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Ajay Shrivastava

Born on 17 November Booklover Mathemophlie person📓📓 Astrophysics lover 🌍🌍 Scorpion Poet Writer Not on any social connecting app except whatsapp.

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Ajay Shrivastava

यूं अकेला न पाया खुद को कभी, जब से खुद से अलग हुआ हूं मैं।
न दोस्त, न दोस्ती ! सबसे अलग हुआ हूं मैं।
कोई उपयोगिता रही न अब, इतना उपयोग हुआ हूं मैं।
जलते कोयले जैसे, अब खाक हुआ हुआ हूं मैं। 
अपने सफ़र का एक अकेला राही, एक अनजान पथ हुआ हूं मैं।
अपनों से ही छला गया, एक छलित हुआ हूं मैं।
कोई शोर नही सुनता मुझे, ऐसा बघिर हुआ हूं मैं।
अपना दर्द नहीं बयान कर सकता, ऐसा गूंगा हुआ हूं मैं।
मन की इस हताशा से, अब घायल हुआ हूं मैं।
सबका अब क्या करूं? ऐसा विचलित हुआ हूं मैं।
जीवन के पथ में, अकेला हुआ हूं मैं।
खुद को कोसता हुआ, क्या कलंकित हुआ हूं मैं?
इस सोच में डूबा हुआ, एक अन्वेषी हुआ हूं मैं।
समय की रफ्तार को रोक दू, ऐसा योगी हुआ हूं मैं
जीवन पथ को हूं रोक दूं, ऐसा हितैषी हुआ हूं मैं।
अनजानी सी राखों में मिलने का, एक संगम हुआ हूं मैं।
नदियों में घुलने का, एक मोक्षी हुआ हूं मैं।

©Ajay Shrivastava #akelapan
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Ajay Shrivastava

Girl quotes in Hindi आनंद का समय था वही, ईश्वरीय गुणों से जिसकी रचना हुई।
स्नेह के सभी भावों से युक्त, प्रकृति की अलंकृत संरचना हुई।
जब हुई थी वह उसके परिवार में, लक्ष्मी का संदर्भ दिया था सबने।
हताश मन से समाज को, बस वह सोचे जा रही है।
क्या देवी का संदर्भ, सच में समाज समझ पा रहा है।
पल पल बढ़ती हुई वह, अपने कष्ट को सोच रही है।
समाज के रूढ़िवादी दृष्टिकोण को, वह अब समझ रही है।
त्रेता में सीता, द्वापर में द्रौपदी ! सबका हाल सोच रही है।
कलयुग के समाज के आईने में, स्वयं का प्रतिबिंब देख रही है।
लक्ष्मी का संदर्भ पाकर, क्यों वह अब कोसे जा रही है।
आखिर झूठे सम्मान का भाव दिखा कर, वो छली जा रही है।
समाज की विषमता को समझकर, वो बस लड़ती जा रही है।
अपनी इच्छाओं को दबा कर, वह जीवन पार की जा रही है।
उसकी इच्छाओं का वास्तविक सम्मान कर, वह आस लगाए जा रही है।
अपने विचारों में उलझकर, वह हताश हुई जा रही है।
भविष्य की चिंता में, न वह बढ़ पा रही है।
समाज के विभिन्न प्रसंगों से, अपमानित हुई जा रही है।
चरित्र की पराकाष्ठा का प्रमाण, प्रत्येक क्षण दिए जा रही है।
लक्ष्मी के संदर्भ की आस का, आशय में मन में संजोए जा रही है।
आकाश से ऊंचे गौरवगान के लिए, स्वर दिए जा रही है।
बस बढ़कर कुछ कर पायें, वह दिखाने का संकल्प लिए जा रही है।
लक्ष्मी, अहिल्या आदि के चरित्र प्रमाणों से, खुद को दृढ़ किए जा रही है।

