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Rajnishwar Chauhan

आजा कि फिर रंज दिखाने का वक्त आया है दुनिया
देख तेरा दहलीज़ पे आने-जाने का वक्त आया है दुनिया 

साथ ज़िन्दगी के तो आया न गया तुझसे कभी मगर,
बाद ज़िन्दगी के आजा कि आने का वक्त आया है दुनिया

आज होना है हमदर्द महज़ दिन भर के लिए तुझे, 
आ तेरा शोक-ऐ-खुदखुशी जताने का वक्त आया है दुनिया 

                         – रजनीश्वर चौहान ' रजनीश ' आजा कि फिर रंज दिखाने का वक्त आया है दुनिया
देख तेरा दहलीज़ पे आने-जाने का वक्त आया है दुनिया 

साथ ज़िन्दगी के तो आया न गया तुझसे कभी मगर,
बाद ज़िन्दगी के आजा कि आने का वक्त आया है दुनिया

आज होना है हमदर्द महज़ दिन भर के लिए तुझे, 
आ तेरा शोक-ऐ-खुदखुशी जताने का वक्त आया है दुनिया

आजा कि फिर रंज दिखाने का वक्त आया है दुनिया देख तेरा दहलीज़ पे आने-जाने का वक्त आया है दुनिया साथ ज़िन्दगी के तो आया न गया तुझसे कभी मगर, बाद ज़िन्दगी के आजा कि आने का वक्त आया है दुनिया आज होना है हमदर्द महज़ दिन भर के लिए तुझे, आ तेरा शोक-ऐ-खुदखुशी जताने का वक्त आया है दुनिया

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Rajnishwar Chauhan

किसीकी कागज़ी शाख़-ए-नर्गिस नहीं हूँ मैं,
झूठी शान-ओ-शौक़त का वारिस नहीं हूँ मैं 

संभाल रखी है बक्स-ए-दिल में मोहब्बत तेरी,
बाद तेरे जाने के भी मुफ़्लिस नहीं हूँ मैं

फिर क्यों तुझे न तेरी आज़ादी देता मेरी जान,
तेरे मामले में बेजान हूँ, बेहिस नहीं हूँ मैं 

                         – रजनीश्वर चौहान 

शाख़-ए-नर्गिस - Branch of narcissus ( Flower )
बक्स-ए-दिल - Chest/Trunk of heart 
मुफ़्लिस - Poor/Bankrupt 
बेहिस - Insensitive फिर क्यों तुझे न तेरी आज़ादी देता मेरी जान,
तेरे मामले में बेजान हूँ, बेहिस नहीं हूँ मैं 
                                   – रजनीश्वर चौहान 

#RajniWrites #RajnishwarChauhan #Rajnish #PoemByRajnishwarChauhan 
#Ghazal

फिर क्यों तुझे न तेरी आज़ादी देता मेरी जान, तेरे मामले में बेजान हूँ, बेहिस नहीं हूँ मैं – रजनीश्वर चौहान #rajniwrites #RajnishwarChauhan #rajnish #PoemByRajnishwarChauhan #ghazal

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Rajnishwar Chauhan

वक्त भी ज़रा तनकर
एक अजीब सी चुभन लिए 
कहने लगा है ख़फा होकर तुमसे,
" अपनी साँसों को 
मेरे साथ-साथ थोड़ा और चलने देते 
मैं ही खुद ठहर जाता 
खुद से मात खाकर
ताकि देखता रह सकता चलता हुआ तुम्हें
मुझसे कुछ पहर आगे तो निकल जाते
क्योंकि जब दौड़ के खेल में फासला रहता है 
तो जीतना थोड़ा कठिन हो जाता है 
...पर बड़े सयाने निकले तुम 
वाकिफ़ मेरे झूठ बोलने के हुनर से
चुपचाप चल दिए बिन रुके ही
जैसे चलता हूँ मैं भी 
हर बार के झूठे हौसले दिए 
बिन रुके, बिन मात खाए
मेरे चलते रहने के उसूलों के साथ... " 

' खुद पर इस क़दर भी नवाज़िशें नहीं हुआ करतीं 
जो ख़्वाहिशें ही टूट जाएं तो ख़्वाहिशें नहीं हुआ करतीं 

जहाँ आँसू ही नम कर दिया करते हैं ज़मी को ऐ बादल, 
वहाँ हद से ज़्यादा भी बारिशें नहीं हुआ करतीं  

आज से बा-हुनर सर रखेंगे ज़िन्दगी तेरे इस झूठ को 
कि ख़िलाफ़ फ़नकारों के कभी साज़िशें नहीं हुआ करतीं 

नहीं निशां छोड़ेंगे तुम्हारे गुज़र जाने का ये याद रखना,
ज़िंदा रहने वालों की आख़िरी तारीखें नहीं हुआ करतीं  '

ज़्यादा कुछ तो नहीं 
बस शब्दों से बुना 
ये हल्का सा लिहाफ़ दे रहा हूँ
शायद किसी रोज़ इसे ओढ़ कर
इसकी सिलवटों से जान जाओगे
कि चाहने वालों की कतार में
एक चाहने वाला 
और भी है... 

