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navdeeppanchalsh4468
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Navdeep Panchal "Shubh"

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Navdeep Panchal "Shubh"

सपने छूट गये है सारे यार तुम्हारे चक्कर मे
खुद को पाये है बेचारे यार तुम्हारे चक्कर मे

पानी पानी चिल्लाता है नाव का तेरा मझधारी
दरिया ऐसा पहला देखा यार तुम्हारे चक्कर मे
 
कितनी गाली कितने चाँटे दे डाले है इस दिल को
दिन ऐसे भी कुछ देखे हैं यार तुम्हारे चक्कर मे

बगल के अंकल उठके सुबह हमको ये है बतलाये
 क्या क्या सोते रोते है हम यार तुम्हारे चक्कर मे

रोशन करने वाला मुझको आंखे गिरवी रख आया 
नज़राना वो देख ना पाया यार तुम्हारे चक्कर मे

सोचे तो हंस देते है हम बीते गुज़रे किस्सो पे
किन किन हाथो पत्थर खाया यार तुम्हारे चक्कर मे

लिखते लिखते अंदर का कुछ भी ना खाली कर पाया
खुद को कितना मरते देखा यार तुम्हारे चक्कर मे

इश्क़ दिलो की हिस्सेदारी आपसी मसअला होता है
दुनियादारी रिश्ते नाते यार तुम्हारे चक्कर मे

- नवदीप पांचाल शुभ

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Navdeep Panchal "Shubh"

इश्क़ का हाथ लिये चल रहे है 
मौत को साथ लिये चल रहे है 

आग ही आग बस मिली हमको
आग से आज में हम ढल रहे है

आंख में चुभ रही माला टोपी
नफरतो के शहर में पल रहे है

जानते हैं वो जान लेंगी मगर
उंगलिया पत्तियों पे मल रहे है

घर अभी तक नही मिला उनको
बस्तियां बस्तियां निगल रहे है

जानकर आज का नया मौसम
रोग हर रोज़ कई पल रहे है

चूमकर होंठ मेरा कहने लगा
आज भी नींद में ही मिल रहे है ?

आख़िरी आस मेरी टूट गई
हाथ से आप भी निकल रहे है

  - नवदीप पांचाल शुभ

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Navdeep Panchal "Shubh"

नाम किन किनके मेरे सर रहे है 

ये अब जो सोच लें तो डर रहे है

जिन्होंने ज़ख्म ज़ख्म कर छोड़ा

उन्हीं के शेर मरहम कर रहे है

- Navdeep Panchal Shubh #confused
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Navdeep Panchal "Shubh"

मेरी नींदों मे आना चाहती वो
मुझे अपना बनाना चाहती वो

नये शायर नये लड़के अभी हम
तभी चक्कर चलाना चाहती वो

ये पेपर में नकल देने के बदले
मेरे दिल को चुराना चाहती वो

लिखी थी शायरी जो मैंने उसपे 
मैं दिख जाऊ तो गाना चाहती वो

मेरा मन बात करने का बहुत पर
मुझे कब कुछ बताना चाहती वो

दरख्तों पर सजाकर नाम मेरा
कलाकारी छुपाना चाहती वो

हमारे शेर जो लिक्खे गए है
चाँद के पार पाना चाहती वो

मेरी पहचान खोई सी हुई है
गीत पर गीत आना चाहती वो

- Navdeep Panchal ' Shubh'

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Navdeep Panchal "Shubh"

दुनिया बोले नाचीज़ है हम
तू पहने तो ताबीज़ है हम

क्या कोई दिल तक पहुँचेगा
आगे तेरी दहलीज़ है हम

मेरी मानो तुम इश्क़ करो
इश्क़ के लायक चीज़ है हम

- नवदीप पांचाल शुभ #Sunrise
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Navdeep Panchal "Shubh"

इक थी सूरत आकर बैठी
सामने मेरी आँखों के

खुशबू उसकी क्या कहने हये
होश उड़ा दे लाखो के

इक इक लम्हा उसका मेरे
कानो में यू बतियाये

कहता मुझको गीत बनाले
बस तेरा जो कहलाये

पागल जैसा एक अदा को
पल पल बहता रहता हूँ

सूखे दरिये के साहिल में
काजल भरता रहता हूँ

- नवदीप पांचाल शुभ

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Navdeep Panchal "Shubh"

इक थी सूरत आकर बैठी
सामने मेरी आँखों के

खुशबू उसकी क्या कहने हये
होश उड़ा दे लाखो के

इक इक लम्हा उसका मेरे
कानो में यू बतियाये

कहता मुझको गीत बनाले
बस तेरा जो कहलाये

पागल जैसा उसके ख़ातिर
पल पल बहता रहता हूँ

सूखे दरिये के साहिल में
काजल भरता रहता हूँ

- नवदीप पांचाल शुभ

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Navdeep Panchal "Shubh"

हम जैसो कि ऐसी आदत होती है
आदत जैसी अपनी हालत होती है

जब तक ढूंढे ना मिलते है हम हमको
सबके मुँह पर अपनी लानत होती है

अपनी बातें कौन कहाँ सुन पाता है
कब किसको कोई भी आहट होती है

दुनिया वाले काम बताया करते है
हमको ज़ख्मो से ही राहत होती है

मरते ही रहते है हरदम खाने को
गाली जैसे सबकी अमृत होती है

सबसे ना ना ना ना करते रहते है
सबका हिस्सा अपनी चाहत होती है

जी कोई कह दे तो शर्मा जाते है
आखिर सबको प्यारी इज्ज़त होती है

कुछ पाना कुछ खोना अच्छा लगता है
पागल की फ़ितरत मस्ताना होती है

मेरा ये चुप रहना इसको सब समझो
मेरा कुछ कह जाना आफत होती है

बाक़ी के हिस्से बस दुनियादारी है
उनके हिस्से रोज़ इबादत होती है

अच्छा पड़ना फिर लिखना , बो बोले थे
उनकी बातें 'शुभ' की ताक़त होती है

- Navdeep Panchal 'Shubh'

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Navdeep Panchal "Shubh"

कौन ?
क्या ?
कैसा ? कहा ?
किसका ? किसलिए ? कबसे ? क्यों ?

नही नही 
कुछ नही
कुछ भी नही

Short Story 
- Navdeep Panchal 'Shubh'

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Navdeep Panchal "Shubh"

बोल के लब आज़ाद है तेरे 

बोल ज़ुबाँ अब तक तेरी है

- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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