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V J

चीफ कन्ट्रोलर भारतीय रेलवे, नई दिल्ली

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V J

२६/०४/२३
विषय #जासूस

दुश्मनों से देश को रखता महफूज़ मैं
हाँ भारत माँ का पुजारी एक 
पूत मैं
कैसे बताऊँ अपने परिवार को
हूँ एक जासूस मैं, हूँ  एक जासूस मैं

दुश्मनों के देश में, भेष बदल कर रहते हैं 
षड्यंत्रों की हम पल पल खबर रखते हैं

दुश्मनों की चाल को
करता अवरुद्ध मैं
हूँ एक जासूस मैं, हूँ एक जासूस मैं

जब कभी पकड़ ले, दुश्मन हमें कभी
मौत के घाट उतार देती है वो तभी

देश भी पहचानने से, मोड़ लेता मुख है
हूँ एक जासूस मैं, हूँ एक जासूस मैं


लावारिस घोषित हो जाती लाश है
मुखाग्नि देने को, कोई होता नहीं पास है
कैसे प्रकट करूँ, अपना असीम दुख मै
हूँ एक जासूस मैं, हूँ एक जासूस मैं

स्वरचित विशाल कुमार जायसवाल दिल्ली

©V J
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V J

२६/०४/२३
#माँ शारदे काव्य मंच
विषय#स्वर

वीणावादिनी स्वर की देवी
स्वर का देती वरदान है
मुझको भी दो माँ स्वर की शक्ति
माँ तू मेरी महान है

स्वर बिना सृष्टि नहीं
स्वर है तो प्राण है
स्वर है तो चेतना है
स्वर है तो जान है 

मुझको भी दो माँ स्वर की शक्ति
माँ तू मेरी महान है

कोयल काली होते हुए भी
सबके मन को भाये
अपने स्वर के जादू से
सबका मन हरषाये

स्वर की जादूगरी से
रखती विशिष्ट पहचान है
मुझको भी दो माँ, स्वर की शक्ति
माँ तू मेरी महान है

गीतकार और कवियों की
रचना, बिन स्वर अधूरी है
स्वर सिद्ध गायक जब गाये
तब होती ये पूरी है

काव्य पाठ भी माँ शारदे
बिना स्वर, बेजान है
मुझको भी दो माँ, स्वर की
शक्ति
माँ तू मेरी महान है

पूजा तप विधान न जानूँ
माँ तुझसे वरदान मै मा़ंगू
स्वर की शक्ति मुझे भी दे दो
तेरी कृपा को मै हूँ ताकूं

स्वर नहीं तो कुछ भी नहीं
स्वर बिन सब निष्प्राण है
मुझको भी दो माँ, स्वर की शक्ति
माँ तू मेरी महान है

स्वरचित मौलिक
विशाल कुमार जायसवाल दिल्ली

©V J
  #Flower
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V J

०४/०४/२३
विषय--बेमौसम बरसात
याद आ गयी मुझे
बचपन की एक बात
जेठ की गर्मी का कहर
सब हो रहा था भाप
तभी मैं अबोध बोला
आज होगी बरसात
लोग मुझे कहने लगे पागल
उड़ाने लगे मजाक
शायद प्रकृति माता को
अच्छा न लगा उपहास
जेठ के मौसम में
हो गई बेमौसम बरसात

सत्य घटना
मेरे जीवन का अविस्मरणीय पल
 स्वरचित विशाल कुमार जायसवाल दिल्ली

©V J
  #Tea
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V J

स्वतंत्र सृजन १४५
दिनांक २५/०४/२३
विषय परिवर्तन

परिवर्तन शाश्वत नियम प्रकृति का, 
यह तो अवश्य सम्भावी है
फिर क्यों करता , चिन्ता ये मन
कुछ भी नही स्थायी है

निशा भयावह लम्बी क्यों न हो
अन्त तो उसका सुनिश्चित है
दिवस की बारी, आती फिर है
करता सूर्य आलोकित है

अंधकार का अन्त है होता
देता सबको दिखलाई है
परिवर्तन शाश्वत नियम प्रकृति का
यह तो अवश्य सम्भावी है

हार न हिम्मत, हे बन्दे तू
धैर्य को जरा कर धारण
इतिहास में भरे पड़े हैं
कितने ही देखो उदाहरण

राई बना पर्वत पल में
और बना पर्वत राई है
परिवर्तन शाश्वत नियम प्रकृति का
वो तो अवश्य सम्भावी है

