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hindisahityasaga7365
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HINDI SAHITYA SAGAR

I'm SHAILENDRA RAJPOOT, a poet,writer, artist, painter... खमसार, दहलीज़, दुवारे छोड़ आया हूँ, खलिहान, मड़नी, चौबारे छोड़ आया हूँ, चमकते चंद सिक्कों की खातिर, लाखों रुपहले सितारे छोड़ आया हूँ। -शैलेन्द्र राजपूत https://www.youtube.com/@hindisahityasagar1

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HINDI SAHITYA SAGAR

White मत देख मुझे उन नज़रों से, नज़रे भी शिकायत करती हैं।
मत देख मुझे उन नज़रों से, नज़रे ये बगावत करती हैं।
नज़रे जो बगावत करती हैं, नज़रे वो अदावत करती हैं।
मत देख उन नज़रों से, नज़रे जो मोहब्बत करती हैं।

©HINDI SAHITYA SAGAR #Thinking
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HINDI SAHITYA SAGAR

White मत देख मुझे उन नज़रों से, नज़रे भी शिकायत करती हैं।
मत देख मुझे उन नज़रों से, नज़रे ये बगावत करती हैं।
नज़रे जो बगावत करती हैं, नज़रे वो अदावत करती हैं।
मत देख उन नज़रों से, नज़रे जो मोहब्बत करती हैं।

©HINDI SAHITYA SAGAR #love_shayari
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HINDI SAHITYA SAGAR

White मत देख मुझे उन नज़रों से, नज़रे भी शिकायत करती हैं।
मत देख मुझे उन नज़रों से, नज़रे ये बगावत करती हैं।
नज़रे जो बगावत करती हैं, नज़रे वो अदावत करती हैं।
मत देख उन नज़रों से, नज़रे जो मोहब्बत करती हैं।

©HINDI SAHITYA SAGAR #Thinking
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HINDI SAHITYA SAGAR

White रोज़ सबेरे, 
घर से निकलते,
रोज़गार की तलाश में...

काम मिलेगा,
अनाज आएगा,
रहते इसी आश में..

पथ को तकते,
बूढ़े व बच्चे,
भूख और प्यास में..
               -शैलेन्द्र

©HINDI SAHITYA SAGAR #Thinking
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HINDI SAHITYA SAGAR

White 5सूर्य अस्त की वेला आयी, भरतहि   तबहिं चिता जलवायी।
पवन वेग से हनुमंत आये, सियाराम के वचन सुनाये।।

प्रभु आवनि का सुनि सन्देशा, मन हरषहिं भरतहि विशेषा।
शंकाकुल भरतहि सकुचाने, राम से कम नहिं जब मन माने।।

व्यथा भरत की हनुमत जाने, चरण-धूलि तब लगे दिखाने।
बोले हनुमत बचन सुहाने, पुलकित भरतहि मन हरषाने।।

                  ✍️शैलेन्द्र राजपूत

जय श्रीराम! जय सियाराम!
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌷🌷🌷🌷

©HINDI SAHITYA SAGAR #Thinking
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HINDI SAHITYA SAGAR

White लाल उठ जाओ न अब सुबह हो गयी,
भोर की लालिमा कब की छट गयी।
बाद पछताने से होगा क्या फायदा,
खेत सारा का सारा चिड़िया चुग गयी।
           -शैलेन्द्र राजपूत

©HINDI SAHITYA SAGAR #good_night
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HINDI SAHITYA SAGAR

White रोते हुए को हँसाता बहुत है,
ग़म में दिल मुस्कुराता बहुत है।

©HINDI SAHITYA SAGAR #Thinking
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HINDI SAHITYA SAGAR

White एक बार की बात है बेटा,
दो बेटे थे अपनी माँ के।
तीन बजे वो उठ जाते थे,
चार बजे योगा करते थे।
पाँच बजे तक पढ़ते रहते,
छः बजे कपड़े पहनते,
सात बजे विद्यालय जाते।
आठ बजे तक पढ़ते रहते,
नौ बजे तक पढ़ते रहते,
दस बजे तक पढ़ते रहते,
गयारह बजे वो लंच थे करते।
बारह बजे घर को आते थे।
_शैलेन्द्र राजपूत

©HINDI SAHITYA SAGAR #Sad_Status
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HINDI SAHITYA SAGAR

White कुछ सपने अधूरे जल रहें होंगे,
कुछ सपोले अभी पल रहे होंगे।

दुश्वारियाँ दरख्तों सी बढ़ रहीं हैं,
शायद मेरे ही कर्मफल रहे होंगे।

बच कर निकल आये हैं जलजलों से,
दुश्मन हथेलियाँ मल रहे होंगे।

साथ जब तक रहे जीभर रहे,
कितने ख़ुशनुमा वो पल रहे होंगे।

कोई और आ गया है जिंदगी में उनकी,
शायद अब उसको छल रहे होंगे।

ऊपर से बहुत प्यारा है फल,
अंदर कीड़े पल रहे होंगे।

ज़िंदगी की क़िताब पढ़ा दी उन्हें,
कमजोरियाँ मिरी उगल रहे होंगे।

ज़वाब उनसे क्या मैं चाहूँ,
जो गुस्से में अब भी उबल रहे होंगे।
         ✍️शैलेन्द्र राजपूत

©HINDI SAHITYA SAGAR #Thinking
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HINDI SAHITYA SAGAR

White तेरी याद में दिल तड़पता बहुत है,
मिलने को तुझसे मचलता बहुत है,
ज़माने के डर से बेगाना हुआ दिल,
जुदाई का दर्द यह सहता बहुत है।

©HINDI SAHITYA SAGAR #Thinking
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