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mayanksproductio5630
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Mayank Kumar 'Aftaab'

Mayank Kumar is an Indian Hindi-Urdu author and story writer. who is also known by his surname 'Aftaab' . In a few days one of his books is going to be published from India's famous book publisher Books Clinic Publication , India.

https://www.instagram.com/p/COvYdGGLvG7/?utm_medium=copy_link

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Mayank Kumar 'Aftaab'

दुश्मन दौड़ता है मारने को तो हिफ़ाजत क्यों नहीं करता ,
गिर रहा है तेरा मकान तो फिर  ईमारत क्यों नहीं करता ।
तुझे जान से मार देगी  ये तंगदस्ती  किसी रोज़ अचानक ,
तो फिर ख़ुद के जिंदा रहते ही रियाज़त क्यों नहीं करता...!!

―©मयंक कुमार 'आफ़ताब'

©Mayank Kumar 'Aftaab' दुश्मन दौड़ता है मारने को तो हिफ़ाजत क्यों नहीं करता ,
गिर रहा है तेरा मकान तो फिर  ईमारत क्यों नहीं करता ।
तुझे जान से मार देगी  ये तंगदस्ती  किसी रोज़ अचानक ,
तो फिर ख़ुद के जिंदा रहते ही रियाज़त क्यों नहीं करता...!!

―©मयंक कुमार 'आफ़ताब'
 
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दुश्मन दौड़ता है मारने को तो हिफ़ाजत क्यों नहीं करता , गिर रहा है तेरा मकान तो फिर ईमारत क्यों नहीं करता । तुझे जान से मार देगी ये तंगदस्ती किसी रोज़ अचानक , तो फिर ख़ुद के जिंदा रहते ही रियाज़त क्यों नहीं करता...!! ―©मयंक कुमार 'आफ़ताब' Read my thoughts on @YourQuoteApp #yourquote #Quote #Stories #qotd #quoteoftheday #wordporn #quotestagram #wordswag #wordsofwisdom

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Mayank Kumar 'Aftaab'

क्यों न  अब ये रात  रंगीन की जाए ,
चलो जलती मोमबत्ती बुझा दी जाए...!!

―©मयंक कुमार 'आफ़ताब'

©Mayank Kumar 'Aftaab' क्यों न  अब ये रात  रंगीन की जाए ,
चलो जलती मोमबत्ती बुझा दी जाए...!!

―©मयंक कुमार 'आफ़ताब'
 
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क्यों न अब ये रात रंगीन की जाए , चलो जलती मोमबत्ती बुझा दी जाए...!! ―©मयंक कुमार 'आफ़ताब' Read my thoughts on @YourQuoteApp #yourquote #Quote #Stories #qotd #quoteoftheday #wordporn #quotestagram #wordswag #wordsofwisdom

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Mayank Kumar 'Aftaab'

देखना नहीं चाहता मेरी थोड़ी–सी तरक्की भी ,
मेरा दोस्त आज मित्रता दिवस की शुभकामनाएं दे रहा है..!!

©Mayank Kumar 'Aftaab' #Light
 देखना नहीं चाहता मेरी थोड़ी–सी तरक्की भी ,
मेरा दोस्त आज मित्रता दिवस की शुभकामनाएं दे रहा है..!!

―©मयंक कुमार 'आफ़ताब'
 
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#Light देखना नहीं चाहता मेरी थोड़ी–सी तरक्की भी , मेरा दोस्त आज मित्रता दिवस की शुभकामनाएं दे रहा है..!! ―©मयंक कुमार 'आफ़ताब' Read my thoughts on @YourQuoteApp #yourquote #Quote #Stories #qotd #quoteoftheday #wordporn #quotestagram #wordswag

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Mayank Kumar 'Aftaab'

अब  दुपट्टा  किसी कन्धे पर  नज़र  नहीं आ रहा ,
अफ़वाह फैली है  कि ज़माने की नीयत ख़राब है...!!

