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prabhjeetsinghpa4364
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Prabhjeet Singh Param

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Prabhjeet Singh Param

ज़ख्म भर जातें हैं जल्दी, जिस्म के मगर,
खरोंच मिटती नहीं, कभी दिल पे लगी,
दिल्लगी होती ग़र ये, तो कोई ग़म न था,
कैसे भूलादूं, जो उनसे है ये दिल की लगी।।

     -----प्रभजीत सिंह 'परम'

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Prabhjeet Singh Param

ख़ुदा है ग़र कहीं, तो बस है यहीं, ग़र यहाँ नहीं तो, फिर कहीं नहीं, तेरे आंचल में ही है जन्नत, ए माँ, ऊपर आंसमा के सिवा कुछ नहीं। ----- प्रभजीत सिंह 'परम' #Poetry

ख़ुदा है ग़र कहीं, तो बस है यहीं, ग़र यहाँ नहीं तो, फिर कहीं नहीं, तेरे आंचल में ही है जन्नत, ए माँ, ऊपर आंसमा के सिवा कुछ नहीं। ----- प्रभजीत सिंह 'परम' #Poetry

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Prabhjeet Singh Param

मांग रहें हैं आज यही दुआ, हम परिंदे मौला से।
तड़प-तड़प कर मांगे मौत, वो दरिंदे मौला से।।


On asifa rape case
दुखद घटना

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Prabhjeet Singh Param

जो कर रहें हैं इंतजार, मेरे पिघलने का
कोई जाकर उन्हे बताए, मैं पत्थर का हूँ।।
   
----प्रभजीत सिंह 'परम'

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Prabhjeet Singh Param

शरण राम की लेले, बेड़ा तेरा फिर पार हो जाएगा सुध नाम की लेले, मन का हल्का भार हो जाएगा इक वही है अपना, दुनिया तो ये बैगानी ही है जग में अपनापन न ढूँढ, दिल तार-तार हो जाएगा ------ प्रभजीत सिंह 'परम' 🙏 #Poetry

शरण राम की लेले, बेड़ा तेरा फिर पार हो जाएगा सुध नाम की लेले, मन का हल्का भार हो जाएगा इक वही है अपना, दुनिया तो ये बैगानी ही है जग में अपनापन न ढूँढ, दिल तार-तार हो जाएगा ------ प्रभजीत सिंह 'परम' 🙏 #Poetry

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Prabhjeet Singh Param

मन मंदिर में तुम राम बसाओ,
बाँके-बिहारी घनश्याम बसाओ,
रूप अनेक सही, पर वो एक है,
किसी रूप में तुम नाम बसाओ।। 

      ----प्रभजीत सिंह 'परम' 
🌺🙏🌺

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Prabhjeet Singh Param

हमें 'रूह' से मुहब्ब़त थी, उसे 'जिस्म' प्यारा था, हम 'खिलौने' थे उसके, पर वो 'ख़ुदा' हमारा था, जी भरकर खेला, और जब 'जी' भर गया उसका, मयीयत काँधे पे उठा मेरी, दिया मुझे सहारा था।। ----प्रभजीत सिंह 'परम' 🙏 #Poetry

हमें 'रूह' से मुहब्ब़त थी, उसे 'जिस्म' प्यारा था, हम 'खिलौने' थे उसके, पर वो 'ख़ुदा' हमारा था, जी भरकर खेला, और जब 'जी' भर गया उसका, मयीयत काँधे पे उठा मेरी, दिया मुझे सहारा था।। ----प्रभजीत सिंह 'परम' 🙏 #Poetry

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Prabhjeet Singh Param

हमें 'रूह' से मुहब्ब़त थी, उसे 'जिस्म' प्यारा था, हम 'खिलौने' थे उसके, पर वो 'ख़ुदा' हमारा था, जी भरकर खेला, और जब 'जी' भर गया उसका, मयीयत काँधे पे उठा मेरी, दिया मुझे सहारा था।। ----प्रभजीत सिंह 'परम' 🙏 #Poetry

हमें 'रूह' से मुहब्ब़त थी, उसे 'जिस्म' प्यारा था, हम 'खिलौने' थे उसके, पर वो 'ख़ुदा' हमारा था, जी भरकर खेला, और जब 'जी' भर गया उसका, मयीयत काँधे पे उठा मेरी, दिया मुझे सहारा था।। ----प्रभजीत सिंह 'परम' 🙏 #Poetry

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Prabhjeet Singh Param

 गाते हुए वंदे मातरम्, आये दीवाने झूमकर।
हंसते हुए चढ़ गए फाँसी, फंदों को चूमकर।।
       ------प्रभजीत सिंह 'परम'
🇮🇳🙏🇮🇳

गाते हुए वंदे मातरम्, आये दीवाने झूमकर। हंसते हुए चढ़ गए फाँसी, फंदों को चूमकर।। ------प्रभजीत सिंह 'परम' 🇮🇳🙏🇮🇳 #Poetry

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Prabhjeet Singh Param

जनता को हंसा गए वो, मंचो पर भी छा गए वो, 
कुछ पुराने, कुछ नए, चंद चुटकुले सुना गए जो,
दर्द सुनाता रह गया मैं, अश्क किसी का न बहा,
तालियाँ बजती रहीं उनपे, जानें क्या गा गए जो।।

     -----प्रभजीत सिंह 'परम'
🙏

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