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saurabhrana5292
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Saurabh Rana

Poet

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Saurabh Rana

हक़ दूजों का मार जो खाएं वे समृद्ध नहीं होते,
जिनके घर अन्धे की लाठी वे जन वृध्द नहीं होते,
रखो उड़ानें ऊँची पर उद्यम भी मन में भरा रहे,
केवल गाल बजा देने से कारज सिद्ध नहीं होते।

सौरभ राणा (K.P.) #MotivationalPoetry By Kavivar Saurabh Rana

#motivationalpoetry By Kavivar Saurabh Rana

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Saurabh Rana

साथ तुम्हारे प्रीत की, बँधी हमारी डोर।
पर तुम उल्ले छोर हो, अर हम पल्ले छोर।। प्रीत की डोर# कविवर सौरभ राणा

प्रीत की डोर# कविवर सौरभ राणा

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Saurabh Rana

तुम्हारे साथ में जीते औ तुम संग बीत लेते हम,
तुम्हारे हर वचन को मान तब संगीत लेते हम,
तुम्हें बस हाथ में रख हाथ मेरे साथ चलना था,
भले कितनी कठिन होती हर बाजी जीत लेते हम। हर बाज़ी जीत लेते हम # कवि सौरभ राणा

हर बाज़ी जीत लेते हम # कवि सौरभ राणा

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Saurabh Rana

मेरा दिमाग आजकल तनावग्रस्त है,
है रूठा वो या यूँही बस मज़े में मस्त है,
सुबह से ना मेसेज किया एक भी उसने...
है ऑनलाइन पर ना जाने कहाँ व्यस्त है। वो ना जाने कहाँ व्यस्त है# कवि सौरभ राणा

वो ना जाने कहाँ व्यस्त है# कवि सौरभ राणा

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Saurabh Rana

समय के साथ भी बदले नहीं ये इश्क़ ए झमेले,
पहले चेहरा छिपाते थे अब last Seen छिपता है। #time n Love

#Time n Love

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Saurabh Rana

भूल बैठा मैं जो सब कुछ , 
            एक बस तेरी खातिर था।
मगर मासूमियत के पीछे,
          चेहरा कितना शातिर था।। #शातिर चेहरा

#शातिर चेहरा

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Saurabh Rana

साथ चलने का वादा कर, निभाया ना गया तुमसे।
भूल बैठा था दुनिया को, पराया ना हुआ तुमसे।। #भुलाया ना गया

#भुलाया ना गया

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Saurabh Rana

हल्के में जो लिया इसे तो बहुत पड़ेगा रोना जी,
शायद फिर जन-जन को होगा हाथ जान से धोना जी,

संकट के काले बादल से घिरा समूचा भारत है,
एक वायरस कोरोना से सबकी हालत गारत है,
रोज़ आँकड़े बढ़े देख ये साँस थमी रह जाती है,
जो पीड़ित हैं उन्हें देखकर आँख जमी रह जाती है,
स्वजनों की लाशों को हमको पड़ ना जाये ढोना जी,
हल्के में जो लिया इसे तो बहुत पड़ेगा रोना जी.....|1|

इक्कीस दिन घरबैठ पैरवी से भी कुछ को आफत है,
ऐसे ही कुछेक के कारण पूरा भारत आहत है,
घूम रहे नर निरा पशुसम जमा चौकड़ी बैठे हैं,
कर शासन की सतत अवज्ञा अपने मन में ऐंठे हैं,
ये न केवल स्वयं साथ में कितनों को ले बैठेंगे,
होगा न अस्तित्व भला फिर किन बातों पर ऐंठेगे...
घर से बाहर निकल, नहीं तुम बीज मौत के बोना जी,
हल्के में गर लिया इसे तो बहुत पड़ेगा रोना जी........|2|

जब शासन खुद लगा तुम्हारी पूरी साधन सुविधा में,
सुलभ प्रबंध सभी के हित हैं, क्यों पड़ते हो दुविधा में,
केवल है प्रतिबंध तो इतना बाहर पाँव धरो ना जी,
इंतज़ाम अपनी मृत्यु का अपने आप करो ना जी,
तो फिर गला घोंट अपनों का, उनके प्राण हरो ना जी,
हल्के में जो लिया इसे तो बहुत पड़ेगा रोना जी,........|3|

इक्कीस दिन घरबन्दी होना कोई बडी ये बात नहीं,
प्राण बचे तो समझो इससे बढ़कर कोई सौगात नहीं,
अभी सभी कुछ हाथों में है, बात हाथ में रहने दो,
सूखी रोटी खाकर खुद को दर्द कृषक-सा सहने दो।
'राणा' जैसे सूखी खाकर तुम भी धीर धरो ना जी,
हल्के में जो लिया इसे तो बहुत पड़ेगा रोना जी...........|4|

निज अस्तित्व बचाने के हित रखो सफाई पूरी तुम,
अपने हो या भले पराये रखो बनाकर दूरी तुम, 
कुछ ही दिन की बात यार है ये भी दिन कट जाएंगे,
संकट के मँडराने वाले बादल खुद हट जाएंगे।
सबका होगा साथ, साथ में होगा सकल विकास सतत,
आगत दिन होंगे बहु अच्छे, काले दिन हों जाएं विगत।
संयम का परिचय देना है, नहीं धैर्य तुम खोना जी,
हल्के में जो लिया इसे तो बहुत पड़ेगा रोना जी,
                                            ~ सौरभ राणा

कविता में कुछ बात लगी तो इसको Share करो ना जी....... #full poetry on Corona

#full poetry on Corona

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Saurabh Rana

निगाहों ही निगाहों में हज़ारों वार करती हो,
नज़र के तीर को हर बार दिल के पार करती हो,
मुझे तुम चाहते हो फिर ना जाने क्या मुसीबत है,
ना तुम स्वीकार करती हो ना ही इनकार करती हो।
                   ~सौरभ राणा (K.P.) #न तुम स्वीकार करती हो न ही इनकार करती हो

#न तुम स्वीकार करती हो न ही इनकार करती हो #कविता

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Saurabh Rana

कोरोना की चाल पर लग सकता है ब्रेक,
संयम से हम काम लें जागृत रखें विवेक।

       जागृत रखें विवेक धोयें हाथों को मलकर,
      एकजुट हो करें पराजित इसको चलकर।

रविवार को घर से बाहर पाँव धरो ना,
स्वतः खतम हो जाएगी ये बला कोरोना।।

              ~सौरभ राणा. #Janta carfue ke samarthan me

#Janta carfue ke samarthan me

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