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FIROZ KHAN ALFAAZ

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FIROZ KHAN ALFAAZ

मेरे दिन लूट लेती हैं मेरी ज़िम्मेदारियां..
जेबख़र्च के लिए रोज़ मैं रातें चुराता हूँ..
••••••••••••••••••••••••••••••
सख्त़ धूप में जब मेरा सफ़र हो गया,
कच्ची मिट्टी सा था, मैं पत्थर हो गया !
••••••••••••••••••••••••••••••
वो बेचता रहा हस्ती शोहरत के बाज़ार में
देख मेरे कलाम ख़ुद मेरा इश्तिहार हो गया
••••••••••••••••••••••••••••••
देख आज वो फ़िर आसरा मांगने आया है,
दिल की मिट्टी से घर जिसका बनाया हमने !
••••••••••••••••••••••••••••••
लम्हे जो मुट्ठी में हैं, आओ इन्हें मिलके जी लें,
रेत की तरह हाथ से लम्हें न फिसल जाये !
••••••••••••••••••••••••••••••
शायद तुझको भी मेरी कोई बात चुभती हो,
मुझे फूलों ने ठुकराया, काँटों ने सहलाया था !
••••••••••••••••••••••••••••••
एक माँ की मोहब्बत, दूजी बहन के प्यार जैसी है,
मेरा अंदाज़-ए-बयां उर्दू है, हिंदी-रवां मेरी ज़ुबान है !
••••••••••••••••••••••••••••••

©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर प्रोपर औरंगाबाद बिहार मेरे दिन लूट लेती हैं मेरी ज़िम्मेदारियां..
जेबख़र्च के लिए रोज़ मैं रातें चुराता हूँ..
••••••••••••••••••••••••••••••
सख्त़ धूप में जब मेरा सफ़र हो गया,
कच्ची मिट्टी सा था, मैं पत्थर हो गया !
••••••••••••••••••••••••••••••
वो बेचता रहा हस्ती शोहरत के बाज़ार में
देख मेरे कलाम ख़ुद मेरा इश्तिहार हो गया

मेरे दिन लूट लेती हैं मेरी ज़िम्मेदारियां.. जेबख़र्च के लिए रोज़ मैं रातें चुराता हूँ.. •••••••••••••••••••••••••••••• सख्त़ धूप में जब मेरा सफ़र हो गया, कच्ची मिट्टी सा था, मैं पत्थर हो गया ! •••••••••••••••••••••••••••••• वो बेचता रहा हस्ती शोहरत के बाज़ार में देख मेरे कलाम ख़ुद मेरा इश्तिहार हो गया

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FIROZ KHAN ALFAAZ

जब भी लौटता हूँ घर मैं नमाज़ पढ़कर,
ख़ैर-ओ-बरकत भी साथ मेरे घर आती है !!
••••••••••••••••••••••••••••••
ऐ यार, ज़रा अहिस्ता ले चल मेरी मय्यत,
मेरे क़ातिल की ग़म-गुसारी तो अभी बाक़ी है !
••••••••••••••••••••••••••••••
देखना, अँधेरा भी थक कर सो ही जाएगा,
'अल्फ़ाज़' हर शाम की एक सहर आती है !
••••••••••••••••••••••••••••••
आज फ़िर मेरे ज़मीर को कोई ख़रीद न सका,
मैं न बिक कर भी अपना दाम ख़रीद लाया हूँ !
••••••••••••••••••••••••••••••
चाँद भी रंजिशें रखता है जिसकी सबाहत से,
एक रात उसके शहर में भी ठहर के देखिये !
••••••••••••••••••••••••••••••
तेरी मुट्ठी से भी फिसलेगी ये दुनिया एक दिन,
ख़ाली हाथ ही वो भी गए, जो सिकंदर हो गए !
••••••••••••••••••••••••••••••
बदलते वक़्त को दरकार हैं बदले हुए तेवर,
नया ग़ालिब, नया ख़ुसरो, नया तू मीर लेकर आ !
••••••••••••••••••••••••••••••

©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर प्रोपर औरंगाबाद बिहार

©FIROZ KHAN ALFAAZ जब भी लौटता हूँ घर मैं नमाज़ पढ़कर,
ख़ैर-ओ-बरकत भी साथ मेरे घर आती है !!
••••••••••••••••••••••••••••••
ऐ यार, ज़रा अहिस्ता ले चल मेरी मय्यत,
मेरे क़ातिल की ग़म-गुसारी तो अभी बाक़ी है !
••••••••••••••••••••••••••••••
देखना, अँधेरा भी थक कर सो ही जाएगा,
'अल्फ़ाज़' हर शाम की एक सहर आती है !

