hindisahityasaga7365
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HINDI SAHITYA SAGAR

I'm SHAILENDRA RAJPOOT, a poet,writer, artist, painter... खमसार, दहलीज़, दुवारे छोड़ आया हूँ, खलिहान, मड़नी, चौबारे छोड़ आया हूँ, चमकते चंद सिक्कों की खातिर, लाखों रुपहले सितारे छोड़ आया हूँ। -शैलेन्द्र राजपूत https://www.youtube.com/@hindisahityasagar1

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HINDI SAHITYA SAGAR

White चाँद भी निहारता है आज देखो चाँद को,
मन ही मन, सुने है मन के निनाद को।
चाँद को चकोर ज्यों तके है रात-रात को,
चाँद भी निहारता है आज देखो चाँद को।

©HINDI SAHITYA SAGAR #Thinking
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HINDI SAHITYA SAGAR

White दूर बहुत जाना है तुमको, ये जान लो।
मान रखना है माँ का, तुम्हें मान लो।
पाँव रखना न तब तक तुम गाँव में,
ख़ुद को जब तलक न पहचान लो।
                    -शैलेन्द्र राजपूत

©HINDI SAHITYA SAGAR #Thinking
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HINDI SAHITYA SAGAR

White दूर बहुत जाना है तुमको, ये जान लो।
मान रखना है माँ का, तुम्हें मान लो।
पाँव रखना न तब तक तुम गाँव में,
ख़ुद को जब तलक न पहचान लो।
                    -शैलेन्द्र राजपूत

©HINDI SAHITYA SAGAR #Thinking
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HINDI SAHITYA SAGAR

White ज़िंदगी ये तेरी ही अमानत प्रिये,
ज़िंदगी भर तेरे पर ही मरता रहूँ।
तुम कहो तो सही साथ जीभर जिएं, 
या किसी गन्दी नाली में सड़ता रहूँ।
               ✍️शैलेन्द्र राजपूत

©HINDI SAHITYA SAGAR #Thinking
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HINDI SAHITYA SAGAR

White ज़िंदगी ये तेरी ही अमानत प्रिये,
ज़िंदगी भर तेरे पर ही मरता रहूँ।
तुम कहो तो सही साथ जीभर जिएं, 
या किसी गन्दी नाली में सड़ता रहूँ।
               ✍️शैलेन्द्र राजपूत

©HINDI SAHITYA SAGAR #Thinking
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HINDI SAHITYA SAGAR

White मत देख मुझे उन नज़रों से, नज़रे भी शिकायत करती हैं।
मत देख मुझे उन नज़रों से, नज़रे ये बगावत करती हैं।
नज़रे जो बगावत करती हैं, नज़रे वो अदावत करती हैं।
मत देख उन नज़रों से, नज़रे जो मोहब्बत करती हैं।

©HINDI SAHITYA SAGAR #Thinking
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HINDI SAHITYA SAGAR

White मत देख मुझे उन नज़रों से, नज़रे भी शिकायत करती हैं।
मत देख मुझे उन नज़रों से, नज़रे ये बगावत करती हैं।
नज़रे जो बगावत करती हैं, नज़रे वो अदावत करती हैं।
मत देख उन नज़रों से, नज़रे जो मोहब्बत करती हैं।

©HINDI SAHITYA SAGAR #Thinking
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HINDI SAHITYA SAGAR

White दूर बहुत जाना है तुमको, ये जान लो।
मान रखना है माँ का, तुम्हें मान लो।
पाँव रखना न तब तक तुम गाँव में,
ख़ुद को जब तलक न पहचान लो।
                    -शैलेन्द्र राजपूत

©HINDI SAHITYA SAGAR #Thinking
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HINDI SAHITYA SAGAR

White सूर्य अस्त की वेला आयी, भरतहि   तबहिं चिता जलवायी।
पवन वेग से हनुमत आये, सियाराम के वचन सुनाये।।

प्रभु आवनि का सुनि सन्देशा, मन हरषहिं भरतहि विशेषा।
शंकाकुल भरतहि सकुचाने, राम से कम जब मन न माने।।

व्यथा भरत की हनुमत जाने, चरण-धूलि तब लगे दिखाने।
बोले हनुमत बचन सुहाने, पुलकित भरतहि मन हरषाने।।

                  ✍️शैलेन्द्र राजपूत

जय श्रीराम! जय सियाराम!
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌷🌷🌷🌷

©HINDI SAHITYA SAGAR #Thinking
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HINDI SAHITYA SAGAR

White कुछ सपने अधूरे जल रहें होंगे,
कुछ सपोले अभी पल रहे होंगे।

दुश्वारियाँ दरख्तों सी बढ़ रहीं हैं,
शायद मेरे ही कर्मफल रहे होंगे।

बच कर निकल आये हैं जलजलों से,
दुश्मन हथेलियाँ मल रहे होंगे।

साथ जब तक रहे जीभर रहे,
कितने ख़ुशनुमा वो पल रहे होंगे।

कोई और आ गया है जिंदगी में उनकी,
शायद अब उसको छल रहे होंगे।

ऊपर से बहुत प्यारा है फल,
अंदर कीड़े पल रहे होंगे।

ज़िंदगी की क़िताब पढ़ा दी उन्हें,
कमजोरियाँ मिरी उगल रहे होंगे।

ज़वाब उनसे क्या मैं चाहूँ,
जो गुस्से में अब भी उबल रहे होंगे।
         ✍️शैलेन्द्र राजपूत

©HINDI SAHITYA SAGAR #Thinking
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