कलाम ने बेचा अखबार कभी
अंततः राष्ट्रपति वे बने
वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी जी
कभी थे वो चाय बेचते

मामूली थे ये लोग कभी
पर, प्रतिष्ठा की पराकाष्ठा पाई है
परिवर्तन शाश्वत नियम प्रकृति का
वो तो अवश्य सम्भावी है

महामूर्ख था कालीदास कभी
सरस्वती पुत्र था कहलाया
महाकामी था तुलसीदास कभी
और राम चरित मानस रच डाला

काव्य- लेखन क्षेत्र में, दोनों ने
पारंगतता पाई है
परिवर्तन शाश्वत नियम प्रकृति का
वो तो अवश्य सम्भावी है

कैंसर से पीड़ित था युवराज
फिर भी क्रिकेट में नाम कमाया
स्टेफी ग्राफ को मारी गई थी चाकू फिर भी टेनिस में परचम लहराया

लड़कर मौत से, दोनों ने
सफलतायें पाई हैं
परिवर्तन शाश्वत नियम प्रकृति का
वो तो अवश्य सम्भावी है

जहाँ था टेथिस सागर कहीं
वहां हिमालय है खड़ा
द्वारिका पूरा का पूरा
सागर में है डूबा पड़ा

प्रकृति ने इशारे इशारे में
बड़ी बात समझाई है
परिवर्तन शाश्वत नियम प्रकृति का
वो तो अवश्य सम्भावी है

# साहित्य सागर
स्वरचित विशाल कुमार जायसवाल दिल्ली

©V J
  #alone
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V J

२४/०४/२३
विषय शब्द सीढ़ी
समझदारी, जिम्मेदारी, वफादारी, ईमानदारी, रिश्ते दारी


नहीं जानता दांव- पेंच
नहीं मै खिलाड़ी
मैं नादान भोला भाला
मैं हूँ अनाड़ी

नासमझ हूँ मेरे दोस्तों
नहीं है #समझदारी#
मैं नादान भोला भाला, 
मैं हूँ अनाड़ी

मैंने सौंप दिया सर्वस्व
अपने कन्हैया को
मैंने सौंप दी है नैया
दाऊ जी के भैया को

मेंरे हाथ में कुछ नहीं
सब कान्हा की# जिम्मेदारी#
मैं नादान भोला भाला
मैं हूँ अनाड़ी

धोखे कदम कदम पर
चेहरों के पीछे चेहरे
माया है ठगनी यारों
यहाँ पर सब हैं ठगेरे

दरबार प्रभु का सच्चा
जिन्दा जहाँ #वफादारी#
मैं नादान भोला भाला
मैं हूँ अनाड़ी

चन्द कागज़ के टुकड़े
हुए अस्मतों पर भारी
ईमान बिक रहा यहाँ
घटिया हो रहा संसारी

घुट घुट कर मर रही है
इस जग में#ईमानदारी#
मैं नादान भोला भाला
मैं हूँ अनाड़ी

नाते सब हैं झूठे
मतलब के हैं रिश्ते
होती जहां है दौलत
वहीं पर ये हैं टिकते

प्रभु से जोड़ ले नाता
करले उनसे # रिश्तदारी#
मैं नादान भोला भाला
मैं हूँ अनाड़ी

स्वरचित विशाल कुमार जायसवाल दिल्ली

©V J
  #Sachin

Sachin

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V J

२४/०४/२३
विषय # ए चांद जरा ठहर
 जा

ए चांद जरा ठहर जा
ए चांद जरा ठहर जा
विरह की अगन में, 
चकोर जल न जाये
दीवाना, चकोर तेरा
तड़प के मर न जाये