जब भी लौटता हूँ घर मैं नमाज़ पढ़कर, ख़ैर-ओ-बरकत भी साथ मेरे घर आती है !! •••••••••••••••••••••••••••••• ऐ यार, ज़रा अहिस्ता ले चल मेरी मय्यत, मेरे क़ातिल की ग़म-गुसारी तो अभी बाक़ी है ! •••••••••••••••••••••••••••••• देखना, अँधेरा भी थक कर सो ही जाएगा, 'अल्फ़ाज़' हर शाम की एक सहर आती है !

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FIROZ KHAN ALFAAZ

जब दिल टूटेगा तो ख़ुद समझ जाओगे,
इश्क़ मिसरा है तो क़ाफ़िया क्या है !
••••••••••••••••••••••••••••••
तेरा एहसास जैसे कोई नेकी का सिला,
तेरा दीदार जैसे असर हो मेरी दुआओं में !
••••••••••••••••••••••••••••••
सिर्फ़ कमरे, आँगन, और दहलीज़ ही नहीं,
रिश्ते भी बंट जाते हैं घर के बंटवारे में !
••••••••••••••••••••••••••••••
तू नुमाईश न कर अपने दिल के टुकड़ों की,
टूटी-फूटी चीज़ों के तो दाम बदल जाते हैं !
••••••••••••••••••••••••••••••
इतना ख़ाली है मेरा दिल तेरी याद के बग़ैर,
जैसे मय-ख़ाने में बाक़ी कोई शराब न रहे !
••••••••••••••••••••••••••••••
कब तलक जलता रहूँ मुसलसल मैं तपिश में,
उरूज न सही, मेरा ज़वाल बनके चले आओ !
••••••••••••••••••••••••••••••
मुकम्मल रश्क़ न ज़ाया कर तू मेरी ग़ज़लों पर,
मेरे कलम की नग़मानिगारी तो अभी बाक़ी है !
••••••••••••••••••••••••••••••

©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर प्रोपर औरंगाबाद बिहार जब दिल टूटेगा तो ख़ुद समझ जाओगे,
इश्क़ मिसरा है तो क़ाफ़िया क्या है !
••••••••••••••••••••••••••••••
तेरा एहसास जैसे कोई नेकी का सिला,
तेरा दीदार जैसे असर हो मेरी दुआओं में !
••••••••••••••••••••••••••••••
सिर्फ़ कमरे, आँगन, और दहलीज़ ही नहीं,
रिश्ते भी बंट जाते हैं घर के बंटवारे में !

जब दिल टूटेगा तो ख़ुद समझ जाओगे, इश्क़ मिसरा है तो क़ाफ़िया क्या है ! •••••••••••••••••••••••••••••• तेरा एहसास जैसे कोई नेकी का सिला, तेरा दीदार जैसे असर हो मेरी दुआओं में ! •••••••••••••••••••••••••••••• सिर्फ़ कमरे, आँगन, और दहलीज़ ही नहीं, रिश्ते भी बंट जाते हैं घर के बंटवारे में !

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FIROZ KHAN ALFAAZ

दवा देना है तो दे वरना ज़हर ही दे दे,
मरीज़-ए-इश्क़ को अब आराम तो आये !
••••••••••••••••••••••••••••••
तेरे इश्क़ की हर शर्त है मंज़ूर हमको,
जिन्हें तोड़ने में भी मज़ा और निभाने में भी ! 
••••••••••••••••••••••••••••••
जबीं रोज़ पूछती है ख़ुदा से सजदा करके !
मुकम्मल कब होगा मेरी दुआओं का सफ़र !
••••••••••••••••••••••••••••••
जुर्म-ए-वफ़ा की हमने ख़ुद को सज़ा ये दी है,
ख़ुद को ख़ुद का मुजरिम बता करके रो लिए !
••••••••••••••••••••••••••••••
दिल-ए-बर्बाद को डर था कि जी पायेंगे कैसे,
और हमने दिल को समझाया, कि शराब तो है !
••••••••••••••••••••••••••••••
एक राज़ कहते-कहते मैं रुक जाता था अक्सर,
लेकिन ग़ज़ल में ज़ाहिर हर राज़ हो गया !
••••••••••••••••••••••••••••••
मुझपे बरस जाओ घिर के कभी सावन की तरह,
मैं तपता हुआ सहरा, तू बारिश का पानी है !
••••••••••••••••••••••••••••••

©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर प्रोपर औरंगाबाद बिहार दवा देना है तो दे वरना ज़हर ही दे दे,
मरीज़-ए-इश्क़ को अब आराम तो आये !
••••••••••••••••••••••••••••••
तेरे इश्क़ की हर शर्त है मंज़ूर हमको,
जिन्हें तोड़ने में भी मज़ा और निभाने में भी ! 
••••••••••••••••••••••••••••••
जबीं रोज़ पूछती है ख़ुदा से सजदा करके !
मुकम्मल कब होगा मेरी दुआओं का सफ़र !

