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rupamahlawat7441
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RUPAM AHLAWAT

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RUPAM AHLAWAT

स्वर्ग देखा है कहीं?
बच्चों की मुस्कान में
उनके स्पर्श में
बड़ों के सनिध्य में
उनकी फटकार में
अपनों के संग में
प्रेम के रंग में........स्वर्ग होता है वहीं.....
घर की डाइनिंग पर
भोजन के स्वाद में
बालकॉनी के पौधों बीच
चाय की चुस्की में
परिवार के सदस्यों की
आपसी समझ में........स्वर्ग होता है वहीं.....
छ्त की मुँडेर पर
चिड़ियों की चहक में
उगते-छिपते सूरज की
नारंगी किरणों में
हर रात्रि चाँद के
घटते-बढ़ते आकार में
दूधिया बादलों के बीच
पंछियों की डार में
अंधियारी रात संग
तारों की चमक में
जहाँ चाहोगे देखना......दिखाई देगा वहीं......
क्योंकि
स्वर्ग होता है यहीं......स्वर्ग होता है यहीं।
***रूपम अहलावत*** #sunrays

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RUPAM AHLAWAT

#Lala_Lala

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RUPAM AHLAWAT

#sitarmusic

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RUPAM AHLAWAT

#krishna_flute
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RUPAM AHLAWAT

वो लड़की
क्या-क्या समेटे रखती है 
अपने भीतर
वो लड़की
कभी फूल सी खिलती 
तो कभी धूप सी ढलती है
वो लड़की
सुकून दूसरे का बनती
ग़म ख़ुद के लिए बुनती है
वो लड़की
सपनों के आकाश में खुलकर उड़ती
पर ज़िन्दगी भर ख़ुद में सिमटती है
वो लड़की
खुदगरज दुनिया से
बेशर्त मोहब्बत करती है
वो लड़की
उफ़! वो लड़की
क्यूँ बनी है
वो लड़की?

#रूपम अहलावत#
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RUPAM AHLAWAT

दाम्पत्य प्रेम वृद्धावस्था में अपने चरम पर होता है
क्योंकि तब तलक तन की दीवारें ढह जाती हैं।
रूपम अहलावत। #Couple

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RUPAM AHLAWAT

महीनों बाद
आज अचानक उस ठौर पर जाना हुआ
जहाँ पिछली दफ़ा
तुम अपनी महक छोड़ गए थे
आज उस दर पर
कदम पड़ते ही
मौन हवा के सब्र का बाँध टूट गया
साँय-साँय की आवाज़ करती हुई
तेज़ी से कदम बढ़ाती हुई
मेरी ओर बढ़ी वो हवा
सूखे पत्ते भी अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए
फड़फड़ाते हुए डोलने लगे,इधर-उधर
जताने लगे सब अपनी-अपनी
विरह की टीस
झूमने लगे पेड़ जैसे राज़े-दिल खोलना चाहते हों
उड़ने लगी धूल
अपनी खुश्की का उलाहना देने लगी
हवा ने अपनी मुट्ठी में
उस महक को कसकर,भींचके रखा था तब से
आज मुझे देखकर
रोक न पाई खुद को पगली
और बढ़कर मेरी ओर
अपनी मुट्ठियों को खोलकर
तुम्हारी महक को आज़ाद कर दिया
और सराबोर कर दिया
मेरे तन और मन को उसमें
एकाकार कर दिया
सबका,सबमें
मैं,महक और हवा सब एक हो गए
देखते ही देखते
सूखे पत्ते,ख़ुश्क धूल,उदास वृक्ष
सब नाच उठे
बिसरा दी अपनी विरह वेदना
क्योंकि अब
तुम वहाँ न होकर भी
वहाँ जो थे।
#रूपमअहलावत# #तुम्हारीमहक#

तुम्हारीमहक#

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RUPAM AHLAWAT

शरद तुम जाओगे
क्योंकि तुम्हारा जाने का वक्त आ गया है
तुम जानते हो कि
तुम मेरी पहली पसंद हो
बसंत तो सबका चहेता होता है हमेशा
तुम्हें तो मुझ जैसे
कुछेक हैं,जो बहुत चाहते हैं
तुम जानते हो कि
कोहरे से ढके रास्ते मुझे खींचते  हैं अपनी तरफ़
ओस की बूँदें जब पत्तियों पर
चमकती है हर सुबह
तो वो चमक मुझे 
अपनी आँखों में महसूस होती है
ठिठुरते फूल,पत्ते,पौधे जब
दुबककर सिमटते हैं अपने में
तो मासूम बच्चों से नज़र आते हैँ मुझे
और सर्द हवाओं की चुहलबाज़ी
भी तो हमेशा से ही लुभाती रही है मुझे
गली के नुक्कड़ पर
मौहल्ले भर के लोगों का बैठकर
सुलगती आग से हाथों को सेकना
कहाँ रह गया है ये नज़ारा
शरद के बहाने ही तो ये मौके बन पाते हैं कभी- कभी
अब क्योंकि तुम्हारा जाने का समय हो गया है
तो तुम जाओ शरद,मौसम कहाँ किसी के रहे हैं
ये तो सदा से बदलते आए मनुष्य की तरह। #शरद#

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RUPAM AHLAWAT

अभी हम मिले तो कई लोग बिछड़ जाएँगे
इंतज़ार और करो अगले जनम तक मेरा
(अज्ञात)

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RUPAM AHLAWAT

रचना-श्री सदोष हिसारी
स्वर-अल्पना सुहासिनी

रचना-श्री सदोष हिसारी स्वर-अल्पना सुहासिनी

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