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दासनुदास सोम

हमारा धर्म अलग हो सकते हे पर हमारा संस्कृृती एक हि होनि चाहिये,, मानवीय संस्कृति ,, आध्यात्म ,साहित्य,तथा पोराण को पहले सन्मान करता हु वाद मे वैज्ञान, (शब्द का शिकारी कलम हि मेरा हतियार हे )

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दासनुदास सोम

हर वक्त किसी के लिए हाज़िर रहोगे, तो लोग तुम्हें अच्छा नहीं फालतू समझेंगे...
@BABA

©दासनुदास सोम #ChaltiHawaa
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दासनुदास सोम

कस्यचित् आशायां जीवनं ह्रासयितुं मूर्खतां अस्ति,

किसि की आस मे जीवन को नास बनना मुर्खता है,

It is foolish to destroy life in the hope of someone

©दासनुदास सोम
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दासनुदास सोम

गुरु बिन भवनिधि तरइ न कोई, जौ बिरंचि संकर सम होई।

व्यक्ति स्वयं ब्रह्मा एवं शंकर समान प्रभावी होने 
पर भी  गुरु के ज्ञान द्वारा हि भवसागर से मुक्त हो सकता है ,,

अखण्ड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः।।


गुरु पुर्णिामा के पावन पर्व पर 
शिक्षा दीक्षा तथा समस्त गुरु देव 
को चरण कमल मै  हृदय से  नमन ,,

©दासनुदास सोम
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दासनुदास सोम

है  
श्रीकृष्ण 
तवास्मि:

है श्री कृष्ण !!
हम तुम्हारे है .........

©दासनुदास सोम
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दासनुदास सोम

संसार मै भगवान श्री कृष्ण  के अतिरिक्त ओर कोइ दुसरा तत्व नहि है ,, निराकार साकार रुपमे भेद रहित वै हि परम तत्व है  । माया ,जगत,ओर ब्रह्म उनके अतिरिक्त कुछ भी नहि हैं । संसार मै जितने भी विरुद्ध धर्म दिखाइ देते है वे भी सब उन्हि से  हि है , वै हि सगुण-निर्गुर्ण ,साकार-निराकार ,सविशेष - निर्विशेष ,सब कुछ है।अत: हर प्रकारकी शंका को त्यागकर सर्वभावसे उन्हि श्री कृष्ण परमब्रह्म 
का हि भजन करना चाहिये 
हरे कृष्ण ,,

©दासनुदास सोम #harekrishna
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दासनुदास सोम

कामस्य नेन्द्रियप्रीतिर्लाभो जीवेत यावता।
जीवस्य तत्व जिज्ञासा नार्थो यश्व्वेह कर्मभिः।भा/पु 1/2/10





भोग( भोजन) का अर्थ इंद्रियों को तृप्त करना नहीं है, उसका प्रयोजन  केवल जीवन निर्वाह मात्र है । ओर जीवन का फल भी तत्व जिज्ञासा अर्थात प्रभु को खोजने-पाने की जिज्ञासा है, बहुत कर्म करके विषय सुख सुविधा तथा स्वर्गादि प्राप्त करना भी  उसका फल कदापि नहीं।""केवल उस परम्तत्त्व जानना है ""
हरे कृष्ण

©दासनुदास सोम कामस्य नेन्द्रियप्रीतिर्लाभो जीवेत यावता।
जीवस्य तत्व जिज्ञासा नार्थो यश्व्वेह कर्मभिः।

कामस्य नेन्द्रियप्रीतिर्लाभो जीवेत यावता। जीवस्य तत्व जिज्ञासा नार्थो यश्व्वेह कर्मभिः। #विचार

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दासनुदास सोम

तत्वमसि 
(तत् त्वम् असि )
सामवेद 
वह तुम ही हो 
 ‘That art thou’ or  ‘You are that’

©दासनुदास सोम तत् त्वम् असि 
#वेदान्त

तत् त्वम् असि #वेदान्त #विचार

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दासनुदास सोम

यत्परं ब्रह्म सर्वात्मा, विश्वस्यायतन महत्।
सूक्ष्मात्सूक्ष्मतरं नित्यं स त्वमेव त्वमेव तत्।

जो ब्रह्म सब प्राणियों का आत्मा, सम्पूर्ण विश्व का आधार, सूक्ष्म से भी सूक्ष्म और नित्य है, 
वही तुम है और तूम वही हो ।


The God who is the soul of all beings, the basis of the entire universe, subtle and eternal
 is you and you are the same.

©दासनुदास सोम
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दासनुदास सोम

प्रेम इक सब्र है कोइ सौदा नहि,,
इसीलिये हर किसि से होता नहि

©दासनुदास सोम #forbiddenlove
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दासनुदास सोम

रिश्ता आपसे कुछ ऐसा है बन गया महादेव






दुविधा कैसी भी हो सबसे पहले
आप ही याद आते हो..!!

©दासनुदास सोम
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