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हरीश कंडवाल

स्वतंत्र लेखन।।

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हरीश कंडवाल

दिल्ली के चुनाव से कर्मठ कार्यकर्ता फजीतू के मन में जगी नेतृत्व करने की आस। 

( व्यंगात्मक लेख, बुरा ना मानो होली है) । 

दिल्ली में जैसे ही मुफ्त की राजनीति पर सरकार फिर से सत्ता पर आरूढ़ हुई, वह मुफ्त के सफेद हाथी सवार होकर अपने हाथों में अंकुश  की जगह झाड़ू लेकर दिल्ली की जनता का धन्यवाद करने के लिए यमुना के काले पानी में डुबकी लगाते हुए यात्रा पर निकल गयी है। डुबकी लगाने के बाद चॉदनी चौक से लाल किला, द्वारिका से होते हुए बुराड़ी, करावल नगर, अशोकनगर आदि जगहों से परिक्रमा कर शाहीनबाग होते हुए नई दिल्ली की जनता का साधुवाद करती है। 

   सफेद हाथी में बैठी दिल्ली सरकार से महावत पूछ रहा है कि "हे दिल्ली सरकार तुमने इस बार मुफ्त में बिजली पानी, शिक्षा, मोहल्ला क्लीनीक, आदि के आधार पर चुनाव जीता और मेरे सफेद हाथी में सवार होकर राजसी परिक्रमा कर रहे  हो" आप करिश्माई हो। लेकिन इस सफेद हाथी को घास कहॉ से खिलाऊं, इसे भी जनता की तरह मुफ्त में खाने की आदत पड़ गयी है, इतने बड़े हाथी को पालना अब मेरी बस की बात नहीं हैं "। महावत की इस बात को सुनते ही दिल्ली सरकार खॉसते हुए  एक उदाहरण देकर बताती है कि यह पॉलिसी उन्होंने  बचपन में स्कूल में हमारी मित्र मंडली से सीखी, थी लेकिन  इसे प्रयोग के तौर पर अब जाकर आजमाया, प्रयोग में आशातीत सफलता मिली है।

     हमारे मित्र मंडली में हमारे कुछ मित्र पहले अपनी जेब से फ्री में बीड़ी पिला देते थे, बाद में धीरे धीरे उनको फ्री पीने की आदत पड़ गयी तो उन्होंने उन मुफ्त की बीड़ी पीने वालों से ही दुकान से बीड़ी पीने के लिए मॅगवाना शुरू कर दिया। ऐसे ही अब हम भी लोगों को फ्री में देकर उन्हेंं इतने आदि बना देगें कि उनके घर में झाड़ू के पोस्टर के अलावा कुछ फ्री नहीं मिलेगा, और हम सफेद हाथी में बैठकर इसी तरह दिल्ली परिक्रमा करते रहेगें। 

    हाथी अपनी मस्त चाल चलते हुए पडपड़गंज में पहुॅंचा वहॉ जाकर उसने सूँड़ ऊपर उठाते हुए चिघांडना शुरू कर दिया, महावत परेशान हो गया कि शाहीनबाग में तो जहॉ इतने दिनों तक बिना नाट्य कलाकारांं के द्वारा नाटक चला, वहॉ की लाउस्पीकर की आवाज में तो यह चिंघाड़ा तक नहीं लेकिन अचानक पड़पड़गंज इलाके में आते ही यह चिघांड़ने क्यों लगा। महावत ने हाथी को आगे बढने के लिए कहा तो हाथी बिदकने लगा। 

      दिल्ली सरकार परेशान हो गयी कि हाथी का व्यवहार अचानक ऐसा क्यों बदल गया। हाथी सामने एक सरकारी स्कूल को देखकर चिघांड रहा था, वहॉ बच्चे आज भी वही पुरानी टाट पर  बैठे हुए थे, ब्लैक बोर्ड सफेद बना हुआ था उस पर भूगोल विषय की टीचर उन्हें भारत का नक्शा बनाकर बता रही थी । हाथी आगे बढा और बच्चों के बीच जाते हुए वह सीधे ब्लेक बोर्ड में के पास पहुचा और उसने अपनी सूँड़ से कुर्सी पलट दी, सामने दीवार पर टके उत्तराखंड के नक़्शे और वँहा पर लगी राजाजी नेशनल पार्क में हाथियों की फ़ोटो पर अपनी सूँड़ फेरते हुए आंखों से आँसू बहाने लगा। महावत की समझ में आ  गया कि हाथी यह बताना चाहता यहॉ मेरे मूल बिरादरी के लोगों के निवास स्थल राजाजी नेशनल पार्क और कार्बेट पार्क जो हमारे पूर्वजों का क्षेत्र है, वहॉ के रहने वाले प्रवासी लोगों का बाहुल्य क्षेत्र हैं। 