                            – रजनीश्वर चौहान With love 
To #Irrfan 
By
#RajnishwarChauhan

With love To #Irrfan By #RajnishwarChauhan

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Rajnishwar Chauhan

ये जहान उसे परेशान कर गया था
वह अपनी कब्र भी चल कर गया था

अबके सावन भी सूखा नहीं हूँ मैं,
पिछले सावन वह मुझे भिगोकर गया था

तेरे बाद न रहा शराब में वह नशा,
मय-कदे से घर मैं चल कर गया था
                                        – ऋषभ भारद्वाज 

बड़ी उदास-वीरान सी रहने लगी हैं सडकें,
ज़रूर यहाँ से कोई आँखें मलकर गया था

कबाएँ पहनने लगे हैं अब शहर में लोग,
अच्छा हुआ मैं यहाँ से जल कर गया था 

शाम होते-होते वापस चला आया,
मैं सुबह घर से तो निकलकर गया था

बहुत देर तक आदत रही ए मंज़िल मुझे,
मैं सीधे रास्तों पर भी संभल कर गया था 
                                       – रजनीश्वर चौहान

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Rajnishwar Chauhan

करके बेहाल पूछते हैं हाल ज़रूर ज़माने वाले,
ख़ैरियत तो पूछते हैं पर होकर दूर ज़माने वाले

आए दिन ही मेरे कुनबे से टूट गए कई यार मेरे,
बचपन रहता तो रहते साथ फ़ितूर निभाने वाले 

बिन सोचे ही खर्ची है जिसने भी मोहब्बत यहाँ,
हुए वही कमाई-ए-मोहब्बत से चूर कमाने वाले 

जो आये थे कभी इस शहर में ढूँढने को रोशनी,
शहर की चकाचौंध से हुए वही नूर गवाने वाले 

गर इतना आसां होता कभी नशे से गुज़र जाना,
होश में लाने को न कहते सुरूर आज़माने वाले 

हासिल तू न हुआ तो तक़दीर को कोस लिया,
निभा लिए अब हमने भी ये दस्तूर ज़माने वाले 

                    – रजनीश्वर चौहान ( रजनीश )

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Rajnishwar Chauhan

ज़िन्दगी, ज़िन्दगी नहीं तेरी दुआओं से,
सो मौत माँग, गर मिलती है दुआओं से

वादा-शिकन दूर हैं आहिस्ता न सुनेंगे,
ऊँचा बोलो, गद्दी हिलती है सदाओं से 

दर्द में अपने चारागर हो जाता हूँ वर्ना
मुझे राहत कहाँ मिलती है दवाओं से

छूकर गुज़रती है तो महसूस करता हूँ,
सुना है तेरी ख़बर मिलती है हवाओं से

चाँद को एक रात बेनूर कह दिया मैंने,
अब कुछ रंजिश मिलती है शुआओं से 

यूँ फ़ासला न रख रोशनी से ' रजनीश ', 
तेरी आदत नहीं मिलती है ख़लाओं से

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Rajnishwar Chauhan

ज़िन्दगी, ज़िन्दगी नहीं तेरी दुआओं से,
सो मौत माँग, गर मिलती है दुआओं से

वादा-शिकन दूर हैं आहिस्ता न सुनेंगे,
ऊँचा बोलो, गद्दी हिलती है सदाओं से 

दर्द में अपने चारागर हो जाता हूँ वर्ना
मुझे राहत कहाँ मिलती है दवाओं से

छूकर गुज़रती है तो महसूस करता हूँ,
सुना है तेरी ख़बर मिलती है हवाओं से

चाँद को एक रात बेनूर कह दिया मैंने,
अब कुछ रंजिश मिलती है शुआओं से 

यूँ फ़ासला न रख रोशनी से ' रजनीश ', 
तेरी आदत नहीं मिलती है ख़लाओं से

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Rajnishwar Chauhan

दौर-ए-सियासत में है बोलबाला खून का,
सियासत हुनर से देती है हवाला खून का

कतरों से रंगी हैं सियासी दीवारें उसकी,
लाशों से हुआ होगा छप्परवाला खून का 

वसूलती है सूद जनता से बिना कर्ज़ ही,
निकाल लेती है हुकूमत दिवाला खून का 

खा जाती है बस्तीयों को भूखी सीयासत,
निगल ले जाती है कतरा-निवाला खून का 

लेती नहीं है शम'आ से रोशनी सियासत,
हिंदू-मुसलमां से करती है उजाला खून का


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