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satyamsharma3459
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shivam sharma

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shivam sharma

*पुस्तकों की बेबसी*

धूल से लथपथ,अंधेर बंद कमरे में, 
कैद हैं,
जीवन प्रकाशित कर देने वाली आदरणीय पुस्तकें,,

बेबस ,मायूस ,निराश हैं
आशा, उम्मीदों के ज्ञान से परिपूर्ण,
वंदनीय पुस्तकें,,

पुस्तकालय खुलें हैं,किताबें बंद हैं,
क्यों?
क्या पुस्तक प्रेमी खो गए हैं ?
दीर्घ निद्रा में सो गए हैं,,?
क्या पुस्तकों के पन्नो पर कांटे हो गए हैं?

शिक्षा का उद्गम,
ज्ञान के सागर की दिव्य धारा,
जिसमे ज्ञान असीमित है,,
बंद पड़ी अलमारियों में सीमित है

वक्त बदल रहा है,समाज बदल रहा है,
हर पल हर क्षण,आज बदल रहा है,,
वक्त के साथ,इस प्रगति के आधार(पुस्तक) का स्थान,,
किसी और(स्मार्ट फोन)को दिया जा रहा है।

*शिवम् शर्मा (देवा)*

©shivam sharma books

#Books
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shivam sharma

*पुस्तकों की बेबसी*

धूल से लथपथ,अंधेर बंद कमरे में, 
कैद हैं,
जीवन प्रकाशित कर देने वाली आदरणीय पुस्तकें,,

बेबस ,मायूस ,निराश हैं
आशा, उम्मीदों के ज्ञान से परिपूर्ण,
वंदनीय पुस्तकें,,

पुस्तकालय खुलें हैं,किताबें बंद हैं,
क्यों?
क्या पुस्तक प्रेमी खो गए हैं ?
दीर्घ निद्रा में सो गए हैं,,?
क्या पुस्तकों के पन्नो पर कांटे हो गए हैं?

शिक्षा का उद्गम,
ज्ञान के सागर की दिव्य धारा,
जिसमे ज्ञान असीमित है,,
बंद पड़ी अलमारियों में सीमित है

वक्त बदल रहा है,समाज बदल रहा है,
हर पल हर क्षण,आज बदल रहा है,,
वक्त के साथ,इस प्रगति के आधार(पुस्तक) का स्थान,,
किसी और(स्मार्ट फोन)को दिया जा रहा है।

*शिवम् शर्मा (देवा)*

©shivam sharma new poem
#Books
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shivam sharma

*त्राहिमाम*,,,,,,,
यूं न देखा कभी, लोगो को बिलखते हुए,,
यूं न देखा कभी,,आंसुओ को छलकते हुए,,
हर पल देखता हूं कई सांसों को उखड़ते हुए,,,
मायूस परिजनों को अपनों से बिछड़ते हुए,,,,
छांव लापता है,,बस घाम ही घाम है,,
नेत्र जहां तक जाते हैं ,,
त्राहिमाम त्रहिमाम है,,,,

मानवता का पतन,महामारी का उत्थान हो रहा है,,
लाशों से लथपथ,शमशान हो रहा है,
अपने जीवन का शत्रु ,खुद इंसान हो रहा है,,
गैर जिम्मेदारी का घातक परिणाम हो रहा है,,,
त्राहिमाम त्राहिमाम , त्राहिमाम हो रहा है,,,,

मृत्यु का भवंडर है,,आंसुओ का समंदर है,,,
लाशों का ढेर जैसे ,,जलता खंडहर है,,
लापरवाही का घातक अंजाम हो रहा है ,,,
त्राहिमाम त्राहिमाम, त्राहिमाम हो रहा है,,,

जलती चितायैं ,दिल जला रहीं हैं,,
जीवन के मोल का पाठ पढ़ा रही हैं,,
मुर्दों का सौदा,,सांसों का महंगा दाम हो रहा है,,,,
त्राहिमाम त्राहिमाम, त्राहिमाम हो रहा है,,,

जीवन का जाना, मृत्यु का आना,,,
आंसुओ का आना, अपनों का छोड़ जाना,,,
अब आम हो रहा है,, हर शख्स का जीवन ,संग्राम हो रहा हे,,,
त्राहिमाम त्राहिमाम, त्राहिमाम हो रहा है,,,,,

*शिवम् शर्मा(देवा)*

©shivam sharma poem

#Corona_Lockdown_Rush
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shivam sharma

*मानव और परिंदा*........

