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rekhabhatia9849
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RJ Rekha Bhatia

कविता, गज़ल , शायरी RJ at Jaipur Radio

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RJ Rekha Bhatia

ऐ ज़िंदगी ! 
तू कयामत कहर सी है
कभी आब-ए-हयात
कभी तू ज़हर सी है

©RJ Rekha Bhatia #sadquotes ऐ ज़िंदगी

#sadquotes ऐ ज़िंदगी #कविता

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RJ Rekha Bhatia

याद को फुर्सतों की ज़रूरत नहीं

©RJ Rekha Bhatia याद को फुर्सतों की ज़रूरत नहीं

याद को फुर्सतों की ज़रूरत नहीं #शायरी

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RJ Rekha Bhatia

Happy Rose day

©RJ  Rekha Bhatia #Rose day#
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RJ Rekha Bhatia

ज़िंदगी में ज़िंदगी भर हम स्वयं को मूर्ख बनाते रहते है।
दूसरों के प्रति हम ज़िम्मेदार रहते है,। 
फिर चाहे वो बॉस हो, परिजन हों परिचित हों, 
रिश्तेदार हो,या यार– दोस्त हों या x-y-z कोई भी, 
हम उनके प्रति अपने दायित्वों को जितनी अच्छी तरह से निभाते है
 उतनी अच्छी तरह से हम खुद के प्रति कभी ज़िम्मेदार नहीं बनते,
 अगर बन भी जाए कोई तो लोग उसे सेल्फिश, स्वार्थी कहते हैं
जबकि ऐसे लोगों को खुश करने में हम अपनी पूरी ज़िंदगी लगा देते हैं 
जो हमसे, हमारे उनके लिए किए गए कार्यों से कभी खुश नहीं होते।


तो बताइए कौन है सबसे बड़ा मूर्ख (फूल)?

So dear friends
ना तो फूल बनाइए
ना ही फूल बनिए
आप तो बस बस कूल बनिए 
क्यूंकि उसकी ज़्यादा ज़रूरत है हम सभी को।

।RJ रेखा भाटिया (जयपुर रेडियो)

©RJ  Rekha Bhatia हम स्वयं को मुर्ख बनाते हैं

#aprilfools

हम स्वयं को मुर्ख बनाते हैं #aprilfools #ज़िन्दगी

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RJ Rekha Bhatia

#राजस्थानदिवस#
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RJ Rekha Bhatia

#हर हर्फ में तेरी ही बातें#

#हर हर्फ में तेरी ही बातें# #शायरी

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RJ Rekha Bhatia

# नया साल कुछ यूँ आये......

# नया साल कुछ यूँ आये......

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RJ Rekha Bhatia

कुछ तो सोचा होगा ऊपर वाले ने 
रात जो लिखी नसीब में
तो रोशन किऐ चाँद-सितारे उसने
कुछ तो सोचा हैं ऊपर वाले ने
जो खड़े किऐ मुसीबतों के पहाड़ 
मगर इनसे भी ऊंची कर दी 
हिम्मतों-हौंसलों की उड़ानें  उसने
मन की पतवार को 
मज़बूती से थामे रहिये 
जो भंवर बनाये उसने 
तो बनाये हैं किनारे भी उसने
कुछ तो सोचा होगा ऊपर वाले ने 
और उसने अच्छा सोचा हैं 
उस पर भरोसा रखिये ........ 
        Rekha Bhatia #flood
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RJ Rekha Bhatia

जिंदगी के दर्द को कुछ रोज़ भुला देते हैं 

सुकुन की चादर तले ज़ख्मों को सुला देते हैं 

क्या भरोसा इस दौर में जिंदगी का दोस्तों  
 
तुम उधर से दो सदा, हम इधर से बुला लेते हैं

         Rekha Bhatia

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RJ Rekha Bhatia

कितनी परछाईयां उभरती हैं 

दिल के आईने में 

माज़ी की नदिया उतरती हैं

जब सहरा-ए-सीने में

यूं कहो तो यादें दर्द भरती हैं

लुत्फ भी लाये जीने में

हर मौसम पर भारी पड़ती हैं

याद सावन के महीने में

दिल में छुपा यूं कोई तुझे रखती हैं 

रखे हो गुलाब ज्यूं सफ़ीने में

     Rekha Bhatia कितनी परछाईयां

कितनी परछाईयां

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