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minakshikumari7427
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ranjit Kumar rathour

jharkhand

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ranjit Kumar rathour

गणतंत्र दिवस का उत्साह 
बचपन से आज तक 
लेकिन फर्क आया भाई
तब शामिल होने जाता था 
और अब खबरें बनाने जाता हुँ 
इस दफा कुछ था खास 
अपनी तस्वीर वाली एक 
वॉलपेपर बनाया और अहले सुबह 
उन्हें भेजा जिसे मेरा इंतज़ार था 
हा है न ख़ास

©ranjit Kumar rathour खास गणतंत्र

खास गणतंत्र #कविता

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ranjit Kumar rathour

कुछ खास नहीं वो आम सी लड़की थी 
हमेशा गुम सुम सी रहती थी 
पूछा था उससे सब ठीक तो है न 
बोली नहीं मै बीमार रहती हुँ 
क्योँ आखिर परेशानी क्या है 
एक दम से भावुक हो बोली 
है कुछ मुश्किलें मुझे दिखाने जाना है 
फिर हर बात मुझसे बताती 
पता नहीं कब उसको मुझ पर यकीन हो गया 
और फिर अच्छे दोस्त और अब सब कुछ 
हर बात जिद कर मनवा लेती 
अब तो बिना बात किये दिन नहीं गुजरती 
हर वक्त उसका इंतज़ार होता
नहीं बता सकता वो कब आम से खास हो गयी 
हां खास हो गयी

©ranjit Kumar rathour आम से खास

आम से खास #कविता

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ranjit Kumar rathour

अब नहीं आओगी न 
फिर कभी 
बस इतना ही बोल पाया था 
जाओ खुश रहना 
अपना ख्याल रखना अटकी सी 
थी आवाज मेरी 
इतना कह कर उसे भर लिया था 
अपनी बांहों मे 
ये सब कुछ अचानक से हुआ
आवाज रुआसी थी 
सीने से लगकर बोली आउंगी न 
मानो ढाडस दे रही थी 
उस वक्त मै कितना छोटा हो गया था 
 वो छोटी होकर भी बड़ी 
भींच लिया था इस कदर बांहों मे 
जैसे ये अखिरी हो 
पता है अब तो तमाम उम्र यादो संग 
गुजारनी है उसके 
लेकिन हा जाते जाते कहा था भूलाना 
मेरी गलतियों को 
लेकिन भूलना गलतियों को सिर्फ हमें नहीं 
खुश रहना अपना ख्याल रखना

©ranjit Kumar rathour आखिरी दिन

आखिरी दिन #कविता

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ranjit Kumar rathour

मेरे वादे पर आयी थी वो 
बगैर गर्म कपड़ो के 
जाने के वक्त बोली ठण्ड है 
मजाक किया किसने कहा था ऐसे आने 
बोली था एक दोस्त 
उसे मेरे स्वेटर से एलर्जी थी 
लेकिन मुझे ठिठुरते देख 
बेचैन हो गया था  वो 
बोला जल्दी घर जाओ 
अकड़ जाओगी 
बोली नहीं उसके लिए 
इतना तो बनता है 
ख़ुशी है मुझे कष्ट मे नहीं देख पाया 
जनता हूँ और महसूसता हुँ 
वो पास होता तो खुद ही शाल 
बन लिपट जता 
या फिर ओढ़ी हुईं चादर से मुझे ढक देता 
इस एहसास का सुख 
सिर्फ मै महसूस कर रहा हुँ 
हा और गरमाहट भी

©ranjit Kumar rathour ठण्ड वादों वाली

ठण्ड वादों वाली #कविता

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ranjit Kumar rathour

और आज़ आखिरी दिन है 
कॉलेज का 
फिर शायद ही कोई मौका मिले 
कॉलेज आने का 
वैसे भी कौन आना चाहता है यहाँ 
सारे खड़ूस है 
सिवाय आपके सो आता रहा 
अब नहीं आना 
ये शब्द पता नहीं डरावने थे 
मगर पहली दफा 
एक आवाज़ निकली आना किसी बहाने 
बोल नहीं पाया 
वो समझती बहुत थी बोली आऊंगा न 
मन रखने के लिए 
बस इतने ही दिनों का साथ था 
शुक्रिया तुम्हारा 
तुमने जीवन मे एक नया पन्ना जोड़ा