सावन झम झम बरस रहा है,,
मन पानी बिन तरस रहा है,,,
शीतल वायु बह रही है,
तन गर्मी से उमस रहा है,,
वे सोमरस पीकर मर रहे हैं,
मैं आंसू पीकर जिंदा हूं,
वे स्ववंत्र इंसान हैं,में पिंजरे में बंद परिंदा हूं,,,,

तेरी इच्छाएं असीमित हैं, मेरी    एक ही अभिलाषा है,,
मुझे बस एक बूंद चाहिए, तू तो सात समंदर का प्यासा है,
तुझे अपनो पर भी यकीं नहीं,
मुझे तुझसे स्वंत्रता की आशा है,,
कल जो दैत्य की थी,आज वो 
तेरी परिभाषा है,,

प्रकृति के सौंदर्य मैं खो जाना चाहता हूं,
घने वृक्षों की डालियों,पर सो जाना चाहता हूं,
अपने हरे भरे वन में पुनः जाना चाहता हूं,,
अपने मित्रों को फिर से पा जाना चाहता हूं,,

हे मानव, तू क्यों मानवता का पतन कर रहा है,,?
सूक्ष्म,लाचार प्राणियों का निर्मम दामन कर रहा है,,
जल को दूषित, वनों का दहन कर रहा है,,,
अपने भविष्य संग, क्यूं तू गबन कर रहा है,,
मूर्ख तो मेरा नही,स्वयं का पतन कर रहा है,,
*शिवम् शर्मा (देवा)*

©shivam sharma poem

#Flower

poem #Flower

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shivam sharma

*अभी बाकी है*

ठहर जा ये वक्त,, जानता हूं तेरा कहर अभी बाकी है,,
ये तो मात्र चिंगारी है,,
झुलसना शहर अभी बाकी है

महामारी की कद का,,कालाबाजारी की हद का
ये तो मात्र आरंभ है,,
पूरा सफर अभी बाकी है

पीड़ितों की आह का ,लोगो की अति चाह(लालच) का
ये तो मात्र भोर है
पूरा पहर अभी बाकी है

वर्तमान में हो रहा जो अनर्थ है,,
विराम के सभी उपाय व्यर्थ हैं
क्यूंकि हम में गैर जिम्मेदारी का जहर अभी बाकी है

जानते हैं सब ये विकट महामारी है,,,,
आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला तब भी जारी है
हम में जागरूकता आएगी कब?
शायद आनी वो पहर अभी बाकी है,,,

जीवन की नौका को वक्त रहते सम्हाल लें,,
महामारी के समंदर की कई लहर अभी बाकी है

इस काल रात्री का धैर्य से सामना करें,,,
अपनी इच्छा से जीवन जीने की,,
सुनहरी सुबह, दोपहर अभी बाकी है

*शिवम शर्मा (देवा)*

©shivam sharma poem
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shivam sharma

*धैर्य धरो घबराओ नहीं*,,,,

रात है,दिन भी आएगा
जीवन फिर से खिल जायेगा
पुष्प पुनः महक उठेंगे
पक्षी पुनः चहक उठेंगे
खेतो में हरियाली आएगी
चेहरों पे लाली आएगी
पूरे साहस से इस रात्रि को पार करो
इस तरह आंसू बहाओ नही
प्रिय धैर्य धरो घबराओ नहीं

