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अद्वैतवेदान्तसमीक्षा

(सभी विषयों से रिक्त मन होना ही आत्मदर्शन का उत्तम व अंतिम उपाय है )अथात आदेशो नेति नेति न ह्येतस्मादिति नेत्यन्यत् परमस्ति(बृह.उपनिषद 2/3/6)

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अद्वैतवेदान्तसमीक्षा

 नाकुछ से वे कोहिनूर बन गए।
जिसने रखा हौसला वे ही तो मशहूर हो गए।।

नाकुछ से वे कोहिनूर बन गए। जिसने रखा हौसला वे ही तो मशहूर हो गए।। #nojotophoto #विचार

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अद्वैतवेदान्तसमीक्षा

कबीर संगति साध की , कड़े न निर्फल होई ।

चन्दन होसी बावना , नीब न कहसी कोई ॥






अर्थ: कबीर कहते हैं कि साधु  की संगति कभी निष्फल नहीं होती. चन्दन का वृक्ष यदि छोटा – (वामन – बौना ) भी होगा तो भी उसे कोई नीम का वृक्ष नहीं कहेगा. वह सुवासित ही रहेगा  और अपने परिवेश को सुगंध ही देगा. आपने आस-पास को खुशबू से ही भरेगा

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अद्वैतवेदान्तसमीक्षा

खुशबू *जिंदगी  सुंदर  है  पर मुझे.*
     *जीना  नहीं  आता,*
*हर  चीज  में  नशा  है  पर मुझे.*
     *पीना  नहीं  आता,*
*चाहे कोई इसके बिना.  जी  सकते  हैं,*
*पर मुझे "माँ नर्मदा या गंगा" के  बिना. जीना* नहीं  आता,* माँ रेवा व गंगा

माँ रेवा व गंगा #कविता

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अद्वैतवेदान्तसमीक्षा

हम, भारत के लोग                  एसा मानते हैं कि-
Speaking lips can reduce any problem close lips avoid some problem but smiling lips can solve any problem forever?
बोलने वाले होंठ किसी भी समस्या को कम कर सकते हैं बंद होंठ कुछ समस्या से बचते हैं लेकिन मुस्कुराते हुए होंठ किसी भी समस्या को हमेशा के लिए हल कर सकते है।
अतः एव राष्ट्रीय चिन्ह में अशोक का अर्थ प्रसन्नता ही है क्योंकि शोक का विलोम प्रसन्नता ही होता है भारतीय विचार पद्धति

भारतीय विचार पद्धति

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अद्वैतवेदान्तसमीक्षा

दुर्जन से मित्रता और शत्रुता दोनों ही कष्टप्रद ......
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                    " दुर्जनेन समं सख्यं द्वेषम चापि न कारयेत | 
                     उष्णो दहति चान्गारः शीतः कृष्णायते करम || "


अर्थात -     " दुर्जन व्यक्ति से न तो मित्रता करनी चाहिए , न शत्रुता ही | जिस प्रकार ज्वलंत अंगारे को स्पर्श करने से वह हाथ को जलाती है तथा बुझने के पश्चात् उसको स्पर्श करने से वह हाथ को काला कर देती है , ठीक उसी प्रकार दुर्जन की मित्रता अनापेक्षित दुष्परिणामों को तथा उसकी शत्रुता विविध कुपरिणामों  को उत्पन्न कर मनुष्य को कष्ट देती है दुर्जन से दूरी का शास्रीय माप

दुर्जन से दूरी का शास्रीय माप #कविता

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अद्वैतवेदान्तसमीक्षा

राहें उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि  न मनोरथैः  |
नहि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे  मृगाः || - सुभषितरत्नाकर  

भावार्थ -    निरन्तर उद्यम करने से ही विभिन्न कार्य सम्पन्न 
(सिद्ध) होते हैं न कि मात्र मनोरथ (इच्छा) करने से | निश्चय  ही 
एक  सोये हुए सिंह  के मुख  में हिरण  स्वयं प्रविष्ट नहीं  होते  हैं | 
(एक सिंह को भी अपनी भूख मिटाने के लिये प्रयत्न पूर्वक हिरणों 
का पीछा कर उनका  वध करना पडता है | निष्क्रिय व्यक्तियों की 
की तुलना एक सोये हुए सिंह से कर  इस सुभाषित में उद्यमिता  के  
महत्व को प्रतिपादित किया गया  है ।.
Udyamena = by continuous and strenuous efforts,  
Hi= surely.    
Sidhyanti =  are accomplished.      
 Kaaryaani = various tasks    
Na = not.    
 Manorathaih= by simply desiring.   
 Nahi = by no
means.     
  Suptasya = sleeping.                 
Simhasya = a loin's 
Pravishanti = enter,    
Mukhe =  mouth.  
Mrugaah = antelopes.
i.e.               We can accomplish var प्रयत्न का महत्व

प्रयत्न का महत्व #कविता

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अद्वैतवेदान्तसमीक्षा

*हर प्रयत्न में सफलता न मिल पाए शायद*

* लेकिन*

*हर सफलता का कारण प्रयत्न ही होता है !!* प्रयत्न बिना प्राप्ति नहीं।
प्रयत्न से ही प्रत्येक प्राप्ति

प्रयत्न बिना प्राप्ति नहीं। प्रयत्न से ही प्रत्येक प्राप्ति #विचार

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अद्वैतवेदान्तसमीक्षा

माया छाया एक सी, बिरला जानै कोय ।

भगता के पीछे फिरै , सनमुख भाजै सोय ।।

धन सम्पत्ति रूपी माया और व्यक्ति की छाया को एक समान जानो । इनके रहस्य को विरला ज्ञानी ही जानता है । ये दोनों किसी की पकड़ में नहीं आती । इन दोनों चीजोँ से परे भागने वालों के पीछे पीछे अनुसरण करती हैं और इन दोनों को पकड़ने को भागने वालों  के आगे आगे भागती है।कहा भी है---
बिनमांगेे मोती मील मांगे मीले न भीख माया =छाया एक समान

माया =छाया एक समान

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अद्वैतवेदान्तसमीक्षा

अमर रहे पॉली बेग का फैसला आपका !!!

अमर रहे पॉली बेग का फैसला आपका !!! #nojotovideo

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अद्वैतवेदान्तसमीक्षा

विद्या विवादाय धनं मदाय
शक्तिः परेषां परिपीडनाय ।
खलस्य साधोर्विपरीतमेतत्
ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय ॥

दुर्जनों और सत्पुरुषों का (व्यवहार) विपरीत होता है । जब कि दुर्जनों की विद्या विवादार्थ, धन गर्वार्थ और शक्ति परपीडन के लिये होती है; सत्पुरुष की विद्या ज्ञानार्थ, धन दानार्थ और शक्ति (अन्य के) रक्षण के लिये होती है । उपयोग एवं दुरुपयोग से सज्जन एवं दुर्जन

उपयोग एवं दुरुपयोग से सज्जन एवं दुर्जन

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