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mdmunnareza1832
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Md Munna Reza

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Md Munna Reza

जब कभी भी मन उदास होता है, 
 तन्हा होने का अहसास होता है, 
 
 क्यों ख़ुशी पल में यू रूठ जाती है, 
 ऐसा क्यों अक्सर मेरे साथ होता है, 
 
 मत गिनाना ऐब किसी के भी यंहा, 
 आइना हर किसी के पास होता है, 
 
 तुम छुपा लो गुनाह चाहे कितने भी, 
 वँहा एकदिन सबका हिसाब होता है, 
 
 कैसे जाने “मन” कि कौन अपना है, 
 यंहा हर इक चेहरे पे नकाब होता है,

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Md Munna Reza

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला 
 अगर गले नहीं मिलता, तो हाथ भी न मिला 
 
 घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे 
 बहुत तलाश किया, कोई आदमी न मिला 
 
 तमाम रिश्तों को मैं, घर में छोड़ आया था 
 फिर इसके बाद मुझे, कोई अजनबी न मिला 
 
 ख़ुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैंने 
 बस एक शख़्स को मांगा, मुझे वही न मिला 
 
 बहुत अजीब है ये कुरबतों की दूरी भी 
 वो मेरे साथ रहा, और मुझे कभी न मिला

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Md Munna Reza

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई 
 जैसे एहसान उतारता है कोई 
 आईना देख के तसल्ली हुई 
 हम को इस घर में जानता है कोई 
 पक गया है शज़र पे फल शायद 
 फिर से पत्थर उछालता है कोई 
 फिर नज़र में लहू के छींटे हैं 
 तुम को शायद मुग़ालता है कोई 
 देर से गूँजतें हैं सन्नाटे 
 जैसे हम को पुकारता है कोई.

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Md Munna Reza

मुझसे बिछड़ के ख़ुश रहते हो, 
 मेरी तरह तुम भी झूठे हो, 
 इक टहनी पर चाँद टिका था , 
 मैं ये समझा तुम बैठे हो, 
 उजले-उजले फूल खिले थे, 
 बिल्कुल जैसे तुम हँसते हो, 
 मुझ को शाम बता देती है, 
 तुम कैसे कपड़े पहने हो तुम, 
 तन्हा दुनिया से लड़ोगे, 
 बच्चों सी बातें करते हो ||

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Md Munna Reza

ऐसे चुप है कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे​;​ 
 ​तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे​;​​​ 
 ​​​​अपने ही साये से हर कदम लरज़ जाता हूँ​;​ 
 ​रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे​;​ 
 ​​​​कितने नादाँ हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे​;​ 
 ​याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे​;​ 
 ​​मंज़िलें दूर भी हैं, मंज़िलें नज़दीक भी हैं​;​ 
 ​अपने ही पाँवों में ज़ंजीर पड़ी हो जैसे​;​ 
 ​​​​आज दिल खोल के रोए हैं तो यों खुश हैं ‘
 ​चंद लमहों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे।

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Md Munna Reza

हम पा न सके तुझे मुद्दतों से 
चाहने के बाद.....
और किसी ने अपना बना लिया 
चंद रस्में निभाने के बाद.....

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Md Munna Reza

एक सवाल पूछती है मेरी रूह 
अक्सर.... 
मैंने दिल लगाया है या ज़िन्दगी दाँव 
पर.....

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Md Munna Reza

सोचता था रात भर करवट 
बदल बदल कर 
जाने वो क्यों बदल गया 
मुझको इतना बदलकर ||

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Md Munna Reza

सुना था हमारे दर्द का 
एहसास अपनों को होता है 
पर अपने ही दर्द दे तो 
एहसास कौन करे ||

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Md Munna Reza

कल उसकी याद पूरी रात आती रही,
हम जागे पूरी दुनिया सोती रही,
आसमान में बिजली पूरी रात होती रही,
बस एक बारिश थी जो मेरे साथ रोती रही

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