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adityashrivastav6328
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कुमार आदित्य"लाला"

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कुमार आदित्य"लाला"

(स्वरचित)भावांजलि
अटूट था, अटकलों पर विराम दे गया
अकाट्य सत्य ,हम सबको राम दे गया
अटकती अटपटी बातों को अंजाम देता था
अटारी चढ़ रहे सूरज को वो पैगाम देता था
अतुल्य धैर्य ,दया ,धर्म का प्रतिमान था अटल
असंख्य सख्य को मिला बने बो मान था अटल
(कुमार आदित्य "लाला") नमन

नमन

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कुमार आदित्य"लाला"

(स्वरचित)भावांजलि
अटूट था, अटकलों पर विराम दे गया
अकाट्य सत्य ,हम सबको राम दे गया
अटकती अटपटी बातों को अंजाम देता था
अटारी चढ़ रहे सूरज को वो पैगाम देता था
अतुल्य धैर्य ,दया ,धर्म का प्रतिमान था अटल
असंख्य सख्य को मिला बने बो मान था अटल
(कुमार आदित्य "लाला") नमन

नमन

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कुमार आदित्य"लाला"

” निन्दा” उसी की होती है जो जिन्दा है ,हज़ारों में चुनिंदा है। #coldnightoks
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कुमार आदित्य"लाला"

जो बिल देखकर बिलबिलाने  लगे हैं
जो  तेली  दिखा तिलमिलाने लगे हैं
मुकद्दर   में   इनके  भरे  रंग    सारे... 
चढ़े  थे यह  गर्दिश  इसी के सहारे 
ये दर्ज़ों के  कीड़े दरारों के मालिक 
दीवारों   को   अंदर  से  खाने लगे हैं 
जो बिल देखकर बिलबिलाने  लगे हैं

रचना- कुमार आदित्य लाला जय हो
#mountainday

जय हो #mountainday

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कुमार आदित्य"लाला"

स्वरचित कुमार आदित्य श्रीवास्तव "लाला"
क्यों भारत  को बंद करें हम 
क्यों  बंधक  हो    हिंदुस्तान
क्यों जकड़े हम आर्यवर्त को 
सबल  राष्ट्र  हो  हिंद   महान
वर्षो   वर्ष   रहे   थे ,  बंधक 
फिर   आजादी    आई    थी
प्राण न्यौछावर किए जिन्होंने 
भारत    की     तरुणाई    थी
हिंद  दौड़ता है ,जिस पथ पर
 उस  पथ के  क्यों बाधक हो
स्वार्थ नीति पर  चलने  वाले 
निजहित   के क्यों साधक हो
मंत्र    तुम्हारा  , तंत्र   तुम्हारा 
और    व्यवस्था     तेरी     है 
बिगुल बज उठा रामराज्य का 
बज   उठी   यहां  रणभेरी  है
भारत  के  अंतर  विषयों  पर 
प्रश्न       सुनाई      देते     हैं 
दूर   देश    के   श्वान   सभी 
फिर   एक   दिखाई   देते  हैं
मीठा  गुड़  खाने  से फिर भी 
जिव्ह     तुम्हारी     खट्टी   है 
समझो  शून्य  विवेक  तुम्हारा 
और   आंखों   पर   पट्टी    है
अंतर  कलह   से देश जलेगा
सोचो !   साथ   क्या  जाएगा
फिर  भविष्य में हर आक्रांता
यही      विधि       अपनयेगा
क्यों भारत  को  बंद  करें हम 
क्यों   बंधक    हो   हिंदुस्तान
देख   रहा  है   देश   आपको 
जय जवान और जय किसान कृपया शेयर करें

#SunSet

कृपया शेयर करें #SunSet

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कुमार आदित्य"लाला"

