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vineetkumar8512
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Vineet Kumar

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Vineet Kumar

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Vineet Kumar

- बड़ा काम है नवा काम है-

कविता फसिगै कलावंत के चक्कर मा 
उजरे बिरवा जस बसंत के चक्कर मा
हनूमान तब पता लगाएन सीता का 
जब परिगे उइ जामवंत के चक्कर मा
कविता फसिगै कलावंत के चक्कर मा।

शकुंतला की गिरी अंगूठी पानी मा
दर-दर भटकी उइ दुष्यंत के चक्कर मा
बिन मेहनति धन उनका दुगुना होइ जाई
जुआं‌‌ मा हारे उइ तुरंत के चक्कर मा
कविता फसिगै कलावंत के चक्कर मा।

ऊंचि आसरम मुला आचरण नीचि मिले
करम फूटिगे साधु संत के चक्कर मा
कविता फसिगै कलावंत के चक्कर मा

कान पकरि उठि बैठि पुलिस जब हड़काइसि
फंसे रोमियो अब महंत के चक्कर मा
कविता फसिगै कलावंत के चक्कर मा
उजरे विरवा जस बसंत के चक्कर मा।।

©Vineet Kumar #PoetInYou
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Vineet Kumar

आजाद होइगा देश शुख उठाव मजे ते
जहाँ ‌‌चाहौ नापदान तहं बहाव मजे ते
गाड़ी सवार साइकिल पावंय न जब निकरि
तब दूनौ जने छत पर मुसकाव मजे ते।

सरकारी अस्पताल चले जाव मजे ते
परचा रुपैया एक मा बनवाव मजे ते
डॉक्टर समय से मिलिहैं ना देखिहैं मरीज का
बदले मा फीस दइकय तुम देखाव मजे ते।

हत्या पे हत्या हुइ रही तुम स्वाव मजे ते
मामूली वारदात भै  बताव मजे ते
दुनियां तौ सुधरि गै है मुला तुम नहीं सुधरेव 
लत्ता का सांपु हरदम बनाव मजे ते।

आफिस मा बैठि गप्पै लड़ाव मजे ते
दुखिया गरीब द्याखव टरकाव  मजे ते
ठण्डी मा लाग हीटर गर्मी बढा रहा
गरमी मा लाग कूलर जुड़ाव ‌मजे ते
अब जैसे बनै रुपिया कमाव मज़े ते।

मउका लगाव लड़ि जाव चुनाव मजे ते
कगजै मा काम सारे विकास के करौ
जनता का खाली उल्लू बनाव मजे ते
अपहरण लूट हत्या करवाव मजे ते
यहि लोकतंत्र का सिर झुकाव मजे ते
जेहि देश बड़े कितनेउ गरदन कटा दिहिनि
वहि देश केरि नाक तुम कटाव मजे ते।।

©Vineet Kumar #PoetInYou

10 Love

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Vineet Kumar

अघवाये हमका बहुत बापु कहि रहा रोय,
धरि किताब मूड़े तरे जात लरिकवा सोय।
 गुरुजी जात लरिकवा सोय।।

प्राइमरी मा जाय हम नाव दीन लिखवाय,
टिचरन का नाकन चना दिहिनि सिवहुं चबवाय।
गुरूजी दिहिनि सिवहुं चबवाय।।

कपड़ा लोहा लाट हम हरदम देइ मगाय,
दुइ महिना बीतति नहीं फारिक देत बहाय।
गुरूजी फारिक देत बहाय।।

लरिकन ते झगड़ा करइ खुदइ बढ़ावइ रारि,
बार बार समझाय कै गे सब टीचर हारि।
गुरूजी गे सब टीचर हारि।।

टीसी लइकय आयगा भा चौगिरदा नाम,
कैसे दसवां पास भा यहिका जानै राम।
गुरूजी यहिका जानै राम।।

©Vineet Kumar #PoetInYou
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Vineet Kumar

अबकी बोर्ड परीक्षा मा कमाल होइगा
ललुआ पास होइगा।
दसवां दर्जा तीनि साल मा ललुआ लांघि न पावा
नहीं किताबै कांपी पलटिसि कितनौ गा समझावा।
तबहू जानै कैसे फर्स्ट पास यहि साल होइगा 
ललुआ पास होइगा
अबकी बोर्ड परीक्षा मा कमाल होइगा
ललुआ पास होइगा।।

