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anupmabajpai9634
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Anupma Bajpai

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Anupma Bajpai

श्री राम दूताय नमः।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

©Anupma Bajpai
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Anupma Bajpai

एक ब्रह्मण ने भीख मांग कर BHU बनाया और उसी BHU से पढ़कर निकले हुए दलित बडे़ रौब से कहते हैं!
ब्रह्मणों ने देश के लिए किया क्या है?

©Anupma Bajpai #Wochaand
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Anupma Bajpai

khubsurat

©Anupma Bajpai
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Anupma Bajpai

यार ने पलकें झुका कर जब इशारा कर दिया ।
मयक़दे की क़ैद से हमने किनारा कर दिया ।।
    इक तुम्हारा देखना हमको अलग अंदाज़ से
   लो हमेशा के लिए हमको तुम्हारा कर दिया ।।
मेहरबानियां मुहब्बत और ये ज़िन्दादिली
फर्श से हमको उठा कर इक सितारा कर दिया ।।
       क्या कहें की मुफ़लिसी में जी रहे थे किस क़दर
        चंद यादों ने ही जीने का सहारा कर दिया ।।
शान महलों के थे तुम और मैं गली की ख़ाक़ बस
मैं को तुम को इस मुहब्बत ने हमारा कर दिया ।।
      कर चुके"सन्दल" ये सांसें भी  तुम्हारे नाम पर
       फिर से जिंदा दास्ताने-वीर-ज़ारा कर दिया ।।
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
       🌻

©Anupma Bajpai
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Anupma Bajpai

रंजिशें हैं तग़ाफ़ुल है बेबसी है बहुत
मैंने ये जिन्दगी मगर शाद से गुज़ारी है
हर सुबह मुश्किलें हज़ार आती हैं मगर 
हर वक़्त मेरी ज़िंदगी से जंग जारी है..

©Anupma Bajpai
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Anupma Bajpai

har har Mahadev ji

©Anupma Bajpai
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Anupma Bajpai

कितनी मुश्किल से नींद आती है।
उसकी यादें बहुत सताती है।

बेरुखी आपकी अरे!ज़ालिम,
आपके और करीब लाती

©Anupma Bajpai
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Anupma Bajpai

औरत को दिमाग नहीं है

घड़ी की सूई संग भागती
गहरी नींद में भी जागती।
न पढ़ती कभी अखबार ये
न होती कभी बीमार ये।
दबे -कुचले चाहत के आंटे सानती
मरी हुई ख्वाहिशों को चाय में छानती।
फिर भी औरत को दिमाग नहीं है।
बच्चों को भेजती स्कूल ये 
अपने सब सपनों को भूल ये।
फिर जुट जाती पति के डायट सूप में
उसके भींगे तौलिये को रख धूप में।
उसे सुंघने हैं उसके गन्दे मोजे
टाई, बटुआ, रूमाल सब वही खोजे।
फिर भी औरत को दिमाग नहीं है।
फिर आई बुढ़ी सास की बारी
उनके तन में है सौ बीमारी।
फिर भी नखरें उनके कम नहीं होते
जब- तक बहू को न दो- चार सुना दे
खानें उनके हज़म नहीं होते।
सब चुपचाप वो सुन लेती है
लपेट ऊन में स्वेटर बुन लेती है।
फिर भी औरत को दिमाग नहीं है।
अभी पिछले महीने तो हीं गई है
फिर शापिंग क्यों जाएगी।
महीना का आखिर चल रहा है
क्या खर्चा बाप के घर से लाएगी।
ये सब उसके लाडली ननद के तानें हैं
देवर की मोटी- मोटी बातें भी उसे चबाने हैं।
वो सब सहम कर सुन लेती है।
कुछ सोचती है
फिर आखिर में चुप रहने को चुन लेती है।
शायद इसीलिए औरत को दिमाग नहीं है।
                                   डौली कुमारी 🌹

©Anupma Bajpai
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Anupma Bajpai

बचपन में सिरहाने
माँ का हाथ होता था,
जवानी में सिरहाने 
जगह किताबें और 
मोबाईल फ़ोन ने ले ली…
बुढ़ापे का दौर अलग है 
अब सिरहाने दावा की शीशी 
और चश्मा होता है।
                🪶
#हिंदी

©Anupma Bajpai
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Anupma Bajpai

झुकना बहुत अच्छी बात है ये नम्रता क़ी पहचान है लेकिन आत्म - सम्मान खो कर झुकना खुद को खोने जैसा है 🙏

©Anupma Bajpai
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