दवा देना है तो दे वरना ज़हर ही दे दे, मरीज़-ए-इश्क़ को अब आराम तो आये ! •••••••••••••••••••••••••••••• तेरे इश्क़ की हर शर्त है मंज़ूर हमको, जिन्हें तोड़ने में भी मज़ा और निभाने में भी ! •••••••••••••••••••••••••••••• जबीं रोज़ पूछती है ख़ुदा से सजदा करके ! मुकम्मल कब होगा मेरी दुआओं का सफ़र !

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FIROZ KHAN ALFAAZ

किसीको मुफ़्त में आसरा भी नहीं देता,
कितना छोटा है मेरे दिल से ये शहर मेरा !
••••••••••••••••••••••••••••••
तमाशा इश्क़ का हो तो सारी दुनिया देखे,
मेरी तसव्वुर-ए-ग़ज़ल सर-ए-आम तो आये !
••••••••••••••••••••••••••••••
अब तलक तो यही सोच कर संभाल रखा है,
कि सूखा ही सही, मगर ये वही गुलाब तो है !
••••••••••••••••••••••••••••••
इस ज़िन्दगी ने यूँ तो, सबको ही आज़माया,
कुछ लोग बिखर गए तो कुछ लोग निखर गए !
••••••••••••••••••••••••••••••
न जाने क्यूँ ये ज़माना हमको कहने लगा अच्छा,
'अल्फ़ाज़' देखिये तो सही क्या हम मर गए !
••••••••••••••••••••••••••••••


©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर प्रोपर औरंगाबाद बिहार किसीको मुफ़्त में आसरा भी नहीं देता,
कितना छोटा है मेरे दिल से ये शहर मेरा !
••••••••••••••••••••••••••••••
तमाशा इश्क़ का हो तो सारी दुनिया देखे,
मेरी तसव्वुर-ए-ग़ज़ल सर-ए-आम तो आये !
••••••••••••••••••••••••••••••
अब तलक तो यही सोच कर संभाल रखा है,
कि सूखा ही सही, मगर ये वही गुलाब तो है !

किसीको मुफ़्त में आसरा भी नहीं देता, कितना छोटा है मेरे दिल से ये शहर मेरा ! •••••••••••••••••••••••••••••• तमाशा इश्क़ का हो तो सारी दुनिया देखे, मेरी तसव्वुर-ए-ग़ज़ल सर-ए-आम तो आये ! •••••••••••••••••••••••••••••• अब तलक तो यही सोच कर संभाल रखा है, कि सूखा ही सही, मगर ये वही गुलाब तो है !

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FIROZ KHAN ALFAAZ

जागे जो नींद से तो जाना की ख़्वाब था वो,
पहलू में हम तुझे न पा करके रो लिए !
••••••••••••••••••••••••••••••
तपते सहरा में तेरा साथ है बाईस-ए-सुकूँ,
तू साथ है तो अमावास रात भी नूरानी है !
••••••••••••••••••••••••••••••
तेरी हसरत तो करता हूँ, ज़िद नहीं करता,
कोई बुराई तो नहीं तुझे इस तरह चाहने में !
••••••••••••••••••••••••••••••
जबीं रोज़ पूछती है ख़ुदा से सजदा करके !
मुकम्मल कब होगा मेरी दुआओं का सफ़र !
••••••••••••••••••••••••••••••
सोचता हूँ कि अब ख़ुद ही से मोहब्बत कर लूँ,
जाने ये मेरा हौसला है या तुझसे बेवफ़ाई है !
••••••••••••••••••••••••••••••
नसीहत सबको देता है, अमल ख़ुद ही नहीं करता,
कभी जाहिल, कभी आलिम, कभी पगला मेरा मन है !
••••••••••••••••••••••••••••••


©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर प्रोपर औरंगाबाद बिहार जागे जो नींद से तो जाना की ख़्वाब था वो,
पहलू में हम तुझे न पा करके रो लिए !
••••••••••••••••••••••••••••••
तपते सहरा में तेरा साथ है बाईस-ए-सुकूँ,
तू साथ है तो अमावास रात भी नूरानी है !
••••••••••••••••••••••••••••••
तेरी हसरत तो करता हूँ, ज़िद नहीं करता,
कोई बुराई तो नहीं तुझे इस तरह चाहने में !