©ranjit Kumar rathour आखिरी दिन

आखिरी दिन #कविता

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ranjit Kumar rathour

हम ऐसे तो नहीं थे 
फिर भी क्यों 
सवाल तुमसे ही हैँ 
बताते नहीं क्यों 
एक पुरानी सी तस्वीर 
देख लेता क्योँ 
तुझे खबर इस बात का 
आखिर क्योँ 
अगर नहीं हैँ तो इस कदर 
बेखबर क्योँ 
पूछा तो झूठ बोली लेकिन 
यद नहीं करती क्योँ 
भूल जाना चाहता मै भी 
मगर होता नहीं क्योँ 
चलो कोशिश करते हैँ
नहीं होगा क्योँ

©ranjit Kumar rathour आखिर क्योँ

आखिर क्योँ #कविता

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ranjit Kumar rathour

जब मिलना ही नहीं तो 
मिले ही क्यों 
साथ चार कदम चलना नहीं तो
सफर मे चले ही क्यों 
 आजमाना भर था अगर तो 
थोड़ा रुकते न 
अपने पसंद नापसंद बताते तो 
 मौका देख आजमाते न 
ऐसे कोई थोड़े छोड़ जता है राह मे
अपनी ख्वाइश बताते तो 
ये क्या तरीका है 
निकल लेने का दो चार तोहमते 
झूठा ही सही लगाते तो 
अब देखो न तेरी 
समझ नहीं पाता 
तुझसे गिला करू 
या ख़्वाबों मे मिला करू 
जाते जाते कोई नुस्खा बताते तो
चलो अच्छा है तू ख़ुश है 
मै भी खुश रह लूंगा 
तेरे बगैर था पहले भी 
दुबारा ये सोच कर जी लूंगा 
हां जी लूंगा

©ranjit Kumar rathour मिले ही क्यों

मिले ही क्यों #कविता

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ranjit Kumar rathour

पहले ही अच्छे थे 
कम से कम इंतज़ार नहीं था 
न कोई हसरत थी 
चाहत दीदार का नहीं था 
आज़ भी आयी थी 
पर वो बाला एतवार नहीं था 
बेचैनी सी हुईं थी 
और दिल को करार नहीं था 
उसकी अपनी थी 
मिजाज मेरा थोड़े न था 
जरूरी नहीं की 
एक ही भ्रम रोज पाला जाए 
जिंदगी है यारों 
खेल दिलो का अलग अंदाज़ मे खेला जाये 
कभी तड़पे खुद 
कभी किसी और को तड़पाया जाये
वो आएगी कल भी 
देख मुस्कुराएगी फिर एक बार 
एक नया भ्रम 
पाला जाए

©ranjit Kumar rathour एक और भ्रम

एक और भ्रम #कविता

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ranjit Kumar rathour

कितना सही कितना गलत 
इसका हिसाब क्या करना 
आज के आज़ जीना 
कल को क्यों मरना 
जो अतीत को झाकूंगा 
तो रोना आएगा 
भविष्य कि सोचूँ 
तो और भी डराएगा 
वर्तमान थोड़ा ख़ुशी देता 
उसे क्यों न संभालू 
इसीलिए आज़ मे जी रहा हुँ 
हा थोड़ा थोड़ा ही सही 
दिल ने दी इज़ाज़त तो 
हल्का हल्का सा जाम 
किसी के नाम का 
उसके हा उसके लबों से 
आहिस्ता आहिस्ता पी रहा हुँ
हा पी रहा हुँ
अच्छा है आज़ मे जी रहा हुँ

©ranjit Kumar rathour आज़ मे जी रहा हुँ

आज़ मे जी रहा हुँ #कविता

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ranjit Kumar rathour

ज़ब भी गुजरता हूँ बहक जाता हुँ 
तेरी गली से गुजरते ही महक जाता हुँ 
फिर पूरा सफर खोया रहता हुँ 
सोचता तुझको ही ऐसा होता 
वैसा होता.. कैसा कैसा होता 
मंज़िल तक पहुंच जाता हुँ 
तुझे ऐसा कुछ नहीं होता न 
या फिर बदल गए हो तुम 
आजकल निकलते नहीं घर से
मै हर उम्मीद से ठहर गुजर जाता हुँ 
जो सच बदल गयी तो 
यक़ीनन मै सम्हल जाऊंगा 
जो पल गुजरा उसे सहेज 
आगे निकल जाऊंगा 
सोचूंगा जो मिला वो कम तो नहीं 
वरना कहा मिलता है कोई 
चंद दिन ही सही इतने प्यार से

©ranjit Kumar rathour चंद दिन प्यार से

चंद दिन प्यार से #कविता

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