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✍️मुकेश कुमार

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✍️मुकेश कुमार

किसी मुल्क की काबिलियत
वहाँ की किताबों से आँकी जा सकती है
धर्म स्थलों या इमारतों से नहीं

किताबों का अलग एक अपना धर्म होता है
जहाँ, विज्ञान साँस लेता है
मानवता मुस्कुराती है

किताबें हर युग में
युद्धों के खिलाफ़ खड़ी रही हैं 
परमाणु परीक्षण से ज्यादा 
इस दुनिया को किताबें पलटने की जरूरत है

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✍️मुकेश कुमार

मन की मन से है लड़ाई, गहरा है संघर्ष!
सुकूँन सारा छुपा है उसमें, मन का है उत्कर्ष!

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✍️मुकेश कुमार

आज मेरा जन्मदिन था,
दिन बीत गए, 
ढलते दिन का क्या लिखूं,,,,,

रात होने को आई है,
पहले की ही तरह सब शांत हैं
न कुछ उमंग है ना ही कुछ खाश है
इस ढलती हुई रात का क्या लिखूं,,,,,


अरमान बहुत थे, सब दबा कर रखा हूँ
खुल कर जीना था, पर मन मार कर रखा हूँ
बहुत कसमकस है इस ज़िन्दगी में
खुद में जो, दफन है, जज़बात, उसका क्या लिखूं!

ढलती हुई इस ज़िन्दगी का क्या लिखूं,,,,,

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✍️मुकेश कुमार

जो दिखा न सके गलतियां खुद की, वो आइने ही क्या है...
जो निभा न सको साथ तो, इन इजहार ए लफ्जों में मायने ही क्या है ।

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✍️मुकेश कुमार

इश्क़ तो हर महीने बरक़रार रहता है...!!

फिर इस फरवरी को इतना गुमान क्यों...!!!

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✍️मुकेश कुमार

"ईश्वर सबका है"
यह इतिहास से लेकर अब तक का बोला गया 
सबसे बड़ा झूठ है

जो ताकतवर रहें 
ईश्वर उन्हीं का रहा या जो शक्तिशाली हुए
वे ईश्वर बन बैठे
 
जहाँ भी ईश्वर की सत्ता रही 
वहाँ शोषित अवश्य रहे

कमजोर और वंचितों के लिए
ईश्वर नहीं होता
ईश्वर एक भ्रम है।

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✍️मुकेश कुमार

चीर के जमीन को, मैं उम्मीद बोता हूँ…
मैं किसान हूँ, चैन से कहाँ सोता हूँ…।

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✍️मुकेश कुमार

हीर और रांझे से ऊब चुकी है दुनिया,
आओ हम खुद को सरेआम लिखते है।

अनसुने किस्सों की किताब लिखते है,
आओ हम दोनों इंकलाब लिखते है।

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✍️मुकेश कुमार

जिन्दगी की तलाश में अपनों के बसेरे छूट जाते हैं।
नींद में देखे ख्वाब सवेरे टूट जाते हैं। 
बहुत मुश्किल है यहाँ सबको खुश रखना
चिराग  जलाते ही अँधेरे रूठ जाते हैं।

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✍️मुकेश कुमार

*ढूंढ लाओ कोई* *इश्क की वैक्सीन*
*कम्बक्त मरीज इसके भी *कम नहीं है....!!*
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