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shashank9952
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shashank

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shashank

तुमने जब ख़ामोशी का कफ़न ओढ़ा 
तो हमने रातों में सोना सीख लिया

तेरी नाराज़गी के आँसू जब बहना चाहे
तो हमने ज़रा सा रोना भी सीख लिया

सिर्फ़ तुम्हें पाने की कोशिश में
खुद को खोना भी सीख लिया

एक दफ़ा मिला क्या तुमसे इन शामों में 
अब तो बस तेरा होना सीख लिया

शशांक मिश्र

©shashank #boat
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shashank

हर सुबह में तलाशा है तुम्हें
तेरी यादों में गुज़रती है हर शाम
ना ग़ालिब हूँ ना गुलज़ार हूँ
मैं हूँ बस एक शायर बदनाम

शशांक मिश्र

©shashank #moonbeauty
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shashank

इन अल्फ़ाज़ों को जुटाकर महज़ लिखना ही सीखा है मैंने
ग़म के एहसास तो अक्सर ज़िंदगी घोल देती है

शशांक मिश्र

©shashank #EveningBlush
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shashank

तुम्हें भले ही ठहरा हुआ क्यों ना दिखे
मगर ये समंदर भी कभी बहता है
 
तुम कभी सुनने की कोशिश तो करो
ये ख़ामोश कोहरा भी बहुत कुछ कहता है

शशांक मिश्र

©shashank #fogg
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shashank

इन ग़मों के साथ ज़रा आँसू भी दो ना मुझे
अब जी भर कर रोना चाहता हूँ

एक दफ़ा बचपन में ले चलो ना मुझे
फ़िर ज़रा सुकून से सोना चाहता हूँ

नहीं मिला किसी का साथ अगर
तो इस अकेलेपन को भी खोना चाहता हूँ

नहीं होना अब किसी और का मुझे
मैं खुद का होना चाहता हूँ

शशांक मिश्र

©shashank

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shashank

जो है उसकी हमें कद्र नहीं, 
जो नहीं है बस उसकी फ़रमाइश है
किसी को ख़ामोशी की तलाश है, तो किसी को आवाज़ों की ख़्वाहिश है

शशांक मिश्र

©shashank #Light
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shashank

ख़ुशियों की उम्मीद तो नहीं अब इस ज़िंदगी से
तो क्यों ना इन ग़मों को ही शान से जिया जाए
इस मशरूफ़ सी दुनिया में अब इंतज़ार भी किसका करें
तो चलिए इन अश्क़ों को भी अकेले ही, शान से पिया जाए

शशांक मिश्र

©shashank #SittingAlone
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shashank

अक्सर तुझे मनाते मनाते मैं खुद से ही रूठ रहा था 
इन रिश्तों को जोड़ते जोड़ते मैं अंदर से टूट रहा था
वैसे लगा तो था की तुम्हें हासिल कर पूरी क़ायनात मयस्सर हो गयी है हमें, 
मगर पीछे मुड़कर जो देखा तो मेरा वजूद ही मुझसे छूट रहा था

शशांक मिश्र

©shashank #walkingalone
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shashank

ख़ामोशी के इस शोर को ज़रा कम कर ना ऐ ज़िंदगी
मैं मेरे अंदर की आवाज़ सुनना चाहता हूँ
ज़िम्मेदारियों के तले अब मत दफ़्न कर मुझे
मैं मेरे भी कुछ अधूरे ख़्वाब बुनना चाहता हूँ


शशांक मिश्र

©shashank #alone
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shashank

काश मेरे होने की कीमत मेरे होते हो समझ लेते
गम को पीने की वजह पीते ही समझ लेते
मेरी उल्फ़त को साबित करते-करते थक सा गया था
काश मेरे इश्क़ कि गहराई ज़िक्र होते ही समझ लेते

लम्हे काफ़ी बीते मगर हमारे बीच बातें न थी 
गम की शामें तो थी मगर इश्क़ कि रातें न थी
तेरे गम का कफ़न कुछ इस कदर ओढ़ा था मैंने,
फर्जी सी हँसी तो थी चेहरे पर,मगर जिस्म में साँसें न थी 

मैं तो नहीं इस दुनिया में मगर मेरे अल्फ़ाज़ ज़िन्दा रहेंगे
मिटने वाले ये शब्द नहीं हर गर्दिशों को सहेंगे
लफ़्ज़ में तब्दील न हुए तो कतरा-कतरा आसुओं से बहेंगे
तुम इन्हें सुनने की कोशिश करना हर वक़्त कुछ कहेंगे

शशांक मिश्र #peace
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