तुम जो होती तो,
मैं गाँव का जोहड़ होता,
खेतों में चने का खार,
सावन और भी होता सुहाना,
मैं दौड़ पाता पगडंडीयों पर
तुम जो होती तो,
मैं बादल होता,
बरसता बंजर खेतों में,
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मोहित कुमार
प्यार काफी है
तड़प दिल की आज भी बाकी है
मेरे इश़्क में जान आज भी काफी है।
यूं छि-छले करना कहां की मर्दांनगी
मेरे अदंर का मर्द आज भी बाकी है।
वो दर्द के शहर में जख्म बेचते है पर,
प्यार काफी है
तड़प दिल की आज भी बाकी है
मेरे इश़्क में जान आज भी काफी है।
यूं छि-छले करना कहां की मर्दांनगी
मेरे अदंर का मर्द आज भी बाकी है।
वो दर्द के शहर में जख्म बेचते है पर,
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मोहित कुमार
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