mαí ѕunчα pє ѕαwαr hu ,вєαdαв ѕα khumαr hu,αв muѕkílσn ѕє kчα dαrσσn ,mαí khud kєhαr hαzαr hu भावनाएँ है मर चुकी सामवेदनाए हैं ख़त्म हो चुकि अब दर्द से क्या डरूँ,यह जिंदगी ही ज़ख़्म है मैं रहती मात हूँ,मैं बेजान स्याह रात हू मैं काली का श्रृंगार हूँ मैं शुन्य पर सवार हूँ, हूँ राम का सा तेज मैं लंका पति सा ज्ञान हूँ किसकी करू मैं आराधना सबसे जो मैं महान हूँ ब्राह्मण का मैं सार हूँ मैं जल प्रवाह निहार हूँ मैं शुन्य पर सवार हूँ। मैं शुन्य पर सवार हूँ।
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