महावत ने कहा कि हे दिल्ली सरकार यह सीट उत्तराखण्ड के प्रवासी लोगों की बाहुल्य सीट है, इस सीट पर इस बार सरकार के बहु प्रतिष्टित शिक्षा मंत्री जी को मुश्किल में डाल दिया था, लेकिन यँहा के बाहुल्य लोगो मे आपसी फूट होने के कारण सरकार के शिक्षा मंत्री इस बार अपनी इस परीक्षा में पास हो गये।
     इतनी देर में उत्तराखण्ड के प्रवासी आम आदमी पार्टी का कर्मठ कार्यकर्ता फजीतू राम अपनी सरकार के स्वागत के लिए वहॉ पहुॅच गया, दिल्ली सरकार का स्वागत किया। दिल्ली सरकार को वह अपने घर ले गया।  उत्तराखण्ड के निवासी होने के नाते फजीतू  ने पहले दिल्ली सरकार को खुशी में अल्मोड़ा की बाल मिठाई और नैनीताल के चाय बागान की चाय पत्ती की कड़क चाय पिलायी। चाय पर चर्चा करते हुए   दिल्ली सरकार ने कहा कि फजीतू हम तुम्हारी मेहनत से बहुत खुश हुए, तुम्हारी बदौलत हम ये सीट बचाने और अपनी साख बचाने में कामयाब रहे। 
      अब ये बताओ कि उत्तराखण्ड में चुनाव कब हैं, फजीतू ने कहा कि 2022 में उत्तराखण्ड में विधानसभा के चुनाव हैं, लेकिन उत्तराखण्ड के चुनाव से दिल्ली सरकार का क्या सरोकार।  दिल्ली सरकार ने कहा कि फजीतू हम चाहते हैं कि  पूरे देश में सबको मुफ्त की आदत डालनी है, पहले बिहार में हमको यह प्रयोग करना है, उसके बाद हमारा अगला लक्ष्य उत्तराखण्ड उत्तर प्रदेश और गुजरात है।

     उत्तराखण्ड तो बिजली उत्पादक राज्य हैं, वहॉ तो हम बिजली मुफ्त कर ही सकते हैं, तुम उत्तराखण्ड के गॉव में घूमकर आओ, और लोगों को अभी से कटिंया डालने की मुफ्त बिजली सुविधा की आदत अभी से डलवाना शुरू कर दो।  तुम जानते ही हो कि उत्तराखण्ड के बारे में कहा जाता है कि वहॉ का पानी और जवानी कभी उत्तराखण्ड के काम नहीं आती है। लेकिन हमें युवा मतदाताओं को ही नदीयों के पानी को मुफ्त में सोढ़ा के साथ पिलाने की आदत उनके रग रग में भरनी है। 

उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्र के सरकारी स्कूलों में तो 10 से कम ही छात्र हैं, उनके लिए तो हम वैसे भी फ्री में शिक्षा व्यवस्था करवा लेगें। मोहल्ला क्लीनीक चल ही जायेगा अब वहॉ के योग सीखाने वाले बाबा लोग तो बिजनेसमैन बन गये हैं, उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्र में हम फ्री योगा सेण्टर गॉव में जिन पुराने मकानों पर ताले लगाकर उत्तराखण्ड के लोग यहॉ दो रोटी की जुगत में आ गये हैं, उनके घरों में चलायेगे, योग से स्वास्थ्य फिट रहेगा, यह नीति हमारे लिए कारगर साबित होगी। 

   फजीतू भाई हम आपको आपकी लगन और मेहनत को देखते हुए उत्तराखण्ड में अपनी पार्टी का अध्यक्ष बना देते हैं, जाओं तुम वहॉ जाकर हमारी फ्री की पॉलिसी को लोगें को समझाओ, जब यहॉ रहकर उत्तराखंड के प्रवासी एक नहीं हो पाये तो उत्तराखण्ड में तो कभी एकमत हो ही नहीं सकते। उत्तराखण्ड की वर्तमान सरकार से तो जनता मुफ्त में ही मुक्त होना चाहती है। वहॉ के माननीय तो यहॉ आकर  केन्द्र सरकार की नीति और राष्ट्रीयता का पाठ पढा रही थी, लेकिन खुद के घर में दीपक तले अंधेरा था। 
   उत्तराखण्ड में दशकों पुराना दल तो अपनी अंदरूनी लड़ाई में इतना व्यस्त हो रखा है कि वहॉ की सरकार को कोसने का समय ही नहीं मिल रहा हैं, विपक्ष की भूमिका तो वह भूल ही गये। 