©Mayank Kumar 'Aftaab' अब  दुपट्टा  किसी कन्धे पर  नज़र  नहीं आ रहा ,
अफ़वाह फैली है  कि ज़माने की नीयत ख़राब है...!!

―©मयंक कुमार 'आफ़ताब'

#Must_Read ,
#Must_React...!!
#WalkingInWoods

अब दुपट्टा किसी कन्धे पर नज़र नहीं आ रहा , अफ़वाह फैली है कि ज़माने की नीयत ख़राब है...!! ―©मयंक कुमार 'आफ़ताब' #must_read , #Must_React...!! #WalkingInWoods

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Mayank Kumar 'Aftaab'

कतराते हैं अपने ही लोग मुझसे , 
मेरी असली  हैसियत  जानकर ।
मेहमान भी कभी घर नहीं आते ,
शायद  खपड़े की  छत देखकर ।।

बोझ  लिए  फिरता   हूँ  दर्द  ,
हमेशा दूसरों से  बच-बचाकर ।
करता नहीं कोई मुझसे दोस्ती ,
मुझे  झोपड़ी  वाला  बताकर ।।

तारीफ़  करतें  हैं मेरे ही पड़ोसी ,
मुंह में राम बगल में छूरी रखकर ।
चुगली करते हैं मेरे ही रिश्तेदार ,
इस शख्स  की  गरीबी  देखकर ।।

रोता रहता हूं अक्सर भीतर से ,
हंसने वाली दोहरी नकाब पहनकर ।
ज़रा भी जाहिर नहीं होने देता दर्द ,
ज़माने की आंखो में धूल झोंककर ।।

©Mayank Kumar 'Aftaab' कतराते हैं अपने ही लोग मुझसे , 
मेरी असली  हैसियत  जानकर ।
मेहमान भी कभी घर नहीं आते ,
शायद  खपड़े की  छत देखकर ।।

बोझ  लिए  फिरता   हूँ  दर्द  ,
हमेशा दूसरों से  बच-बचाकर ।
करता नहीं कोई मुझसे दोस्ती ,

कतराते हैं अपने ही लोग मुझसे , मेरी असली हैसियत जानकर । मेहमान भी कभी घर नहीं आते , शायद खपड़े की छत देखकर ।। बोझ लिए फिरता हूँ दर्द , हमेशा दूसरों से बच-बचाकर । करता नहीं कोई मुझसे दोस्ती , #fog

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Mayank Kumar 'Aftaab'

#सुपुर्द-ए-ख़ाक

मेरी  लाश रखी है  मेरे  घर के  आंगन में ;
ख़ामोशी का आलम है घर की गलियों में ,
खड़े हैं  अपने ही  लोग  मुझे सजाने को ;
देखते थे जो कल तक तिरछी निगाहों से ।

पूरी तैयारी के साथ जुटे हैं मेरे रिश्तेदार ;

#सुपुर्द-ए-ख़ाक मेरी लाश रखी है मेरे घर के आंगन में ; ख़ामोशी का आलम है घर की गलियों में , खड़े हैं अपने ही लोग मुझे सजाने को ; देखते थे जो कल तक तिरछी निगाहों से । पूरी तैयारी के साथ जुटे हैं मेरे रिश्तेदार ; #pyaarimaa

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Mayank Kumar 'Aftaab'

ईमान  बेचकर  बे–ईमान  हो  जाऊँ , 
इससे  अच्छा  है कि मैं  मुर्दा  इंसान हो जाऊँ ।
खुद ही जर्जर होकर कुर्बान हो जाऊँ ,
इससे अच्छा है कि मैं शहीद–ए–हिन्दोस्तान हो जाऊँ ।

©Mayank Kumar 'Aftaab' ईमान  बेचकर  बे–ईमान  हो  जाऊँ , 
इससे  अच्छा  है कि मैं  मुर्दा  इंसान हो जाऊँ ।
खुद ही जर्जर होकर कुर्बान हो जाऊँ ,
इससे अच्छा है कि मैं शहीद–ए–हिन्दोस्तान हो जाऊँ ।