फर्स्ट पास भा फर्स्ट केरि स्पेलिंग बता ना पावै ,
सुनि मनई बातै अंगुरी दांते तरे दबावैं।
ललुआ गांव घरे के समुहे खुदै सवाल होइगा
ललुआ पास होइगा
अबकी बोर्ड परीक्षा मा कमाल होइगा
ललुआ पास होइगा।।

सत्य नारायण केरि कथा घरमा तुरतइ करवाइसि,
गांव घरे मा लड्डू पेड़ा दुइ दिन तक बंटवाइसि।
अइसा लाग कि जैसे ललुआ दीन दयाल होइगा
 ललुआ पास होइगा
अबकी बोर्ड परीक्षा मा कमाल होइगा
ललुआ पास होइगा।।

हमरौ लरिका घी कि बाती मन्दिर बीच जलावै,
वहे भगवान रीजल्ट अगलहेउ साल अइसहै आवै।
हमरे लरिका का तुमरे ऊपर विश्वास होइगा
ललुआ पास होइगा
अबकी बोर्ड परीक्षा मा कमाल होइगा
ललुआ पास होइगा।।

कौनि व्यवस्था चालू भै हम अब तक समझ न पावा,
बिना पढ़े सब पास होइ रहे कौनु जमाना आवा।
अइसे इम्तिहान ते केहिका उन्नतभाल होइगा 
ललुआ पास होइगा
अबकी बोर्ड परीक्षा मा कमाल होइगा
ललुआ पास होइगा।।

©Vineet Kumar #PoetInYou

12 Love

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Vineet Kumar

😎हम यूपी वाले भैया हैं💪

हम श्री राम का पुण्य धाम 
संगम तट की शोभा ललाम 
हम घाट बनारस वाले हैं 
यहां मंदिर और शिवाले हैं 
रज है मथुरा वृंदावन की 
जहां खेले कृष्ण कन्हैया हैं 
हम यूपी वाले भैया हैं
हम यूपी वाले भैया हैं।।

ये आजादी की है दौलत 
मंगल पाण्डे बेगम हजरत 
हैं युगों युगों के सेनानी 
आल्हा ऊदल झांसी रानी 
अशफाकउल्ला बिस्मिल है 
आजाद शरीखों का दिल है 
दुर्गा भाभी के जयकारे 
झलकारी बाई के नारे 
इतिहास यही बतलाता है 
हम सबसे बड़े लड़इया हैं 
हम यूपी वाले भैया हैं 
हम यूपी वाले भैया हैं।।

चौरी चौरा का लिए जोश 
मेरठ वाले हम सरफरोश 
हम बलिया वाले बागी हैं 
हम कानपुरी बैरागी हैं 
हम लखनऊ के बांके अधीर 
हम हैं बिठूर के सूरवीर 
चिंगारी मैनपुरी की हम 
काशी आजमगढ़ का दमखम 
आजादी वाली नैया के हम 
सबसे बड़े खेवैया हैं 
हम यूपी वाले भैया हैं 
हम यूपी वाले भैया हैं।।

हम मानवता के लश्कर हैं 
हम सारनाथ के पत्थर हैं 
विंध्याचल देवी का आंचल 
सूफी संतों का हैं सम्बल 
संगम तट पर हम शुद्ध हुए 
हम कुशीनगर में बुध हुए 
गंगा यमुना का पानी हैं 
हम ही कबीर की वानी हैं 
जो प्रभु को भी भव पार करे 
हम उस केवट की नैया हैं 
हम यूपी वाले भैया हैं 
हम यूपी वाले भैया हैं।।

हम सुबहे बनारस की आभा 
और शामे अवध वाली शोभा 
सुर लहरी शिवजी को भाई 
हम बिस्मिल्लाह की शहनाई 
बिरहा आल्हा हम फाग हुए 
हम संगीतों के राग हुए 
हम कला अदब का धन भी हैं 
कव्वाली और भजन भी हैं 
गिरिजा देवी का गायन हम 
बिरजू की ताताथइया हैं 
हम यूपी वाले भैया हैं 
हम यूपी वाले भैया हैं।। 

