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abhishekyadav3034
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Abhishek Yadav

मैं शब्दों में जीता हूँ, अर्थों को समझने के लिए।😍 प्रकृति प्रेमी, साहित्यिक।।

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Abhishek Yadav

White कल रात मौसम ने करवट ली थी, आज हल्की-हल्की रोमानियां सी हवा चल रही है। इन हवाओं की छुअन में न जाने कैसी कशिश है? कि अनायास ही सिहरता जा रहा हूँ तुम्हारी यादों की सुखद स्मृति में।😇

ऐसा ही होता है तुम्हे ख्यालों में पाने से पहले इक अजीब सा डर घुला रहता है। ह्र्दयस्थ प्रज्ज्वलित प्रेमदीप की ऊर्ध्व शिखा उद्दीपित है, अन्तस्थ ग्रीवा से होकर ऊष्म-वाष्प प्रवाहित है। बाह्य त्वक संकुचित है। रोमावलियाँ सीमा-प्रहरी तुल्यनिद्रा अवस्था में भी मुस्तैदी की मानिंद हैं। तुम्हारे अस्पर्शित घेराव में धड़कनों की वार्ता गूँजित है। साँसों की शरारत में कंपकपाता जाता हूँ। तुम बहुत याद आती हो। रह-रहकर उंगलियां शून्य में मचलती हैं। तुम्हारे अदृश्य स्पर्श की ख्वाहिश भी मन बंजारा बनकर तुम्हारी खबर ले आता है। जिसमें एक आश्वस्ति है। तुम भी अधीर हो। कर्तव्य और मर्यादा की बेड़ियों में अनुशासित व्यस्तता स्वाभाविक है। बस कभी-कभी मन से भी चली आया करो। लम्हा भर ही सही...मैं भी जी आऊँगा इक नई चेतनता पाकर, तुम्हारी यादों की सुखद स्मृतिविजन्य में।☺️

अब आ ही जाओ ना! तुम्हारे कंधे पर सर टिकाकर थोड़ा ठहर जाता हूँ। आजकल रात के इस प्रहरी में आते-आते मेरा शरीर भी अधेड़ की तरह निष्क्रिय हो चुका होता है। ऐसे में सिर्फ मन-मस्तिष्क, दिलो-दिमाग ही सक्रिय होता है। शायद तुम्हारी यादों का असर जो छाया होता है हर पल मुझ पर। जानती ही हो शरीर भी बोझ बन जाता है, जब आत्मा व्यथित हो तो। ऐसे में चलो! एक बार फिर सुकून की मृगमरीचिका के दौरे पर चलते हैं।😊👍

अच्छा! अपना राग बन्द करता हूँ। तुम बताओ? कैसी हो?...अरे! यह मुझसे बेहतर कौन जान सकेगा भला? तुमने भावनाओं की धरातल पर शब्द-शब्द सिंचित कर खुद की रूह की रोशनी में उगाया है मुझको। मुझे तुम्हारी साँसों के घेरे में असीम सुरक्षा हासिल है। इसी घेराव में मुक्त हो क्षितिज की राह पकड़ ली है मैंने। घुटन भरे सतीत्व से खिलखिलाता परकीय भाव उत्कृष्ट हैं। अत्यधिक मथी हुई वेदना अभिव्यक्ति चाहती है। जरूरी नही कि यह अभिव्यक्ति हूबहू अंतस्थल की ही प्रतिछवि हो। कभी-कभी वेदना परावर्तित होती है, इस परावर्तन में वैपरीत्य की सम्भावनाओं का औचित्य हमारे आपसी आनन्द का हेतु है। ऐसे में हमारी आनन्दित अभिव्यक्ति ही प्रेममय है।😍💑

खैर! मुझे पता है कि तुम नूर हो। तुम्हारी ख्वाहिश में मैं हर रोज सुलगता हुँ। सुलगना जलने से पृथक है। तभी तो आँच की भी पहुँच बाह्य सतह तक नही है। ऊपर तो बस राख की तब्दीली बढ़ती जाती है। मन की अनवरत यात्रा भी थमी हुई सी है। शरीर भी जैसे कोई द्रव्य है, जिसमें कुछ क्रियाएं प्रत्यारोपित हैं। कुछ भी बिखरा नही है और न ही कुछ छूटा है।..न अतिवृष्टि है, और ना ही अनावृष्टि। बस कुछ हुआ है तो अनावृत हुई है। 

एक बात बताऊँ? निमिष-निमिष तुम्हारी साँसों को टटोलते हुए ही मैं चेतनता पाता हूँ, अजीब रहस्य संयोजन है विधि का।😍🥰
     -✍️अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav #Sad_Status
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Abhishek Yadav

White रे मन! तू क्यों उदास है?
क्यों ये टूटी हुई आस है?