―©मयंक कुमार 'आफ़ताब'

ईमान बेचकर बे–ईमान हो जाऊँ , इससे अच्छा है कि मैं मुर्दा इंसान हो जाऊँ । खुद ही जर्जर होकर कुर्बान हो जाऊँ , इससे अच्छा है कि मैं शहीद–ए–हिन्दोस्तान हो जाऊँ । ―©मयंक कुमार 'आफ़ताब' #Shayari

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Mayank Kumar 'Aftaab'

बेख़बर हूंँ  ये ख़बर सुनकर कि ,
उनके  भी   हाथ  पीले  हो गए ।
पहनाए थे जो हमने उन्हें कंगन ,
वो उन कलाइयों में ढीले हो गए ।

सजाए  थे  हम  दोनों  मिलकर 
एक हसीन  ज़िन्दगी  के ख़्वाब ।
क्या पता , कोई और ले जाएगा ,
उनसे करके मोहब्बत  बेहिसाब ।

खाई  थी  हमने  हज़ार  कसमें , 
एक साथ जीने और  मरने  की ।
खुशनसीब है वो शख़्स जिसका , 
नसीब  है उनकी  मांग भरने की ।

वादे    किए  थे  गले    मिलकर ,
ज़िन्दगी   भर  साथ   निभाने के ।
अब  कुछ  नहीं  बचा 'आफ़ताब' , 
अकेले–तनहा जिंदगी बिताने के ।

©Mayank Kumar 'Aftaab' बेख़बर हूंँ  ये ख़बर सुनकर कि ,
उनके  भी   हाथ  पीले  हो गए ।
पहनाए थे जो हमने उन्हें कंगन ,
वो उन कलाइयों में ढीले हो गए ।

सजाए  थे  हम  दोनों  मिलकर 
एक हसीन  ज़िन्दगी  के ख़्वाब ।
क्या पता , कोई और ले जाएगा ,

बेख़बर हूंँ ये ख़बर सुनकर कि , उनके भी हाथ पीले हो गए । पहनाए थे जो हमने उन्हें कंगन , वो उन कलाइयों में ढीले हो गए । सजाए थे हम दोनों मिलकर एक हसीन ज़िन्दगी के ख़्वाब । क्या पता , कोई और ले जाएगा ,

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Mayank Kumar 'Aftaab'

#सुपुर्द-ए-ख़ाक

मेरी  लाश रखी है  मेरे  घर के  आंगन में ;
ख़ामोशी का आलम है घर की गलियों में ,
खड़े हैं  अपने ही  लोग  मुझे सजाने को ;
देखते थे जो कल तक तिरछी निगाहों से ।

पूरी तैयारी के साथ जुटे हैं मेरे रिश्तेदार ;
मेरी लाश,  अपने  कंधों  पर  उठाने को ।
जो कल  तक  सोचा  करते थे  तरकीबें  
भरी  महफ़िल  में मुझे  नीचे गिराने की ।

आज  लाश  हो गया  तो  फ़िक्र  करते हैं ,
ज़िन्दा था; जब तक, झांका नहीं किसी ने ।
तारीफ़  कर रहें हैं आज  मेरे ही  पड़ोसी ,
जो कल  तक  कमियां  गिनाते  रहे  मुझे ।

ख़ुशामद  करने में मसरूफ़ हैं  नये चेहरे ,
मेरी  लाश को  फूलों का  हार पहनाकर ।
धोखे़बाज़  भी  शामिल  हैं इस  भीड़  में ,
मेरी   लाश  में  घिनौने   हाथ  लगाने को ।

आंखो  में  अपने  फ़रेब  के आंसू  लिए ,
काफ़िले में हैं लोग  दग़ाबाज़  ज़माने के ।
सूखी लकड़ियों इकठ्ठी हैं , बस तैयारी है
दहकती  आग में  मेरी लाश  जलाने की ।

