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premsukh6843
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Premsukh

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Premsukh

इतिहास के पन्ने इतिहास के पन्ने

©Premsukh 
  इतिहास के पन्ने

इतिहास के पन्ने #पौराणिककथा

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Premsukh

आजकल गरीब गुरबा फ्रिज का पानी पीता है और अमीर आदमी घड़े का पानी पीता है। 
*अमीर आदमी गुड खाता है और गरीब आदमी चीनी  खाता है। 
*कोका कोला पेप्सी पीना आजकल अनपढ़ता की निशानी समझा जाता है और लस्सी पीने वाले को मॉडर्न समझा जाने लगा है।
*जिसके पास मोबाइल नहीं उसको हाई स्टेटस का समझा जाता है। 
*इंग्लिश अब गरीबों की भाषा हो गई है संस्कृत को और पढ़े लिखो की भाषा समझी जाती है। जिसको  संस्कृत आती है उसकी  समाज में बड़ी इज्जत हो गई है। 
*जो वेदों का एकाध श्लोक भी जानता है उसको लोग बड़ा ज्ञानी समझते हैं।
* एलोपैथी की दवाई आजकल गरीब गुरबा लेता है आयुर्वेदिक औषधि लेना आजकल पढ़ा-लिखा होने की निशानी समझी जाती है।
*शुद्ध हिंदी जिसमें कोई आंगल उर्दू  का शब्द ना हो उसको सुनकर लोग वाह-वाह करते हैं

©Premsukh 
  #titliyan अमीर @@@ गरीब

#titliyan अमीर @@@ गरीब #समाज

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Premsukh

💖🔥🔥🔥👍

💖🔥🔥🔥👍 #विचार

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Premsukh

आजकल शहरो में  बाइक की सीट पर या कार के बोनट पर केक काटने की परंपरा शुरू हुई है। 
इसमें प्रमुख तौर पर आयोजक मंडली के सभी सदस्य बेरोजगार होते हैं। 38-40 लोगों का ग्रुप होता है जो हर तीसरे दिन किसी न किसी बगिया या रोड़ के किनारे केक काटते मिल जाते है। इनमे हथियार दिखाने का नशा प्रमोट करने का नया चलन शुरू हुआ है। 

कई जगह तो तलवार और तमंचे से केक काटने के रिवाज चले है। मां बाप भांग खाकर सो रहे है। औलाद जिंदगी मे बर्बादी का धनिया बो रहा है।

और हाँ केक खाने के बजाय मुँह में लगा दिया जाता है ।
केक भी सोचता होगा मैं किसलिए बना हूं ।।

©Premsukh 
  #Chhuan हमारे संस्कार❤️🌷💐

#Chhuan हमारे संस्कार❤️🌷💐 #समाज

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राजस्थान का  रेगीस्तान

©Premsukh 
  रेगीस्तान

रेगीस्तान #जानकारी

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Premsukh

शेखावतों का इतिहास
शेखावत कछवाहा राजपूतों का एक उप-कबीला है जो मुख्य रूप से भारत के राजस्थान में पाया जाता है। शेखावत वंश महान राजपूत योद्धा महाराव शेखा जी के वंशज होने का दावा करता है। राजस्थान में जयपुर के कछवाहा के सभी उपकुलों में शेखावत सबसे प्रमुख थे । शेखावत शेखावाटी के शासक थे।

शेखावत राजपूतों ने शेखावाटी क्षेत्र पर 500 वर्षों से अधिक समय तक शासन किया। जयपुर के कछवाहा राजवंश के सभी उप-कुलों में शेखावत सबसे प्रमुख हैं । सर यदुनाथ सरकार ने अपनी पुस्तक फॉल ऑफ द मुगल एम्पायर में लिखा है कि शेखावत जयपुर के कछवाहा राजवंश के उप-कुलों में सबसे बहादुर थे।

निम्नलिखित शेखावत वंश की एक संक्षिप्त ऐतिहासिक और वंशावली रूपरेखा है, जो जयपुर के कछवा शासक वंश की 65 शाखाओं में से एक है, और सभी कछवाओं में सबसे प्रमुख है, और महान राजपूत योद्धा, राव शेखाजी के वंशज हैं। प्रारंभिक शासकों ने अपने अधिपतियों, आमेर के शासकों के प्रति निष्ठा व्यक्त की, लेकिन राव शेखाजी ने 1471 में खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया और अपने वंशजों के लिए एक अलग रियासत की स्थापना की। शेखावतों ने 500 वर्षों से अधिक समय तक शेखावाटी क्षेत्र पर शासन किया और उन्हें "ताज़ीमी सरदार" की वंशानुगत उपाधि से सम्मानित किया जाता है, जिसे जयपुर के महाराजा महाराजा अपनी सीट से उठकर प्राप्त करते हैं। शेखावत शासकों ने शेखावाटी क्षेत्र [शेखावत शासकों की भूमि] पर अपने शासन के दौरान 50 से अधिक किले और महल बनवाए, जो सबसे बड़ा निज़ामत था।जयपुर राज्य के अंतर्गत [जिला], जिसके लगभग पूरे हिस्से पर शेखावतों का कब्जा है, कर्नल जेसी ब्रुक ने अपनी पुस्तक, पॉलिटिकल हिस्ट्री ऑफ इंडिया में लिखा है कि "अश्व-सेना की भर्ती के लिए भारत में शेखावाटी के बराबर कोई क्षेत्र नहीं है।" ।” शेखावत भारतीय सेना में एक बहुत ही सामान्य उपनाम है। कबीले के कई सदस्यों ने वीरता पुरस्कार जीते हैं जिनमें परमवीर चक्र (युद्ध के समय बहादुरी के लिए सर्वोच्च भारतीय पुरस्कार), महावीर चक्र आदि शामिल हैं।

