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kanhasharma6861
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Kanha Sharma

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Kanha Sharma

Yellow and yellowish

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Kanha Sharma

mar gya hu

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Kanha Sharma

●अतीत की खुदाई● 
★मुझे कारगिल याद है★ 
■छटा पन्ना■
वर्ष 1999... रेड़ियो पर पूरे दिन "हिन्दुस्तान .... हिन्दुस्तान ...", "ए वतन तेरे लिए", 'संदेशे आते हैं" आदि तराने बजना...रेड़ियो के चमड़े के कवर की गन्ध और धूल भरी आंधियां...ये सब याद करके मन अतीत में अपने आप खो जाता है....लगभग हर घण्टे बाद समाचार आना और उसमें अधिकतर युद्ध के समाचार... मेरा पन्द्रहवां साल और युद्ध की पेचीदा अवधारणा... गिली मिट्टी से टाइगर हिल, काराकोरम, द्रास सेक्टर, कारगिल बना कर सीमा के उस पार और इस पार फौजें खड़ी करता तो हर बार हिन्दुस्तान ही विजय होता... और मुझे यह बहुत आसान लगता... युद्ध का लम्बे चलना और कैप्टन मनोज पांडेय, कैप्टन विक्रम बत्रा और कैप्टन सौरभ कालिया... जैसे नोजवानों की शहादत पर बहुत गुस्सा आता और खून खोल उठता... फ़ौज रेंक और उनके कंधों पर लगने वाले तमगे मुझे अच्छी तरह याद हो गए थे... कोई बात के समझ में न आने पर माँ पापा से सवाल करता तो वो कमोबेश इकहत्तर के युद्ध की भूली बिसरी यादों के जरिए मेरी उत्सुकता को शांत करने का प्रयास करते... मसलन, पापा कहते थे कि उन्हें इकहत्तर में  अंधेरा होने के बाद...बीड़ी पीने से मना किया गया था और चूल्हा भी नही जलाना था ताकि दुश्मन के रडार में न आ जाएं... मैं स्कूल जाता तो आते वक्त बस स्टैंड पर पड़े समाचार पत्र को कभी मांग कर और कभी चोरी करके घर लाता था और उन्हें सहेज कर रखता था... कुछ समाचार पत्र आज भी मेरी अलमारी में सुरक्षित है... आज भी जब अलमारी खोलता हूँ तो मैं उन समाचार पत्रों को खोलकर उनमें से समझ न पाई बातों को दुबारा समझने का प्रयास करता हूँ... मुझे जवानों द्वारा दुश्मनों से लोहा लेने की कहानियां बहुत ही ज्यादा रोमांचित करती और देशप्रेम और साहस भर देती... कारगिल युद्ध के बाद से मैं अपना कैरियर फ़ौज को बनाने में लग गया था... लेकिन बहुत सी शारीरिक कमियों के आ जाने से मैं फ़ौज के लिए शारिरिक रूप फिट न हो सका... (और अध्यापक बना... और आपको बड़े फक्र से कह सकता हूँ कि मेरे तकरीबन पचास शिष्य राष्ट्र सेवा में लगे हुए है... जिनको देखकर यूँ लगता है कि मैं खुद सेना मैं हूँ... ) भारत की सेना दुश्मन को घेर घेर कर मार रही थी और मैं हर सफलता में साथ उछलकर खुशी मनाता रहता....आखिरकार 26 जुलाई 1999 को तकरीबन दो महीने के संघर्ष के बाद भारत की विजय का समाचार मिला तो मैं खुशी से उड़े जा रहा था... किसी न किसी को यह खबर देना मेरे लिए अत्यंत जरूरी था...अंततः खेत मे काम कर रहे एक मजदूर को जब मैंने कहा कि हमारी जीत हो गयी है तो उसके बाद उनके अबोध न्यूट्रल रिएक्शन को मैंने देशद्रोह से कम न समझा... अगले स्वतन्त्रता दिवस पर शहीदों की वीरांगनाओं के चित्र देख कर काफी भावुक हुआ था... 
◆◆©◆◆Kyahoo. . .


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