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rajanimundhra9521
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Rajani Mundhra

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Rajani Mundhra

White  वो नयन नयन के दर्पण में इक  मिल जाने की रीति जैसी 
पायल बिछिया गजरा काजल श्रृंगार छंद में लिक्खी जैसी
मैं अरक के अर्चन में चाहूँ ए करवा चौथ के चंदा
के सूरज भोर सिंदुरी हो और रात चाँद की टिकी जैसी।।

©Rajani Mundhra #karwachouth
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Rajani Mundhra

White "तीजणियों की धरती "

सोलह श्रृंगार के अखंड दीप का
कजरी के उस अरज गीत का 
मंगल भोर सिन्दुरी से 
दिनकर बना है साक्ष
तीजणियों की धरती पर फिर
मंद पड़ा है ताप।।

हे!चंद्रमा जल्दी आना
सुनो!चंद्रमा जल्दी आना
बाकी तुम्हारी इच्छा है
राह निहारे कुमकुम बिन्दी
मेरी सतत् प्रतीक्षा है
पर कहीं मेघों का 
कर करतल स्वागत 
मत लेना धीरज नाप
तीजणियों की धरती पर फिर
मंद पड़ा है ताप।।

दर्पण मेरा अचल रहे बस
जैसें तुम्हारा तेज रहे बस
गूँथा प्रतिपल अन्तरशाला में
यहीं हार मनुहार
वर्णित तेरी महिमाओं का
छलकाओं मृदु धार
 गगन नयन को स्वीकृत हो
यह अर्पण अक्षत जाप
तीजणियों की धरती पर फिर
मंद पड़ा है ताप।

©Rajani Mundhra #love_shayari
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Rajani Mundhra

“ममता का दर्पण"                                    
चार किताबें कम पढ़ी थीं माँ ने
मगर,खूब जानती थीं हुनर घर चलाने का ज़रा ज़रा में 
माँ अपनी ही धरती पर आसमान बिछा कर चलती थीं
बाबूजी का स्वाभिमान मान बचाकर चलती थीं ।।

दिनकर के भी पहले उठकर 
घर में भोर उड़हलती थीं
सारे जब सो जाते थे तारें
तब जाकर के ढलती थीं
हमारे उदास चेहरों से माँ 
इतना ज़्यादा डरती थीं
व्रत,उपवास,नेम, धर्म 
 जाने क्या-क्या करती थीं ।।

सबकी सेवा करके सारे 
तीर्थ घुमआया करती थीं
फ़िक्र इतनी थी की सारे चौखट
चुम आया करती थीं 
सुबह-शाम की दीपक करती
 रंगोली में रंग  भरती थीं
ऐसा लगता था पूरे घर में 
वही दिन, वही रात भी करती थीं।।


रिश्तों की जब खुल जाती थी सिलाई
क्या गज़ब तुरपाई करती थीं
हर रोज लड़ाई लड़ती थीं
सफेदी पर रंगीन कढ़ाई करती थीं
जौहरी की भाँती पत्थर में हीरा चमकाया करती थीं
एक धागें में माले सा परिवार सजाया करती थीं
जड़ सी थामकर पेड़-परिवार हरदम छाया करती थीं
खुद को  हमसब पर माँ तुम कितना ज़ाया करती थीं।।

फिर भी ना कभी जताया करती थीं 
 ना कभी पराया करती थीं 
जो जहां में कोई नहीं करता 
माँ वो सब सारे करती थीं
माँ तुमको नमन
तन मन धन अर्पण
माँ जैसी तो माँ ही हैं 
कहता हैं "ममता का दर्पण"।।
रजनी मूंधड़ा

©Rajani Mundhra
  #mothers_day
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Rajani Mundhra

इश्क़ दुशाला ओढ़े बैठें जबतलक फरवरी 
हर रंगों के गुलाब की इक झलक फरवरी
ओस ने आलिंगित किया पारिजात को इसी माह में था 
कुछ ख़ास हुआ था क़ायनात में महक फरवरी

©Rajani Mundhra
  #hibiscussabdariffa
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Rajani Mundhra

जोग से मिले या संजोग से मिले साथ बहुत ही अच्छा है
ओस ने आलिंगित किया पारिजात को थामा हाथ बहुत ही अच्छा है
जीवन के इस मधुर राग का ताल रहे विलम्बित यही हैं शुभकामना
जो बीता जो आएगा सर्दी बरखा ताप  बहुत ही अच्छा है।।

©Rajani Mundhra #Blossom
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Rajani Mundhra

लड़खड़ा जाऊँ तो उठाने को झुकती नहीं क्या 
ए ज़िंदगी झंझावातों से तू थकती नहीं क्या 
अरे रुक जा तू भी तो अपनी ही हैं ना आखिर 
देख मासूम का दुःख भी तेरी दुखती नहीं क्या

©Rajani Mundhra #Path
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Rajani Mundhra

आज बहुतजन बहुत एक्साइटेंड हैं रेडी हैं
कुछ को मिलें हल्के फुल्के कुछ के बहुत ही हैवी हैं
मुझकों रहने दो घर पर ही फ्रेंडो क्योंकि 
हमारा अपना सुंदर सा परमानेंट टेडी है।।

©Rajani Mundhra #happyteddyday
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Rajani Mundhra

थोड़ा कड़वा पन लिये 
मिठास घुली हैं अब भी 
आज़मा लेना अब भी 
जी चाहे ये जब भी

©Rajani Mundhra #Happychocolateday
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Rajani Mundhra

हकीकत है मेरे पास मेरे ही  ख़्वाब की
हो गयी है बात सच वो इश्क़ के किताब की 
 महक रहा है मेरे जीवन का हर इक पल 
अब तारीफ़ क्या करूँ मेरे ही गुलाब की ।।

©Rajani Mundhra #HappyRoseDay
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Rajani Mundhra

Year end 2023 ये जाता हुआ साल
कुछ छोड़े जाता है
जीवन के आँगन में
कुछ तोड़े जाता है
जीवन के आँगन से
और आने वाला साल
उम्मीदों के गमले में बो देता है
कुछ आशाओं के अंकुर
इसबार प्रभु सुनेंगे जरूर 
तो चलो सहेज ले संदूकों में 
कुछ यादों के फूल
बगुलों भगत को भूलकर
चढ़ायें समय की धूल
फिर,बारह महीनों के झूले में
डरते-हँसते , हँसते-डरते
पेंग बढ़ाकर  झूलेंगे
कोशिश कर के फिर से
नई ऊँचाइयों को छू लेंगे
और जी लेंगे ज़िंदादिली से 
फिर एक साल

©Rajani Mundhra #YearEnd
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