उम्मीद न रख तू किसी और से
सब कुछ तो तेरे पास है।

रे मन!तू क्यों उदास है?

किसी में सामर्थ्य नहीं
जो तुझे कुछ दे सके।
हर इंसान तो इंसान मात्र है
फिर भी तू उदास है।।

बंद कर तू अपनी
इच्छाओं का पिटारा
इस जीवन में सब कुछ
सिर्फ एक आभास है।

रे मन! तू क्यों उदास है?

न रुकता यहाँ सुख
न दुःख का निवास है।
ये वक्त भी बदल जायेगा।।

बस आत्मविश्वास ही तेरे पास है।
बस आत्मविश्वास ही तेरे पास है।।
       -✍️ अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav #Free
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Abhishek Yadav

वो कहते हैं, अभी उम्र नही तुम्हारी
मैं कहता हूँ, मृत्यु उपरांत समय नही।

वो कहते हैं, अभी युवा हो मौज करो
मैं कहता हूँ, यौवन अनंत नही।

वो कहते हैं, कुछ नही होगा ये करके
मैं कहता हूँ, कुछ नही बचेगा ये करके।

वो कहते हैं, ये गलत राह है
मैं कहता हूँ, बस सही राह की ही तलाश है।

वो कहते हैं, जल्दी मर जाओगे 
मैं कहता हूँ, एक पल में जीवन जी जाऊँगा।

वो कहते हैं, मजे लो जिंदगी का
मैं कहता हूँ, अभी तप कर पकने दो।

वो कहते हैं, कोई ऐसा नही करता
मैं कहता हूँ, मुझे सफल तो होने दो।

वो कहते हैं, तुम अंतर्मुखी हो
मैं कहता हूँ, मैं विलक्षण प्रजाति हूँ।

दुनिया कहती है, नदी के साथ बहो
मैं कहता हूँ, तैरकर सँघर्ष करने दो
तुम मुझे मेरे शर्तो पर तपने दो, मुझे जीना है, तुम मुझे बस ऐसे ही जीने दो,
मुझे गिरना है, गिरकर संभलने दो, सम्भल कर चलने दो, चलकर दौड़ने दो, दौड़कर सबसे आगे मंजिल को छूने दो।

मुझे जीना है, मुझे विष कष्ट बीज का पीना है
मुझे ऐसे ही जीने दो, मुझे रोको नही, मुझे अब खोने दो।।
     -✍️ अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav #lakeview
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Abhishek Yadav

∆∆ प्रकृति...?∆∆

प्रकृति अव्यक्त है, प्रकृति अदृश्य है, क्योंकि वह अत्यंत ही सूक्ष्मता के कारण प्रत्यक्ष का विषय नही है। प्रकृति का ज्ञान अनुमान से प्राप्त होता है। प्रकृति विश्व की विभिन्न वस्तुओं का कारण है, अतः सम्पूर्ण विश्व कार्य के रूप में प्रकृति में अन्तर्भूत रहता है।

प्रकृति अचेतन है, क्योंकि वह जड़ है। जड़ में चेतना का अभाव रहता है। यद्यपि! प्रकृति अचेतन है, फिर भी वह सक्रिय है। प्रकृति में क्रियाशीलता निरन्तर दिख पड़ती है, क्योंकि उसमें गति अन्तर्भूत रहता है। प्रकृति एक क्षण के लिए भी निष्क्रिय नही हो सकती है। प्रकृति को व्यक्तित्वहीन माना गया है, क्योंकि बुद्धि और संकल्प व्यक्तित्व के दो चिन्हों का वहाँ पूर्णतः अभाव है।

प्रकृति शाश्वत है, क्योंकि वह संसार की सभी वस्तुओं का मूल कारण है। जो वस्तु संसार का मूल कारण है, वह अशाश्वत नही हो सकती है। इसलिए प्रकृति को शाश्वत अर्थात अनादि और अनन्त कहा गया है। प्रकृति दिक् और काल मे नही है, बल्कि यह दिक् और काल को जन्म देती है। प्रकृति को शक्ति कहा जाता है, क्योंकि उसमें निरन्तर गति विद्धमान रहती है। प्रकृति जिस अवस्था मे भी हो निरन्तर गतिशील दिख पड़ती है।