      तुम जैसे कर्मठ कार्यकर्ताओं ने उत्तराखण्ड राज्य को बनाया था उस दल के माननीयों ने तो कुर्सी में बैठने के लिए नही बल्कि कुर्सी चुनाव चिन्ह के लिए आपस मे बंटवारा कर दिया था, वह तो सुसुप्त अवस्था में पड़ी हुई है।

 फजीतू यह सुनहरा अवसर है तुम्हारे लिए तुम उत्तराखण्ड मेंं जाओ और हमारी मुफ्त की नीतियों को वहॉ के लोगों को बताकर उनको दिन में ही सपनों को दिखाओ। दो साल में हमे वहॉ पर अपनी मुफतखोरी की आदत अभी से उनमें विकसित करनी होगी। वैसे भी उत्तराखण्ड में चुनाव के समय मुफ्त में दारू, मीट बॅटती है, तुम अभी से पिलाना शुरू कर दो। यह कहकर दिल्ली सरकार बाहर आ गयी और अपने बिगडैल सफेद हाथी में बैठकर शाहीनबाग होते हुए अपने विधानसभा में शपथ लेने के लिए पहॅुच गयी। उघर  फजीतू ने अपना सामान उत्तराखण्ड दौरे के लिए बैग में रखना शुरू कर दिया है, और उत्तराखण्ड को भी मुफ्तखोरी की नीति से लबरेज करने के लिए खुले ऑखों से सपना देखने लगा है। 

( बुरा ना मानो होली है। ) 
©®@ हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से।📝📝✒✒ व्यंगतामक लेख

