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divineyogi3355
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Acharaya Suhridananda

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Acharaya Suhridananda

असतो मा सद्गमय ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत रोग्मा अमृतं गमय ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ॥

मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो, मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, मुझे मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चलो।

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं 
इस दिन हम यह प्रतिज्ञा करें कि हमारा जीवन अज्ञान ओर अंधकार से प्रकाश की तरफ जाए और हम मृत्यु से अमृत को प्राप्त करें।

©Acharaya Suhridananda #Diwali
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Acharaya Suhridananda

स्वसिद्धान्तव्यवस्थासु द्वैतिनो निश्चिता दृढम् ।
 परस्परं विरुध्यन्ते तैरयं न विरुध्यते ।।१७।।

(कपिल आदि द्वैतवादी) स्वरचित सिद्धान्तों की व्याख्या में अनुरक्त एवं दृढग्रही होने के कारण विरोध करते हैं। किन्तु यह (अद्वैतात्मदर्शन वैदिक सिद्धान्त सबसे अभिन्न होने के कारण) उनसे विरोध नहीं करता।।१७।।

और कुछ लोग भक्ति के नाम में शंकराचार्य को निंदा करते हैं। ओर मायावदी कहते हैं !लह लोग शास्त्र ज्ञान से हीन है! मन कल्पित भक्ति करते हैं! केवल अपने शिष्य को भक्ति के नाम पर डराते है!

©Acharaya Suhridananda spiritual

#lunar
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Acharaya Suhridananda

" या "वेदबाह्याः स्मृतयो याश्च काश्च 'कुदृष्टयः । 
सर्वास्ता निष्फलाः "प्रेत्य 'तमोमूला हि ताः स्मृताः""

जो लोग वेद शास्त्र एवं स्मृति विचार को छोड़ कर के अपना मन से ऐसे ऐसे आध्यात्मिक  मार्ग को चुनते हैं, उनके पर लोक ओर इस लोक मे दोन नष्ट होते हैं|एवं को नरक  को प्राप्त होते हैं।

©Acharaya Suhridananda spiritual
#lunar
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Acharaya Suhridananda

आदित्यस्य गतागतैरहरहः संक्षीयते जीवितम्
, व्यापारैर्बहुकार्यभारगुरुभिः कालो न विज्ञायते । दृष्ट्वा जन्मजराविपत्तिमरणं त्रासश्च नोत्पद्यते,
पीत्वा मोहमयीं प्रमादमदिरामुन्मत्तभूतं जगत् ॥
 
रोज सूर्योदय, सूर्यास्त होता है। समय काम-धन्धे में बीता जा रहा है। कब समय बीत गया पता नहीं चलता। जन्म, जरा, विपत्ति, मरण देखकर त्रास उत्पन्न नहीं होता। अरे भाई, तुम किसी नशेमें चूर हो क्या ?

©Acharaya Suhridananda #spiritual

#Teachersday
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Acharaya Suhridananda

देवर्षिपितृभूतानि ज्ञातीन् बन्धूंश्च भागिनः
असंविभज्य चात्मानं यक्षवित्तः पतत्यधः ॥ २४ ॥
           — भिक्षुगीता, महाभारत

जो मनुष्य देवता, ऋषि, पितर, प्राणी, जाति- भाई, कुटुम्बी और धनके दूसरे भागीदारोंको उनका भाग देकर सन्तुष्ट नहीं रखता और न स्वयं ही उसका उपभोग करता है, वह यक्षके समान धनकी रखवाली करनेवाला कृपण तो अवश्य ही अधोगतिको प्राप्त होता है ॥ २४ ॥

©Acharaya Suhridananda #spiritual 
#Travel
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Acharaya Suhridananda

पैसा कमानेमें जितनी अकल लगायी जाती है. उसका सौवाँ है, हिस्सा अकल यदि ईश्वरमें लगा दी जाये तो ईश्वर दीखने लग जाये। यह चमड़ीको चिकना रखनेके लिए कितनी खोज की जाती है। बाल न पकें- इसके लिए कितना अनुसन्धान किया जाता है। अपने शरीरको रँगनेके लिए, कपड़ा पहननेके लिए या सजाने-सँवारनेके लिए जितना प्रेम किया जाता है, उतना ही प्रेम अगर ईश्वरसे किया जाय, तो ईश्वर मिल सकता है। ईश्वरका मिलना मुश्किल नहीं है।

©Acharaya Suhridananda #God 


#SunSet
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Acharaya Suhridananda

प्राप्तव्यमर्थं लभते मनुष्यो 
देवोऽपि तं वारयितुं न शक्तः 
अतो न शोचामि न विस्मयो मे
 यदस्मदीयं न तु तत्परेषाम् ॥
मनुष्य अपने प्रारब्धका फल प्राप्त करता है। देवता भी उस फलभोगको रोकनेमें समर्थ नहीं हैं।
इसीलिये मैं कर्मफलके विषयमें चिन्ता नहीं करता हूँ

©Acharaya Suhridananda #Knowledge 

#Teachersday
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Acharaya Suhridananda

सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते । मृजया रक्ष्यते पात्रं कुलं शीलेन रक्ष्यते

सत्यके पालनसे धर्मकी रक्षा होती है। सदा अभ्यास करनेसे विद्याकी रक्षा होती है। मार्जनके द्वारा पात्रकी रक्षा होती है और शीलसे कुलकी रक्षा होती है

©Divine Yogi #quotation 
#Friend


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