प्रकृति को अविद्या कहा जाता है, क्योंकि वह ज्ञान का विरोधात्मक है। प्रकृति के विभिन्न नामों की चर्चा हो जाने के बाद अब हम प्रकृति के तमाम स्वरूप की कोरी-कल्पना करने लगें हैं।
प्रकृति विश्व की विभिन्न वस्तुओं का कारण है, परंतु स्वयं अकारण है। वह जड़, द्रव्य, प्राण, मन, अहंकार आदि का मूल कारण है। परंतु वह स्वयं उन वस्तुओं से भिन्न है।

प्रकृति स्वतंत्र है, जबकि वस्तुएं परतंत्र हैं।
प्रकृति को माया कहा जाता है, माया उसे कहा जाता है, जो वस्तुओं को सीमित करती है।
क्योंकि वह कारण है और विश्व की समस्त वस्तुएं कार्य है। कारण सम्भवतः कार्य को सीमित करती है। अतः भिन्न-भिन्न वस्तओं को सीमित करने के फलस्वरूप प्रकृति को माया कहा गया है।।🏞️🏕️
        -✍️ अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav #NatureLove
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Abhishek Yadav

गर्मी का मौसम है। लू चल रही है। सर्दी की तरह मन की रुमानियत तलाशता हूँ, मगर लाख आवाज देने पर उसका कोई पता नही चलता है। गर्मी के ये चार महीने अपनी उपेक्षा से इतने आहत होंगे की तपाते हुए मुझे भस्म करना चाहेंगे। तापमान के लिहाज से मन के ग्लेशियर को पिघलना चाहिए। मगर मेरे केवल देह पर पसीना आता है। मन का तापमान वही जनवरी में अटका हुआ है। नही जानता कैसे दिल की कन्दराओं में जमीं आसुओं की बर्फ सुरक्षित है?

कभी-कभी जी अतिवादी हो जाता है अकेलेपन की इस भीड़ में। तो ऐसी स्थिति में मैं कमरा, खिड़की सब बंद करके समाधिस्थ हो बैठ जाता हूँ। पसीना ललाट से चलकर एड़ी तक पहुँच जाता है, मगर मन की स्याह ठंडी बर्फीली दुनिया पर लेशमात्र भी प्रभाव नही पड़ता है। देह भीगकर ठंडी हो जाती है। गर्मी का अहसास भी लगभग समाप्त हो जाता है, फिर भी मन किसी सवाल का जवाब नही देना चाहता है। यह स्थिर प्रज्ञ होने जैसा जरूर प्रतीत होता है, मगर वास्तव में यह ऐसा नही है। खुद की तलाशी लेने पर मैं इसे कुछ-कुछ द्वंदात्मक भौतकिवाद के नजदीक पाता हूँ। पता नही यह बाहर की गर्मी का असर है या अंदर की यादों की ठंडक का? मगर मैं खुद से बहुत दूर निकल आया हूँ अब।

गर्मी के इन चार महीनों के परिवेशीय प्रतिकूलता मुझे विवेक का दास बनाना चाहती है, जबकि मैं सदियों से दिल के सहारे जी रहा हूँ। और इस तरह जीना मेरे लिए सुखद भले ही न रहा हो, मगर मैं उस मनस्थिति को ठीक-ठीक समझ पाता हूँ।
फिलहाल! मैं यह तय नही कर पा रहा हूँ कि मैं गर्मी के ताप से खुद का चेहरा कैसे साफ करूँ? 
गर्मी का आना महज ताप का आना नही है। गर्मी का आना मेरे लिए सर्दी का जाना और चाँद का कमजोर पड़ जाना है।

ऐसे में मैं चले जाना चाहता हूँ अपने हमदम के साथ वहाँ, जहाँ प्रकृति ही चराचर है। ताकि! जी सके हम अपने बेतरतीब रूमानी ख्यालों को..
एक-दूसरे के संग प्रकृति के गोद में। और मुझे पता है कि प्रकृति कहीं का भी हो वह मुझे और मेरे निर्वासन की युक्ति को भली-भाँति समझकर वो मुझे भौतिक/अभौतिक शरण देना सहर्ष स्वीकार कर लेगा।