व्यंगतामक लेख #कॉमेडी

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हरीश कंडवाल

एक टुकड़ी बीड़ी

 अरे वो राजू देख पत्थर के नीचे अधजली बीड़ी का टुकड़ा और माचिस होगी, एक दो तीलिया कागज पर लपेट कर रखी हैं, जरा इधर तो पकड़ा, यह कहकर उसके दोस्त प्रदीप ने स्कूल का बस्ता एक किनारे रखा, और एक बड़े पत्थर के ऊपर बैठ गया। यह दोनों 11वी कक्षा में सहपाठी थे। माचिस का मसाला बारिश के कारण गीला हो गया था, दो तीलिया खराब हो गयी, अब केवल दो तीलिया ही बची थी। दो दिन पहले ही प्रदीप ने अपने पिताजी के बीड़ी के बंडल से चुपके से यह बीड़ी निकाली थी, और स्कूल के रास्ते पर आधी पीकर पत्थर के नीचे रख दी थी। अब जब दो तीलिया खराब हो गयी तो उसकी तलब और बढ़ गयी। राजू की तरफ देखकर बोला कि यार राजू अब क्या होगा, यहां तो दो ही तीली बची है। राजू ने कहा कि दो तो है, ना फिर चिंता किस बात की।  उसने एक छोटा सा पत्थर उठाया और उस पर तीली रगड़ कर जला दी, जब तक राजू बीड़ी सुलगाता तब तक हवा का झौक़ा आया औऱ तीली बुझ गयी, अब क्या होगा दोनों की समझ मे कुछ नही आ रहा था, राजू ने कहा यार तुमने जल्दी से बीड़ी नही सुलगाई, जरा सा कस मार लेते तो बीड़ी जल जाती। 
     प्रदीप को लगा कि आज तो दिन ही बेकार गया, चलों क्या करें अपना अपना नसीब।  ये तलब भी बड़ी अजीब होती है, लेकिन तभी राजू ने दो पत्थरों को रगड़ा और उसकी चिन्गारी से कागज जला दिया, यह देखकर प्रदीप की खुशी का ठिकाना नहीँ रहा।  इस तरह से दोनों को बीड़ी पीने की लत पड़ गयी, इधर कुछ दिन बाद गाँव मे एक शादी हुई तो वँहा उन्होंने मदिरा का स्वाद भी चख लिया था, रात भर ढोल दमो और डीजे पर जो झूमे वह सभी बड़ो को यह बता रहा था कि लड़के अब बालकपन में नही लड़कपन में आ गए है। गाँव मे या शहर में युवा वर्ग में दारू फैशन बन गया था, बनता क्यो नही, आजकल गाने में, टीवी शिरीयलो में पैग जब छलक रहे हो तो राजू और प्रदीप जैसे मॉडर्न युवा भले कैसे पीछे रहते। 
    समय बीतता गया दोनों का 12वी का रिजल्ट आ गया, दोनों पास हो गए, बीड़ी और कभी कभी शादी जैसे अवसरों पर वह भी दो तीन पैग लगा देते।  राजू और प्रदीप दोनों लंगोटी यार थे, उनके साथ वाले उनको जय बीरू कहकर बुलाते थे। 
    इधर प्रदीप फौज में भर्ती हो गया, राजू को इस बात की ज्यादा खुशी नही थी कि उसका दोस्त फौज में भर्ती हुआ बल्कि इसलिये खुश हुआ कि अब फौजी दारू पीने को मिलेगी, प्रदीप पहले ही कहता था कि यार अगर मैं फौज में भर्ती हो गया तो नए नए ब्रांड पीने को मिलेंगे, राजू तू तो मेरा यार है, तेरे को तो मैं नहला दूँगा। 
   इधर राजू को देहरादून के एक प्राइवेट कॉलेज में मैनजेमेंट में बीटेक में एडमिशन मिल गया और उसे रहने के लिए हॉस्टल भी दो लड़कों के साथ रहने को मिल गया। 
    राजू अपने नए दोस्तो के साथ देहरादून वाला बन गया, वह यँहा आकर अब बीड़ी नही सिगरेट का धुंआ खुले आम पान के खोखे के पास खड़ा होकर उड़ाता रहता है।  साथियों के साथ वह अब चरस गाँजा ना जाने कौन कौन से नशा उसने करना शुरू कर दिए, पढायी तो बहाना भर था, बस अय्याशी उसका शौक बन गया।
     उधर राजू की माँ बड़े गर्व से कहती कि उसका बेटा देहरादून में इंजीनियरिंग कर रहा है, पिताजी अपने दोस्तों से कहते कि बस बेटा जरा बीटेक कर दे तो फिर उसको आगे एमबीए करवा दूंगा, माँ बाप सपने पाले हुए थे, इकलौता चिराग जो था।  राजू के पिताजी गाँव के स्कूल में अध्यापक थे।  
     राजू नशे का आदि हो चुका था, वह घर भी बहुत कम आता था, पिताजी से कभी फीस के नाम से कभी स्कूल में प्रोग्राम के नाम से, कभी कुछ बहाने कभी किताब तो कभी कपड़ो के बहाने हर दो तीन हप्तों में पिताजी से डिमांड कर देता। माँ की जिद पर उसके पिताजी उसको खर्चा दे देते,  लेकिन उन्होंने यह जानने की कोशिश कभी नही कि राजू इतने रुपयों का कर क्या रहा है,  प्यार मोह माया ठीक है, लेकिन अंधी मोह माया लाड़ प्यार हमेशा  खतरा वाला होता है।  इकलौता  पुत्र मोह ही उनको बेटे से दूर कर रहा था।
     इधर प्रदीप की 9 महीने का रंगरूट की ट्रेनिग पूरी कर वह घर आया हुआ था, उस समय उसे लगा कि राजू भी घर आया होगा, दोनों फिर खूब धमाल करेगे, लेकिन घर आया तो पता चला कि राजू घर नही आया है, उसने अपने घर म3 झूठ बोला कि उसके प्रेक्टिकल चल रहे हैं।
     इधर प्रदीप को शंका हुई तो वह अपने अजीज मित्र को मिलने देहरादून उसके कॉलेज में मिलने आया। जब वह कॉलेज गया तो पता चला कि बीटेक वालो की छुट्टियां पड़ी है, यह सुकनर वह हतप्रद रह गया।  उसने गार्ड से राजू के बारे मे पूछा तो उसने कहा कि राजू तो अब नशे का आदि हो गया है, होगा कंही किसी जगह नशा करके बैठा हुआ।  यह सुनकर प्रदीप को बहुत दुख हुआ, उसका बचपन का दोस्त आज इस हालात में, उसके माता पिताजी ने क्या सपने बुने है बेटा सपनो को किस तरह से पूरा कर रहा है। 
     उसने गार्ड और कॉलेज से पूरा पता कर उसके सारे दोस्तो का पता लगाया, फ़ोन नम्बर पता कर सबको एक एक फ़ोन कर पता लगाया, तब बड़ी मुश्किल से राजू के बारे में पता चला।  
     राजू देहरादून में अपने एक दोस्त के रूम पर जा रखा था, वंही सारे दोस्त रोज रात को पिकनिक मनाते दिन भर अवरगिर्दी करते, या सिनेमा हॉल।में मजे लूटते लड़कियों पर फब्तियां कसते।  प्रदीप ढूढंते ढूढंते राजू के दोस्त के कमरे पर चला गया, वँहा जाकर देखा तो राजू नशे में धुत उलटा जमीन पर पड़ा हुआ, बाकि दोस्त चिकन, मटन की पार्टी कर रहे थे। प्रदीप ने उस समय उनसे बहस नही की और वापस पुलिस थाने में आकर अपने साथ दो पुलिस कर्मियों को लेकर दोबारा राजू के दोस्त के कमरे पर गया। पुलिस की मदद से राजू को उसके हॉस्टल में लेकर आया, राजू नशे में इतना डूबा हुआ था कि प्रदीप को माँ बहिन की गाली से अपनी दोस्ती की वफ़ा को निभा रहा था, लेकिन प्रदीप ने उसकी मनोदशा को समझ लिया और नशे उतरने का इंतजार करने लगा। 
    अचानक राजू को रात में खून की उल्टियां होने लगी,  प्रदीप ने ऑटो उठाकर इमरजेंसी में अस्पताल में भर्ती करवाया, डॉक्टरी जांच में पता चला कि राजू का लीवर खराब हो गया है, जान खतरे में है, लेकिन डॉक्टरों ने तुरंत इलाज करना शुरू किया तो उसके स्वास्थ्य में सुधार होने लगा, इधर राजू के माँ पिताजी अस्पताल में रो रोकर अपने को कोस रहे थे।। 
    अस्पताल से छूट्टी मिलने के बाद राजू को नशा मुक्ति केन्द्र में भर्ती कर दिया, एक महीना वंही इलाज चला, उसके बाद राजू के पितां उसे गाँव मे ले गए, उधर प्रदीप की रंग रुट की छुट्टी खत्म हो गयी थी नई पोस्टिंग उसको राजस्थान के बाड़मेर में मिली।  इधर राजू के पिताजी ने उसके लिये एक दुकान गाँव के पास खोल दी, कुछ दिन बाद उसने अपने पास ही राशन डीलर की दुकान भी लेली। 
     उधर साल भर बाद प्रदीप फिर छूट्टी आया तो राजू को मिलने आया और कहा कि दोस्त कौन सा ब्रांड पीयेगा, राजू ने कान पर हाथ रखकर कहा बड़ी मुश्किल से तूने जिंदगी बचाई है, अब तुझसे दूर नही जा सकता दोस्त, लेकिन चल फिर एक टुकड़ी बीड़ी तो आज इस खुशी में  जलाकर चुल्हे के अंदर डाल दे, फिर दोनों दोस्त कंधे में हाथ रखकर गाने लगे ये दोस्ती हम नही छोड़ेंगे, छोड़ेंगे दम मगर, तेरा साथ नही छोड़ेंगे।

