साथी रे थोड़ा सा ठहर जा अभी रास्ते कुछ बदल से जायेंगे ओ साथी रे थोड़ा ठहर जा ये पांव भी अब संभल से जायेंगे फिर वोही बरसात होगी और अश्क़ सारे धुल से जायेंगे रौशनी दिन-रात होगी और सब झोरोखे खुल से जायेंगे.
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