©Ajay Shrivastava
  स्त्री- एक स्पर्श और एक स्पर्श पहचान

स्त्री- एक स्पर्श और एक स्पर्श पहचान #Poetry

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Ajay Shrivastava

ज़िंदगी के रास्तों से, गुजरता हुआ एक पथिक हूं मैं।
उतार चढ़ाव में कभी संभला कभी फिसला, एक पथिक हूं मैं।
रास्तों को पार करता गया, एक पथिक हूं मैं।
अनजाने पथों से रिश्ते बनाने वाला, एक पथिक हूं मैं।
कभी कुछ दूर चल कर, रुक जाने वाला, एक पथिक हूं मैं।
रात्रि के सन्नाटेपन से डर जाने वाला, एक पथिक हूं मैं।
धीरज से आगे बढ़ने वाला, एक पथिक हूं मैं।
भोर को चहचहाहट से, आनंद पाने वाला एक पथिक हूं मैं।
कभी कभी रास्ते के धुंधलेपन से, मन को आशा देने वाला पथिक हूं मैं।
कभी यादों को याद करता हुआ, गुनगुनाने वाला एक पथिक हूं मैं।
कुछ दरिया, कुछ समंदर को पार का हौसला रखने वाला, पथिक हूं मैं।
रास्तों को कुछ देकर, आगे बढ़ने वाला एक पथिक हूं मैं।
रास्तों को रास्ता बताने वाला, एक पथिक हूं मैं।
रास्तों से बातें करता हुआ, एक वाचाल पथिक हूं मैं।
थक कर बैठ गया, विश्लेषण करने वाला, एक पथिक हूं मैं।
आलस्य से न रुकने वाला, एक पथिक हूं मैं।
मन के आवेगों के शोर से, एक कर्मण्य पथिक हूं मैं।
रास्तों के सत्य को समझता हुआ, एक सच्चा पथिक हूं मैं।
जिंदगी के रास्तों का नितगामी, एक पथिक हूं मैं।
लक्ष्य तक पहुंच कर, सब न्योछावर कर देने वाला, एक पथिक हूं मैं।

©Ajay Shrivastava # एक_पथिक_हूं_मैं

# एक_पथिक_हूं_मैं #Poetry

11 Love

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Ajay Shrivastava

जिंदगी का जन्म हुआ, जिंदगी की गोद पर पाया था खुद को,
वंदना या स्तुति नहीं कर सकते, इसलिए समय ने रुलाया था मुझको।
खुद पानी पीकर, जिसने रक्त की सैकड़ों धाराएं दी मुझको,
जगत में सबसे बड़ा धर्म, जिसने ये पल दिए मुझको।
पलना न मिला हो सही, पर जिसकी गोद में झूले हैं।
उसके हाथों से खाकर, आज इतने फले फूले हैं।
ढाई अक्षर प्रेम को, ढाई सौ कोटि जिसने लुटाया है,
सच में वही केवल वही, ईश्वर कहलाया है।
अनंतताl की जो मूरत है, वो बिना सजे लगती खूबसूरत है,
ममत्व की वही जो छाप है, जो श्रद्धा से बना एक शिलालेख है।
इनको संभाले रखना, अपने इतिहास को बचाना है।

©Ajay Shrivastava #MereKhayaal
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Ajay Shrivastava

लहज़े बता देते हैं लोगों के, परवरिश हुई है या पाले गए हैं।
झूठा अभिमान बता देता है, क्या ये संवारे गए हैं।
झूठे दिखावे बता देते हैं लोगों के, कैसे ये निखारे गए हैं।
बोली बोल कर बतातें हैं लोग, किस समाज में पिरोए गए है।
चरित्र की प्रशस्ति बताती है, लोग, कैसे परिवार में पोषित किए गए हैं।
मन के विचार दर्शातें हैं, लोग, किस संगति में संग हुए हैं।
अपने विकास से दिखाते हैं, लोग, किस जड़ से उत्पन्न हुए हैं।

©Ajay Shrivastava #झलक
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Ajay Shrivastava

