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anushkapandit5606
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anushka pandit

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anushka pandit

मुझे कभी दुनियां मेरे अल्फाजों की मुरीद नहीं लगती 
तेरी नाराजगी इतनी भारी हैं की मनाने की कोई तरकीब
मुकम्मल तरकीब नहीं लगती 
सारे शहर में रंगत है सब खुश है मगर मेरा दिल।नहीं लग रहा 
मुझे तेरे बगैर ये ईद ईद नहीं लगती 
anushka tiwari happy eid

happy eid

22 Love

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anushka pandit

मुझे तुझसे मिलाने की वक्त की हर तरकीब मुबारक
 आज सुबह जिसने सबसे पहले देखा तुझे उसे तेरी दीद मुबारक 
हम तो ख्याल करके गुजरेंगे ये दिन भी 
तेरा दीदार करने वालों को ईद मुबारक 

anushka pandit Eid Mubarak

Eid Mubarak

16 Love

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anushka pandit

उम्मीदों के सब समन्दर सूख गए हैं 
अब मिले कोई एक किनारा जहां अफसोस करके लौट आए
anushka pandit my poem

my poem

13 Love

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anushka pandit

वो लोग भी नजरअंदाज कर गए 
जो नजर ना आने पर उदास हो जाते थे 
anushka pandit my poetry

18 Love

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anushka pandit

खुदखुशी की हिम्मत नही मुझमे  हादसे  होगें एक नजूमी का ये 
वादा है 
मेरा तजुर्बा है कि शर्त के बगैर आज कल सब आधा है 
जिंदगी का बहुत नुकसान‌ किया मैने मगर मै ये जानती हूं
उसे मेरे बिछड़ने का कोई गम नही 

इस बात का दुख मुझे हद से ज्यादा है

,anushka pandit my poem

my poem

26 Love

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anushka pandit

अब कभी‌ जब कही ‌ देर से पहुचती हू 
और कोई जब ताने मारता है 
तो‌ मुझे अपना‌ कही वक्त से पहले पहुचना‌
और‌ तुम्हारा तारीफ करना‌ याद आता है 
anushka pamdit deep word

deep word

24 Love

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anushka pandit

लोगो ने कब मुझे मेरे मुताबिक समझा है 
जिसने भी चाहा शर्त रखी है 
anushka pandit my word

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47 Love

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anushka pandit

नही कहने वालो में गुजारी है अब तक की 
उम्र 
हां कहने वालो पर शक‌ होता है मुझे 
anushka pandi my poetry

my poetry

35 Love

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anushka pandit

सोचा‌ न था कि दिल से चाहने वालो‌ के दिल‌ भर जाएगें‌
नजर मे न‌ आने पर‌ जो हो जाते है उदास उनकी‌‌ नजरो से 
हम उतर जाएगे‌
तुम मेरा नाम भूल‌ गए कैसे 
तुम तो कहते थे‌ तुमसे बिछड़गें तो मर जाएगे 
anushka pandit new poetry

new poetry

35 Love

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anushka pandit

किसी के ‌एक‌ हाथ में‌ कागज था  दुसरे में पैसा था 
मैं तब किसी का भी मतलब नही जानती थी मगर 
मैने कागज वाले हाथ पर हाथ रखा‌ था
ये मेरी पहली‌ ईमानदारी थी
तो उसी‌ शख्श‌ ने वो पैसा मेरे हाथ मे रखकर मुझे चूमा था 
अब कमरे में दरवाजे के पीछे चुराए हुए सिक्के अपनी 
गुल्लक में भरते हुए सोचती हू
कि‌अब काबिलियत है कमाने की 
फिर भी किस खुशी में ये गुनाह करती हूं उस दिन सबसे‌
लड़की थी मैं जब मैने  कागज पर आंखे लगा दी थी 
 जरा जरा सी बात पर झूठ बोलना‌
पानी की बोतल को‌ बार बार बंद करना‌
बार बार खोलना मेरी इस उमर  में करने वाली शैतानी नही‌ है‌
पर मै ये हर रोज भूल जाती हूं‌ जिस दिन‌ मेरी डायरी भरती है 
उन सभी को एक साथ महफूज रखने 
की कशमकश में खाना भूल जाती हूं
उनमें से कोई एक‌ नही‌ मिलती तो  मै अपने आंसू पोछते हुए‌
ये अफसोस करती हूं कि क्यु सभांलती  हूं जिस‌ कांपी पर लिखना सीखा था  जिस दिन उसी‌ शाम से पहले मैने  बहा‌ दी थी 
मै कभी कभी ,,,,,,,,,,,,


 deep word

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