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mohdakhtarrazaa0347
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Mohd Akhtar Razaa

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Mohd Akhtar Razaa

विरासत  के उसूलों को ऊंचे दरजात ख़ूब देते हैं.
फ़कीरों की बस्ती है मगर  ये ख़ैरात ख़ूब देते हैं .निवाले छीनकर मुंह से ये सरमायेदारों के दलाल
भूखे नौजवानों को भड़कते जज़बात ख़ूब देते हैं hii

hii

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Mohd Akhtar Razaa

यह कारवा नही रूकेगा कागज की दिवारो से,,,, 
हम फिर लौट कर आयेगे कह दो यह गद्दारो से,,, hii

hii

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Mohd Akhtar Razaa

परिंदे रुक मत तुझमे जान बाकी है,
मंजिल दूर है, बहुत उड़ान बाकी है…..

आज या कल तेरी मुट्ठी में होगी दुनिया,
लक्ष्य पर अगर तेरा ध्यान बाकी है….

यूँ ही नहीं मिलती किसी को रब की मेहरबानी,
एक से बढ़कर एक इम्तेहान बाकी है,

जिंदगी की जंग में है ‘हौसला‘ जरुरी,
जीतने के लिए सारा जहान बाकी है। hii

hii

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Mohd Akhtar Razaa

तूफानों से आँख मिलाओ 
सैलाबों पर बार करो 
मल्लाहो का साथ छोड़ो 
तैर के दरिया पार करो hii

hii

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Mohd Akhtar Razaa

मुझे अफसोस है कश्मीर  की मैं तेरा दर्द बाँट ना सका, पर,इतना भी ईमान कमज़ोर नही की तेरी आवाज ना बन सकु 👇👇☺#SaveKashmir hii

hii

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Mohd Akhtar Razaa

मुझसे मेरे होने की पहचान नहीं ले सकते हो,
जब तक रब न चाहे मेरी जान नहीं ले सकते हो !
मेरी सांसों में जलती बारूदें तो भर सकते हो,
लेकिन तुम मुझसे मेरा ईमान नहीं ले सकते हो !
अख्तर रज़ा hii

hii

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Mohd Akhtar Razaa

मजलिस  का दीवाना हूँ अंगार लिखूंगा।
इस देश से प्यार है और  प्यार लिखूंगा।
मूलनिवासियों का सत्कार लिखूंगा।
संघीयो का अत्याचार लिखूंगा।
मीम वालो का जज़्बात लिखूंगा।
जिन्दाबाद मजलिस सौ बार लिखूंगा।
असद ओवैसी जी का देश के प्रति प्यार लिखूंगा।
 दैशवासी हूँ प्रकृति का आभार लिखूंगा।
विरोधियों में दम है तो रोक लो मुझे।
मीम जिन्दाबाद था है यही बार बार लिखूंगा। hii

hii

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Mohd Akhtar Razaa

फलती नहीं है शाख़-ए-सितम इस ज़मीन पर
                तारीख़ जानती है ज़माना गवाह है 
             कुछ कोर-बातिनों की नज़र तंग ही सही 
              ये ज़र की जंग है न ज़मीनों की जंग है 
                ये जंग है बक़ा के उसूलों के वास्ते 
             जो ख़ून हम ने नज़्र दिया है ज़मीन को 
               वो ख़ून है गुलाब के फूलों के वास्ते 
              फूटेगी सुब्ह-ए-अम्न लहू-रंग ही सही 

            गर जंग लाज़मी है तो फिर जंग ही सही hii

hii

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Mohd Akhtar Razaa

जिस सफ़र से होकर तू आज मुकाम पर पहुंचा है,
उसी सफ़र में आज कई दीवाने चल निकले हैं,
जानते नहीं नादान इन्हें जरूरत है इक जिद की
नन्हें कदमो से नापने आसमान चल निकले हैं।!! hii

hii

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Mohd Akhtar Razaa

*"अल्लामा इकबाल" की तकरीबन 80 साल पहले लीखी बात.*
  =*==*==*==*==*==*=
*कल मज़हब पूछकर जिसने बख्श दी थी जान मेरी,*
आज फिरका पूछकर उसने ही ले ली जान मेरी....

*मत क रो रफादेन पर इतनी बहस मुसलमानों,*
नमाज़ तो उनकी भी हो जाती है जिनके हाथ नही होते....

*तुम हाथ बाँधने और हाथ छोड़ने पर बहस में लगे हो,*
*और दुश्मन तुम्हारे हाथ काटने की साजिश में लगे हैै|*

ज़िन्दगी के फरेब में हम ने हजारों सज्दे क़ज़ा कर
डाले....
*हमारे जन्नत के सरदार ने तो तीरों की बरसात में भी नमाज़ क़ज़ा नही की....*

 सजदा-ए-इश्क़ हो तो "इबादत" मे "मज़ा" आता है.....
*खाली "सजदों" मे तो दुनिया ही बसा करती है.....*

लौग कहते हैं के बस "फर्ज़" अदा करना है.....
*एैसा लगता है कोई "क़र्ज़" लिया हो रब से.....*

तेरे "सजदे" कहीं तुझे "काफ़िर ना कर दें.....
*तू झुकता कहीं और है और "सोचता" कहीं और है.....*

कोई जन्नत का तालिब है तो कोई ग़म से परेशान है.....
*"ज़रूरत" सज्दा करवाती है "इबादत" कौन करता है.....*

क्या हुआ तेरे माथे पर है तो "सजदों" के निशान.....
*कोई ऐसा सजदा भी कर जो छोड़ जाए ज़मीन पर निशान.....*

*फिर आज हक़ के लिए जान फ़िदा करे कोई.....*
"वफा" भी झूम उठे यूँ वफ़ा करे कोई.....

*नमाज़ 1400 सालों से इंतेज़ार में है.....*
*कि मुझे "सहाबाओ" की तरह अदा करे कोई.....*

एक ख़ुदा ही है जो सजदों में मान जाता है.....
*वरना ये इंसान तो जान लेकर भी राज़ी नही होते.....*

देदी अज़ान मस्जिदो में "हय्या अलस्सलाह".....
*ओर लिख दिया बाहर बोर्ड पर अंदर ना आए फलां और फलां.....*

ख़ोफ होता है शौतान को भी आज के मुसलमान को देखकर,
*नमाज़ भी पढ़ता है तो मस्जिद का नाम देखकर.*

मुसलमानों के हर फिरके ने एक दूसरे को काफ़िर कहा,
*एक काफ़िर ही है जो उसने हम सबको मुसलमान कहा.* hii

hii

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