अपने संघर्षों को लिखना, जरूरी सा हो गया है।
भावी पीढ़ी को समझाना, अब कठिन हो गया है।
पढ़कर शायद कुछ समझे वो, अब आभास हो गया है।
मिठाई के डिब्बों को बनाते हुऐ, कुछ अपने लिए कर पाया हूं मैं।
माता के आशीर्वाद से, आज कुछ बन पाया हूं मैं।
कारें पोछीं, बोझा उठाया, तब यहां तक आ पाया हूं मैं।
माता के संघर्षों से,  बन पाया हूं मैं।
बीजों की सफ़ाई करके, बोरों में पैकेट्स भरके, अब सही कर पाया हूं मैं।
शिक्षा की प्राप्ति की लिए, किस्मत से लड़पाया हूं मैं।
गुरुओं का सहयोग मिला, तब अजेय बन पाया हूं मैं।
इस आज के निर्माण के लिए, रातों से लड़ पाया हूं मैं।
ज्ञान के उद्देश्य से, एक शिष्य बन पाया हूं मैं।
बहुत से शिक्षकों के आशीर्वाद से, अपना भविष्य सुधार पाया हूं मैं।

©Ajay Shrivastava #सीख
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Ajay Shrivastava

वक्त की परिभाषा क्या कहूं, वक्त खुद परिभाषा है।
जीवन के आयामों की, वक्त ही अभिलाषा है।
सोचते हुए विचलित मन की, बस यही जिज्ञासा है।
क्यों तुझको रोक नहीं सकता, मन में यही निराशा है।
व्यक्ति हो, दानव हो, या हो देव ही, तू सबके लिए आशा है।
घड़ी की सुइयों, कैलेंडर के महीनों में, सजाया गया एक रास्ता है।
दिशा का पता देते हुए, तू खुद जीवन की परिभाषा है।
अतीत के सुखों, दुखों, यादों को, संजोने वाला बस्ता है।
भविष्य के निर्माण के लिए, अनंत योजनाओं का रास्ता है।

©Ajay Shrivastava #वक्त
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Ajay Shrivastava

कभी कुछ कमीं, कभी कुछ पूर्ण हुआ हूं मैं,
जीवन की जंग में कभी घायल हुआ हूं मैं।
इस तिलस्मी दुनिया में, कई बार खोया हूं मैं।
परंतु जीवन की इस दौड़ में, कभी कभी रोया हूं मैं।
अटकलें लगीं है बहुत, हर बार हिम्मत से बढ़ पाया हूं मैं।
इस भाग दौड़ में खुद से और सच से, न भाग पाया हूं मैं।
हुऐ हताश मन से, न लड़ पाया हूं मैं।
केवल ज्ञान और सिर्फ ज्ञान से, कुछ बन पाया हूं मैं।
किस्मत क्या होती है? कैसी होती है?
केवल ये समय ही होता है, ये बता पाया हूं मैं।
ईश्वर के सच से, खुद का चित समझ पाया हूं मैं।
समय के इस शोर से, खुद को संभाल पाया हूं मैं।

©Ajay Shrivastava #जिंदगी…

जिंदगी… #Poetry

9 Love

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Ajay Shrivastava

कुछ चंचल सी, कुछ नटखट सी है मेरी गुड़िया,
अपने आप में, कुछ उदास सी है मेरी दिव्या।
समय की बात है, एक छुपी आस है मेरी गुड़िया,
जल्दी सब सही हो जायेगा, मेरी बिटिया।
कष्ट जो तुम्हें हुआ है, हम सब हैरान हैं बिटिया,
पर परेशान न हो, मेरी गुड़िया।
ये समय बीत जाएगा, मेरी गुड़िया,
फिर अच्छी यादें लाएगा, मेरी दिव्या।

©Ajay Shrivastava #My_sister_My_doll
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Ajay Shrivastava

दिल में कुछ तूफान सा उठा है,
क्या खुदा ने उसे मेरे नसीब में लिखा है|
दीवानगी ने उसे, उस हद तक चाहा है,
हद की हद, भी खत्म हो  गयी है|

©Ajay Shrivastava #Love

Love #लव

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