©®@  हरीश कंडवाल मनखी की कलम से। ✒📝✒✒।
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हरीश कंडवाल

"वीर"

हर एक सैनिक वीर होता है
 वह सरहद पर रक्षा करता है
हर मौसम में खुद को झोंककर
देश के अस्तित्व को बचाता है
इसीलिए सैनिक वीर कहलाता है।

मेरी नजर में वह भी एक वीर है
जो खेतो में अपने को खपाता है
भरी बरसात में भी हल लगाता है
मौसम, जानवर, आपदा से 
अपनी फसल को बचाता है। 
 
वो किसान जो धरती चीरकर 
सबके लिए अन्न को उगाता है
लेकिन कभी भी वह अपनी 
मेहनताना पूरा नही पाता है। 

किसान जो देश को पालता है
खुद भूखा रहकर खेतो में काम करता है
बरसात गर्मी, सर्दियों में वह
खेतों में अन्न को उगाता है।

किसान भी सैनिक की तरह
हम सब की रक्षा करता है
खेतों में पहरेदार बनकर वह
हम सबके लिये अन्न पैदा करता है।
 
किसान देश का अन्नदाता है
नए बीज का वह जन्मदाता है
भूखों के लिए वही तो विधाता है
इसलिए मनखी की नजर में वीर कहलाता है।  

©®@ हरीश कंडवाल  "मनखी" की कलम से। 📝✒✒📝📝✒📝 वीर
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हरीश कंडवाल

"फलक"

(पति पत्नी से )
चलो कुछ पल साथ बिता लेते हैं
आज फिर चोरी से मुस्करा लेते हैं
जिंदगी सिर्फ जिम्मेदारीयो के लिए नहीं
चलो कुछ देर के लिए पहले जैसे हो लेते हैं।

(पत्नी पति से)
कुछ पल के लिए क्यो हमेशा साथ रहते हैं
चोरी से क्यो खुलकर मुस्करा लेते हैं
हम तो जिम्मेदारी के साथ मोहब्बत कर लेते है
फिर से हमेशा के लिये पहले जैसे हो लेते हैं। 