जागे जो नींद से तो जाना की ख़्वाब था वो, पहलू में हम तुझे न पा करके रो लिए ! •••••••••••••••••••••••••••••• तपते सहरा में तेरा साथ है बाईस-ए-सुकूँ, तू साथ है तो अमावास रात भी नूरानी है ! •••••••••••••••••••••••••••••• तेरी हसरत तो करता हूँ, ज़िद नहीं करता, कोई बुराई तो नहीं तुझे इस तरह चाहने में !

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FIROZ KHAN ALFAAZ

अब तो रूठने में ही मज़ा आने लगा है,
वो मनाता है तो अब मनाने दीजिये !
••••••••••••••••••••••••••••••
मुझको हिंदी में मज़हब तुम सिखलाओ,
मैं आलिम कहाँ अरबी ज़बां का हूँ !
••••••••••••••••••••••••••••••
कुछ देना हो तो बे-ग़रज़ हो के देना,
शजर की तरह कोई ज़िम्मेदारी रखना !
••••••••••••••••••••••••••••••
ये भी देखना है कि मैं चराग़ हूँ या सूरज,
ताक में रहता हूँ मैं अक्सर तूफ़ानों की !
••••••••••••••••••••••••••••••
चलो चाँद में तकें फ़िर से उनके चेहरे को,
चलो फ़िर रात को जाग के बिताया जाए !
••••••••••••••••••••••••••••••
वो भी इंसान था जिसने फ़तह की दुनिया
तू भी इंसान है ज़िद करके सिकंदर हो जा !
••••••••••••••••••••••••••••••



©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर प्रोपर औरंगाबाद बिहार अब तो रूठने में ही मज़ा आने लगा है,
वो मनाता है तो अब मनाने दीजिये !
••••••••••••••••••••••••••••••
मुझको हिंदी में मज़हब तुम सिखलाओ,
मैं आलिम कहाँ अरबी ज़बां का हूँ !
••••••••••••••••••••••••••••••
कुछ देना हो तो बे-ग़रज़ हो के देना,
शजर की तरह कोई ज़िम्मेदारी रखना !

अब तो रूठने में ही मज़ा आने लगा है, वो मनाता है तो अब मनाने दीजिये ! •••••••••••••••••••••••••••••• मुझको हिंदी में मज़हब तुम सिखलाओ, मैं आलिम कहाँ अरबी ज़बां का हूँ ! •••••••••••••••••••••••••••••• कुछ देना हो तो बे-ग़रज़ हो के देना, शजर की तरह कोई ज़िम्मेदारी रखना !

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FIROZ KHAN ALFAAZ

कहें तो कैसे कहें कि बात है दिल की,
जिसे कहने में भी मज़ा और छुपाने में भी !
••••••••••••••••••••••••••••••
इन सबके भी दिल में तो आरज़ू-ए-यार है,
क्यूँ इश्क़ करने की यही लोग सज़ा देते हैं ,
••••••••••••••••••••••••••••••
क्यूँ लग गई है मेरी ख़ुशियों को बद-नज़र,
हँसता तो हूँ पर अब दिल से हँसता मैं नहीं हूँ !
••••••••••••••••••••••••••••••
तो क्या हुआ जो ये जहाँ नाराज़ हो गया,
मैं ख़ुद से राज़ी हुआ तो 'अल्फ़ाज़' हो गया !
••••••••••••••••••••••••••••••
इज़्ज़त, दुआ, सुकून, और मेयार, सब मिला,
क़िस्मत से मुझे हासिल नाम-ए-अल्फ़ाज़ हो गया !
••••••••••••••••••••••••••••••
ये इश्क़ का नशा है, हर हाल में मज़ा है,
है दिल्लगी में भी मज़ा और दिल के लगाने में भी !
••••••••••••••••••••••••••••••



©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर प्रोपर औरंगाबाद बिहार कहें तो कैसे कहें कि बात है दिल की,
जिसे कहने में भी मज़ा और छुपाने में भी !
••••••••••••••••••••••••••••••
इन सबके भी दिल में तो आरज़ू-ए-यार है,
क्यूँ इश्क़ करने की यही लोग सज़ा देते हैं ,
••••••••••••••••••••••••••••••
क्यूँ लग गई है मेरी ख़ुशियों को बद-नज़र,
हँसता तो हूँ पर अब दिल से हँसता मैं नहीं हूँ !