खैर! आप सब वातानुकूलित कक्षों में बैठ लिक्विड डाईट और लेमोनाईड का प्रयोग करते रहना। और हम तो चलने वाले हैं इस गर्मी को जीने के लिए पहाड़, नदियाँ, समुन्द्र आदि जैसे जगहों पर जीने के लिए। अब मुझ तक तुम्हे अपनी बात पहुंचाने के लिए दुगुनी गति से चिल्लाना पड़ेगा। खैर! इसमें तुम तो माहिर हो। 
मैं ऊपर से तुम्हारे माथे का पसीना देख केवल मुस्कुरा दिया करूँगा, और मेरी हँसी तुम बादलों की गड़गड़ाहट और समुन्द्रों की उफान में सुन सकोगी। और हाँ कभी बेमौसमी बारिश हो जाए तो समझ लेना यहाँ मैंने तुम्हें याद किया है, याद करके रोया हूँ।। 😊👍
      -✍️अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav #tumaurmain
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Abhishek Yadav

यूँ तो मैं तुम्हे कभी नही भूलता..!
पर कभी-कभी बहुत ज्यादा याद आते हो।
जिंदगी के उथल-पुथल के बीच कभी-कभी तुम्हारी जरूरत बहुत ज्यादा महसूस होने लगती है।😔

गोद में सर रखकर सब परेशानियों को भूलकर निश्चिंत होकर लेटना चाहता हूँ कुछ देर के लिए..
तुम्हारी हथेली के स्पर्श को अपने सर पे महसूस करना चाहता हूँ। और माथे पर एक छोटा सा 😘
बस! इतनी सी चाहत कभी-कभी बहुत ज्यादा महसूस होने लगती है।
तुम्हारी यादें मुझे कभी भी बेचैन नही करती 🙅
क्योंकि ! मैं जब भी तुम्हे सोचता हूँ तो अंतर्मन में बहुत शांति छा जाती है।👍

शायद! कहीं खो सा जाता हूँ तुम्हे ढूँढने के लिए।
पर! तुम मेरे अपने हो..🙏
इसलिए तुम्हें लेकर बेफिक्र रहता हूँ।।😊🥰
            -✍️ अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav #Couple
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Abhishek Yadav

Quotes on dosti in Hindi 
यदि! वैचारिक सामंजस्य न हो एवं एक-दूसरे के मर्मस्थल को अनवरत आहत करते रहने की मंशा हो तब वास्तविक दुनिया हो या फिर आभासी, मित्रो की संख्या बढ़ाने का क्या औचित्य???

हमें किसी नई दुनिया की खोज नही करनी है
अपितु! जिस दुनिया में हम रहते हैं उसे और बेहतर तथा रहने लायक बनाना है। सच्चे मित्र इसमें सहायक होते हैं।

इसीलिए मेरी भावना किसी भी व्यक्ति के पसंद, नापसंद या स्वीकृति की मोहताज नही है, ना ही यह पूर्णरूपेण सच तथ्यों पर आधारित है। 

यह तो बस मेरी अपनी सोच, ख्वाहिश, सपने और सतत प्रवाहित अनुभवों जो मैं महसूस कर पाता हूँ का शब्दरूप है। स्वंय को रूह-क्षण में परखने और समझने का जीवनपर्यंत सहज प्रक्रिया है। 

ऐसे लोग सदैव मेरे स्वागतयोग्य रहेंगें।। 🙏🙏
         -✍️ अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav
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Abhishek Yadav

किसी का भी जीवन सरल नहीं होता। सबकी अपनी-अपनी दुविधाएँ हैं, परेशानियाँ हैं, विवशताएँ हैं। चारों ओर चिंताओं का मकड़जाल है। सब उलझे हैं। कभी-कभी उलझन इतनी बढ़ जाती है कि उससे निकलना दूभर हो जाता है। हम जितना निकलना चाहते हैं, उतने ही फँसते जाते हैं। 

इस सबके बीच भी अगर आपके जीवन में एक भी व्यक्ति ऐसा है, जिसके पास पहुँचते-पहुँचते चिंताएँ कहीं खो जाती हैं, समस्याएँ कहीं डूब जाती हैं, दुविधाएँ अपना रास्ता बदल लेती हैं, तो मुस्कुराइए क्योंकि आप भाग्यशाली हैं। ऐसा दुर्लभ संयोग होने की संभावना दुनिया में केवल तीन से चार प्रतिशत ही है।

एक बिन्दु पर मात्र उस व्यक्ति का साथ होना ही सबकुछ ठीक कर देता है। कम से कम मानसिक संघर्ष सिमट जाता है। वह व्यक्ति पीड़ा में औषधि होता है, लाचारी में सहारा, दु:ख में सहभागी होता है। उसके हाथ भर थाम लेने से हिम्मत बँध जाती है, उसके साथ बैठ जाने से साहस दोगुना हो जाता है। 

