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ravindrasingh3954
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Ravindra Singh

You tube channel - Ravi Kavi & Sawan From Delhi

https://youtube.com/channel/UCXgzZy3S0F0PhdgIc5UzjqQ

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Ravindra Singh

हे मेरी मां, हे जगत जननी...

हे मेरी मां, हे जगत जननी... #Poetry

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Ravindra Singh

lagta hai bhul gaye ho tum...

lagta hai bhul gaye ho tum... #Poetry

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Ravindra Singh

उसे इश्क की सारी हदें मालूम हैं...

उसे इश्क की सारी हदें मालूम हैं... #Poetry

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Ravindra Singh

करते हो बर्ताव अब ग़ैरों सा…

करते हो बर्ताव अब ग़ैरों सा… #Poetry

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Ravindra Singh

बड़ा नाज़ था कि तुम अपने थे...

बड़ा नाज़ था कि तुम अपने थे... #SAD

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Ravindra Singh

meri kalam....

meri kalam.... #Poetry

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Ravindra Singh

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Ravindra Singh

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Ravindra Singh

क्यूँ छीन लेता है, सुहाग स्त्रियों के…

हे परमात्मा तू तो दया का सागर है ,
फिर बता तू क्यूँ कभी-कभी निर्दयी हो जाता है ।

क्यूँ छीन लेता है, 
सुहाग उन स्त्रियों के,
जिनका जीवन सही से, 
शुरू भी नहीं हुआ होता है ।

अगर नहीं पता तो देख, 
कभी झाँककर उनके सूने दिल में ,
फफक-फफककर, रो रातों को ,
ये कितने तकिये भिगोता है ।

जो उनके अपने हैं ,
वो घर बैठें तो नुख़राने लगते हैं ,
अगर जाये बाहर नौकरी करने,
तो आरोप ग़लत लगाने लगते हैं ।

उनकी चाह सजने-सँवरने की,
मन से जैसे मिट-सी जाती है ,
वो बहुत कुछ रखती हैं अरमान दिल में,
मगर बिन साजन कह नहीं पाती हैं ।

अब वो एक माँ भी हैं ,
तो टूटा हुआ नहीं देख सकती अपने बच्चों के ह्रदय को ,
वो दिलाती हैं दिलासा उन्हें,
पिता नहीं हैं उनके तो क्या हुआ ,
माँ के साथ-साथ ,
वो पिता का भी फ़र्ज़ अदा करेंगी ।

नहीं हटेंगी पीछे कैसे भी हालात हों,
उनकी परवरिश के लिए ,
वो जीवन की हर चुनौती से लड़ेंगी ।

माना तू रखता होगा हिसाब-किताब , 
पिछले जन्म के कर्मों का,
लेकिन कैसे करें यक़ीन तुझ पर,
तू क्यूँ एक जन्म का हिसाब, 
उसी जन्म में नहीं करवाता है ।

हे परमात्मा तू तो दया का सागर है ,
फिर बता तू क्यूँ कभी-कभी निर्दयी हो जाता है ।

©Ravindra Singh #विधवानारी #विधवा ये पंक्तियाँ लिखी है मैंने एक उस स्त्री को ध्यान में रखते हुए जिसकी उम्र लगभग ३५ वर्ष रही होगी, उसकी ५ बेटियाँ है उसके पति की कैंसर से मृत्यु हो गई है कुछ साल पहले , उसने दूसरी शादी नहीं की ये सोचकर कहीं उसकी बेटियों की ज़िंदगी बर्बाद न हो जाए । उसका दर्द बहुत गहरा है मगर वो खुलकर रो भी नहीं सकती सिर्फ़ इस वजह से कि कहीं उसकी बेटियाँ कमजोर न पड़ जाए ।

ऐसी इस संसार में न जाने कितनी औरतें हैं जिनके पति के जाने के बाद घुट-घुट कर अपना सारा जीवन गुज़ारती हैं ।

ये पंक्तियाँ मैंने उपर वाले से शिकायत करते हुए लिखी हैं, इनका शीर्षक है :-

क्यूँ छीन लेता है, सुहाग स्त्रियों के…

#विधवानारी #विधवा ये पंक्तियाँ लिखी है मैंने एक उस स्त्री को ध्यान में रखते हुए जिसकी उम्र लगभग ३५ वर्ष रही होगी, उसकी ५ बेटियाँ है उसके पति की कैंसर से मृत्यु हो गई है कुछ साल पहले , उसने दूसरी शादी नहीं की ये सोचकर कहीं उसकी बेटियों की ज़िंदगी बर्बाद न हो जाए । उसका दर्द बहुत गहरा है मगर वो खुलकर रो भी नहीं सकती सिर्फ़ इस वजह से कि कहीं उसकी बेटियाँ कमजोर न पड़ जाए । ऐसी इस संसार में न जाने कितनी औरतें हैं जिनके पति के जाने के बाद घुट-घुट कर अपना सारा जीवन गुज़ारती हैं । ये पंक्तियाँ मैंने उपर वाले से शिकायत करते हुए लिखी हैं, इनका शीर्षक है :- क्यूँ छीन लेता है, सुहाग स्त्रियों के… #Poetry

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Ravindra Singh

साड़ी में लिपटी हुई स्त्री…

वो साड़ी में लिपटी हुई स्त्री,
मुझे बहुत आकर्षित कर रही थी ,
मुझसे रह न गया ,
मैंने कह ही दिया…

तुम्हारा रूप,
तुम्हारा रंग ,
तुम लिपटी हुई साड़ी में,
कर देती हो मेरी शराफ़त को भंग ।

तुम्हारी पायलों की छनछनाहट ,
तुम्हारी चूड़ियों की खनखनाहट ,
मुझे मजबूर करती है लिखने पर ,
तुम्हारी ये नटखट सी मुस्कराहट ।

तुम्हारे गजरे की महक ,
मुझे खींच लाती तुम्हारी ओर ,
तुम नहीं बोलती हो बेशक,
निगाहें तुम्हारी दिल में मचातीं है शोर ।

मैं नहीं जानता तुम्हें,
तुम अजनबी हो ,
न होकर भी ,
तुम हो मेरी कल्पनाओं के संग ।

तुम्हारा रूप...

©Ravindra Singh #lalishq साड़ी में लिपटी हुई स्त्री…

वो साड़ी में लिपटी हुई स्त्री,
मुझे बहुत आकर्षित कर रही थी ,
मुझसे रह न गया ,
मैंने कह ही दिया…

तुम्हारा रूप,

#lalishq साड़ी में लिपटी हुई स्त्री… वो साड़ी में लिपटी हुई स्त्री, मुझे बहुत आकर्षित कर रही थी , मुझसे रह न गया , मैंने कह ही दिया… तुम्हारा रूप,

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