गैरों से क्या अपनों से भी अनुबंध कहाँ हमने माना ।
भुले से भी जग जीवन में प्रतिबंध कहाँ हमने माना।।
Udaychaudhary
गैरों से क्या अपनों से भी
Udaychaudhary
यह धर्म धरा न खंडित हो ।
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अखंड भारत
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यह धर्म धरा न खंडित हो भारत मेरा अखण्ड रहे।
नित शॉर्य पराक्रम देवभूमि का तेजपुंज प्रचंड रहे।
आजाद हिंद आजाद वतन आजाद भू भाग चमन।
Udaychaudhary
यह धर्म धरा न खंडित हो ।
Udaychaudhary
वेदना
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संबंधों के बीच कहाँ अब वो भाव समर्पण है।
स्पंदित हो रहा ह्रदय श्रांत क्लांत मेरा मन है।।
रहे नहीं वो जो प्रेम की संजीवनी कुछ बाँट सके।
रहा विनम्र न पुत्र आज जिसको थोड़ी डाँट सके।।
अंतर्मन की पीड़ा के कुछ शाखों को छांँट सके।
Udaychaudhary
हँसते हँसते गम को पीकर जीवन का साथ निभाया है।
दिल में गम के सागर हैं फिर भी मन हर्षाया है।।
Udaychaudhary
हम महाक्रांति के उद्घोषक सिंहनाद करने वाले।
मेरी आवाज दुनिया में, इंक्लाब लाएगा।
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उदय शंकर चौधरी नादान
कोलहंटा पटोरी दरभंगा
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