अपने दीवाने पर तू
ए चांद न कहर ढा
ए चांद जरा ठहर जा
ए चांद जरा ठहर जा

त्यौहार करवा चौथ का
सुहागिनें हैं प्यासी
न बादलों की ओट ले
न खेल तू, लुका- छिपी

दे दे दर्शन तू सबको
नीरदांचल से निकल जा
ए चांद जरा ठहर जा
ए चांद जरा ठहर जा

शायर हो या कवि हो
सबको करते आकर्षित
कोई पढ़ता है मुशायरा
कोई लिखता है कवि चित्त

न हो नज़रों से ओझल
एकटक तू नज़र आ
ए चांद जरा ठहर जा
ए चांद जरा ठहर जा

स्वरचित विशाल कुमार जायसवाल दिल्ली

©V J
  #Sachin
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V J

जीवन में कभी कभी
आते हैं ऐसे पड़ाव
कठिन हो जाता है
करना निश्चय कि
जायें तो कहां जाये ं
न जाने कितने मंथन
कितने विचार दोहन होने हैं
एकांत में बैठकर सोचते हैं
फिर भी जवाब हो जाता है मुश्किल
छलनी होती आत्मा बेचैन होता दिल
मन न हो पाता एकाग्र
तीव्र गति से होती भागमभाग
अस्थिर मन में उठ रहा होता तूफान
मन रहता व्यथित और परेशान
न मनोरंजन न अध्ययन
न ही कहीं भ्रमण की होती इच्छा है
न ही किसी धर्म कर्म में मन लगता है
पलकें भी बन्द न होतीं
नींद उड़ जाती है
इस दुनिया में दर्द किसी को
बताने में मन डरता है
चाणक्य भी एसा करने को मना करताहै
स्वरचित विशाल कुमार जायसवाल दिल्ली

©V J #English
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V J

दर्द हुआ
छलके जज्बात
आखें नम हुईं
ह्रदय पे हुआ आघात

फिर भावों की
निकल गयी सविता
और जन्म 
लेने लगी कविता

भावों को 
शब्दों का
 रूप मिलने लगा
और मै
जज्बात को
लिखने लगा

मैं कोई कवि नहीं
साधारण इंसान हूँ
सितम खाया हुआ
एक जान हूँ

माता पिता परिवार से 
बहुत दूर हूँ
कैसे बताऊँ
कितना मजबूर हूँ

कुछ पाने के लिए
बहुत कुछ खोया हूँ
कितनी रातें मैं
चैन से न सोया हूँ

आज भी मेरा
संघर्ष चल रहा है
जमाना कह रहा
तू कवि बन रहा है

©V J
  # दर्द

# दर्द #कविता

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V J

१४/०३/२३
विषय -- शीतल

गमों की तपिश से झुलसा
मन मेरा अति विह्वल
चरणों से लिपट कर रो लूं
माँ, मन मेरा कर दो शीतल

पश्चाताप की अग्नि में
जल रहा है तेरा लाल
जाने अनजाने पापों से
मन में उठ रहा बड़ा मलाल

 सुध लो अपने लाल की माँ
माँ  मन मेरा कर दो निर्मल
चरणों से लिपट कर रो लूं
माँ मन मेरा कर‌ दो शीतल

त्रय ताप हरो दुख दूर करो
माँ मुझे कर दो निष्पाप
शरणागत की रक्षा करो
माँ हर लो सारे संताप
 
तेरी कृपा की शीतलता
रहे बरसती माँ हर पल
चरणों से लिपट कर रो लूं
माँ मन मेरा कर दो शीतल

स्वरचित विशाल कुमार जायसवाल दिल्ली

©V J # शीतल

# शीतल

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V J

स्वतंत्र विषय-आतंकवादी
स्वरचित विशाल कुमार जायसवाल


यूँ ही निकला था घूमने
दिल्ली की गली
एक छोटी लड़की ने
मेरी उंगली थाम ली

पूछा मैंने कि 
क्या चाहिए
बोली, हमको
एक जवाब चाहिए

आतंकवादी अकंल ने
मेरे परिवार को मार डाला
क्या मिला उनको
उन्होंने क्या पा डाला

जितने रूपयों के लिए
मारा गया उनको
क्या वो उनको 
वापस ले आयेंगे
जो पैसा और में
दे दूं उनको

लोरी गा के सुनाने वाली
अब माँ नहीं है
झूला झुलाने वाला
अब बाप नहीं है

क्या आतंकवादी अंकल
के सीने में दिल नही है
क्या उनका परिवार
उनकी महफ़िल नहीं है

ढूंढती हो रोज शाम
कोई आतंकवादी अंकल
मिल जायें
जहाँ सबको ले गये
वहाँ हमको ले जायें

देख कर दर्द उसका
मेरे अश्क छलक पड़े
बोली वो मुझसे
आप तो रोने लगे

क्या देता मैं उसके
 सवालों का जवाब
नि:शब्द हो गया था
देख कर उसके आघात

फिर दौड़ पड़ी वो
किसी के पीछे
चिल्लाते हुए
अंकल एक सवाल पूछना है
बस एक सवाल.....

©V J
  आतंकवादी अंकल

आतंकवादी अंकल #कविता

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