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sanjaykumarmishr4734
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sanjay Kumar Mishra

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sanjay Kumar Mishra

White स्वार्थ के प्रभाव से बचने के लिए ये कुछ सुझाव हैं:

1अपने विचारों और कार्यों का मूल्यांकन करें और देखें कि क्या वे स्वार्थ से प्रेरित हैं। 2  दूसरों की भावनाओं और जरूरतों को समझें और उनका सम्मान करें।
 3 दूसरों के साथ सहानुभूति रखें और उनकी मदद करें।
4 अपने जीवन में निस्वार्थता को अपनाएं और दूसरों की मदद के लिए आगे आएं।
5 सकारात्मक सोच रखें और जीवन को एक बड़े परिप्रेक्ष्य में देखें।
6 समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाएं और दूसरों के लिए कुछ अच्छा करें।
7 आत्म-निर्भरता बढ़ाएं और दूसरों पर निर्भर न रहें।
8 ज्ञान प्राप्त करें और जीवन के मूल्यों को समझें।
इन सुझावों को अपनाकर आप स्वार्थ के प्रभाव से बच सकते हैं और एक बेहतर इंसान बन सकते हैं।

©sanjay Kumar Mishra #Sad_Status  आज का विचार

#Sad_Status आज का विचार

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sanjay Kumar Mishra

White समाज में स्वार्थ के प्रभाव बहुत गहरे और व्यापक हो सकते हैं। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बिंदु हैं:
1. रिश्तों में दरार: स्वार्थी लोग अक्सर अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को नुकसान पहुँचाते हैं, जिससे रिश्तों में दरारें पड़ जाती हैं। 2. विश्वास की कमी: जब लोग स्वार्थी होते हैं, तो दूसरे लोग उन पर विश्वास करना बंद कर देते हैं।
3. समाज में अस्थिरता: स्वार्थी लोग समाज में अस्थिरता और तनाव पैदा कर सकते हैं। 4. नैतिक मूल्यों का पतन: स्वार्थी लोग नैतिक मूल्यों को त्याग देते हैं और अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
5. आत्म-सम्मान की कमी: स्वार्थी लोगों को अक्सर आत्म-सम्मान की कमी होती है, क्योंकि वे दूसरों की भावनाओं और जरूरतों को नजरअंदाज करते हैं।
6. समाज में गरिमा की कमी: स्वार्थी लोग समाज में किसी परिवार की गरिमा को धूमिल कर सकते हैं।
यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने स्वार्थ को नियंत्रित करें और दूसरों की भावनाओं और जरूरतों का सम्मान करें।

©sanjay Kumar Mishra #love_shayari  आज का विचार

#love_shayari आज का विचार

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sanjay Kumar Mishra

White स्वयंवर की परिभाषा है वधू द्वारा स्वयं अपने वर का चयन करना। यह प्राचीन काल से भारतीय समाज में विद्यमान एक प्रथा थी, जिसमें कन्या को अपने वर का चयन करने की पूर्ण स्वतंत्रता थी। पर आधुनिक समाज आज जबरदस्ती विवाह किसी के साथ विवाह करने की प्रथा है । लोग कहते है भईया कोई लड़की बताना बेटे का विवाह करना है । लड़की वाला कहता है लड़का बताना बताने वाला विवाह कर दिया जाता । पर बेटी का चयनित विवाह नहीं किया जाता विरोध किया जाता है । बेटी को अब अधिकार नहीं है अपना वर चुनने का । क्यूं ?

©sanjay Kumar Mishra #love_shayari  'अच्छे विचार'

#love_shayari 'अच्छे विचार'

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sanjay Kumar Mishra

White स्वयंवर की परिभाषा है वधू द्वारा स्वयं अपने वर का चयन करना। यह प्राचीन काल से भारतीय समाज में विद्यमान एक प्रथा थी, जिसमें कन्या को अपने वर का चयन करने की पूर्ण स्वतंत्रता थी। पर आधुनिक समाज आज जबरदस्ती विवाह किसी के साथ विवाह करने की प्रथा है । लोग कहते है भईया कोई लड़की बताना बेटे का विवाह करना है । लड़की वाला कहता है लड़का बताना बताने वाला विवाह कर दिया जाता । पर बेटी को अब अधिकार नहीं है अपना वर चुनने का । क्यूं ?