(पति पत्नी से)
कह तो सही रहे हो तुम फिर वही दोस्त बन लेते हैं
जो भी गिला शिकवा है खत में लिख लेते हैं
छोड़ दो कुछ पल के लिये यह फोन
साथ मे बैठकर अंताक्षरी खेल लेते हैं। 

(पत्नी पति से)
आज चलो खुलकर हँस लेते हैं
कुछ नहीं तो पुरानी यादें ताजा कर लेते हैं
फलक तक साथ चलने का वादा किया है
चलो मिलकर वादे को फिर से फलक पर लिख लेते हैं। 
"फलक"

(पति पत्नी से )
चलो कुछ पल साथ बिता लेते हैं
आज फिर चोरी से मुस्करा लेते हैं
जिंदगी सिर्फ जिम्मेदारीयो के लिए नहीं
चलो कुछ देर के लिए पहले जैसे हो लेते हैं।

(पत्नी पति से)
कुछ पल के लिए क्यो हमेशा साथ रहते हैं
चोरी से क्यो खुलकर मुस्करा लेते हैं
हम तो जिम्मेदारी के साथ मोहब्बत कर लेते है
फिर से हमेशा के लिये पहले जैसे हो लेते हैं। 

(पति पत्नी से)
कह तो सही रहे हो तुम फिर वही दोस्त बन लेते हैं
जो भी गिला शिकवा है खत में लिख लेते हैं
छोड़ दो कुछ पल के लिये यह फोन
साथ मे बैठकर अंताक्षरी खेल लेते हैं। 

(पत्नी पति से)
आज चलो खुलकर हँस लेते हैं
कुछ नहीं तो पुरानी यादें ताजा कर लेते हैं
फलक तक साथ चलने का वादा किया है
चलो मिलकर वादे को फिर से फलक पर लिख लेते हैं। 

(पति पत्नी दोनों एक साथ) 
जीवन में प्यार का गीत है गुनगुनायेंगे
लाख तूफान है, उम्मीद का दिया जलायेंगे
हाथ में हाथ पकड़कर जीवन का जश्न मनाएंगे
चलो फलक तक नहीं ताउम्र साथ निभायेंगे।

©®@ हरीश कंडवाल "मनखी" की कलम से। ✒📝📝✒।  14/12/2019
(पति पत्नी दोनों एक साथ) 
जीवन में प्यार का गीत है गुनगुनायेंगे
लाख तूफान है, उम्मीद का दिया जलायेंगे
हाथ में हाथ पकड़कर जीवन का जश्न मनाएंगे
चलो फलक तक नहीं ताउम्र साथ निभायेंगे।

©®@ हरीश कंडवाल "मनखी" की कलम से। ✒📝📝✒।  14/12/2019 फलक
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हरीश कंडवाल

राख/ खाक

जिंदगी एक रंगमंच
हर कोई इसका पात्र
जनम लेते ही उठता
नाटक का पर्दा,
नाल कटते ही,
रोने की आवाज से 
दर्शक दीर्घा में कराता
अपने अस्तित्व का अहसास। 

चुबंन, प्यार, पुचकार
घर में सभी का दुलार
नामकरण से आगे बढता
घुटनों के बल सरककर
मिट्टी में खेलकर
बचपन की भूमिका अदा करता। 

इसीं रंगमंच में स्कूल जाकर
दो आखर सीखकर बालक बनता
नये सपनों के साथ किशोर
बनकर अपनी दुनिया को सजाता। 

दूसरे दृश्य का पटाक्षेप होता
घर गृहस्थी से एक नये
नाटक को फिर से जनम देता
यहॉ बहुचरित्र निभाता । 

अपने, पराये, दुश्मन,
ईमानदार, भ्रष्टाचार,
चोरी, झूठ, सच्च 
लालच, संयम, कर्मठ
इन सबको पर्दे पर जीता । 

एक दिन फिर सब देखकर
जीवन के रंगमंच में 
देह इस दुनिया को देकर
अनन्त शून्य में विलीन हो जाता। 

दुनिया के रंगमंच पर पड़ी 
यह देह आग में भस्म हो जाती
जीवन का अतिंम यह अभिनय
बस एक मुठी राख बनकर
अंत में पर्दे पर बिखर जाता।  

©®@ हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से। 📝📝✒✒✒
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हरीश कंडवाल

प्यास

प्यास पानी से बुजती है, जल से नहीं
भविष्य आज से बनता है, कल से नहीं। 
पेट भोजन से भरता है, धन से नहीं
खूबसूरती मन के विचारों से होती, तन से नहीँ। 