हम लाल बहादुर से जीवट 
हम लोहिया के जैसे कर्मठ 
हम युवा तुर्क चंद्रशेखर हैं 
हम चरण सिंह हैं खेतिहर हैं 
जगमोहन सिन्हा भी हम हैं 
हम राज नारायण का दम है 
आपातकाल संघारक हैं 
हम शांति अम्न के रक्षक हैं 
हम भरत लक्ष्मण से भ्राता 
हम बलदाऊ से भैया हैं 
हम यूपी वाले भैया हैं 
हम यूपी वाले भैया हैं।।

तुलसी और सूर के अक्षर हम 
बुनकर कबीर की चादर हम 
अलीगढ़ के हम ही ताले हैं 
और ताज आगरा वाले हैं 
फुलवारी, खेती-बाड़ी है 
मशहूर बनारसी साड़ी है 
मेरठ की कैंची रखते हैं 
मथुरा के पेड़े चखते हैं 
जो आसमान में उड़े वही 
गुब्बारे हैं कनकइया हैं 
हम यूपी वाले भैया हैं 
हम यूपी वाले भैया हैं।।

😎🥸💪✊

©Vineet Kumar #PoetInYou
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Vineet Kumar

समंदर मां की ममता की कभी ऊंचाई न छू पाया 
हजारों छंद लिख तुलसी की चौपाई न छू पाया 
मुझे बचपन में पापा ने छुआई थी जो काधों से 
जहाजों से भी उड़ कर वो ऊंचाई न छू पाया।।

हे पिता मेरे विधाता 
हे पिता मेरे विधाता 
आप से संबंध ऐसे 
प्रेम के अनुबंध जैसे 
चांद का सूरज से नाता 
हे पिता मेरे विधाता 
हे पिता मेरे विधाता।। 

आपका ही अंश हूं मैं 
आपका ही वंश हूं मैं 
आप ही धरती पे लाए 
मेरे सब सपने सजाए 
खुद से भी पहले खिलाया 
आसमा कांधे दिखाया 
पाठ जीवन के पढ़ाये 
जोड़कर पैसे बचाए 
पीठ को करके बिछौना 
खुद बने मेरा खिलौना 
आपके बिन मेरा जीवन 
इस जहां में कैसे आता 
हे पिता मेरे विधाता 
हे पिता मेरे विधाता।।

आपने रस्ता दिखाया 
बाएं से चलना सिखाया 
आपकी उंगली पकड़ ली 
शक्ति मुट्ठी में जकड़ ली 
यूं हुआ उत्कर्ष मेरा 
आप थे आदर्श मेरा 
स्नेह से जीवन संवारा 
हर कदम मुझको निखारा 
जब चुनौती ताप की थी 
मुझ पे छाया आपकी थी 
आपका होता ना संबल 
कौन जीवन को सजाता 
हे पिता मेरे विधाता 
हे पिता मेरे विधाता।।

चंद्रमा दिनमान मेरे 
आप ही भगवान मेरे 
शीत, वर्षा, ताप जैसे 
आप आयत जाप जैसे 
जिंदगी में हर जगह थे  
आप ऋतुओं की तरह थे 
जिंदगानी जो मजा थी 
आपके बिन को सजा थी 
शुख में संकट के समय में 
आपन हैं मेरे हृदय में 
यह जगत बरसात जैसा 
हर पिता है एक छाता 
हे पिता मेरे विधाता 
हे पिता मेरे विधाता।।

आप हैं त्यौहार भी हैं 
मां के सब सिंगार भी हैं 
हर खिलौना जैसे अपना 
पूरा है एक एक सपना 
आप है तो फिक्र कैसी 
जिंदगी उपहार जैसी 
है निछावर जान मेरी 
आपसे पहचान मेरी 
दूर कर के पथ से कांटे 
आप ही ने दर्द बांटे 
आप बिन कोई नहीं जो 
हौंसला मेरा बढाता
हे पिता मेरे विधाता 
हे पिता मेरे विधाता।।