शेखावतों के उपकुल
भोजराज जी का
झाझर की स्थापना राजा टोडरमल के बड़े पुत्र कुँवर पुरूषोत्तमदास ने की थी।
गुढ़ागौड़जी, ठाकुर झुंझार सिंह द्वारा स्थापित।
चिराना, एक शानदार महल का स्थल।
( ठाकुर सलेहदी सिंह के वंशज 1687-1767 ): केध, जिसकी स्थापना ठाकुर जगराम सिंह के पुत्र कुँवर गोपाल सिंह ने की थी।
नंगली की स्थापना ठाकुर सलेधी सिंह ने की थी।
खिरोड की स्थापना सलेहदी सिंह के पुत्रों कुँवर अमर सिंह और कुँवर राम सिंह ने की थी, उन्होंने संवत 1825 में एक महल बनवाया था ।
मूनवारी [मोहनवारी], जिसकी स्थापना ठाकुर सलेधी सिंह ने की थी।
जाखल
चापोली
गुरा
पौंख आदि।

 

वंश: सूर्यवंशी
से उतरा: ढूंढाड़, आमेर/जयपुर
का उप-कबीला: कछवाहा/कछवाहा/कुशवाहा।
शाखाएँ: भोजराज जी का, गिरधर जी का, जगमाल जी का, अचलदास जी का, राव जी का, लाडखानी, भैरो जी का, टकनेत, रत्नावत, खेजडोलिया, मिलकपुरिया, तेजसी का, जगमालजी का, सहसमलजी का, लूणकरणजी का, उग्रसेनजी का, सांवंलदासजी का, गोपालजी का, चंदापोता, परसुरामजी का, ताजखानी, हरिरामजी का आदि।
में शासन किया: शेखावाटी
रियासतें: शाहपुरा (शेखावतों की प्रधान सीट)
खेतड़ी
डूंडलोद
नवलगढ़
मुकंदगढ़
मंडावा (पाना-1), (पाना-2)
महनसर
बिसाऊ
अलसीसर (पाना-1), (पाना-2)
मलसीसर
मंड्रेला
चौकरी
हीरवा और सिगरा
सूरजगढ़
उदयपुरवाटी
परसुरामपुरा
ताेन सीकर
कासली श्यामगढ़ जाहोता खंडेला-बारा पाना और छोटा पाना दांता खुड़ खाचरियावास खाटू पचार मुंडरू सैंसवास चिरा

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  #Chhuan  💪❤️💕 शेखावत राजपूतों का इतिहास,🌷💐

#Chhuan 💪❤️💕 शेखावत राजपूतों का इतिहास,🌷💐 #Article #History #writer #viral #page #Rajput #Rajputana #historyfacts #पौराणिककथा #histst #कछवाहा

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Premsukh

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  💪💪पिता💪💪🌷

💪💪पिता💪💪🌷 #समाज

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Premsukh

क्या आप जानते हैं कि भारत में एक AC ट्रेन की शुरुआत 1 सितंबर 1928 को हुई थी जिसका नाम था- पंजाब मेल और 1934 में इस ट्रेन में AC कोच जोड़े गए और इसका नाम फ्रंटियर मेल रख दिया गया. 

उस समय में ट्रेनों को फर्स्ट और सेकेंड क्लास में बांटा गया था, फर्स्ट क्लास में केवल अंग्रेजों को सफर करने की अनुमति थी। इसी कारण इसे ठंडा रखने के लिए AC बोगी में बदला गया था। अंग्रेजों ने अपनी सुविधा के लिए ये सिस्टम बनाया था, जिसमें AC की जगह पर बर्फ की सिल्लियों का इस्तेमाल किया जाता था, जो फ्लोर के नीचे रखी जाती थी.

यह ट्रेन 1 सितंबर, 1928 को मुंबई के बैलार्ड पियर स्टेशन से दिल्ली, बठिंडा, फिरोजपुर और लाहौर होते हुए पेशावर (अब पाकिस्तान में) तक शुरू हुई थी, लेकिन मार्च 1930 में इसे सहारनपुर, अंबाला , अमृतसर और लाहौर की ओर मोड़ दिया गया। इसमें पहले बर्फ की सिल्लियों का इस्तेमाल करके बोगी को ठंडा रखने का काम नहीं किया जाता था, लेकिन बाद इसमें AC वाला सिस्टम जोड़ दिया गया. इस ट्रेन का नाम फ्रंटियर मेल था, जो बाद यानी 1996 में गोल्डन टेम्पल मेल के नाम से संचालित की जाने लगी।

फ्रंटियर मेल को ब्रिटीश काल की सबसे लग्जरी ट्रेनों में से एक कहा जाता था। पहले यह भाप से 60 किमी की रफ्तार से चलती थी, लेकिन अब इसे इलेक्ट्रिक से चलाया जाता है. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, यह ट्रेन 1,893 किमी की दूरी तय करती है, 35 रेलवे स्टेशनों पर रुकती है और अपने 24 डिब्बों में लगभग 1,300 यात्रियों को ले जाती है। यह टेलीग्राम ले जाने और लेकर आने के लिए भी चलाई जाती थी. इस ट्रेन को करीब 95 साल हो चुके हैं।

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  भारत में रेलवे का विकास

भारत में रेलवे का विकास #समाज

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