जीवन हेतु ये शिक्षा है
जन जन की अग्नि परीक्षा है
पूरी लगन से इसको पार करो
जीवन की कठिन चुनौती को तुम हृदय से स्वीकार करो
कायरो की भांति तुम आगे इसके झुक जाओ नहीं 
प्रिय धैर्य धरो घबराओ नहीं

दुर्बल पद पर तपते पथ हैं
अंग अंग भय से लथपथ हैं
हर शख्स भय से हताहत है
तुम निडरता से भय को पार करो
साहस से भय का संहार करो
भय से तुम ऐसे डर जाओ नहीं
प्रिय धैर्य धरो घबराओ नहीं

तुम मानव हो ,भयभीत न हो
लड़ो तब तक,जब तक जीत न हो,,,
तुम आज ही अपना कल लिख दो,,,
हर मुश्किल का हल लिख दो
अब उठो और चलते चलो
डर के भय से रुक जाओ नही
प्रिय धैर्य धरो घबराओ नहीं,

*शिवम् शर्मा (देवा)*

©shivam sharma poem

#Smile

poem #Smile

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shivam sharma

*दुश्मन जमाना हो गया*

झूठ की छांव में,घृणा के गांव में,
रिवाजों की बेड़ियां पहनें,अपने हाथ पांव में,, हम नाचते रहे,,,
हम खिलौना बने,वो खेलते रहे,
उनके हर जुल्म को, हम झेलते रहे
बुरा,बुराई के विरुद्ध हाथ उठाना हो गया,
शायद इसीलिए, दुश्मन जमाना हो गया,,,,,

वो रुलाते रहे,हम रोते रहे,
हम सिसकते रहे,सब सोते रहे
उनके हर जुल्म को, हम ढोते रहे,,,
हम भीगते रहे उनकी बरसात में,
आंखें खुली रही, उस काली रात मैं,,,,
बुरा शोक में आंसू बहाना हो गया,,,,
शायद इसीलिए दुश्मन जमाना हो गया,,,

गम के आवेश में,हर लम्हा रहे
सत्य के पथ पर ,हमेशा तन्हा रहे,,,
खोज में सत्य के,हम अकेले चले,,
संग उनके हजारों के मैले चले
बुरा सत्य की खोज में जाना हो गया,,,
शायद इसीलिए दुश्मन जमाना हो गया,,

कमजोर हैं हम,हमारे इरादे नहीं,,
प्रतिज्ञा करते हैं हम ,झूठे वादे नही
झूठे वादे करके,वो खास बन जाते हैं,
सच बोलकर हम उपहास बन जाते हैं,,
सच के दावेदार, झूठ के दास बन जाते हैं,
बुरा सच का झूठ को समझाना हो गया,
शायद इसीलिए दुश्मन जमाना हो गया
  अकेले हैं हम,पर अधूरे नहीं,
सत्य का दामन हमारे पास है,
सत्य की प्रसार हो,बस इसी की आस है,,,,

*शिवम् शर्मा (देवा)*

©shivam sharma #Books
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shivam sharma

*नारी बनाम महामारी.............*

कुछ दरिंदों की आग में,जले क्यों नारी?
ममतामयी,विश्वजननी, मरे क्यों नारी?
यमराज से लड़ने वाली, डरे क्यूं नारी?
चंद्रस्वरूपा,कुटुंब संयोजी ,स्वयं में बिखरे क्यों नारी?

कुछ दरिंदो की चाहत,सम्पूर्ण समाज को नापाक कर देगी,
नारी जलती रही यूं तो,समाज को जलाकर राख कर देगी,,

कोरोना में उतार चढ़ाव होता है,
बलात्कार की महामारी में सिर्फ चढ़ाव होता है,
कोरोना प्रभावित मरते हैं,एक बार
रेप प्रभावित मरते हैं,प्रतिदिन कई बार,
कोरोना प्रभावित स्वास्थ्य हो जाते हैं,
रेप प्रभावित को समाज स्वास्थ्य होने ही नही देता,,
 
कोरोना की पीक है,पर अश्लीलता की क्या पीक होगी?
जब स्त्री के आंसुओ में,समाज डूब जाएगा,,
जब स्त्री की चीत्कार से समाज बहरा हो जायेगा,,
तत्पश्चात शायद स्थिति ठीक होगी,
रेप महामारी की क्या यही पीक होगी?