©sanjay Kumar Mishra #sad_quotes  आज शुभ विचार

#sad_quotes आज शुभ विचार

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sanjay Kumar Mishra

White जब कभी कहीं प्रेम दिखाता है । तो इस समाज के चमचे नाते रिश्ते दार दोनों परिवारों के बीच दीवार उठाने का काम करते है ताकि मिल न पाएं हमने प्रेम नहीं किया तुम प्रेम कैसे कर सकते है। प्रेम विहीन विवाह समाज की परम परा है ताकि शोषण किया जा सके । प्रेम करना भिखमंगो का काम नहीं प्रेम तो कोई राजा ही कर सकता है । जिसने प्रेम का संबंध किया वह राजा है । प्रेम कोई साधारण चीज नहीं जो सबको मिलजाए । प्रेम एक शक्ति है आनंद है ज्ञान है ।

©sanjay Kumar Mishra #love_shayari  सुविचार इन हिंदी

#love_shayari सुविचार इन हिंदी

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sanjay Kumar Mishra

White प्राचीन शास्त्रों एवं वदों में भी नारी को इतना सम्मान नहीं दिया गया है क्यों? नारी को सदियों से ही असहनीय पीड़ा झेलनी पड़ी है। आखिर युगों से हमारा समाज नारी के प्रति क्यों उदासीन रहा है? इसके कई कारण रहे हैं, वेद पुराणों एवं अन्य धार्मिक स्रोतों में आर्यों ने नारी के संबंध में जो नियम निश्चित कर दिए थे वे नियम आज भी प्रचलन में हैं। सती प्रथा नारी उत्पीड़न का सबसे बड़ा उदाहरण है, क्या नारी को अपने पति की मृत्यु के बाद जीने का अधिकार नहीं? लेकिन इस प्रथा को चलाने वाले इस घृणित प्रथा को भी अपना धर्म स्वीकारते थे। क्या धर्म किसी नारी को जिंदा जलाने की इजाजत देता है? अगर देता है तो वो धर्म नहीं तुम्हारा शोषण है। आज सती प्रथा तो नहीं है मगर अन्य अनेक रूपों में नारी का शोषण आज भी विद्यमान है। जब तक लोग धर्म को मानेंगे तब तक वो नारी के प्रति अपनी मानसिकता को त्याग नहीं सकते क्योंकि उनके धर्म में ऐसा ही लिखा है।

©sanjay Kumar Mishra #good_night  अनमोल विचार

#good_night अनमोल विचार

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sanjay Kumar Mishra

White स्वधा शक्ति की प्राप्ति के अनन्तर मनुष्य के भावों का विकास होता है, और वह अपने आपको स्वाहा करने लगता है, त्याग, आत्मोत्सर्ग करता है और स्वार्थ की जगह परमार्थ-त्याग स्थान ले लेता है। जिससे प्रेम किया जाता है उसके लिए त्याग करने की इच्छा बढ़ जाती है। मनुष्य कष्ट उठाने लगता है। तब प्रेम का व्यावहारिक स्वरूप त्याग ही हो जाता है। त्याग, आत्मोत्सर्ग, बलिदान की स्थिति के अनुसार ही प्रेम कर सत्य स्वरूप विकसित होने लगता है। जब मनुष्य अपने आपको पूर्णतया स्वाहा कर देता है तब एक मात्र प्रेम की सत्ता ही सर्वत्र शेष रह जाती है। प्रेम दिव्य तत्व है। इसके परिणाम सदैव दिव्य ही मिलते हैं। किन्तु यह तब जबकि मनुष्य पुरस्कार की कामना से रहित होकर केवल प्रेम के लिए त्याग बलिदान, आत्मोत्सर्ग करता है। प्रेम का पुरस्कार तो स्वतः प्राप्त होता है और वह है आत्मसन्तोष, शान्ति, प्रसन्नता, जीवन में उत्साह आदि। प्रेम तो मनुष्य की चेतना का विकास कर उसे विश्व चेतना में प्रतिष्ठित करता

