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rajivkumarsinha3926
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RAJIV

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RAJIV

तुम्हारे दर्द को बाँटते बाँटते,
मैं खुद में ही बँट गया।
रिश्तों मे बँधने से,
न जाने कब तुमसे
तुम्हारी अपेक्षाओं में
अपहृत होकर रह गया।
तुम्हारा ये,
क्यों.... किन्तु...परन्तु....से
मैं  घायल था,
मेरी कविता घायल थी।
मुझमें परकटे पंछियों की
बेचैनी व छटपटाहट थी।
मैने तो तुम्हें बडे़ प्यार से, 
कविता की तरह जीया था। 
तुम समझ नहीं पाई,
तुम्हारे शब्द शिल्पी हो सकते हैं,
मगर तुम..............
शब्दों को जीना नहीं जानती।
                                 -राजीव

©RAJIV #apart
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RAJIV

धूप में लिपटकर आया सुबह, 
सूरज कुछ ऐसा गुनगुनाया।
आस्मां को देखकर आज,
मेरा मन मचल कर रह गया।
आस्मां में  उड़ते....
पंछीयों की लम्बी कतारें, 
और उनकी सुरीली आवाज़,
मेरे कानों में गूंजती रही,
कुछ देर तलक यूं ही।
मैं ढूंढता रहा अपने वजूद को,
अपनी तन्हाई के आग़ोश में,
कुछ ऐसे जैसे...
सूखी धरती को प्यास रहती है
आस्मां में उड़ते बादलों की।
धूप में लिपटकर आया सुबह, 
सूरज कुछ ऐसा गुनगुनाया।
आस्मां को देखकर आज,
मेरा मन मचल कर रह गया।
                          -राजीव

©RAJIV
  धूप लेकर निकला सूरज

धूप लेकर निकला सूरज #कविता

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RAJIV

हमेशा की तरह‌ आज फिर शाम हुई... 
सर्दियों के अँधेरे मेरा बंद-बंद सा कमरा। 
बाहर दरवाजा खोलकर देखा
बाहर कुछ तारे दिखाई दे रहे थे,
बाहर एक ठहरी हुई शांति थी।
न बच्चे, न गृहस्थी‌..न कोई मित्र...कोई नहीं; 
सिर्फ  मेरी  उपस्थिति.. और मेरा एकांत।
मेरे हर लंबे वाक्य में मेरी टूटती आशाओं के,
पैराग्राफ और उनके इर्द-गिर्द मँडराता,
भावनाओं का बवंडर जमा होता जाता है।
उसके परे कुछ भी नहीं सिर्फ मेरी उंगलीयों में,
थिरकती मेरी भावनाएं मेरी छत और...
कुछ किताबें...मैं बाहर ठहरे और 
सर्द अँधेरे को देखता हूँ ।
और मुझे लगता है कि ऐसे ही, 
शांती और ध्यान अवस्थीत क्षणों में,
क्यों न अपनी ही आत्मस्तूती की जाए ?-राजीव

©RAJIV #Rose खुद की आस्था

#Rose खुद की आस्था #कविता

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RAJIV

वियावान झाड़ियों के बीच,
खुरदरी खुश्क रेतिले सरजमीं को...
उकेरती चींटीयां।
अनुशासित कतारों की,
सजीव पंक्तियों में,
अनवरत चलती ये चींटीयां।
गौर से देखो इन चलती उभरती,
पंक्तियों में न जाने....
कितना विश्वास..कितनी मेहनत।
देही तिल सी,
छुपा नहीं जग से,
दिनभर मीलों चलती चींटीयां
कन-कन...कनके, 
चुनती ये चींटीयां।
चुनौती देती ये चींटीयां,
न समझौता न करती आराम।
वियावान झाड़ियों के बीच,
खुरदरी खुश्क रेतिले सरजमीं को...
उकेरती चींटीयां।
अनुशासित कतारों की,
सजीव पंक्तियों में,
अनवरत चलती ये चींटीयां।
                            -राजीव

©RAJIV #diary चीटीयां

#diary चीटीयां #कविता

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RAJIV

खूबसूरत और सम्मोहित व्यक्तित्व,
प्रेम के भाव से हमेशा आवेशित होता है।
शब्द अपने नि:शब्द आंखों से प्रेमवश अपने,
मुग्ध मोतियों को प्रेम के धागे को पिरोता है।
दैहिक संबंध प्रेम की पराकाष्ठा नहीं है,
वासना जब प्रेम से स्वीकृति लेकर देह के,
आत्मिक गेह में सहज भाव से उतरता है।
मन के इस पार और उस पार के अन्तराल में,
बहुत कुछ खोकर  एक दूसरे मे ढूंढ लेता है।
खुले बांहों का आकाश अपनी आकांक्षाओं को,
नि:शब्द होकर  स्खलित शब्दों को ढूंढता है।
अनचाहे शंकाओं से घिरा मस्तिष्क प्रेम को, 
भविष्य की लकीरों में निर्मोही बनाकर,
ब्रह्मचर्य की सिढ़ीयों पर शून्य साधना में
समाधि के द्वार को सहज भाव में खोलता है।
                                            --राजीवॢ

©RAJIV
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RAJIV

गुम्बदों के आगे थिरकते, 
पांवों के निशान पूर्वजों के, 
नशीहत को गा रहा था।
ऐसे में चैन की वंशी के धून में,
पत्थरों में समहृत भावनाएं सुबह 
घंटियों का स्वर सबको जगा रहा था।
आस्था निर्धारित शक्लों में अपने, 
नंगे पांव से दिमाग को जगा रहा था।
ईशान कोण से उतरता विहंगम दृश्य,
आस्थाओं को करबद्ध हाथों से
शून्य की पैठ में अर्चना के पुष्प  
उतरती  गहराईयों में  शान्ति के
दो शब्द आसमां में ढूंढ रहा था।
                     ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌          -राजीव

©RAJIV
  पूजा

पूजा #कविता

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RAJIV

एक मुस्कराहट भरा, 
ख्वाब जो हमने देखा था।
आज उसी मुस्कराहट के पीछे, 
अपने आँसू छूपा कर जा रहे हैं हम।
यूँ तो क‌ई सवाल तुमसे करने आया था।
आज उन्हीं सवालों को लेकर, 
मैं वापस जा रहा हूँ।
हम तुम्हारे जीवन में साथी के तरह आए थे,
एक फूकरे की तरह वापस चल दिए।
हम कभी आए थे जिंदगी बनकर,
एक दिए तुम्हारे गोद में सोते हुए, 
अपनी आखिरी वक्त तय कर जाएंगे।
हम यादों के निशान और अपने पैरों के, 
निशान के साथ जा रहे हैं, 
जो कभी नहीं मिटेंगे।
हम जो कुछ भी आपसे महसूस करते थे,
उसे तुमसे कहना चाहते थे, 
लेकिन हम सब कुछ छुपाकर चल दिए,
क्योंकि हम आपसे हिम्मत नहीं कर सके।
                                           -राजीव

©RAJIV
  मैं और मेरी कविता

मैं और मेरी कविता


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