चरित्र आचरण से बनता है, प्रमाण पत्र से नहीं
ईश्वर सच्ची श्रद्धा से मिलते हैं, मंत्र से नहीं
सत्यनिष्ठा मन से होती है, सौगन्ध खाने से नही
अपनापन व्यवहार से होता है, अपनाने से नहीं। 

 सफलता मेहनत से मिलती है, किस्मत से नहीँ
इंसान बड़ा कर्मो से होता है, बड़प्पन से नहीँ
दोस्ती दोस्तो से होती है, दुश्मन से नहीं
ज़िंदगी जिंदादिली से होती है, बुझदिली से नहीं। 

प्यास पानी से बुजती है, जल से नहीं
भविष्य आज से बनता है, कल से नहीं। 

©®@ हरीश कंडवाल मनखी की कलम से। प्यास

प्यास #कविता

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हरीश कंडवाल

दिसंबर की ठंड

हल्कू संग झबरा चल दिया खेत मे करने रखवाली
चलती ठिठुर ठिठुर पछुवा, पूष की वो रात काली
हल्कू घुटनों के बल बैठे चिलम सुलकाता
झबरा कूँ कूँ कर उसको देख पूंछ हिलाता।।

दोनों ठंड में सिकुड़, आसमा की ओर नजर उठाते
घास पत्ती डालकर बुजी आग को सुलगाते
हल्कू ने पुचकार कर झबरा के पीठ पर फेरा हाथ 
अरे वो झबरा तू क्यों आया यँहा मेरे साथ।

झबरा ने भी प्रतिउत्तर में अपनी दुम हिलायी
अलाव के समीप आकर ली अंगड़ाई
कह रहा हो मानो जैसे रात अभी बाकी है
चलो साथ में गपशप कर लो अभी बात बाकी है।

हल्कू की सर्द रात से रूह काँप रही है
गरीबी उसकी भाग्य रेखा को कोस रही है
झबरा को खेत में जानवरो की आहट दी सुनायी
भौं भौ कर हल्कू को उठने के लिये आवाज लगायी।।

हल्कू अलगाव की गरमाहट गहरी नींद में सो गया
बेचारा झबरा सारी रात भौकता रह गया
देह गर्म करने को राख में दुबक गया
पूष की सर्द रात ठंड में अपने कर्तव्य से हार गया।।

सुबह जब हल्कू ने देखा खेत जानवर खा गए
गरीब को एक और मौत मार गए
झबरा से बोला खेत तो जानवर खा गए
चलो हमको दिसम्बर की ठंड से तो बचा गये।।  

©® @ हरीश कंडवाल मनखी की कलम से। 📝📝📝✒ दिसम्बर की ठंड

दिसम्बर की ठंड

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हरीश कंडवाल

पंचम की ब्वारी का प्रधानमंत्री मोदी जी के नाम हैदराबाद में हुई घटना के संबंध में खुला पत्र।

पिछले दो दिन से टेलीविजन के समाचार चैनलों और सोशल मीडिया में हैदराबाद में हुई प्रियंका रेड्डी के साथ बलात्कार और उसके बाद जला देने की खबर उसको अंदर से हिला कर रख दिया।  खुद को बहुत रोका लिखने के लिये लेकिन मन की पीड़ा या अंतर्द्वंद ने उसे लिखने को मजबूर कर दिया।  उन्होंने यशस्वी प्रधानमंत्री मोदी जी को एक पत्र लिखा है, वो पत्र उसकी अभिव्यक्ति है एक बेटी के रूप में, और एक बेटी के रूप में माँ की भावनाओ को छलकता उबार है।