पल भर में मेरे  ज़िस्म के  चिथड़े  हो गए ,
धुआं - धुआं  बनकर  उड़  गई मेरी  लाश ।
सुपुर्द-ए-ख़ाक   होकर  राख़  हो  गया मैं
मिट्टी में  मिल गया ज़िन्दगी भर का गुरूर ।

©Mayank Kumar 'Aftaab' #OneSeason #सुपुर्द-ए-ख़ाक

मेरी  लाश रखी है  मेरे  घर के  आंगन में ;
ख़ामोशी का आलम है घर की गलियों में ,
खड़े हैं  अपने ही  लोग  मुझे सजाने को ;
देखते थे जो कल तक तिरछी निगाहों से ।

पूरी तैयारी के साथ जुटे हैं मेरे रिश्तेदार ;

#OneSeason #सुपुर्द-ए-ख़ाक मेरी लाश रखी है मेरे घर के आंगन में ; ख़ामोशी का आलम है घर की गलियों में , खड़े हैं अपने ही लोग मुझे सजाने को ; देखते थे जो कल तक तिरछी निगाहों से । पूरी तैयारी के साथ जुटे हैं मेरे रिश्तेदार ;

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Mayank Kumar 'Aftaab'

#एक_शहज़ादी

जिस दिन तू पैदा हुई ,
उसी दिन घर में खुशियों की दस्तक हुई ,
तेरी मां ने तेरे माथे को  चूमा होगा ,
बाप ने अपने कलेजे से लगाया होगा ।

धीरे-धीरे तू बड़ी हो गई ,
घर की सबसे चहेती बन गई ,
मां ने अपनी गोद में सुलाया होगा ,
बाप , बाजार से खिलौने लाया होगा ।

अब तू स्कूल पढ़ने जाने लगी ,
घर का सारा काम खुद ही करने लगी ,
मां की चिंता अब दूर हो गई ,
तेरे बाप को तुझ पर नाज़ हुआ होगा ।

साल बीतते गए ; पढ़ाई पूरी हो चली ,
अब तो तू ग्रेजुएट भी हो गई ,
मां को अब तेरी शादी की चिंता हुई होगी ,
बाप को बेचैनी ने सताया होगा ।

लड़के वालों ने तुझे पसंद भी कर लिया ,
और तू शरमाकर अंदर चली गई ,
दहेज के खातिर मां मजदूरी करने लगी ,
और बाप ने धूप में पसीना बहाया होगा ।

बारात दरवाजे पर आ गई ,
अब दिल की धड़कन भी तेज हो गई ,
मां ने तुझे चुनरी से सजाया होगा ,
और बाप दावत का इंतजाम किया होगा ।

अगले दिन विदाई की घड़ी आ गई ,
ना चाहते हुए भी तू रोते हुए डोली में बैठ गई ,
कैसे तेरी मां अपने आंसुओं को रोंकी होगी ,
कैसे तेरा बाप ,  उस रात सोया होगा ।

अगले दिन से पूरे घर में शांति छा गई  ,
अब तो शहजादी किसी दूसरे घर की हो गई ,
अभी भी तेरी मां गुमसुम बैठी होगी ,
और बाप कर्ज चुकाने की सोच रहा होगा ।

©Mayank Kumar 'Aftaab' #एक_शहज़ादी

जिस दिन तू पैदा हुई ,
उसी दिन घर में खुशियों की दस्तक हुई ,
तेरी मां ने तेरे माथे को  चूमा होगा ,
बाप ने अपने कलेजे से लगाया होगा ।

धीरे-धीरे तू बड़ी हो गई ,

#एक_शहज़ादी जिस दिन तू पैदा हुई , उसी दिन घर में खुशियों की दस्तक हुई , तेरी मां ने तेरे माथे को चूमा होगा , बाप ने अपने कलेजे से लगाया होगा । धीरे-धीरे तू बड़ी हो गई ,

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