मुझे में जीवन राग डाला 
और खुद सुख त्याग डाला 
मुझको खुशियों में बसाया 
क्षीण कर ली अपनी काया 
तन बदन अपना तपाया 
मुझको ए.सी. में सुलाया 
दिन अभावों में बिताए 
मुझ को सब साधन जुटाए 
क्या कहूं वरदान जैसे 
या पिता भगवान जैसे 
आप रब, प्रभु, गॉड, गुरुवर 
प्राण दाता अन्न दाता 
हे पिता मेरे विधाता 
हे पिता मेरे विधाता।।

पास जिसके भी पिता है 
दूर उससे हर बला है 
प्यार उन का सूफियाना 
वो दुआओं का खजाना 
हर घड़ी आशीष लेना 
एक पल को दुख न देना 
स्वर्ग की गर मां है कुंजी 
तो पिता पुण्यों की पूंजी 
धर्म, कौशल, ज्ञान, शिक्षा 
हर पिता ब्रह्मा सरीखा 
वो नरक में ही रहेगा 
जो पिता का दिल दुखाता 
हे पिता मेरे विधाता 
हे पिता मेरे विधाता।।

जिंदगी ये ताप की है 
पुण्य की कुछ पाप की है 
तन बदन मेरा है लेकिन
आत्मा तो आपकी है 
हो कभी गर दिल दुखाता 
मन वचन से हो सताया 
इतनी किरपा आप करना 
सारी भूलें माफ करना 
है प्रभु से ये निवेदन 
प्रार्थना ये काम आए 
हर जनम में ईश मुझको 
आपका बेटा बनाए 
देखकर तस्वीर को मैं 
याद की गंगा नहाता 
हे पिता मेरे विधाता, हे पिता मेरे विधाता।
हे पिता मेरे विधाता, हे पिता मेरे विधाता।।
🙏🙏🙏

©Vineet Kumar #PoetInYou

10 Love

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Vineet Kumar

कहां गए वो लोग रे भैया कहां गए वो लोग 
रूखा सूखा खाने वाले 
सबको राह बताने वाले 
हर पौधे को जल देते थे 
सबको मीठे फल देते थे 
दुख में साथ निभाने वाले 
तन्हाई में गाने वाले 
मसनद पर आसीन नहीं थे 
कपड़ों के शौकीन नहीं थे 
बिछड़ों को मिलवाने वाले 
हर उलझन सुलझाने वाले 
फूंक मारकर कर देते थे 
दूर सभी के रोग 
कहां गए वो लोग रे भैया, कहां गए वो लोग।।

चिड़ियों को देते थे दाना 
भूखों को देते थे खाना 
हर आंसू से शाप लगेगा 
बुरा किया तो पाप लगेगा 
धरती से रिश्ता रखते थे 
हर मौसम छूकर चखते थे 
हर उलझन का हल देते थे 
सबके चेहरे पढ़ लेते थे 
बोल नहीं थे जिनके तीखे 
लगते थे त्यौहार सरीखे 
किसको कितना दान दिया है 
किया न कोई योग 
कहां गए वो लोग रे भैया, कहां गए वो लोग।।

मानवता को मजहब जाना 
सेवा धर्म से ऊपर माना 
संकट में तत्पर रहते थे 
उल्टी धारा में बहते थे 
राजनीति से नफरत जिनको 
खेलकूद से उल्फत जिनको 
पल में सबके हो लेते थे 
धरती पर भी सो लेते थे 
बेशक वो अनपढ़ रहते थे 
विद्या को माता कहते थे 
औरों को सुविधाएं बाटी 
खुद न किया उपयोग 
कहां गए वो लोग रे भैया, कहां गए वो लोग।।

सम्मानित हर घर आंगन में 
देश प्रेम था जिनके मन में 
नजरें भी सारे जहान पर 
किस्से रहते थे जबान पर 
सबके चेहरे पढ लेते थे 
कमियां पूरी कर देते थे 
बोल भले थे उनके तीखे 
स्वयं वो थे उपहार सरीखे 
खुद अंधियारे में रहते थे 
राहों में दीपक रखते थे 
चुप रहकर हर पीड़ा सह ली 
नहीं मनाया सोग 
कहां गए वो लोग रे भैया, कहां गए वो लोग।।