©sanjay Kumar Mishra #good_night  अच्छे विचारों

#good_night अच्छे विचारों

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sanjay Kumar Mishra

White मां सरस्वती ही बुद्धि देने वाली शक्ति स्वरुपा है ।
जब हमे सद्ब बुद्धि आ जाती है तो विवेक उत्पन्न होता है जो हमें ज्ञान की तरफ ले जाता है । वास्तव में ज्ञान तो अनंत है जो हमें तत्वज्ञानी बनता है तत्वज्ञानी बनने पर हमें आत्मज्ञान का बोध हो जाता है । आत्मज्ञान होने के बाद फिर कुछ जानना शेष नहीं रह जाता🙏 यह पहले दृष्टिकोण था अब दूसरा हां ज्ञान शक्ति है  रावण महाज्ञानी था इसलिए वह महाशक्तिशाली भी था श्स्वयं प्रभु राम इस बात को जानते थे तभी उन्होंने लक्ष्मण को मृत्यु के समय रावण के पास ज्ञान लेने के लिए भेजा था आत्मा की अनेक शक्तियों में ज्ञान प्रमुख शक्ति है।

©sanjay Kumar Mishra #Sad_Status  आज का विचार

#Sad_Status आज का विचार

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sanjay Kumar Mishra

White 
ज्ञान से व्यक्ति अपने समाज में प्रभाव डाल सकता है और बदलाव ला सकता है।
शक्ति से ज्ञान: शक्ति के बिना ज्ञान का उपयोग नहीं किया जा सकता। शक्ति के साथ ज्ञान का उपयोग करके व्यक्ति अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। शक्ति के साथ ज्ञान का उपयोग करके व्यक्ति अपने समाज में बदलाव ला सकता है।शक्ति के साथ ज्ञान का उपयोग करके व्यक्ति अपने अधिकारों की रक्षा कर सकता है।
इस प्रकार, ज्ञान और शक्ति एक दूसरे के पूरक हैं। ज्ञान के साथ शक्ति की प्राप्ति होती है, और शक्ति के साथ ज्ञान की आवश्यकता होती है।

©sanjay Kumar Mishra #sunset_time  'अच्छे विचार'  अच्छे विचारों

#sunset_time 'अच्छे विचार' अच्छे विचारों

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sanjay Kumar Mishra

White जिस कर्म को करते हुए या करने के बाद मन में डर , शंका और लज्जा का अनुभव हो वह पाप है ।
जिस कर्म को करते हुए या करने के बाद मन में उमंग , उत्साह और आनन्द का अनुभव हो वह पुण्य है ।
जिस कर्म को करते हुए या करने के बाद मन मे कोई भाव न आये वह निष्काम होता है । इस प्रकार का कर्म सिर्फ वही कर सकता है जिसने अपने मन को पवित्र कर लिया है ।
इसी सिद्धान्त के आधार पर हिंदु धर्म मे हिंसा का भी स्थान है । जैसे श्रीकृष्ण और रामचन्द्र जी ने कई अधर्मियों को सजादी और मौत के घाट उतारा है । अरिहंत: अधर्म, अधर्मी का हंत करने से बड़ा पुण्य कोई नही है। अधर्मी को दंड दिए बिना छोड़ने का मतलब, वह अधर्म करता रहेगा, और उसके पाप का फल आपको भी मिलेगा।

©sanjay Kumar Mishra #International_Day_Of_Peace  'अच्छे विचार' नये अच्छे विचार

#International_Day_Of_Peace 'अच्छे विचार' नये अच्छे विचार

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