कहें तो कैसे कहें कि बात है दिल की, जिसे कहने में भी मज़ा और छुपाने में भी ! •••••••••••••••••••••••••••••• इन सबके भी दिल में तो आरज़ू-ए-यार है, क्यूँ इश्क़ करने की यही लोग सज़ा देते हैं , •••••••••••••••••••••••••••••• क्यूँ लग गई है मेरी ख़ुशियों को बद-नज़र, हँसता तो हूँ पर अब दिल से हँसता मैं नहीं हूँ !

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FIROZ KHAN ALFAAZ

सुना है की वहां रहमतें बरसती हैं,
जाने कब मैं मुस्तफ़ा के शहर जाऊँगा !
••••••••••••••••••••••••••••••
जब रात अँधेरी घिरते ही मेरा साया खो जाता है !
तू चुपके से मन में आकर मेरे साया हो जाता है !
••••••••••••••••••••••••••••••
जिस मलाल-ए-इश्क़ में सौदाई बने फिरते हैं,
वो इश्क़ का रुतबा है या इश्क़ की रुस्वाई है !
••••••••••••••••••••••••••••••
सोचता हूँ कि अब ख़ुद ही से मोहब्बत कर लूँ,
जाने ये मेरा हौसला है या तुझसे बेवफ़ाई है !
••••••••••••••••••••••••••••••
मोहब्बत में कोई तोहफ़ा कभी छोटा नहीं होता,
ताजमहल भी बनाये जाते हैं हस्ब-ए-हैसियत !
••••••••••••••••••••••••••••••


©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर प्रोपर औरंगाबाद बिहार सुना है की वहां रहमतें बरसती हैं,
जाने कब मैं मुस्तफ़ा के शहर जाऊँगा !
••••••••••••••••••••••••••••••
जब रात अँधेरी घिरते ही मेरा साया खो जाता है !
तू चुपके से मन में आकर मेरे साया हो जाता है !
••••••••••••••••••••••••••••••
जिस मलाल-ए-इश्क़ में सौदाई बने फिरते हैं,
वो इश्क़ का रुतबा है या इश्क़ की रुस्वाई है !

सुना है की वहां रहमतें बरसती हैं, जाने कब मैं मुस्तफ़ा के शहर जाऊँगा ! •••••••••••••••••••••••••••••• जब रात अँधेरी घिरते ही मेरा साया खो जाता है ! तू चुपके से मन में आकर मेरे साया हो जाता है ! •••••••••••••••••••••••••••••• जिस मलाल-ए-इश्क़ में सौदाई बने फिरते हैं, वो इश्क़ का रुतबा है या इश्क़ की रुस्वाई है !

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FIROZ KHAN ALFAAZ

हमने सोचा था, देखेंगे बस एक नज़र,
एक नज़र क्या मिली, सिलसिला हो गई !
••••••••••••••••••••••••••••••
रुक-रुक के जाँ निकलती है ‘अल्फ़ाज़’ की जानाँ,
हंस हंस के यूँ ग़ैरों से तो बोला न कीजिये !
••••••••••••••••••••••••••••••
उस याद के धुएँ में महकी वही हिना है,
मैं जिसकी हर ख़ुशी था, वो ख़ुश मेरे बिना है !
••••••••••••••••••••••••••••••
ख़ुदारा और क्या माँगूँ, तेरी मुझपर इनायत है,
कि मेरे साथ माँ भी है, और माँ की दुआ भी है !
••••••••••••••••••••••••••••••
माना की भुला दिया मुझको तेरे शहरवालों ने,
हर ईंट पहचानती है मुझे शहर के मकानों की !


©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर प्रोपर औरंगाबाद बिहार हमने सोचा था, देखेंगे बस एक नज़र,
एक नज़र क्या मिली, सिलसिला हो गई !
••••••••••••••••••••••••••••••
रुक-रुक के जाँ निकलती है ‘अल्फ़ाज़’ की जानाँ,
हंस हंस के यूँ ग़ैरों से तो बोला न कीजिये !
••••••••••••••••••••••••••••••
उस याद के धुएँ में महकी वही हिना है,
मैं जिसकी हर ख़ुशी था, वो ख़ुश मेरे बिना है !

हमने सोचा था, देखेंगे बस एक नज़र, एक नज़र क्या मिली, सिलसिला हो गई ! •••••••••••••••••••••••••••••• रुक-रुक के जाँ निकलती है ‘अल्फ़ाज़’ की जानाँ, हंस हंस के यूँ ग़ैरों से तो बोला न कीजिये ! •••••••••••••••••••••••••••••• उस याद के धुएँ में महकी वही हिना है, मैं जिसकी हर ख़ुशी था, वो ख़ुश मेरे बिना है !

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