हमारे समाज में, क्यूं बेबस नारी है,,
विश्व के मंदिर(भारत) में,हवस के पुजारी हैं,,
नारी की सुरक्षा समाज की जिम्मेदारी है,,

*शिवम् शर्मा (देवा)*

©shivam sharma #NationalSimplicityDay
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shivam sharma

*एक समंदर*

एक समंदर,जो विशाल था,
एक समंदर,जो अंतहीन था,
एक समंदर,जो क्षितिज को छूता था,,
वो समंदर,जो अवर्णनीय था,

वही समंदर आज अपने अस्तित्व को खो रहा है,
युगों से जागने वाला सागर,
आज बेनींद सो रहा है,,
जिसका कोई अंत न था,
अपना अंत देख, रो रहा है

अंतहीन सागर ने स्वयं को चार दीवारों में सीमित कर लिया है,
दीवारें मजबूत नहीं,सागर मजबूर है,
क्षितिजचुंबी सागर, तट से भी दूर है,,,

समुंद्र से ईष्या थी जिन्हें,वो उपहास कर रहे हैं,
सागर प्रेमी उसके उत्थान की आस कर  रहे हैं,
ईष्यालू,धूर्त,सागर के अंत हेतु,
निरंतर प्रयास कर रहे हैं,,

वो समंदर पकड़ने हेतु ,बिछाते जाल हैं,
मूर्ख हैं, महान हैं,या फिर बैताल हैं,
विराट समंदर का हृदय भी विशाल है,
उनकी हर नादानी को माफ कर देगा,
अन्यथा,समुंद्र का आंसू ही, उनके अस्तित्व को साफ कर देगा,,,

*शिवम् शर्मा (देवा)*

©shivam sharma poem

#MereKhayaal
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shivam sharma

*ऊंची उड़ान*.......

आशाओं के पर लगाकर,उम्मीदों को पुनः जगाकर,,
डर,असफलता को आंख दिखाकर,,
मन में कर साहस का उत्थान,
भरेंगे हम ऊंची उड़ान, उड़ेंगे हम ऊंची उड़ान,,

धन का अभाव है, तो क्या हुआ?
कागज की नाव है,तो क्या हुआ?
निराशाओं का घेराव है, तो क्या हुआ?
निरंतर प्रयत्न,कर कर्म महान
भरेंगे हम ऊंची उड़ान, उड़ेंगे हम ऊंची उड़ान,,

मुश्किलों को ईंधन बनाकर,दिल में साहस की आग जगाकर,,अंधकार मैं प्रकाश लायेंगे,,
मायूस,उदास चेहरों को फिर से खुशियों से सजाएंगे,,
भ्रष्टाचार में लिप्त हैं जो गालियां,अन्याय की दुर्गंध लिए,,
न्याय वा समानता से उन्हें महकाएंगे,,
आत्मविश्वास का बना सोपान
भरेंगे हम ऊंची उड़ान,उड़ेंगे हम ऊंची उड़ान,,

पर्वतों को लांघकर, समुन्द्र को फांदकर,,
चट्टानों को तोड़कर,एकता का बंधन बांधकर,,
मुश्किलों को पार कर,कुविचारों को मारकर,
भय वा निराशा का चोला,मन  से उतारकर,,
करने हेतु जन कल्याण,,
भरेंगे हम ऊंची उड़ान, उड़ेंगे हम ऊंची उड़ान,,

अनुभव हीन हैं,आयु भी अल्प है,,
क्षितिज को छूना,फिर भी संकल्प है,
आसमां से ऊंचा हमारा संकल्प है,,

*शिवम् शर्मा(देवा)*

©shivam sharma shivpoetry

#MereKhayaal
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