारा............

हरा  रंग  पावन  धरा  पर, 
खुशियों  का  रंग  ला  रहा। 
प्यारा  तिरंगा  हमारा........... 
सरसों  के  अब  पुष्प  खिले  हैं, 
धन  धान  लहरा  रहा।
प्यारा  तिरंगा  हमारा..........

प्यारा  तिरंगा  देखो !  हमारा, 
नील  गगन  लहरा  रहा। 
प्यारा  तिरंगा  हमारा.........

अशोक  चक्र  पहचान  गति  का, 
आगे  बढ़ता  जा  रहा। 
प्यारा  तिरंगा  हमारा......... 
मिल जुल  के  सब  बढ़ते  रहना, 
संकल्प  हमें  ये  बता  रहा। 
प्यारा  तिरंगा  हमारा.........

प्यारा  तिरंगा  देखो !  हमारा, 
नील  गगन  लहरा  रहा। 
प्यारा  तिरंगा  हमारा..........

नफरतों  की  चली  बहारें, 
अडिग  ये  लहरा  रहा।
प्यारा  तिरंगा  हमारा..........
भारती  के  लाड़ले  याद  रहे,
शत-शत  नमन  ये  गा  रहा।
प्यारा  तिरंगा  हमारा..........

प्यारा  तिरंगा  देखो !  हमारा,
नील  गगन  लहरा  रहा।
प्यारा  तिरंगा  हमारा..........

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना
दीपक चंद रैगर
निवाई, टोंक (राजस्थान)।

©Deepak verma
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Deepak verma

सभी कलमकारों साहित्यकारों को सहृदय पूर्ण 
भाव से बहुत-बहुत हार्दिक प्रणाम 🙏🙏

विधा - कविता
छंद - मुक्तक
दिनांक 13/01/2023 शुक्रवार

  🌹 मैं मस्त हवा का झोंका हूं 🌹 

कुछ लिखता हूं  कुछ गाता हूं। 
कुछ दिल की पतंग उड़ाता हूं।। 
भावनाओं  की   डोर  से   मैं। 
अनंत   अम्बर  छू   आता  हूं।।
 
मैं  मस्त  हवा  का  झोंका  हूं। 
कभी आता हूं कभी जाता हूं।।

कुछ अपनी - अपनी कहता हूं। 
कुछ  दिल की भी सुन लेता हूं।। 
मर्यादा   प्रेम   की   डोरी   से। 
तन्मयता   से  जुड़  जाता  हूं।।
 
मैं  मस्त  हवा  का  झोंका  हूं। 
कभी आता हूं कभी जाता हूं।।

मगर  प्रेम  के  छुपे  राज  को। 
बेहतर  से   बेहतर   पाता  हूं।। 
कभी अपनी भी कह  लेता हूं। 
कभी उनकी भी सुन  लेता हूं।।

मैं  मस्त  हवा  का  झोंका  हूं। 
कभी आता हूं कभी जाता हूं।।

बस  चलता  रहता  हूं  निरंतर। 
मैं  यूं  आगे  बढ़ता   जाता  हूं।। 
कभी पीछे को  हाथ  बढ़ाता हूं। 
कभी आगे से साथ निभाता हूं।।
 
मैं  मस्त   हवा  का  झोंका  हूं। 
कभी आता हूं कभी  जाता हूं।।

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना
दीपक चंद रैगर
गंगापुरा, निवाई, टोंक (राजस्थान)।

©Deepak verma
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Deepak verma

एक ही घर में दो-दो दीवारें, 
प्रेम से खींची जाती हैं। 
या नफरत की आड़ में आकर, 
फिर कांटों की बाड़ लगाई जाती हैं।। 
कल तक जो अपना देखा था, 
वो आज पराया पाया है। 
बैठ एक थाली में खाने वाला, 
एक दूजे को देख न पाया है।। 
इंसानों की न्याय नगरी में। 
अन्याय तो होते देखा है।।

©Deepak verma #humanrights
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Deepak verma

किसी के प्रेम के खातिर,
तुम अपना प्रेम मत तोड़ो। 
                          प्रेम जीवन का बंधन है, 
                             ना इसे खुदगर्जी में तोलो। 
सोचो समझो फिर परखों, 
ना इसे नादानी में तोड़ो। 
                           ये दिल नादान बच्चा है, 
                           इसे विवेक से मिलाओं।

©Deepak verma #humanrights
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Deepak verma

"मेरा - परिचय" 
कुछ पंक्तियां


मैं अपने अश्कों का छलकता झंकार पाया हूं,
यूं कहे तो मैं खुद ही अश्कों में हिलोरा खाया हूं।
क्योंकि मैं एक नयन अंबर सा श्वेत बादल हूं,
इसलिए मैं खुद को दूसरों में ढूंढता पाया हूं।।

©Deepak verma #Love मेरे अल्फाज मेरी पहचान

Love मेरे अल्फाज मेरी पहचान #विचार

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Deepak verma

कोई मजनूं कहे मुझको, 
कोई जुगनू समझते हैं। 
                     मोहब्बत के इशारों में, 
                         मिलिंद अलिंद समझते हैं। वो मुझको जानते फिर भी, 
समझना क्यूं नहीं चाहते। 
                       चाहना और हैं फिर भी, 
                      बताना क्यों नहीं चाहते।।

©Deepak verma
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