पहली नमस्कार उस परमात्मा को,
जिन्होंने हमें बनाया है,

दूसरी नमस्कार माता पिता को, 
जिन्होंने हमें अपनी गोद में खिलाया है,

तीसरी नमस्कार गुरुओं को, 
जिन्होंने हमको वेद और ज्ञान सिखाया है,

चौथी और सबसे महत्वपूर्ण नमस्कार आपको,
जिन्होंने हमें अपने साथ जुड़े रहने का मौका दिया है ।।

🌺🌸 सुप्रभात 🌸🌺 जय हो
#navratri2020

जय हो #navratri2020

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कुमार आदित्य"लाला"

.     कुकुरमुत्तों  के संरक्षक कुकुर 
    देख   रहे   थे     लुकुर    लुकुर
    कुछ  पैरों  को चाटने में तल्लीन
    कुछ  नाक  पर सलवटें बनाकर
    भौकने   गुर्राने   काटने में  लीन
    कुकुर का कुकुरमुत्तों से अनुबंध
   किसी भी छाती पर उगाने का बंध
    छप्पन इंच सीना कुकुर को भाया
   टांग उठाकर कुकुरमुत्तों को उगाया
लेकिन भाग्य लिखे से कौन बचाय रब जी
आत्मनिर्भर भारत ने बना दी उनकी सब्जी
   कुकरमुत्तों को भी मिल गया सम्मान
     चलाया स्वच्छ भारत अभियान

स्वरचित कुमार आदित्य लाला
१२/७/२०२० #CityEvening
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कुमार आदित्य"लाला"

रचनाकार कुमार आदित्य "लाला"२०/११/२०१९

उस कुम्हार की मिट्टी ने मेरा अस्तित्व  बनाया
काल चक्र पर घूम रहा था उसने  हाँथ   लगया
कुम्भकार ने कसी कसौटी सुख दुख जीवन सार
कंठ सभी का शीतल पय हो दिया कुंभ आकर
धरती अग्नि पवन सलिल आकाश हुए अन्तर्मन
मूर्त अमूर्त हुए मृण मैं यह,दिया मुझे मंजुल तन 
मेरे  अंदर ,मेरा  क्या है  ? चिंतन चित्त   जगाया
क्या से क्या बनगया ,क्या खोया ओर क्या पाया
आदि   हमारा  मिट्टी  ही था, वर्तमान भी  मिट्टी
फूट   गया  तो  मिट्टी मैं हूँ, मिट्टी   मिट्टी   मिट्टी
आत्मबोध से नेत्र खुल गए और, हट गया दम्भ
अन्तर्मन  ताप  घटाकर शीतल हो गया  कुम्भ 
सहज भाव से घट बनकर जो शीतलता अपनाए
लाला  की  लेखनी कहे  वह  घट घट पूजा जाए #RaysOfHope
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कुमार आदित्य"लाला"

बुजदिलों के शहर में थी कायरों की एक गली
बुझ रहे थे दिए घर के ,आंधियां जब थी  चली 
हो गईं बीरान गलियां,शाम भी ढलने लगी
सूर्य जब निकला नहीं तो बात ये खलने लगी
स्खलन में इस कदर ज़रज़र इमारत ढह गई
आंधियां मेरे कान में, कुछ बात ऐसी कह गई
स्तब्ध था उस बात से ,जो बात अब चलने लगी
जवानी को  जला दे , वो आग अब जलने लगी
बिक रहीं थीं बेटियां तुम ,पी रहे थे जाम को
जब मर रहा था शहर तेरा,जी रहे थे नाम को
अंधे बने धृतराष्ट्र पर, जब पुत्र की चलने लगी
तुम भी यूँ ही मिट जाओगे,ये बात अब खलने लगी



कुमार आदित्य लाल नमस्कार

#reading

नमस्कार #reading

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कुमार आदित्य"लाला"

ख़ामोश पहाड़ों की सिफ़त ,लाजवाब है
जो  बात कहोगे , वही उसका जवाब है
रचना-कुमार आदित्य नमस्कार

नमस्कार

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