रूठों को बहला लेते थे 
सब झगड़े सुलझा देते थे 
तन से बड़े दुर्बल होते थे 
पर मन से निर्मल होते थे 
भूख की पीड़ा हर लेते थे 
अपनी थाली दे देते थे 
बच्चे थे दीवाने जिनके 
हर लब पर अफसाने जिनके 
वो जो सबके दुख हरते थे 
फरमाइश पूरी करते थे 
लेकिन खुद सस्ती चीजों का 
करते थे उपयोग 
कहां गए वो लोग रे भैया, कहां गए वो लोग।।

बोझ वो भारी ढो लेते थे 
धरती पर भी सो लेते थे 
ऊंच-नीच समझाते सबको 
मेले में ले जाते सबको 
सारे जग का ज्ञान जिन्हें था 
मौसम का अनुमान जिन्हें था 
रामायण की कथा याद थी 
हर कुरआनी दुआ याद थी 
अच्छी बातें बतलाते थे 
मिल के रहो ये समझाते थे 
अंतिम पल तक मेहनत ही की 
नहीं रमाया जोग
कहां गए वो लोग रे भैया, कहां गए वो लोग।
कहां गए वो लोग रे भैया, कहां गए वो लोग।।

©Vineet Kumar #PoetInYou
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Vineet Kumar

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Vineet Kumar

(शीर्षक-:लड़के भी घर छोड़ जाते हैं) 

-"वक्त नूर को बेनूर बना देता है,
छोटे से जख्म को नासूर बना देता है, 
कौन चाहता है अपने मां-बाप से दूर होना, 
लेकिन वक्त इंसान को मजबूर बना देता है।-

"लड़के भी घर छोड़ जाते हैं, 
ये पढ़ाई करने के लिए दिल्ली, आगरा, कोटा तक चले जाते हैं,
कितनी भी परेशानियां क्यों ना आए, 
मां-बाप को कभी नहीं बताते हैं,
लड़के भी घर छोड़ जाते हैं। 

"जो कभी घर के खाने में सौ नखरे करते थे, 
अब ओ कुछ भी रुखा- सूखा खाकर सो जाते हैं, 
जो कभी घर में बासी भोजन नहीं करते थे, 
अब वही सुबह का भोजन शाम को भी खा जाते हैं, 
अगर बच गया चावल तो उसे अगले दिन सुबह फ्राई करके खा जाते हैं, 
लड़के भी घर छोड़ जाते हैं। 

"जो कभी घर में सोने के लिए सौ नखरे करते थे,
अब वही दरी बिछाकर कहीं पर ही सो जाते हैं,
जो घर में कभी कपड़े तक नहीं धोते थे, 
अब वही सारे कपड़े व रोटी तक बनाते हैं, 
जो घर के खाने में खामोखाई करते थे, 
अब वे कैसा भी भोजन हो खा जाते हैं, 
लड़के भी घर छोड़ जाते हैं। 

"जो घर में दूध घी खाया करते थे, 
अब वै छाछ से ही काम चलाते हैं, 
किसी को देर रात तक जगना अच्छा नहीं लगता है, 
मगर वे सफल होने के लिए सुबह भी जल्दी जग जाते हैं, 
जिनको कभी खिलौनों से प्यार था, 
अब वे किताबों से प्यार करने लग जाते हैं, 
जो कभी बर्तडे, शादी, पार्टी में जाते थे, 
अब ये सब छूट जाते हैं, 
 जो कभी बागों में आम खाया करते थे, 
अब ये  कहां खा पाते है,
लड़के भी घर छोड़ जाते हैं। 

"नौकरी के लिए कहां-कहां धक्के खाते हैं, 
ज्यादातर रातें तो स्टेशन पर ही गुजारते हैं, 
कुछ लड़के कंपनियों, फैक्ट्रियों में चले जाते हैं, 
जिन्हें घर में किसी की डांट सुनना अच्छा नहीं लगता था, 
अब वही बॉस की डांट खाते हैं,
 क्योंकि लड़के भी घर छोड़ जाते हैं। 
लड़के भी घर छोड़ जाते हैं।। 🙏🙏🙏🙏
😭😭😭
✒विनीत कुमार✒ #कविता

कविता

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