    आदरणीय प्रधानमंत्री जी को पंचम की ब्वारी का सादर नमस्कार। हैदराबाद में होने वाली घटना से आप विदित होगें, एक डॉक्टर लड़की के साथ किया गया कुकृत्य हमारे सभ्य समाज पर सवाल खड़ा करता है। हम भारतवासी यत्र पूज्यते नारी तत्र रमयन्ते देवता की विचारधारा वाले लोग हैं।  हम उस देश के निवासी हैं जँहा का प्रधानमंत्री और बड़े प्रदेश का मुख्यमंत्री नवरात्रों में कन्या पूजन कर खुद उनका आशीर्वाद लेता है, जिस देश की सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देती है, लेकिन उस देश मे उन बेटियों के साथ होने वाले दुष्कर्म और हैवानियतो के लिए कोई ठोस कानून नही यह  अभी तक की सरकारों और न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करती है।  क्या इस समाज मे हम बेटीयों और महिलाओं को आजादी से जीने का अधिकार नहीं है, क्या हमारी सुरक्षा के लिये सरकारें केवल सदन में ही बोलेंगे या इन पर अमल भी होगा।  हम बात करते है कि हमारे देश की बेटियां हर क्षेत्र में अपना मुकाम हासिल कर रही हैं, लेकिन हैवानियत तो आज भी उस मुकाम को भी नाकाम कर रही हैं। हमारे पूर्वजों ने पहले 16 संस्कारों की व्यवस्था की थी,इसीलिए कि उनको व्यवहारिक ज्ञान मिल सके। लेकिन आज हमारी पीढियों  में संस्कारों की कमियां है, या उनके अंदर हैवानियत ने जन्म ले लिया है।  आज दामिनी, निर्भया, प्रियंका जैसी बेटीयों के साथ जो घटना घटित हुई है, उसने हमारे देश, हमारे संस्कारो पर हमारे आधुनिकता पर धब्बा लगाया है।  हम लोग कब तक अन्याय सहते रहेंगे,कब तक मोमबत्ती जलाकर अपना गुस्सा प्रकट करते रहेंगे। 
    

 प्रधानमंत्री के रूप में आपने और आपकी सरकार ने अभी तक लिए गए निर्णय जनहित में रहे हैं। आपके पास अभी पूर्ण बहुमत की सरकार है, ये सरकार हम मतदाताओं ने ही दी है। हम महिलाओ की एक बेटी और माँ होने के नाते एक ही माँग है कि बलात्कारियों के लिये फाँसी की सजा का प्रावधान हो,इसके लिए आप अध्यादेश लेकर आओ या कुछ भी करो लेकिन करो।  यदि ऐसा नही होता है तो हमें दुर्गा और काली रूप रखकर  चंड मुंड,    रक्तबीज,  मधु लोचन, मधु, कैटभ, जैसे राक्षसों का सँहार करना भी जानती है, हमे खप्पर उठाना भी आता है।
      जो ऐसे दरिंदगी करते हैं, उनकी मर्दानगी को नपुंसको की संज्ञा दे सकती हैं।  प्रधानमंत्री जी आपसे यह भी कहना चाहूँगी कि वैसे हमारे उत्तराखंड के देवभूमि में ऐसे कलंकित औलाद हम महिलाएं जन्म नही देती हैं, लेकिन कोई हैवान पैदा हो गया यदि तो उसे जिंदा खडारने में भी देर नही करती हैं। बेटियों का जन्म लेना अगर गुनाह है तो फिर  बेटों को भी कोई हक नही है, इस धरती पर अपनी हैवानियत दिखाने का। ये हैवानियत बलात्कारी बनते समय यह क्यो नही सोचते कि जिस जिश्म को हम नोच रहे हैं, या हवस मिटा रहे हैं, उसके जैसे जिश्म से  हम पैदा हुए हैं। मुझे यह कहने में भी कोई दिक्कत नहीँ है कि ऐसे कपूतो के पैदा होने से भले तो हम निसन्तान ही रह जाये।  
    आज हमारी बेटियां बढ़ी हो रही हैं, हम उनको आगे की शिक्षा के लिये बाहर किसके भरोसे छोड़े, बाहर नौकरीं या व्यवसाय के लिए बेटियां कैसे अपने को सुरक्षित महसूस करे, जब इस तरह के भेड़िये खुले आम घूम रहे हो।  हमारे पहाड़ में बाघ का डर होता है, लेकिन बाघ केवल शिकार के लिये अपना निवाला बनाता है, शिकार करना उसकी प्रवर्ति है।  लेकिन देश मे तो उस बाघ से बढ़कर निर्लज्ज हैवान रूपी इंसान बैठे हैं, इनसे अपने लाड़ो की रक्षा कैसे माँ बाप कर पाएंगे। 
   अंत मे यही कहना चाहूंगी कि आप इस देश की बेटीयों के लिए ऐसा कानून बनाये की वास्तव में जिंसमे पीड़ितों को न्याय जल्दी से जल्दी मिल सके। फांसी की सजा कर दीजिए। अगर ऐसा कानून नही बनता है तो फिर ना जाने कितने हैवान और पैदा होंगे , और ना जाने कितनी निर्भया, दामिनी, और प्रियंका रेड्डी इनकी हैवानियत का शिकार होंगी, हम दो दिन चिल्लाकर फिर अपने क्रोध के आंसुओ का घूंट पीकर रह जायेंगे। 

पंचमू की ब्वारी सतपुली से।

©®@ हरीश कंडवाल मनखी की कलम से। ✒📝📝📝


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