जब वो स्नेह देता है, तो यों जान पड़ता है कि यह प्रेम अकथनीय है। इससे ज्यादा कोई हमें चाह सके, यह असंभव है।  उसके दिल से लेकर उसकी आँखों तक, अगर हम खुद को महसूस कर पा रहें हैं तो यह निश्चय ही दुनिया का सबसे सुखी व्यक्ति होने की निशानी है। जिनके पास कोई ऐसा है। उन्हें एक सुखी और सफल जीवन जीने की बधाई..🙏 बस उस व्यक्ति के प्रति हमारे समर्पण में कोई चूक न हो।।👍🥰
      -✍️अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav #Alive
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Abhishek Yadav

नारी तुम प्रेम हो,आस्था हो 
विश्वास हो
टूटी हुयी उम्मीदों की एक मात्र आन हो
हर जान का तुम ही आधार हो 
नफरत की दुनिया में तुम ही तो 
एक प्यार हो।
उठो अपने अस्तित्व को सम्भालो
केवल एक दिन ही नही हर दिन के
लिए तुम खास हो।।

©Abhishek Yadav
  #womeninternational
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Abhishek Yadav

◆◆ सुनहरी यादें ◆◆

अभी देहरी पर बैठकर, प्रकृति को निहारते हुए, शीत लहर के उफान को चेहरे से टकराते, बंद आंखों में कुछ बीते नजारों को सजाते महसूस कर रहा हूँ। 
एक भीनी सी मुस्कान चेहरे पर, जैसे किसी वक्त की रेल में सफर कर रहे किसी यात्री सा प्रतीत करवा रही है। कुछ दृश्य उन सुनहरी पलों को पुनः जीवित कर रहें, जो अभी हाल ही में हमने दो दिन साथ में रहकर बिताये थें। बीते उन्ही दो दिनों में हमने जिंदगी के तमाम रंगीन किस्सों में सबसे बेहतरीन किस्से की सैर पर निकले हुए थें। अन्ततः जिसकी यात्रा बहुत ही सुखमय एवं मनमोहक सा रहा।

जब तुम आते हो ना तो सम्पूर्णता लाती हो साथ में। कल्पनायें भाप बन छा जाती हैं। और ये सर्द भरी मौसम और गहरी हो जाती है। शायद! सबसे गहरी और हसीन मुलाकात भी तो यही होती है, जिनमें प्यार जैसे अधूरे शब्द में भी हम दोनों सम्पूर्ण प्रतीत होते हैं। 

मैं इस बीच तुम्हारे चेहरों में आते भावों को पढ़ता रहा। दुःख, हताशा, व्यर्थता, व्यग्रता और इंतजार...! वो हर उस समय का हिसाब माँगती रही मुझसे जो मैंने तुम को नजरअंदाज करते हुए यूँ ही गवाँ दिया था, और मैं चुप रहा जब तुम मेरे जीवन मे आए। लेकिन सच में नही पता था कि तुम्हारे बिना रहना कभी इतना भी मुश्किल हो जाएगा। जब हम दोनों को देखकर कभी कोई बोलता है "मेड फार इच अदर" तब विश्वास होता है कि जोड़ियां भगवान ही मिलाता है। 
गर! तुम ना हो फिर भी यह सोच लेना भर कि तुम हो कहीं समीप ही। इसमें रस है।

जब तुम मेरे साथ होते हो तो क्यों संसार रंगीन लगती है? हर मंजर तुझ संग खास क्यूँ लगता है?? तुम जानो तो मुझको बताओ। तुम पर ही क्यों सिमट जाता है, मेरा हर आमोद-प्रमोद? जब तुम ना हो तो काटते हैं वो सारे दृश्य, जहां इंसान आह्लाद होता है। इतनी बड़ी दुनिया में तुझ तक सिमट जाता हूँ मैं, तू ना हो तो ताकता हूँ खामोश दीवारों, तकियों, सोफों, चादरों, रजाइयों को 
जैसे जीवंत थीं ये तेरे होने पर।
हर वो चीज अब निर्जीव हो गयी तेरे जाने से।
मन करता है अब जब मिलो तो तुम्हारा हाथ पकड़कर कह दूँ कि, जब तुम मेरे जीवन में आये सच में मुझे नही पता था कि, इक दिन तुम मेरे जीवन के सबसे महत्वपूर्ण अंग ही बन जाओगी।

कैसे कर लेते हो ये सब तुम?
जब भी तुम मुझसे मिलती हो, तुम्हारी आँखों में कितना इंतजार दिखती है, जैसे मेरे सिवा ना तुमने कुछ देखा, ना महसूस किया, और ना ही कभी कुछ बोला।।😉🥰
             -✍️अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav #Moon

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